लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है. सियासी योद्धा खुद को अर्जुन के माफिक तीर-तरकश और कवच के साथ तैयार मानकर चल रहे हैं. लेकिन, चुनावी महाभारत में विजय पताका फहराने के लिए एक अदद कृष्ण की जरूरत भी सभी महसूस कर रहे हैं. आखिर कोई तो हो सारथी, जो बेड़ा पार लगाए. नवादा संसदीय सीट को लेकर एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति है. एक दल की कौन कहे, एक घर से कई दावेदार खम कसते नजर आ रहे हैं. वे खुद के अब तक किए-धरे का पूरा प्रोफाइल अपने साथ लिए फिर रहे हैं, ताकि गोटी लाल हो जाए. फिर भी सबका खुद पर पूरा विश्वास जम नहीं रहा. ऐसे में, उन्हें पॉलिटिकल गॉड फादर ही अपनी नैया के खिवैया नजर आ रहे हैं. लिहाजा, सभी अपने गॉड फादर के दरबार की गणेश परिक्रमा में जुटे हुए हैं.
नवादा के हाई प्रोफाइल भाजपा सांसद गिरिराज सिंह क्षेत्र में कराए गए विकास कार्यों की सूची के साथ अपने टिकट को लेकर आश्वस्त दिख रहे हैं. वहीं हिसुआ विधानसभा क्षेत्र की 2005 से लगातार अगुवाई कर रहे अनिल सिंह भी क्षेत्र में कराए गए विकास कार्यों और जिले में लगातार बढ़ रहे अपने राजनीतिक कद के भरोसे लोकसभा सीट से उम्मीदवारी को लेकर ऊंची उम्मीदें लगाए बैठे हैं. कहने की जरूरत नहीं कि दोनों की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि किसकी लॉबी कितनी प्रभावी रहती है. सांसद समर्थक आश्वस्त हैं कि उलट-फेर जैसी कोई बात पेश नहीं आएगी. जबकि विधायक खेमे की उम्मीद इस आधार पर बरकरार है कि राजनीति का ऊंट कब किस करवट बैठ जाए, कहा नहीं जा सकता.
ले-देकर इन दोनों कद्दावर नेताओं की सारी उम्मीदें अपने गॉड फादर पर टिकी हैं.
राजनीतिक महत्वाकांक्षा चुनावी मौके पर जोर न मारे, ऐसा तो नहीं हो सकता. चूंकि अभी तक किसी दल ने टिकट बंटवारे को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं, इसलिए अधिकांश नेता अपने लिए सब शुभ-शुभ मानकर चल रहे हैं. एनडीए के घटक दल जदयू के कौशल यादव ने पिछले चुनाव में अपनी बेहतर धमक का परिचय दिया था. चूंकि इस बार एनडीए के दोनों प्रमुख घटक दलों में सीटों का बराबर-बराबर बंटवारा होना है, इसलिए नवादा सीट को लेकर भी उहापोह की स्थिति बनी हुई है. अगर नवादा सीट जदयू के खाते में जाती है, तो कौशल यादव की उम्मीदवारी को लेकर ‘किंतुु-परंतु’ वाली स्थिति पैदा नहीं होगी. राजनीतिक प्रेक्षक इसे लेकर पूरी तरह आश्वस्त नजर आ रहे हैं. कौशल इस मोर्चे पर सफल रहेंगे, ऐसा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उनकी नजदीकियों के आधार पर विश्वास के साथ कहा जा सकता है.
महा-गठबंधन का बंधन भले हो चुका दिखता है, लेकिन टिकट को लेकर अभी भी स्थितियां साफ न होना कई संभावनाओं की ओर इशारा करता है. राजद की उम्मीदवारी वाली नवादा सीट पर इस बार राज बल्लभ प्रसाद के न होने से कई नाम पटल पर आ रहे हैं, जिनमें राज बल्लभ प्रसाद के छोटे भाई बिनोद यादव और उनके बड़े भाई एवं नवादा के पूर्व विधायक कृष्णा प्रसाद यादव के जिला पार्षद पुत्र अशोक यादव प्रमुख हैं. समर्थकों का दावा है कि इस परिवार में कई ऐसे नाम हैं, जो यह जिम्मेदारी संभालने के लिए तैयार हैं. कहने की जरूरत नहीं कि राज बल्लभ की पत्नी विभा देवी एवं पुत्र एकलव्य के नाम भी इस परिदृश्य से बाहर नहीं हैं.
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा का नवादा से लगाव जिले के लोग कई बार देख चुके हैं. युवा लोक समता के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद कामरान की उनसे नजदीकियां सर्वविदित हैं. कामरान की राजनीतिक गतिविधियां कहीं न कहीं इस चर्चा को बल देती हैं कि चुनाव को लेकर उनकी तैयारियां भी अंदरखाने चल रही हैं. कांग्रेस महा-गठबंधन का हिस्सा बनेगी या नहीं, इससे इतर कांग्रेसी नेताओं की जोड़-तोड़ भी खासी चर्चा में है. हिसुआ के पूर्व विधायक आदित्य सिंह की बहू पूर्वा और जिला परिषद अध्यक्ष नीतू सिंह कांग्रेस से अपनी दावेदारी को लेकर आश्वस्त दिख रही हैं, वहीं नीतू की देवरानी एवं कांग्रेस जिलाध्यक्ष आभा सिंह भी इस दौड़ में शामिल हैं. आलाकमान का निर्देश मानने की बात कई मौकों पर दोनों ही कर चुकी हैं. कांग्रेस से निवेदिता सिंह का नाम भी सामने है, जबकि युवा नेता विकास कुमार प्रदेश स्तर के नेता अखिलेश सिंह से अपनी नजदीकियों के भरोसे खुद को तौलते नजर आ रहे हैं. किसान हित में अपने स्तर से महा-अभियान में जुटे लव कुमार सिंह भी दावेदारों में शामिल हैं. वह बसपा के टिकट पर हिसुआ विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ चुके हैं.