प्रियदर्शी रंजन।
धुएं को सब्र कहां होता है,
आग लगती है तो बता देता है।
किसी ने न जाने क्या सोचकर ये पंक्तियां लिखी होंगी जो फिलहाल बिहार के लिए पूरी तरह प्रासंगिक हैं। अगर मीडिया में खबर नहीं उछलती तो गोपालगंज कांड की असली वजह पर प्रशासन पर्दा डालने में पूरी तरह सफल हो जाता। गोपालगंज नगर थाना से महज एक किलोमीटर दूर 23 लोगों की मौत के बाद जिला प्रशासन यह साबित करने में जुटा रहा कि हादसे की वजह सल्फास की गोली, दिल का दौरा या उल्टी हो सकती है। प्रशासन ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर यह बता भी दिया कि सामूहिक मौत की वजह होमियोपैथी दवा या अलग-अलग बीमारी है। जबकि घटना के साक्ष्य चीख-चीख कर गवाही दे रहे थे कि मौत की वजह जहरीली शराब है जिसे गोपालगंज नगर थाना से महज एक किलोमीटर की दूरी पर सजूरबानी में बनाया जाता था। हादसे में जो पीड़ित मौत के मुंह में जाने से बच गए उनसे पूछताछ के आधार पर पुलिस ने घटनास्थल और अन्य स्थानों से बड़ी मा़त्रा में जहरीली शराब बरामद की। पीड़ितों के परिजनों ने भी स्वीकार किया कि उन्होंने शराब पी थी।
मामले का सच सामने आने के बाद कई और सवाल उठ रहे हैं। देश भर में सराहा जा रहा बिहार का शराबबंदी कानून विवादों में घिर गया है। विपक्ष का दावा है कि शराबबंदी कानून के लागू होने के बाद प्रदेश में जहरीली शराब का कारोबार तेजी से फल-फूल रहा है। इससे आए दिन लोगों की मौत हो रही है। बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रेम कुमार की मानें तो शराबबंदी कानून लागू होने के बाद प्रदेश में जहरीली शराब से मरने वालों का आंकड़ा 50 पार कर गया है। सरकार इन आंकड़ों पर पर्दा डाल रही है। प्रेम कुमार बताते हैं, ‘गोपालगंज हादसे से पहले इस तरह के कई मामलों को प्रशासन ने दबा दिया। खगड़िया का हादसा इसका उदाहरण है। खगड़िया में चार महादलितों की मौत को लेकर वहां के स्थानीय प्रशासन ने कहा कि मौत अन्य कारणों से हुई है जबकि स्थानीय लोगों ने जहरीली शराब को ही इसकी वजह माना। इसी तरह छपरा के बनियापुर प्रखंड के हाफिजपुर गांव में भी हुआ। गांव के चार लोगों की मौत हो गई। जिलाधिकारी दीपक आनंद और एएसपी मनीष कुमार ने मौत का कारण बीमारी बताया। ऐसा हो भी सकता है मगर गांव वालों के गले प्रशासन का दावा नहीं उतर रहा।’
‘नो अल्कोहल’ संगठन के अध्यक्ष प्रवीण मिश्रा की मानें तो जहरीली शराब से मौत के मामले में प्रशासन की ओर से पर्दा डालने की कोशिश पटना और बेतिया में भी हुई है। बेतिया शहर के जगजीवन नगर में एक शादी में चार महादलितों ने छककर दारू पी। इसके बाद उनकी मौत हो गई। जिलाधिकारी लोकेश कुमार सिंह ने कहा कि मौतों का कारण स्पष्ट नहीं है। जबकि सासंद डॉ. संजय जायसवाल का मानना था कि प्रशासन ने सच छुपा लिया। महादलितों की मौत जहरीली शराब की वजह से हुई है। कुछ इसी तरह से प्रशासन ने पटना सिटी के रकाबगंज से सटे शरीफगंज मुहल्ला कांड पर पर्दा डाला। उमाशंकर राय, अशोक दास, मनोज गोप की मृत्यु के बाद उनके परिजन दबी जुबाान से शराब को कोस रहे थे। सूत्रों की मानें तो इस बाबत दर्ज कराई गई प्राथमिकी में जहरीली शराब से मौत की बात कही गई। मगर बाद में पटना के वरिष्ठ पुलिस अधिक्षक मनु महाराज के सामने परिजन पलट गए। उन्होंने मौत के लिए बीमारी को वजह बताया। जिला प्रशासन की तरफ से भी कहा गया कि उमाशंकर राय को किडनी की बीमारी थी तो अशोक दास टीबी से पीड़ित था। मनोज गोप की मृत्यु दिल की धड़कन रुक जाने से हुई।
कानूनी मामलों के जानकार सुदर्शन कुमार बताते हैं कि ऐसे किसी भी मामले को शासन-प्रशासन ने जहरीली शराब से मौत नहीं माना है। आमतौर पर ऐसी घटनाओं को बीमारी में ही समेट दिया जा रहा है। चूंकि ऐसे अधिकतर मामलों में पीड़ित निचले तबके के होते हैं, इसलिए प्रशासन मृत व्यक्तियों के परिजनों से आसानी से यह लिखवा लेता है कि मृतक न शराब पिए हुए था और न कभी पीता था। गोपालगंज हादसे का सच सामने आने के बाद विपक्ष के इन आरोपों को खारिज नहीं किया सकता कि पिछले कुछ दिनों में राज्य में सामूहिक मौत के लिए जहरीली शराब ही जिम्मेदार है। प्रशासन ने इन मामलों को रफा-दफा करने की कोशिश की है। गोपालगंज के पूर्व सासंद साधु यादव का तो यहां तक कहना है कि गोपालगंज हादसे में अभी भी सरकार मृतकों के सही आंकड़े नहीं बता रही है। यह संख्या 40 के पार है। साधु यादव इस तरह की घटना के लिए शराबबंदी कानून को ही जिम्मेवार ठहरा रहे हैं।
कुछ दिनों पहले तक गोपालगंज के सच को झुठलाने में लगी सरकार का दावा है कि वहां शराबबंदी के बाद 667 जगहों पर छापेमारी की गई। फिर सवाल यह उठता है कि थाने से महज एक किलोमीटर की दूरी पर बडेÞ स्तर पर शराब का अवैध निर्माण और पीने-पिलाने का काम कैसे हो रहा था? इस सवाल से भी पर्दा तब उठ गया जब उत्पाद विभाग के प्रधान सचिव केके पाठक मामले की जांच करने मौके पर पहुंचे। उनकी जांच में पाया गया कि जिले में शराबबंदी के लिए तैनात किए गए 60 होमगार्ड, जिसे उत्पाद विभाग ने गृह विभाग से प्रतिनियुक्ति पर लिया था उनकी ड्यूटी कहीं और लगा दी गई। इससे नाराज पाठक कहते हैं कि ऐसा दूसरी जगहों पर भी हो रहा होगा। विभाग ने अपने स्तर से होमगार्ड की तैनाती की समीक्षा शुरू कर दी है। राज्य में शराबबंदी के बाद उत्पाद विभाग ने 4,383 होमगार्डों की सेवा गृह विभाग से ली है।
कानून से नाराज समाजसेवी व पुलिस
शराबबंदी को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सख्ती की जो राह पकड़ी है उसकी तारीफ होने की बजाय प्रदेश में विरोध अधिक हो रहा है। कोई इसे तालिबानी कानून कह रहा रहा है तो कोई नीतीश कुमार की हनक। नशाखोरी के खिलाफ मुहिम चलाने वाले भी इस कानून से खुश नहीं हैं। पटना में नशाखोरी के खिलाफ काम करने वाला संगठन ‘नो अल्कोहल’ के अध्यक्ष प्रवीण मिश्रा कहते हैं, ‘हम हर तरह के नशा के विरोध में हैं लेकिन बिहार सरकार ने जो कानून लागू किया है उससे आम आदमी की इज्जत-प्रतिष्ठा पुलिस की मर्जी पर टंग गई है। कई कड़े प्रावधानों की वजह से यह कानून तानाशाही रवैये वाला बन गया है।’ समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व सांसद देवेंद्र प्रसाद यादव कहते हैं, ‘हम शराब मुक्त ही नहीं सभी तरह की नशा मुक्ति के पक्ष में हैं लेकिन बिहार में शराबबंदी को लेकर जो कानून बना है वह दुनिया के तमाम तानाशाहों को मात देने वाला है। इसके बाद भी राज्य में आए दिन जहरीली शराब से मरने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। प्रशासन जहरीली शराब बनाने वालों पर कार्रवाई करने की बजाय मामले की लीपापोती में लगा हुआ है।’
पुलिस महकमे में भी इस कानून को लेकर विवाद है। पुलिस का एक बड़ा तबका इस बात को लेकर नाराज है कि उसके थाना क्षेत्र के अंतर्गत किसी भी तरह की शराब पकड़े जाने पर थाना अध्यक्षों को निलंबित किया जा रहा है। अब तक दर्जन भर से अधिक थानाध्यक्ष निलंबित किए जा चुके हैं। सूत्रों की मानें तो लागातर हो रहे निलंबन की कार्रवाई के बाद राज्य भर के थानेदारों ने सामूहिक इस्तीफा देने की इच्छा अपने आला अधिकारियों के सामने जाहिर की थी।
गोपालगंज हादसे के बाद नगर थाना के सभी 25 पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया। इससे भी महकमे में इस कानून के कुछ प्रावधानों को लेकर नाराजगी है।
इन प्रावधानों पर है विवाद
नए शराबबंदी कानून में प्रावधान है कि किसी घर या परिसर में शराब, शराब की खाली बोतल या उसका रैपर भी मिलता है तो 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी लोगों को जेल में डाल दिया जाएगा। इसमें महिलाएं भी शामिल होंगी। इस जुर्म में जेल जाने वाले अगर दोषी साबित हुए तो उन्हें 10 साल की सजा और दस साल तक जुर्माना भी भरना होगा, यह प्रावधान भी इसमें है। कानूनी मामलों के जानकार कौशल कुमार कहते हैं, ‘इससे लोगों का मान हनन होगा। जब तक आरोपी निर्दोष नहीं साबित होते उन्हें जेल में रहना होगा। ऐसे में कोई भी ईर्ष्या, द्वेष, वैमन्स्य का शिकार बन सकता है। उत्पाद विभाग के अधिकारी वक्त-बेवक्त आपके घर की तलाशी ले सकते हैं, आपकी डॉक्टरी जांच करा सकते हैं वो भी बिना वारंट के। इनकार करने पर भी जेल में डाला जा सकता है।’
इसी तरह शराब बनाने व पी कर उत्पात मचाने वालों के लिए भी सख्त कानून बनाया गया है। पी कर उत्पात करने पर5 से 7 साल तक की सजा और 1 से 10 लाख रुपये तक जुर्मना है। किसी को भी बिना वारंट पुलिस अनुमान के आधार पर ही गिरफ्तार कर सकती है। इसी तरह पुलिस वालों को भी कानून के दायरे में रखा गया है। इसके तहत अगर किसी थाना क्षेत्र के अंतर्गत शराब का अवैध निर्माण, पीने व पिलाने का कारोबार हो रहा है तो उस थानाध्यक्ष को निलंबित कर दिया जाएगा। निलंबित थानाध्यक्षों को दस वर्ष तक किसी थाना का प्रभार नहीं दिया जा सकेगा। इसी तरह किसी पुलिस अधिकारी पर यह साबित होता है कि उसने किसी को परेशान करने के मकसद से उसे हिरासत में लिया या तालाशी ली तो उसे तीन साल की सजा या एक लाख रुपये जुर्माना या दोनों हो सकता है। इसी तरह इस अधिनियम के सभी अपराधों को गैर जमानती बनाया गया है।