सुनील वर्मा
भले ही तमाम ओपीनियन पोल गोवा चुनाव में बीजेपी के पक्ष में माहौल बता रहे हैं लेकिन इसके बावजूद बीजेपी डरी हुई है। राज्य में आम आदमी पार्टी के उभार व आरएसएस परिवार से बागी हुए प्रचारक सुभाष वेलिंगकर की खिलाफत से सहमी भगवा पार्टी सूबे में मुख्यमंत्री पद पर उम्मीदवार घोषित करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही। 40 सदस्यीय विधानसभा के लिए अपने 29 उम्मीदवारों की घोषणा करते समय बीजेपी के वरिष्ठ नेता जे पी नड्डा आज गोल-मोल जवाब देते नजर आए।
सीएम के नाम पर दुविधा
दरअसल, बीजेपी के पास गोवा के लिए दो लोकप्रिय चेहरे है। सीएम लक्ष्मीकांत पारसेकर व पूर्व सीएम मनोहर पर्रिकर। इन दोनों में से किसी एक का नाम चुनाव से पहले घोषित करते ही बीजेपी को भीतरघात का डर सता रहा है। इनमें से किसी का भी नाम चुनाव से पहले सीएम उम्मीदवार के रूप में घोषित न करने की एक वजह आरएसएस परिवार से बागी हुए उनके प्रचारक सुभाष वेलिंगकर भी है। जो इन दोनों से ही खासे खफा हैं। बीजेपी पर्रिकर व पारसेकर की लोकप्रियता को चुनाव में बिना सीएम उम्मीदवार घोषित किए ही भुनाना चाहती है। इसीलिए बीजेपी सीएम उम्मीदवारी पर अपने पत्ते नहीं खोल रही। बताया जा रहा है कि दुविधा ये है कि पर्रिकर या पारसेकर में से किसी एक का भी नाम चुनाव से पहले घोषित किया जाता है तो राज्य में उनके नाम पर तो वोट पड़ेंगे लेकिन दुसरे गुट से मिलने वाला सर्मथन शायद न मिलें। इसीलिए इस सवाल पर जेपी नड्डा कहते हैं कि ‘पार्टी का संसदीय बोर्ड इस मामले पर फैसला करेगा’
वेलिंगकर से सहमी बीजेपी
दरअसल बीजेपी गोवा में सुभाष वेलिंगकर से भी सहमी हुई है। स्कूलों में शिक्षा के माध्यम मुद्दे पर बीजेपी सरकार के साथ वेलिंगकर का टकराव शुरू हुआ था। जिसके बाद बीते 54 साल से आरएसएस से जुड़े वेलिंगकर को बीते साल 31 अगस्त को गोवा आरएसएस प्रमुख उन्हें हटा दिया दिया गया था। तभी से वे बीजेपी की जड़ो में मट्ठा डालने का काम कर रहे हैं। कई सौ संघ के प्रचारक व कार्यकर्ता उनके सर्मथन में आरएसएस से नाता तोड़ चुके है।
बता दें कि पुर्तगालियों के शासन से गोवा के मुक्त होने के बाद जून 1962 में पणजी के महालक्ष्मी मंदिर में राज्य की पहली आरएसएस की शाखा लगी थी। 13 साल की उम्र में वेलिंगकर उस शाखा में पहली बार शामिल हुए । वे उन 50 कार्यकतार्ओं में से एक थे जिन्हें इमरजेंसी के दौरान मीसा के तहत गिरफ्तार किया गया। 68 साल के वेलिंगकर मूल रूप से टीचर हैं । 1996 में उन्हें गोवा विभाग संघचालक की जिम्मेदारी सौंपी गई और इस पद को उन्होंने बखूबी 20 साल तक निभाया। उनकी एक संस्था थी भारतीय भाषा सुरक्षा मंच (बीबीएसएम)। जिसके वे संयोजक थे । वेलिंगकर अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों को दिया जाने वाला अनुदान रद्द किए जाने की मांग कर रहे थे। क्योंकि उनका मानना है कि गोवा में शिक्षा माध्यम के तौर पर क्षेत्रीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार की जरूरत है।
वेलिंगकर दावा करते रहे हैं कि मौजूदा रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और राज्य के मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पारसेकर सहित तमाम कार्यकतार्ओं को उन्होंने आगे बढ़ाया है। लेकिन शिक्षा माध्यम में भाषा के मुद्दे पर दोनों नेताओं ने उनकी जगह पार्टी का साथ दिया । इसीलिए दोनों के साथ वेलिंगकर के रिश्ते तल्ख हो चुके हैं।
एमजीपी का गठजोड़ बीजेपी पर भारी
बीजेपी अब इसलिए भी डरी हुई है कि महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) ने गोवा में बीजेपी से अपना गठबंधन तोड़ दिया है। एमजीपी अध्यक्ष दीपक धवालिकर ने आरएसएस के बागी नेता सुभाष वेलिंगकर के दल गोवा सुरक्षा मंच और शिवसेना से गठबंधन कर लिया है। एमजीपी ने 40 में से 22 पर अपने उम्मीदवारों को चुनाव लड़ाने का ऐलान किया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सुभाष वेलिंगकर इस गठबंधन में ऐसे नेता है जो बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं। वे संघ से लेकर बीेजपी की चुनावी रणनीति को न सिर्फ भली-भाँति समझते है बल्कि उसके खिलाफ रणनीति भी बनाने की क्षमता रखते है। वेलिंगकर व शिवेसना के साथ बना गठबंधन भले ही ज्यादा सीटें हासिल न कर पाएं लेकिन उनके कारण बीजेपी को कई सीटों पर बड़ा नुकसान जरूर होगा। ऐसे में कांग्रेस को लाभ मिलेगा। ये भी हो सकता है कि इसका लाभ लेकर कांग्रेस इस बार फिर गोवा में सत्ता हासिल करने में काययाब हो जाए।
गौरतलब है कि 2012 के विधानसभा चुनावों में गोवा में बीजेपी भा को 21 सीटें मिली थीं और 40 सीटों वाली विधानसभा में वो अपने दम पर सरकार बनाने में सफल रही। कांग्रेस को सिर्फ 9 सीटों से संतोष करना पड़ा। महाराष्ट्र गोमांतक पार्टी को तीन तो अन्य को 7 सीटें मिलीं। इससे पहले 2007 के चुनावों में कांग्रेस 16 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी और सरकार बनाने में सफल रही। बीजेपी को उस समय 14 सीटों से संतोष करना पड़ा। एमजीपी को दो, एनसीपी को तीन तो अन्य को पांच सीटें मिलीं। यहीं कारण है कि बीजेपी पीएम मोदी की लोकप्रियता के सहारे ही गोवा में जनता के बीच जाना चाहती है। क्योंकि रणनीति में उसने जरा भी चूक की और सुभाष वेलिंगकर को मौका मिला तो वे बीजेपी को हराने में कोई कोर कसर नहीं छोडेंगे। गोवा में एक दो सीटों की जीत हार भी सत्ता के समीकरण को गड़बड़ा सकती है।