अमलेंदु भूषण खां
भारत रत्न और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित स्वर्गीय मदर टेरेसा की संस्था मिशनरीज आॅफ चैरिटी के नाम पर काला धब्बा लग गया है क्योंकि इस मिशनरीज से बच्चा बेचने का मामला सामने आया है। मामले की गंभीरता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि केंद्र सरकार ने देशभर में मिशनरीज आॅफ चैरिटी के चाइल्ड होम की गहन जांच के आदेश दिए हैं। केंद्रीय महिला व बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कड़े कदम उठाते हुए सभी राज्य सरकारों को ऐसी संस्थाओं की गतिविधियों पर नजर रखने का आदेश भी दिया है। सभी राज्यों को महीने भर के अंदर बाल देखभाल केंद्रों का रजिस्ट्रेशन कराने और उन्हें सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (कारा) के साथ जोड़ने का भी आदेश केंद्र सरकार ने दिया है। केंद्र सरकार ने यह कदम झारखंड की राजधानी रांची स्थित मिशनरीज आॅफ चैरिटी से बच्चा बेचने का मामला सामने आने के बाद उठाया है। बता दें कि संशोधित जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत सभी बाल देखभाल केंद्रों को सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (कारा) के साथ जोड़ना अनिवार्य है। मौजूदा समय में करीब 4000 बाल देखभाल केंद्र कारा के साथ जोड़े जाने बाकी हैं।
रघुबर दास सरकार ने इस मामले की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए हैं। झारखंड पुलिस के साथ ही अब सीआईडी भी इस मामले की जांच कर रही है। वहीं राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने झारखंड सरकार से कार्रवाई रिपोर्ट मांगी है। रांची से चार बच्चों को बेचे जाने की खबर सामने आने के बाद स्थानीय निर्मल हृदय संस्थान की एक कर्मचारी अनिमा इंदीवर और संस्था की एक सिस्टर कोंसिलिया को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। इसके बाद से ही निर्मल हृदय संस्थान चलाने वाली मिशनरीज आॅफ चैरिटी सवालों के घेरे में है। पुलिस अब तक बेचे गए तीन बच्चों को बरामद कर चुकी है जबकि चौथे बच्चे की खोजबीन जारी है। 4 जुलाई, 2018 को बाल कल्याण समिति ने कोतवाली पुलिस में निर्मल हृदय संस्थान के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई थी। इसी के आधार पर 5 जुलाई को रांची के ईस्ट जेल रोड पर स्थित निर्मल हृदय संस्थान की कर्मचारी अनिमा इंदीवर को गिरफ्तार किया गया। उससे पूछताछ के बाद पुलिस ने सिस्टर कोंसिलिया को गिरफ्तार किया।
एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि सिस्टर कोंसिलिया ने मिशनरीज आॅफ चैरिटी होम से चार बच्चे चुराकर बेच दिए। सिस्टर कोंसिलिया ने पुलिस की पूछताछ में माना कि उसने चार बच्चे बेचे थे। इसमें से तीन बच्चों के लिए उसे पैसे मिले थे जबकि एक बच्चे को मुफ्त में किसी को दे दिया। उसने पूछताछ में कहा कि उससे गलती हो गई, उसने पैसे के लिए बच्चों को बेच दिया। वहीं अनिमा इंदीवर ने पुलिस को बताया कि यह पहले से तय होता था कि किस दंपति को बच्चा बेचना है। जैसे ही बच्चा जन्म लेता था, उसे अस्पताल से रिलीज होने के एक-दो हफ्ते के अंदर बेच देते थे। इसमें सिस्टर कोंसिलिया की सहमति रहती थी। बच्चे के लिए कितना पैसा लेना है, यह दंपति देखकर तय होता था।
इस मामले का पता उत्तर प्रदेश के सोनभद्र के रहने वाले सौरभ कुमार अग्रवाल के साथ हुई धोखाधड़ी से चला। सौरभ अग्रवाल के कोई संतान नहीं है। बच्चा गोद लेने के लिए उन्होंने निर्मल हृदय संस्थान से संपर्क किया। सौरभ और उनकी पत्नी के रांची पहुंचने पर उनकी मुलाकात अनिमा इंदीवर और सिस्टर कोंसिलिया से हुई। अनिमा ने पुलिस को बताया कि सौरभ अग्रवाल के रिश्तेदार के घर काम करने वाली नौकरानी मधु से उसका संपर्क हुआ। मधु सदर अस्पताल में पार्ट टाइम गार्ड का काम भी करती थी। उसी ने सौरभ के रिश्तेदार को बताया था कि एक अविवाहित लड़की मां बनने वाली है। एक मई 2018 को बच्चे का जन्म हुआ और 3 मई को वह रिलीज हुई। सौरभ 15 मई को रांची आए और अनिमा को 1.20 लाख रुपये देकर बच्चा ले गए। जब अनिमा फंसने लगी तो उसने सौरभ को यह कह कर सोनभद्र से बुलाया कि कुटुंब अदालत में बच्चे को पेश करना है। बाद में अग्रवाल दंपति ने जब बच्चा वापस मांगा तो सिस्टर कोंसिलिया और अनिमा ने और पैसे की मांग कर डाली लेकिन सौरभ ने पैसे नहीं दिए। मामला पेंचीदा होते देख अग्रवाल दंपति 30 जून को रांची के बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष रूपा कुमारी के पास पहुंचे और उन्हें पूरी बात बताई। इसके बाद रूपा कुमारी ने 4 जुलाई को कोतवाली थाने में केस दर्ज करवाया।
क्या है मिशनरीज आॅफ चैरिटी
मिशनरीज आॅफ चैरिटी एक एनजीओ है जिसकी स्थापना मदर टेरेसा ने की थी। भारत रत्न से सम्मानित मदर टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में इसकी स्थापना की थी। इसकी मुख्य पदाधिकारी सिस्टर प्रेमा, मदर जनरल आॅफ मिशनरीज आॅफ चैरिटी हैं। इस संस्था की अलग-अलग शाखाएं देश और विदेश के अलग-अलग हिस्सों में हैं। फिलहाल इस संस्था की दुनिया के 120 देशों में 4,500 से भी ज्यादा शाखाएं हैं। अकेले झारखंड में ही कुल 12 शाखाएं हैं। इनमें से दो रांची में ईस्ट जेल रोड और कांके रोड पर हैं। इसके अलावा गोड्डा, पलामू, गुमला, गिरिडीह, दुमका, हजारीबाग और धनबाद में भी इसकी शाखाएं हैं। यह संस्था दुनिया भर में गरीब, बीमार, अनाथ और बेघर बच्चों की मदद करती है। किसी बलात्कार पीड़िता और उसके होने वाले बच्चे की देखभाल भी इस संस्था में की जाती है। अगर कोई बलात्कार पीड़िता गर्भवती होती है और वो बच्चा नहीं चाहती है तो यह संस्था उस बच्चे को किसी नि:संतान दंपति को भारतीय कानून के तहत गोद लेने का प्रावधान करती है। इसके अलावा मानव तस्करी से छुड़ाई गई लड़कियों और उनके बच्चों को भी इस संस्था में रखा जाता है। संस्था में आने वाली महिलाओं और बच्चों को रहना, खाना, दवाइयां और शिक्षा मुफ्त दी जाती है। इसके लिए संस्था को देश-दुनिया से करोड़ों का चंदा भी मिलता है। मिशनरीज आॅफ चैरिटी के तहत निर्मल हृदय संस्थान के अलावा मिशनरी आॅफ चैरिटी ब्रदर्स, मिशनरीज आॅफ द वर्ल्ड, मिशन कोलकाता, मिशनरीज आॅफ चैरिटी फादर्स इंडिया और मिशनरीज सिस्टर्स मेरी जैसी कई संस्थाएं हैं।
कैसे होता था गड़बड़ झाला
संस्था ने दो रजिस्टर रखे हैं। एक रजिस्टर में कानूनी तरीके से काम करने की प्रक्रिया दर्ज की जाती है, जबकि दूसरे रजिस्टर में गैरकानूनी तरीके से लाए गए और बेचे गए बच्चों के आंकड़े दर्ज किए जाते हैं। ये रजिस्टर संस्था के बाहर के किसी भी व्यक्ति को नहीं दिखाया जाता है।
निर्मल हृदय संस्थान के रांची कैंपस में प्रसव से पहले मां से एक फॉर्म पर दस्तखत करवाया जाता है कि वो बच्चे पर अपना हक छोड़ रही है। मिशनरीज आॅफ चैरिटी के अलग-अलग होम्स की जांच में 280 महिलाओं के बच्चों के रिकॉर्ड नहीं मिले हैं। पुलिस का दावा है कि वर्ष 2015 से 2018 के बीच इन होम्स में 450 गर्भवती महिलाओं को भर्ती करवाया गया था। इनमें से 170 नवजातों के बारे में ही जानकारी मिली है। पुलिस का दावा है कि निर्मल हृदय संस्था से पिछले 16 महीनों में 58 बच्चे गायब हुए हैं। संस्था से जब्त किए गए रजिस्टर के अनुसार, मार्च 2016 से जून 2018 के बीच 110 बच्चों का जन्म हुआ। इनमें से बाल कल्याण समिति को 52 बच्चों की ही जानकारी दी गई।
झारखंड पुलिस ने प्रदेश के गृह विभाग से मिशनरीज आॅफ चैरिटी समेत इसकी सभी 12 संस्थाओं के बैंक खाते फ्रीज कर देने को कहा है। गृह विभाग को लिखे पत्र में प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ने कहा है कि जांच में पता चला है कि मिशनरीज आॅफ चैरिटी को मिले पैसे का इस्तेमाल कहीं और भी हुआ है लेकिन इसकी जांच केंद्र सरकार के निर्देश पर ही की जा सकती है। ऐसे में अब इस पर फैसला केंद्र सरकार को लेना है। डीजीपी के पत्र में द फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट (एफसीआरए) के तहत विदेशों से पिछले 11 साल में करीब 927.27 करोड़ रुपये मिलने की बात कही गई है। पत्र में साफ कहा गया है कि चूंकि मामला एक करोड़ रुपये से ज्यादा का है इसलिए अब इस मामले की जांच सीबीआई ही कर सकती है।
बदनाम करने की साजिश
कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस आॅफ इंडिया भारत में कैथोलिक चर्च की आधिकारिक संस्था है। धर्म के अलावा और भी मुद्दों पर कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस आॅफ इंडिया की दखल रहती है। मिशनरीज आॅफ चैरिटी भी कैथोलिक संस्था है इसलिए इस मामले पर सफाई देने के लिए कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस आॅफ इंडिया को आगे आना पड़ा। संगठन के महासचिव थेडॉर मासकेयरहेन्स का कहना है कि चैरिटी को बदनाम करने के लिए कुछ लोग इसे निशाना बना रहे हैं। इस पूरे मामले की सीबीआई से जांच होनी चाहिए और चर्च इसके लिए तैयार है। उनका कहना है कि चैरिटी के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद भी पुलिस ने उन्हें एफआईआर की कॉपी नहीं दी। जब वे लोग कोर्ट गए तो कोर्ट के आदेश पर एफआईआर की कॉपी मिली।
उनका आरोप है कि सिस्टर कोंसिलिया पर दवाब बनाकर उनसे जुर्म कबूल करवाया गया है। उन्होंने अनिमा इंदीवर को इसके लिए दोषी ठहराते हुए कहा कि एक की गलती की सजा पूरी संस्था को नहीं दी जानी चाहिए।
पहले भी लगा था आरोप
रांची के बाल कल्याण समिति के पूर्व डायरेक्टर डॉ. ओपी सिंह ने वर्ष 2014 में भी इस मामले को उठाया था। जनवरी 2014 में उन्होंने आरोप लगाया था कि मिशनरीज आॅफ चैरिटी के निर्मला शिशु भवन से बच्चे बेचे जा रहे हैं। उनका दावा है कि उन्होंने संस्था का खुद दौरा किया था लेकिन संस्था की ओर से उन्हें जांच नहीं करने दिया गया। इस बारे में उन्होंने 22 जनवरी, 2014 को निर्मला शिशु भवन की संरक्षिका नीमा रोज को पत्र भी लिखा था। इस पत्र का जवाब देते हुए नीमा रोज ने 24 जनवरी को लिखा था कि जिस सिस्टर ने उन्हें जांच करने से रोका था उसने माफी मांग ली है। इसके बाद 29 जनवरी को पत्र लिखकर बाल कल्याण समिति ने निर्मला शिशु भवन को अगले आदेश तक बच्चों के गोद लेने की प्रक्रिया पर रोक लगा दी। डॉ. ओपी सिंह का दावा है कि बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया रोकने के बाद उन्हें पद से हटा दिया गया और उसके बाद एक जांच से निर्मला शिशु भवन को क्लीन चिट दे दी गई।
गोद लेने का क्या है कानून
हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध धर्म के लोगों को हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटीनेंस एक्ट 1956 के हिसाब से बच्चा गोद दिया जाता है। वहीं मुस्लिम, पारसी, ईसाई और विदेशी नागरिकों समेत एनआरआई लोगों को गार्डियन एंड वार्ड्स एक्ट 1980 के मुताबिक बच्चा गोद दिया जाता है। इसके तहत बच्चा जब तक 18 साल का नहीं हो जाता है तब तक कानूनी तौर पर गोद लेने वाला महज एक अभिभावक ही रहेगा। बच्चा गोद लेने की इच्छा रखने वालों को सेहतमंद और आर्थिक रूप से इतना संपन्न होना जरूरी है कि बच्चे की अच्छे से देखभाल कर सकें। गोद लेने वाले की न्यूनतम उम्र 21 साल हो। मगर एक साल तक के बच्चे को गोद लेने के लिए विवाहित दंपति में से किसी की भी उम्र 45 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। बच्चे की उम्र के हिसाब से दंपति की उम्र में भी छूट दी जाती है। दिव्यांग बच्चों के मामले में गोद लेने वाले की उम्र सीमा 55 साल तक भी हो सकती है। भारत में 15 साल तक के बच्चों को ही गोद लेने का प्रावधान है। एक आंकड़े के मुताबिक भारत में गोद लेने के लिए सालाना औसतन सिर्फ 1,700 बच्चे ही उपलब्ध होते हैं जबकि गोद लेने वाले परिवारों की संख्या 12,400 तक है। 2015-16 में कुल 3,010 बच्चे गोद लिए गए थे। वर्ष 2017 तक ये होता था कि संस्थाएं लोगों से आवेदन लेती थीं और फिर उनकी मांग के हिसाब से बच्चे ढूंढती थीं। इसमें महीनों लग जाते थे। मगर अब सभी संस्थाओं को सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (कारा) के पास जानकारियां जमा करनी पड़ती हैं।