टी मनोज
हरियाणा के कई नौकरशाह जाट आंदोलन के दौरान उनकी भूमिका पर सवालों के घेरे में हैं। आम जनता ही नहीं खुद मुख्यमंत्री भी स्वीकार रहे हैं कि आंदोलन के दौरान हुए दंगों में अफसरों की भूमिका सही नहीं रही। उन्होंने उपद्रवियों को रोकने के लिए कुछ भी नहीं किया। सरकार की ओर से मीडिया से बातचीत के लिए अधिकृत शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा खुद स्वीकार करते हैं कि सरकार दंगे रोकने में कामयाब नहीं रही। इसके लिए अफसर जिम्मेदार हैं। सूबे में अराजकता के हालात बनने में अफसरों की भूमिका को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) तक चिंतित है।
दंगों में अफसरों की भूमिका की जांच के लिए खट्टर सरकार ने उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया है। आयोग राज्य सरकार को तो औपचारिक रिपोर्ट देगी ही, अनौपचारिक तौर पर गृह मंत्री राजनाथ सिंह और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस रिपोर्ट से फीड बैक लेने वाले हैं। आयोग के सामने ही सुनवाई के दौरान रोहतक के डीसी डीके बेहरा ने कहा है कि उन्होंने स्थिति सुधारने के लिए ड्यूटी मजिस्ट्रेट, धारा 144 लगाने समेत अन्य आदेश दिए थे लेकिन उनकी पालना नहीं हुई। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस अधिकारी उनकी सुन ही नहीं रहे थे।
आंदोलन के नाम पर हुए दंगे में प्रदेश में 30 मौतें हुर्इं और 36 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा का नुकसान। एक हफ्ते तक पूरा हरियाणा उपद्रवियों के कब्जे में रहा। स्थिति कितनी खतरनाक और व्यवस्था कितनी पंगु हो गई थी इसका अंदाजा दिल्ली में प्रदेश भाजपा की बैठक से आसानी से लगाया जा सकता है। बैठक के दौरान मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर अपने आंसू नहीं रोक पाए। उन्होंने माना कि हरियाणा में बंटवारे जैसे हालात थे। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि हम दंगों को रोकने में कामयाब नहीं रहे।
दंगाईयों पर मेहरबान अफसर
साक्षात्कार, प्रकाश सिंह, जांच कमेटी के अध्यक्ष
जल्दबाजी में नहीं, तथ्यों के साथ होगी जांच
पद्मश्री प्रकाश सिंह अयोध्या कांड के समय उत्तर प्रदेश का दायित्व संभालने के अलावा पुलिस सेवा शर्तों और सुधारों के विशेषज्ञ रहे हैं। यूपी पुलिस के प्रमुख रहते उन्होंने प्रदेश में ‘नकल पर नकेल चाहे भेजना पड़े जेल’ के उस अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जिसे राजनाथ सिंह ने बतौर शिक्षा मंत्री लागू कराया था। उनकी कर्तव्यनिष्ठा में राजनीति व दलों की सीमा भी बाधक नहीं बन पाती। इसके संकेत प्रकाश सिंह ने 1992 में यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को बेहद साफगोई से दे दिए थे। लिहाजा अयोध्या आंदोलन के दौरान 30 सितंबर, 1992 को उन्हें हटाकर कल्याण सिंह ने एसवीएम त्रिपाठी को डीजीपी बना दिया था। उस समय राजनाथ सिंह ने इसका विरोध किया था। बाद में प्रधानमंत्री नरसिंह राव की सहमति से 23 दिसंबर, 1992 को प्रकाश सिंह दोबारा यूपी के डीजी पद पर बिठा दिए गए। वे बीएसएफ के भी मुखिया रह चुके हैं। नई भूमिका पर ओपिनियन पोस्ट ने उनसे बातचीत की
दंगों को लेकर अभी तक की जांच से क्या लग रहा है?
अभी तो जांच शुरू की है। हर स्तर पर जानकारी जुटाई जा रही है। हर तथ्य परखा जा रहा है। हम हर किसी से मदद मांग रहे हैं। किसी के पास यदि छोटी सी भी जानकारी है तो हमें दें। एक बार सारी जानकारी आ जाए तो उसे परख कर अंतिम रिपोर्ट दी जाएगी।
पीड़ित डरे हुए हैं, ऐसे में क्या वे खुल कर अपनी बात रख पाएंगे?
कोई भी व्यक्ति फोन या मेल से भी जानकारी दे सकता है। डरने की बात नहीं है। हम शिकायत देने वाले की पहचान गुप्त रखेंगे। हमें कुछ प्रमाण चाहिए जो जनता से ही मिल सकते हैं ताकि यह पता चले सके कि आखिर घटनाएं हुई कैसे? क्या उन्हें रोका जा सकता था?
और किस स्तर पर जांच चल रही है?
हम प्रभावित जिलों में घटनाओं के वक्त तैनात अधिकारियों के सर्विस रिकॉर्ड का भी आकलन कर रहे हैं। इससे यह पता चल सकेगा कि उनके कामकाज का तरीका क्या है? इससे भी उनकी भूमिका तय करने में मदद मिलेगी। साथ ही खुद प्रभावित इलाकों का दौरा कर रहे हैं। मौके पर जाकर लोगों से बातचीत की जा रही है।
कब तक रिपोर्ट मिल सकती है?
45 दिन में रिपोर्ट फाइनल हो जाएगी। इस रिपोर्ट में सरकार को ऐसी घटनाओं से निपटने के सुझाव भी दिए जाएंगे। इसके साथ ही यह भी बताया जाएगा कि आगे इस तरह की घटना न हो इसके लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए।
आयोग के पास जो शिकायतें आर्इं उनके मुताबिक कैथल, हिसार, रोहतक व सोनीपत जिले में जब दंगे हो रहे थे तो एक जाति विशेष के कुछ अफसर दंगाईयों पर मेहरबान रहे। उन्होंने दंगाईयों को रोकने के लिए कुछ भी नहीं किया। उलटा दूसरे समुदाय के लोगों पर ही लाठीचार्ज किया। रोहतक रेंज के तत्कालीन आईजी श्रीकांत जाधव पर आरोप है कि जब वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु के घर को दंगाई जला रहे थे तो उन्होंने अपने घर पर ही सुरक्षाकर्मी तैनात कर लिए। इससे भी स्थिति विस्फोटक हुई।
प्रशासनिक अफसरों की संदिग्ध भूमिका की जांच कर रहे प्रकाश सिंह ने पूछा है कि अफसर दंगों के दौरान कहां थे, वे हिंसा पर नियंत्रण क्यों नहीं कर पाए। उन्होंने तत्कालीन आईजी श्रीकांत जाधव, एसपी सौरभ सिंह, डीसी डीके बेहेरा समेत सभी ड्यूटी मजिस्ट्रेट, डीएसपी और संबंधित थानों के एसएचओ से 10 दिन में जवाब मांगा है। प्रकाश सिंह ने यह भी कहा है कि कोई भी अधिकारी-कर्मचारी अपने वरिष्ठ अफसर के माध्यम से जवाब नहीं देगा बल्कि अपना लिखित जवाब सीधे आयोग को भेजना होगा। अफसरों के जवाब मिलने के बाद वह फिर रोहतक आएंगे। आयोग ने 375 लोगों से बातचीत के साथ ही 58 पीड़ितों के बयान रिकॉर्ड किए हैं। ज्यादातर पीड़ितों ने आरोप लगाया कि पुलिस के बड़े अफसरों के सामने ही हिंसा और लूटपाट होती रही।
बचना चाहते हो तो खेतों में छुप जाओ
हांसी में दंगाईयों ने जब ढाणियों पर हमला किया तो यहां के लोगों ने पुलिस को फोन किया। हांसी निवासी दिनेश व कृष्ण ने बताया कि उन्हें पुलिस ने कहा कि मदद के लिए पहुंचना संभव नहीं है। यदि जान बचानी है तो खेतों में छुप जाओ। दिनेश ने बताया कि पुलिस से नाउम्मीद होकर वे खेतों में दो तीन तक छुपे रहे। जब वापस आए तो पाया कि सब कुछ लुट चुका है। दंगाई उनके मवेशियों तक को ले गए। आयोग के सामने पीड़ित जो बयान दर्ज करा रहे हैं, उसे सुन कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। कैथल में बड़ी संख्या में पीड़ितों ने पुलिस के सीनियर अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि पुलिस के कुछ सीनियर अधिकारी खुलेआम दंगाईयों का साथ दे रहे थे। कैथल निवासी रामनिवास ने बताया कि उन्हें तो पुलिस इक्ट्ठा भी नहीं होने दे रही थी जबकि दूसरे समुदाय के लोगों से कुछ भी नहीं कहा जा रहा था। ऐसा लग रहा था कि पुलिस प्रशासन उनके साथ दुश्मनी निकाल रहा है।
पंचायत का फरमान, गांव छोड़ें या याचिका वापस लें
हरियाणा में एक बार फिर पंचायत का तुगलकी फरमान सामने आया है। जाट आरक्षण आंदोलन को लेकर केंद्रीय मंत्री, हरियाणा के दो मंत्रियों व नेताओं के खिलाफ याचिका दायर करने वाले एक शख्स पर दबाव बनाया जा रहा है कि या तो याचिका वापस ले या फिर गांव छोड़े। हिसार के भाटला गांव के रहने वाले अजय ने केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह, जाट नेता यशपाल मलिक, दलजीत पंघाल, सूबे सिंह समैण, हवा सिंह सांगवान, जसवीर मलिक के अलावा हरियाणा के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु, कृषि मंत्री ओम प्रकाश धनखड़, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, उनके राजनीतिक सलाहकार प्रोफेसर वीरेंद्र सिंह, कृष्णमूर्ति हुड्डा, आनंद सिंह दांगी पर हिंसक आंदोलन के लिए उकसाने व जातीय हिंसा फैलाने का आरोप लगाते हुए उन पर कार्रवाई की मांग के लिए हिसार कोर्ट में याचिका लगाई है। अदालत ने याचिका पर गवाहियों के लिए 12 मई की तारीख निर्धारित की है।
याचिकाकर्ता अजय का आरोप है कि गांव में पंचायत के लिए मुनादी करवाई गई। इसके बाद पंचायत हुई तो गांव के एक व्यक्ति का उसके पास फोन आया और उसने सरपंच सुदेश के पति विनीत से फोन पर बात कराई। विनीत ने कहा कि गांव में पंचायत की जा रही है। वह वहां पहुंचे और पंचायत में माफी मांग ले। अजय वहां नहीं गया। उसने अपने परिवार को वहां भेज दिया। पंचायत में अजय के परिवार पर दबाव बनाया गया कि वे याचिका वापिस लें अन्यथा उन्हें गांव छोड़ना पड़ेगा। इसके बाद अजय ने अपने वकील रजत कंल्सन से इस बारे में बातचीत की। रजत कंल्सन ने हिसार के एसपी से बातचीत कर अजय की सुरक्षा की मांग की है।