देहरादून। उत्तराखंड के सियासी उठापटक में रोज नए-नए मोड़ आते जा रहे हैं। राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली कांग्रेस की याचिका पर मंगलवार को नैनीताल हाई कोर्ट ने हरीश रावत को 31 मार्च को शक्ति परीक्षण करने का आदेश दिया था। वहीं, बुधवार को हाई कोर्ट की डबल बेंच ने सिंगल बेंच के फैसले पर रोक लगाते हुए छह अप्रैल तक थास्थिति बरकरार रखने का आदेश दे दिया। इससे गुरुवार को होने वाला शक्ति परीक्षण टल गया है।
इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार और कांग्रेस से 4 अप्रैल तक शपथपत्र दाखिल करने को कहा है। कोर्ट इस मामले में अब अगली सुनवाई 6 अप्रैल को करेगा। इससे पहले कोर्ट ने केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए फटकार लगाते हुए कहा था कि सदन में ही बहुमत तय होना चाहिए। सदन में बहुमत तय होना एक अच्छा और सही तरीका है। राज्यपाल ने भी सदन में बहुमत साबित करने को कहा था। फिर ऐसी जल्दबाजी क्यों दिखाई गई कि एक दिन पहले राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। अदालत ने केंद्र से पूछा कि आप किस तरह का संदेश देना चाहते हैं।
सिंगल बेंच ने 31 मार्च को बहुमत साबित करने का फैसला दिया था जिसके विरोध में केंद्र ने डबल बेंच में याचिका दायर की थी। केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है और विधानसभा निलंबित है तो बहुमत परीक्षण का आदेश कैसे लागू किया जा सकता है। वहीं कांग्रेस 9 बागियों को वोट का हक देने के हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपना पक्ष रख रही है। उन्होंने कहा कि राज्य में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस पर विधायकों की खरीद-फरोख्त का आरोप लगा था। इसके बाद विधानसभा को निलंबित करना और राष्ट्रपति शासन लगाने का ही विकल्प था।
उधर, जस्टिस यूसी ध्यानी की सिंगल बेंच ने बागी विधायकों की ओर से सस्पेंड किए जाने के विधानसभा अध्यक्ष के फैसले पर स्टे से इनकार किया है। विधानसभा अध्यक्ष की ओर से 9 बागी विधायकों को बर्खास्त किए जाने के आदेश को चुनौती देते हुए विधायकों ने कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। बेंच ने मामले की सुनवाई के लिए 1 अप्रैल की तारीख तय की है।