अजय विद्युत
ये क्यों कहें दिन आजकल अपने खराब हैं
कांटों से घिर गये हैं ,समझ लो गुलाब हैं…
कानपुर के ठेठ कनपुरिया वरिष्ठ कवि, पत्रकार, कविसम्मेलनों की जान, मंच पर स्तरीय कविता और मनोरंजक कविता की दूरी घटाने वाले प्रमोद तिवारी अब नहीं रहे। उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में सोमवार तड़के एक सड़क दुर्घटना में कवि प्रमोद तिवारी तथा अवध क्षेत्र के हास्य कवि केडी शर्मा हाहाकारी का दुखद निधन हो गया। दोनों रायबरेली के लालगंज से कवि सम्मेलन में भाग लेकर वापस आ रहे थे। ट्रक और कार की टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि कार के परखच्चे उड़ गए।
प्रमोद तिवारी वरिष्ठ पत्रकार रहे और कविता की दुनिया में भी खासा नाम कमाया-
सच है गाते गाते हम भी थोड़ा सा मशहूर हुए/ लेकिन इसके पहले पल-पल,तिल-तिल चकनाचूर हुए/ चाहे दर्द जमाने का हो चाहे हो अपने दिल का/ हमने तब-तब कलम उठाई जब-जब हम मजबूर हुए।
फेसबुक पर साहित्य जगत की जानी मानी हस्तियों ने प्रमोद तिवारी को कुछ इस तरह याद किया।
मंचों के लिए ज़रूरी आदमी चला गया – कुमार विश्वास
विश्वास नहीं कर पा रहा ! बेहद निश्छल और मंचों के लिए ज़रूरी आदमी चला गया ! अब तो उनके दिन आए थे जीवन भर की भागदौड़ और तपस्या के पुण्य फल का आनंद लेने वाले ! मन ख़राब हो गया ! हम सब कवि लोग अपनी ज़िंदगी दाँव पर देकर लोकप्रियता की दाँव खेल रहे हैं ! यकीन करने का साहस नहीं हो रहा और लिखने की हिम्मत नहीं हो रही। हज़ारों कवि-सम्मेलनीय शामों के साथी और प्रिय मित्र प्रमोद तिवारी जी नहीं रहे। एक और निष्ठुर भोर ने सड़क हादसे के माध्यम से उनके साथ आंचलिक कवि केडी शर्मा हाहाकारी जी के प्राण लील लिए। प्रमोद दिवारी जी को आप ‘वो जूठी टॉफी अब भी मुँह में है’ और ‘गुड्डे-गुड़ियों वाले दिन’ वाले गीत के लिए विशेष रूप से जानते हैं।
मौलिक लोगों से बहुत प्यार था उन्हें ! सच्चे और मुँहफट आदमी थे ! मैने शुरुआती संघर्ष में थोड़ी मंचीय मदद कर दी थी तो उस ज़रा सी बात की कृतज्ञता वे मंचों पर सबसे और मिलने पर मुझसे बार बार ज्ञापित करते थे ! अभी इससे ज़्यादा लिख पाने की स्थिति में नहीं हूँ। दोबारा रूबरू होऊंगा। ईश्वर दोनों दिवंगत आत्माओं को शांति प्रदान करें। ॐ शांति।
अपने गीतों की तरह ही आप बहुत याद आएंगे -दयानन्द पांडेय
कवि सम्मेलनों में जैसे आम की बौर थे प्रमोद तिवारी । उन को सुन कर बौर की तरह ही मन झूम-झूम जाता था । अपने सहज-सरल , मस्त और मीठे गीतों से वह हर किसी को बरबस मोह लेते थे । जैसे कलेजा काढ़ लेते थे । आज रात भी प्रमोद तिवारी ने यही किया । कलेजा काढ़ कर रुला कर चले गए । यह प्रमोद तिवारी का एक्सीडेंट नहीं था , हिंदी गीतों का एक्सीडेंट था । ऐसे गीत , ऐसा कंठ और ऐसी निश्चलता हिंदी गीतों को अब कहां मिलेगा प्रमोद तिवारी । अपने गीतों की तरह ही आप बहुत याद आएंगे प्रमोद तिवारी । आप के गीत , आप की दोस्ती , आप का याराना अब दुर्लभ है । दस पैसे में वह पूड़ियों वाले दिन तो अब बिला गए , बिला गए वह गुड्डे गुड़ियों वाले दिन बिला गए । रास्तों के रिश्ते अब कहां मिलेंगे प्रमोद तिवारी । आप की फकीरी भरी ज़िंदगी और गीतों की गमक अब सूनी हो गई है । यह भी कोई उम्र थी जाने की । आप तो मुझ से दो बरस छोटे थे । पर एक्सीडेंट अवकाश भी कहां देता है सोचने समझने का । अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि !
कोई लौटा दे चूरन की पुड़ियों वाले दिन
फ़िलहाल प्रमोद तिवारी का एक गीत पढ़िए और नीचे दिए लिंक पर उन को सुनिए पूरी तबीयत से…
याद बहुत आते हैं गुड्डे-गुड़ियों बाले दिन/ दस पैसे में दो चूरन की पुड़ियों वाले दिन/ ओलम, इमला, पाटी, बुदका खड़ियों वाले दिन/ बात-बात में फूट रही फुलझड़ियों वाले दिन
पनवाड़ी की चढ़ी उधारी घूमें मस्त निठल्ले/ कोई मेला-हाट न छूटे टका नहीं है पल्ले/ कॉलर खड़े किये हाथों में घड़ियो वाले दिन/ ट्रांजिस्टर पर हवामहल की कड़ियों वाले दिन
लिख-लिख, पढ़-पढ़ चूमें-फाड़ें बिना नाम की चिट्ठी/ सुबह दुपहरी शाम उसी की बातें खट्टी-मिट्ठी/ रूमालों में फूलों की पंखुड़ियों वाले दिन/ हड़बड़ियों में बार-बार गड़बड़ियों वाले दिन
सुबह-शाम की दण्ड-बैठकें दूध पियें भर लोटा/ दंगल की ललकार सामने घूमें कसे लंगोटा/ मोटी-मोटी रोटी घी की भड़ियों वाले दिन/ गइया, भैंसी बैल, बकरियाँ पड़ियों वाले दिन
दिन-दिन बरसे पानी भीगे छप्पर आँखें मींचे/ बूढ़ादबा रही हैं झाडू सिलबट्टा के नीचे/ टोना सब बेकार जोंक, मिचकुड़ियों वाले दिन/ घुटनों-घुटनों पानी फुंसी-फुड़ियों वाले दिन
घर भीतर मनिहार चढ़ाये चुड़ियाँ कसी-कसी सी/ पास खड़े भइया मुसकायें भौजी फँसी-फँसी सी/ देहरी पर निगरानी करतीं बुढ़ियों वाले दिन/ बाहर लाठी-मूँछें और पगड़ियों वाले दिन
तेज धार करती बंजारन चक्का खूब घुमाये/ दाब दाँत के बीच कटारी मंद-मंद मुसकाये/ पूरा गली-मोहल्ला घायल छुरियों वाले दिन/ दुरियों-छुरियों छूट रही छुरछुरियों वाले दिन
‘शोले’ देख छुपा है ‘बीरू’ दरवाजे के पीछे/ चाचा ढूँढ रहे हैं बटुआ फिर तकिया के नीचे/ चाची बेंत छुपाती घूमें छड़ियों वाले दिन/ हल्दी गर्म दूध के संग फिटकरियों वाले दिन
ये वो दिन थे जब हम लोफर आवारा कहलाये/ इससे ज्यादा इस जीवन में कुछ भी कमा न पाये/ मँहगाई में फिर से वो मंदड़ियों वाले दिन/ कोई लौटा दे चूरन की पुड़ियों वाले दिन।
प्रमोद तिवारी का यह वीडियो नहीं देखा… ऐसी सहजता और मस्ती और कहां?
https://www.youtube.com/watch?v=bwpgcevcXpY