भारत के गांवों में आज भी टॉयलेट नहीं हैं, जो एक गंभीर समस्या है। यही कारण है कि ऐसे विषयों पर फिल्में बन रही हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छता अभियान में आज लोग बढ़-चढ़कर भागीदारी दे रहे हैं। इसी विषय पर बनी एक फिल्म टॉयलेट एक प्रेम कथा शुक्रवार को रिलीज़ हो गई, फिल्म की कहानी भी गांव देहात में शौचालय की समस्या पर केंद्रित है। जिसका जमकर प्रचार भी किया गया।
साथ ही लोगों में जागरुकता लाने के लिए इस मसले पर एक यू-ट्यूब चैनल भागीरथी फिल्म्स ने भी एक का नया वीडियो बनाया है, जिसमें गांवों में शौचालय न होने की वजह से पैदा होने वाली दिक्कतों को एक लोकगीत के जरिए दिखाया गया है।
इस वीडियो को सामाजिक मुद्दों पर बनी बेस्ट फिल्म का अवॉर्ड मिल चुका है। फिल्म के निर्देशक हैं विनोद कापड़ी, आलोक श्रीवास्तव ने इस गीत के बोल लिखे हैं। गीत को यूपी के कुशीनगर की महिलाओं ने लोकगीत के अंदाज में गाया है।
भाषा में ठेठपन है, लेकिन दर्द वही है। गांव, देहात की महिलाओं को खुले में शोच करने को बेहद गंभीर तरीके से गाया और फिल्माया गया है। वीडियो के शुरु में महिला की आवाज़ में वीओ आता है जिसमें वह कहती है, “महिलाएं अपनी इच्छाओं को भी दबाएं, अपनी टट्टी को भी दबाएं…यह कहां का इंसाफ है.. जो आजा़द देश में गंदगी से आजादी ना मिलने की गहरी पीड़ा का एहसास करवाता है।
जिसके बाद के बोल देहात की उन महिलाओं के स्थिति को साफ करते हैं जहां मोबाईल, टीवी तो पहुंच गया है लेकिन टॉयलेट की व्यवस्था नहीं हो पाई है। महिलाएं गाती हैं –
रोगवा से होत नहीं टट्टी मैं का करुं
खेतवा में जाए पड़े टट्टी मैं का करुं
सईंया गए और मोबाईल ले आए
बबुआ सहरिया से टीवी मंगाए
घर में बनाए नहीं टट्टी मैं का करुं….