देहरादून जिले के अति पिछड़े इलाके हैं चकराता और त्यूनी तहसील। जनजातीय जौनसार क्षेत्र के इस भूभाग में आज भी कई इलाके इतने दुर्गम हैं कि सरकारी अधिकारी तो छोड़िए कोई अदना कारिंदा भी शायद ही पहुंचा हो। भारी बर्फबारी के कारण जिस इलाके का संपर्क लंबे समय तक जिला मुख्यालय से कट जाता हो और बरसात में सड़कों पर चलना जान जोखिम में डालने के समान हो, ऐसे इलाके में आपको लाल-लाल अनार लदे सैकड़ों पेड़ों के साथ अखरोट-सेब के बगीचे नजर आएं तो आश्चर्य होना लाजिमी है। इसके अलावा सब्जियों से भरे खेत और उन्हें ढोने के लिए लगी ट्रकों की कतारें। वह भी तब जब पानी करीब सात किलोमीटर दूर से लाया जा रहा हो। दरअसल, इस दुर्गम इलाके में बुलंद हौसलों की पहचान हैं प्रेमचंद शर्मा ‘अनारवाला’। सुदूर पहाड़ों में जहां न ढंग की सड़कें हैं और न शिक्षा की अच्छी सुविधा, ऐेसे दुर्गम और पिछड़े क्षेत्र में प्रेमचंद शर्मा सालाना 15 से 20 लाख रुपये की कमाई अपनी मेहनत और सूझबूझ से कर रहे हैं। प्रेमचंद उन लोगोें के लिए भी प्रेरणा हैं जो उत्तराखंड के पहाड़ों पर सुविधाओं का रोना रोकर पलायन का बहाना ढूंढते हैं।
न पढ़ाई-लिखाई, न सुख-सुविधा
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से करीब 150 किलोमीटर दूर के दुर्गम इलाके त्यूनी तहसील के हटाल गांव में रहने वाले प्रेमचंद केवल पांचवीं तक पढ़-लिख सके। प्रेमचंद के पिता झांऊ राम ने खेती-किसानी कर परिवार को पाला। जिला मुख्यालय देहरादून तो बहुत दूर था लेकिन हिमाचल प्रदेश मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर। साग-सब्जी और अखरोट आदि को लेकर वे हिमाचल जाकर बेचते। प्रेमचंद बताते हैं कि जब वे छोटे थे तब गाड़ी तो दूर की बात थी, ढंग से पैदल चलने को भी सड़कें नहीं थीं। पगडंडियों से होकर घोड़े-खच्चर या पैदल पीठ पर सामान लादकर हिमाचल में सामान बेचते और जरूरी चीजें खरीदकर लाते। आज भी यह इलाका बरसात में सड़कें खराब होने और सर्दियों में बर्फबारी के कारण जिला मुख्यालय से कई महीनों तक कटा ही रहता है।
लोगों के बोल चुभे तो ठाना
इस दुर्गम और ठंडे इलाके में अनार उगाने का विचार कैसे आया पर प्रे्रमचंद शर्मा ने बताया कि उनके पिता ने हिमाचल से अनार का एक पौधा लाकर रोप दिया था। गोबर डालने वाली जगह पर लगा अनार का पेड़ जब फला-फूला तो बहुत मीठा बीज निकला। तब उन्होंने इस अनार की कलमें तैयार कर और भी पौधे रोपे। जब उन पर अनार फला तो बह बाजार में बिका नहीं। वह अनार मीठा होने के बावजूद मोटे बीजवाला था। इससे जहां प्रेमचंद की मेहनत पर पानी फिर गया, वहीं उनकी अपने गांव के साथ ही आसपास के गांवों में खिल्ली उड़ने लगी। उनको लोग प्रेमचंद अनारवाला कहकर चिढ़ाने लगे। प्रेमचंद को लोगों के बोल इतने चुभे कि उन्होंने तय कर लिया कि अब अनार में ही अपना भविष्य बनाएंगे। फिर वे इधर-उधर से पता कर शोलापुर अनार अनुसंधान केंद्र जा पहुंचे और अलग-अलग किस्मों की कलमें ले आए। साथ ही हिमाचल के कुल्लू-बजौरा के परिचित किसान दलजीत से कंधारी और भगुवा प्रजाति के अनार की कलमें लाकर गांव में लगा दी। जब अनार फला तो एक नई समस्या का सामना करना पड़ा। फलों के अंदर कीड़े पैदा हो गए। इससे परेशान प्रेमचंद की समझ में जब कुछ नहीं आ रहा था तो इसी दौरान उनका संपर्क आंध्र प्रदेश के विलासराव पाटिल नामक किसान से हुआ। उन्होंने प्रेमचंद को बताया कि फूल आते वक्त दवा का छिड़काव करो तो फलों में कीड़े नहीं लगेंगे। प्रेमचंद ने वही किया और फिर अनार उगाने का जो जुनून उन पर चढ़ा वो मिसाल बन गया। आज उनके पास विभिन्न प्रजातियों के दो हजार से अधिक पेड़ों का अनार बगान है। उनको चिढ़ाने के लिए कहा जाने वाला अनारवाला विशेषण आज उनकी विशेषता बन चुका है।
प्रेमचंद शर्मा ‘अनारवाला’ की मेहनत और जज्बे को मैंने देखा है। यदि उनकी तरह लोग सोचें तो उत्तराखंड के खाली होते पहाड़ों की तस्वीर बदलते देर नहीं लगेगी। अनारवाला हमारे लिए गौरव हैं।
के एस चौहान, सहायक निदेशक
सूचना विभाग, उत्तराखंंण्ड
कामयाबी के साथ बदली तकदीर
प्रेमचंद शर्मा के पहनावे, बोलचाल आदि को देखकर सहज विश्वास नहीं होता कि वे मात्र साक्षर की श्रेणी में आते हैं। उम्र के साठवें पड़ाव पर पहुंच रहे प्रेमचंद के चेहरे की लालिमा उनकी खुशहाली बयां करने के लिए काफी है। उनकी मेहनत का ही परिणाम है कि उनके बगीचे को देखने प्रदेश की तत्कालीन प्रमुख सचिव विभा पुरी दास पहुंचीं। इसके अलावा ग्राम्य विकास मंत्री प्रीतम सिंह सहित कई दिग्गज उनके बगीचों का दीदार करने पहुंचे हैं। आज प्रेमचंद अनारवाला की मित्रता देश के कई बड़े लोगों से है। उत्तरखंड सिंचाई विभाग के प्रमुख मोहम्मद उमर ने बताया कि उनकी मुलाकात कई साल पहले सिंचाई के संबंध में प्रेमचंद शर्मा से हुई थी। उनकी मेहनत के वे ऐसे मुरीद हुए कि पढ़ाई-लिखाई, पद इत्यादि से परे उनकी दोस्ती हो गई। उनकी इस दोस्ती को प्रेमचंद भी मानते हैं। उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा, साहब सिंचाई की व्यवस्था पहाड़ों में कहीं हो न हो लेकिन मेरे खेत कोे देखकर कोई एचओडी साहब से शिकायत नहीं कर सकता कि पहाड़ों में उनकी योजनाएं दम तोड़ रही हैं।
प्रेमचंद की कामयाबी को उत्तराखंड सरकार के साथ ही महिंद्रा कंपनी ने कृषि रत्न से सलाम किया। आज उन्हें बागवानी पर व्याख्यान देने के लिए देशभर में बुलाया जाता है। उनसे प्रेरणा लेकर आसपास के गांवों के 15-20 किसानों ने भी अनार उगाना शुरू कर दिया है। कभी घोड़े-खच्चर पर चलने वाले प्रेमचंद के पास आज तीन लक्जरी गाड़ियां हैं।
नहीं रहे सरकार के भरोसे
प्रेमचंद शर्मा ने बताया कि उन्होंने कभी भी मदद के लिए सरकार का मुंह नहीं ताका। उन्होंने जो भी किया अपनी मेहनत से किया। शर्मा कहते हैं कि अगर मैं सरकार के भरोसे रहता तो शायद आज कहीं मजदूरी कर रहा होता या फिर सिर्फ दाल-रोटी का जुगाड़ कर पाता। उन्होंने अफसोस जताया कि हमारे देश को किसानों का देश कहा जाता है लेकिन किसानों के लिए कोई नीति है ही नहीं। उनकी शिकायत उत्तराखंड सरकार से है कि हिमाचल में किसानों और बागवानों के लिए फसल संरक्षित रखने और बेचने की व्यवस्था है मगर हमारे राज्य में नहीं। उन्होंने कहा कि मेरे खेत में आकर बिजनौर के आढ़ती सीधे माल उठाकर नकद पैसा देते हैं। ऐसी व्यवस्था उत्तराखंड में क्यों नहीं बन पा रही कि यहां का आढ़ती या सरकारी विभाग हमसे हमारा माल खरीद ले। उन्होंने कहा, ‘मैंने जो भी कमाया हिमाचल की बदौलत कमाया। उत्तराखंड में तो जिला मुख्यालय पहुंचना ही कठिन है। बाकी बातें तो बाद की हैं।’
पढ़ाकुओं के लिए इनाम-किताब
प्रेमचंद अनारवाला भले ही खुद पांचवीं पास हैं लेकिन उन्होंने अपने बच्चों को इस काबिल बनाया कि चारों बेटे सरकारी नौकरी में हैं। उनके दो बेटे उत्तराखंड पुलिस में सब इंसपेक्टर हैं और एक दिल्ली पुलिस में इंसपेक्टर और एक बेटा उत्तराखंड राजस्व पुलिस में इंस्पेक्टर है। प्रेमचंद गांव के इंटर कालेज में हर साल छठवीं से 11 तक प्रथम आने वाले छात्रों को एक-एक हजार रुपये और 12वीं के टॉपर को डेढ़ हजार रुपये का इनाम स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देते हैं। उन्होंने यह व्यवस्था आजीवन चलाने का संकल्प लिया है।
प्रेमचंद ने कहा कि वे इस इनामी धनराशि को अगले वर्षों में और भी बढ़ाने वाले हैं। उनके पास के गांव के निवासी और उत्तराखंड के सूचना विभाग में सहायक निदेशक केएस चौहान ने कहा कि प्रेमचंद के बारे में जब हम बचपन में सुनते थे तो हमें भी मजाक लगता था कि अनार जैसे नाजुक पेड़ इस इलाके में पनपने असंभव हैं। लेकिन अब लगता है कि प्रेमचंद जैसा जज्बा यदि पहाड़ के अन्य लोगों में भी आ जाए तो पहाड़ से पलायन की दिक्कत अपने आप खत्म हो जाएगी।