संजय लीला भंसाली ने इससे पहले ‘बाजीराव मस्तानी’ फिल्म बनाई थी जो विवादों में रही थी। उस फिल्म में बाजीराव के नर्तक स्वरूप को दिखाया गया जिसे लेकर आपत्ति की गई थी। एक बार फिर भंसाली पदमावती फिल्म को लेकर विवाद में हैं। विवादों पर गौर करें तो ऐतिहासिक प्रतीकों, तथ्यों, विषयों पर जब भी फिल्में बनी हैं तो किसी पर कम तो किसी पर ज्यादा विवाद हुआ है। वर्ष 1941 में पृथ्वीराज के अभिनय में सिकंदर फिल्म बनी जिसमें ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगा। हालांकि तत्समय सिनेमा विधा की उम्र बहुत कच्ची थी।
ऐतिहासिक घटना पर बनी फिल्मों में सर्वाधिक लोकप्रिय ‘मुगल-ए-आजम’ रही। संवाद की गहराई और गीत-संगीत की ऊंचाई ऐसी थी कि ज्यादातर लोगों के जेहन में बस गई। सुनील दत्त और वैजयंती माला की फिल्म आम्रपाली भी ऐतिहासिक तथ्यों से लबरेज थी। पाटलिपुत्र के शासक अजातशत्रु और वैशाली की नगरवधू आम्रपाली के बीच पनपे प्रेम को इसका आधार बनाया गया था। एक दशक पहले 1857 की क्रांति के नायक मंगल पांडेय पर फिल्म बनी जिसमें क्रांतिकारी को एक कोठे पर जाते हुए दिखाया। उसका जबरदस्त विरोध हुआ और उस विरोध में इतना ताप था कि सेंसर बोर्ड की कैंची चल गई। सिंधु सभ्यता का केंद्र रहे मोहनजोदड़ो के नाम पर भी फिल्म बनी लेकिन आम जन की ओर से तो कोई विरोध नहीं हुआ, जनाक्रोश कहीं भी नहीं फूटा लेकिन इतिहासकारों ने इसे सभ्यता संस्कृति के साथ खिलवाड़ बताया। आशुतोष गोवारिकर की जोधा-अकबर को क्षत्रिय समाज का कोप झेलना पड़ा था। अशोका फिल्म तो अजब-गजब की थी। इसमें इतिहास का अंश कम था और प्रेम कहानी अधिक दिखाई गई थी।
साहित्य पर बनी फिल्मों में भी उसके वास्तविक कथ्य से सिनेमाई लोगों ने मुनाफे के चक्कर में छेड़छाड़ करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। चाहे वह तीसरी कसम रही हो या फिर देवदास। फिल्में ही नहीं टीवी पर दिखाए जाने वाले धारावाहिक भी विवादों के घेरे में आए हैं। इनमें जोधा-अकबर, महाराणा प्रताप, सम्राट अशोक, मीराबाई और शेर-ए-पंजाब आदि हैं। जोधा-अकबर पर तो इस कदर विवाद हुआ कि प्रसारण की शुरुआत में यह दिखाना अनिवार्य कर दिया गया कि इसका किसी ऐतिहासिक या वास्तविक घटना से संबंध नहीं है।