निशा शर्मा।
हमीरपुर जिले को पूर्व मुख्यमंत्री धूमल और उनके बेटे अनुराग ठाकुर के क्षेत्र के तौर पर जाना जाता है। यहां के लोगों से बात करो तो वह खुश होते हैं कि उनके जिले से दो ऐसे लोग निकले हैं जिन्होंने उनके जिले का नाम किया है। लेकिन सभी लोग ऐसा नहीं कहते कुछ लोगों का कहना है कि जिले के नाम ने उन्हें कुछ नहीं दिया।
बड़सर में प्रेम कुमार धूमल की पहली चुनावी सभा में आए किशोरी लाल कहते हैं कि जब धूमल मुख्यमंत्री बने थे तो हमें आस थी कि वह हमारे लिए कुछ करेंगे क्योंकि वीरभद्र तो अपने इलाके के अलावा कहीं काम ही नहीं करवाते। पूछने पर कि उनका कौन-सा इलाका है तो वह कहते हैं कि वीरभद्र ने हिमाचल को दो हिस्सों में बांट कर देखा है- एक ऊपरी हिमाचल, दूसरा नीचला हिमाचल। ऊपरी हिमाचल शिमला तक आता है, नीचला हिमाचल शिमला से नीचे जिसमें बिलासपुर, हमीरपुर, ऊना, कांगड़ा जैसे जिले आते हैं। वीरभद्र ने जब भी विकास किया ऊपरी हिमाचल में किया है। उन्हें तो नीचले हिमाचल की समस्याएं भी नहीं पता। यही तो वजह थी कि लोगों ने बीजेपी में धूमल को चुना था।
उस समय यहां प्रेम कुमार धूमल की रैली थी। कई सौ की संख्या में लोगों का जमावड़ा था, आस पास का इलाका जय सिया राम की गूंज से भरा हुआ। जय सिया राम के नारे लगाने वाले युवक से मैंने पूछा कि आप यह नारे क्यों लगा रहे हैं तो उसने कहा हमारी पार्टी हिन्दू धर्म का प्रमुखता से समर्थन करती है साथ ही उसने बताया कि हमीरपुर जैसे इलाकों में बीजेपी का बड़ा जनाधार है। इस बार हमारी पार्टी ही जीतेगी क्योंकि प्रेम कुमार धूमल से लोगों को बहुत आशाएं हैं। इसके उलट इसी जन सभा में आए एक बुजुर्ग बताते हैं कि उन्हें धूमल से कोई आशा नहीं है। वह तो उस जगह से गुजर रहे थे तो धूमल को देखकर उन्हें सुनने के लिए रुक गए। वह आगे बताते हैं कि धूमल लोगों की आशाओं पर खरे नहीं उतरते। उन्होंने सिर्फ अपने और अपने बेटे के लिए काम किया है। उन्होंने किसानों के बारे में नहीं सोचा। बुजुर्गों के बारे में नहीं सोचा। गांव की सड़कों पर ध्यान नहींं दिया। जैसे ही मैंने अनुराग ठाकुर का जिक्र किया तो उन्होंने सिर हिलाकर कहा अनुराग ठाकुर तो सूट-बूट वाला मंत्री है उसका हमसे और हमारा उससे क्या नाता।
इस जिले में किसानों की समस्या मुख्यतौर पर है। जिसके बारे में लोग बताते हैं कि कोई पार्टी किसानों को अपना मुद्दा नहीं बनाती। पिछले बीस सालों से अब तक कई गुना जमीन पर लोगों ने खेती करना छोड़ दिया है। इसकी वजह कोई प्राकृतिक नहीं है बल्कि बंदरों की समस्या है। बंदरो ने खेतों को उजाड़ दिया है। लोगों का कहना है कि हम पूरी साल मेहनत करते हैं और बंदर एक झटके में पूरी मेहनत को पानी में मिला देते हैं। लोग शिकायती अंदाज में कहते हैं कि राजनीतिक पार्टियों ने इस मसले पर कभी सोचा ही नहीं अगर सरकार सोचती तो उन्हें यह दिन नहीं देखना पड़ता।
सलौणी गांव से बिस्मबरी देवी कहती हैं कि, ‘‘किसानों को तो इन सरकारों ने बिल्कुल खत्म कर दिया है, न हमारे पास जीने के साधन हैं न मरने के। पूरा साल हम खेती में लगा देते हैं, कभी बेमौसमी बरसात तो कभी बंदरों का आतंक हमारी मेहनत पर पानी फेर देता है। अब तो हमने कई खेतों को बंजर ही छोड़ दिया है। कौन साल भर मेहनत करेगा और फिर खाली हाथ रहेगा। हम ही नहीं, यहां के अधिकतर गावों के लोगों ने फसल बोना छोड़ दिया है। हम किसी को वोट क्यों दें बताओ? जब न कोई हमारी सुनता है न इन जंगली जानवरों और बंदरों के लिए कुछ करता है। हम जमीन के मालिक होकर बीपीएल की श्रेणी में आ गए हैं। ये सरकार वाले कहते हैं कि तुम्हें सस्ता राशन तो दे रहे हैं लेकिन कोई यह नहीं सोचता कि सरकार दस किलो गेहूं देती है उसमें छह लोगों के परिवार का कैसे गुजारा हो सकता है? हमारी कोई नहीं सुनता। जब चुनाव आते हैं तो वोट मांगने सब आ जाते हैं लेकिन काम कोई नहीं करता, पहले सब किसान के भरोसे होते थे लेकिन अब किसान भगवान के भरोसे हो गया है। बाहरी तौर पर सड़कें तो सबको दिख जाती हैं लेकिन अंदर आकर देखो हमने अपनी जिंदगी के 70 साल ऐसे ही हालात में काट दिए जहां कोई बीमार पड़ जाए या इमरजेंसी में अस्पताल ले जाना हो तो घर तक कोई वाहन ही नहीं आता है। पानी तीन-चार दिन बाद आता है। बच्चों को स्कूल, कॉलेज भेजते हुए डर लगता है। घास भी काटने जाना हो तो अकेले नहीं जाते।