बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर में बच्चों की मौत को लेकर जिस तरह से स्वास्थ्य मंत्री और सरकार की ओर से विरोधाभासी बयान आए थे, उसी तरह अब इस मामले की जांच की भी विरोधाभासी रिपोर्टों ने सवाल खड़े कर दिए हैं कि आखिर इस हादसे का जिम्मेदार किसे माना जाए और किसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इन रिपोर्टों से यही लगता है कि इतने बड़े हादसे के बावजूद सरकारी स्तर पर मामले की लीपापोती की ही कोशिश हो रही है। गोरखपुर के डीएम ने अपनी जांच रिपोर्ट में इस हादसे के लिए अॉक्सीजन की कमी को जिम्मेदार माना है तो केंद्र सरकार की ओर से भेजे गए जांच दल ने बच्चों की मौत के लिए अॉक्सीजन की कमी को जिम्मेदार नहीं माना है। हालांकि डीएम ने घटना की उच्च स्तरीय जांच की भी सिफारिश की है।
क्या कहती है डीएम की रिपोर्ट
गोरखपुर के डीएम राजीव रौतेला ने अपनी जांच रिपोर्ट प्रदेश सरकार को सौंप दी है। रिपोर्ट में उन्होंने कहा है कि यदि जिम्मेदार डॉक्टरों ने समय रहते एक्शन लिया होता तो ऑक्सीजन की कमी के संकट से उबरा जा सकता था। इससे कई मासूमों समेत अन्य की जान बच सकती थी। डीएम ने अपनी रिपोर्ट में मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य, एनेसथिसिया विभाग के हेड, सीएमएस, कार्यवाहक प्राचार्य, नियोनेटल वार्ड के प्रभारी और बाल रोग विभाग की हेड की लापरवाही का उल्लेख किया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कॉलेज के सबसे जिम्मेदार अधिकारी प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्रा और एनेसथिसिया विभाग के हेड डॉ. सतीश कुमार मुख्यमंत्री के निरीक्षण के अगले ही दिन मेडिकल कॉलेज से चले गए। मामले की गंभीरता को जानते हुए भी इन दोनों अधिकारियों ने मुख्यमंत्री के समक्ष ऑक्सीजन की कमी पर कोई चर्चा नहीं की। रिपोर्ट में कहा गया है कि डॉ. राजीव मिश्रा 10 अगस्त को सुबह ही छुट्टी पर मुख्यालय से बाहर चले गए थे। जबकि डॉ. सतीश कुमार 11 अगस्त को बिना अनुमति के मुंबई चले गए थे। उन्होंने न तो स्वयं इस दिक्कत को गंभीरता से लिया और न ही अपने बाद के अधिकारियों को इससे निपटने के उपाय के लिए निर्देशित किया।
डॉ. सतीश कुमार ही ऑक्सीजन आपूर्ति सिस्टम के प्रभारी हैं। उन्हें गैस संकट और भुगतान न होने की जानकारी थी। यही नहीं उन्होंने अपने कनिष्ठ अधिकारियों की शिकायतों का भी संज्ञान नहीं लिया। न ही उन्होंने ऑक्सीजन सिलेंडर के स्टॉक को चेक किया। जो गंभीर लापरवाही है। यदि इन दोनों अधिकारियों ने ऑक्सीजन की समस्या को गंभीरता से लिया होता और उसका समाधान किया होता तो ऐसी परिस्थितियां न पैदा होती और बच्चों की मौत भी न होती।
रिपोर्ट के मुताबिक, जीवन रक्षक होने के बावजूद ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ता पुष्पा सेल्स प्राइवेट लिमिटेड ने लिक्विड ऑक्सीजन की ऑपूर्ति को रोक दिया। इसकी वजह से बच्चों की मौत हो गई। इसके लिए वह जिम्मेदार है। कंपनी के जीवन रक्षक कार्य को देखते हुए ये नहीं करना चाहिए था।
डीएम ने अपनी रिपोर्ट में कॉलेज के चीफ फार्मासिस्ट गजानन जायसवाल को भी लापरवाही का जिम्मेदार ठहराया है। जायसवाल का कार्य ऑक्सीजन सिलेंडर का स्टॉक बुक और लॉग बुक को मेनेटेन करना है। उन्होंने रिकॉर्ड को सही से मेनटेन नहीं किया। स्टॉक बुक में ओवर राइटिंग पाई गई। इस स्टॉक और लॉग बुक को कभी भी डॉ. सतीश कुमार ने नहीं देखा। न ही उनके इस पर हस्ताक्षर पाए गए। रिपोर्ट में कहा गया है कि मेडिकल कॉलेज का लेखा विभाग और उसके कर्मचारी भी इस लापरवाही में बराबर के जिम्मेदार हैं। शासन से मिले बजट के बारे में प्राचार्य को लेखा विभाग ने सूचित नहीं किया। बार-बार भुगतान करने के आग्रह के बावजूद बकाया बिलों का भुगतान नहीं किया गया। न ही प्राचार्य को इसकी जानकारी दी गई। इसके लिए उदय प्रताप शर्मा, संजय कुमार त्रिपाठी, सुधीर कुमार पांडेय भी प्रथम दृष्टया दोषी पाए गए हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक प्राचार्य और एनेसथिसिया विभाग के हेड की अनुपस्थिति के दौरान कार्यवाहक प्राचार्य डॉ. रामकुमार, सीएमएस डॉ. रमाशंकर शुक्ला, बाल रोग विभाग की हेड डॉ. महिमा मित्तल और 100 बेड के वार्ड के प्रभारी डॉ. कफील के बीच समन्वय की कमी पाई गई। प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्रा ने बाल रोग विभाग की गंभीरता से भलीभांति परिचित होने के बावजूद संवेदनहीनता दिखाई और शिकायतों को दूर नहीं किया गया। इसका खामियाजा मासूम बच्चों और उनके परिवार को भुगतना पड़ा।
रिपोर्ट में बच्चों के वार्ड के रखरखाव में भी लापरवाही का जिक्र किया गया है। इस वार्ड के प्रभारी डॉ. कफील ने जांच समिति को बताया कि अॉक्सीजन ही नहीं वार्ड में कई अन्य दिक्कतें थी। उन्होंने डॉ. सतीश को पत्र लिखकर वार्ड का एसी खराब होने की जानकारी दी थी लेकिन उसे समय से ठीक नहीं कराया गया। इस कारण बच्चे गर्मी से परेशान होते रहे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑक्सीजन लॉग बुक 10 अगस्त से बनाए जाने और स्टॉक बुक में ओवर राइटिंग करने, लिक्विड ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ता फर्म के बिलों का क्रमवार व तिथिवार भुगतान न होने के पीछे वित्तीय अनियमितता भी प्रथम दृष्टया प्रतीत होती है। इस आधार पर लेखा विभाग का ऑडिट कराना और शासन द्वारा उच्च स्तरीय जांच कराना भी जरूरी है।
केंद्र की जांच टीम का दावा
इस मामले में केंद्र सरकार की एक जांच टीम ने बीआरडी अस्पताल का दौरा किया। इस दौरान केंद्र की तीन डॉक्टरों की टीम ने पूरे मामले से जुड़े तथ्यों की जांच की। इस दल की प्राथमिक जांच में यह दावा किया गया है कि बच्चों की मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई है। जांच दल के सदस्यों का कहना है कि घटना में हुई बच्चों की मौत को ऑक्सीजन की कमी से नहीं जोड़ा जा सकता है। गोरखपुर गए जांच दल के सदस्य और दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के बाल विभाग के प्रमुख हरीश चेलानी ने एक अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा कि केस शीट और आंकड़ों की जांच की गई जिसमें ये पता लगा है कि ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत नहीं हुई है।
बीते हफ्ते बीआरडी मेडिकल कॉले अस्पताल में अॉक्सीजन की कमी से 36 बच्चों की मौत हो गई थी। मासूम बच्चों की मौत के बाद वहां के प्रिसिंपल राजीव मिश्रा को सस्पेंड कर दिया गया था। मिश्रा ने इसके लिए ऑक्सीजन सप्लायर कंपनी को ही दोषी ठहराया था। इस घटना को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने का भी भरोसा दिलाया था। ऐसे में अब सवाल उठता है कि जांच रिपोर्ट में अलग-अलग बातों के आधार पर किस तरह कार्रवाई को अंजाम दिया जाएगा। हांलाकि अभी सचिव स्तर की एक और रिपोर्ट आनी बाकी है।
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