अमलेंदु भूषण खां
झारखंड में एक के बाद एक भूख से हो रही मौत पर केंद्र सरकार चुप्पी साधे हुए है तो राज्य सरकार लीपापोती करने में जुटी हुई है। खनिज संपदा से भरपूर राज्य की रघुबर दास सरकार भूख से मरने वालों को भी आसानी से बीमार बता कर पल्ला झाड़ने में लगी रहती है। मृतक आदिवासियों और गरीबों का पोस्टमार्टम तक करवाने से राज्य सरकार बचती रही है। प्रदेश में मुख्यमंत्री दाल-भात योजना तो चल रही है लेकिन इसके बावजूद भूख से हो रही मौतें इस योजना की सच्चाई बयां कर रही हैं।
ताजा मामला चतरा जिले का है जहां मीना नाम की एक महिला की मौत खाना न मिलने के कारण हो गई। वह कचरा बीनने का काम करती थी। मीना मूल रूप से बिहार के गया जिले के बाराचट्टी की निवासी थी। इस घटना का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ जिसमें मीना का बेटा मां का शव कंधे पर लादकर अपस्ताल जा रहा है। महिला अपने बेटे के साथ इटखोरी के प्रेमनगर के आसपास रहती थी। उसके बेटे के मुताबिक, उसने और उसकी मां ने चार दिन से कुछ खाया नहीं था क्योंकि इस दौरान कचरा बीनने से कोई कमाई नहीं हुई थी जिस वजह से घर में खाने का कोई सामान नहीं था। चार दिन बाद भूख से जब उसकी मां की तबियत अचानक खराब हो गई तो उसने उसे कंधे पर लादकर अस्पताल पहुंचाया जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। चतरा जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. एसपी. सिंह का कहना है कि जब मीना को अस्पताल लाया गया था तब तक उसकी मौत हो चुकी थी।
इस घटना से दो दिन पहले गिरिडीह जिले में एक वृद्धा की मौत हो गई। मौत की वजह आर्थिक तंगी बताया जा रहा है। यह मामला डुमरी प्रखंड के चैनपुर पंचायत के मंगरगढ़ी गांव का है। मृतका सावित्री देवी (65) के पति की मौत पहले ही हो चुकी है। उसके दो बेटे हैं जो बाहर मजदूरी करते हैं। उनकी कमाई इतनी नहीं है कि घर पैसा भेज सकें। परिजनों के मुताबिक, सावित्री देवी को तीन दिन से खाना नहीं मिला जिस वजह से मौत हो गई। परिजनों का आरोप है कि प्रशासनिक लापरवाही की वजह से सावित्री का राशन कार्ड नहीं बन पाया जबकि उसने इस संबंध में सभी जरूरी कागजात दो महीने पहले ही विभाग को सौंप दिए थे। उसे वृद्धावस्था पेंशन भी नहीं मिलती थी। इन आरोपों के बावजूद विडम्बना यह है कि शव का पोस्टमार्टम तक नहीं कराया गया जबकि उसकी मौत की जानकारी स्थानीय प्रशासन को मिल चुकी थी। स्थानीय प्रशासन ने अपने दो अधिकरियों को इसकी जांच के लिए भेजा भी था लेकिन मौके पर पहुंचे बीडीओ ने कहा कि यह सामान्य मौत है इसलिए शव का पोस्टमार्टम नहीं होगा। उनके इस बयान पर जब स्थानीय लोगों ने विरोध किया तो प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी ने इसे भूख और आर्थिक तंगी से हुई मौत करार दिया। साथ ही स्थानीय राशन डीलर पर उसकी मौत का ठीकरा फोड़ दिया। उन्होंने कहा कि सभी राशन डीलरों से कहा गया है कि विशेष परिस्थिति में वे बिना राशन कार्ड के भी जरूरतमंदों को राशन दे सकते हैं।
जांच की आड़ में लीपापोती
बीते छह माह से सावित्री देवी किसी तरह इधर-उधर से मांग कर पेट भर रही थी। लेकिन बीते कुछ दिनों से कहीं से अनाज नहीं मिल सका। पंचायत के मुखिया राम प्रसाद महतो का कहना है कि 15 जुलाई, 2014 को मृतका के नाम विधवा पेंशन की स्वीकृति मिली थी लेकिन अभी तक उसे विधवा पेंशन नहीं मिल सकी। वहीं 2011 की आर्थिक जनगणना के डाटा में मृतका का नाम नहीं था इस कारण न तो राशन कार्ड मिला और न ही प्रधानमंत्री आवास योजना सहित अन्य योजनाओं का लाभ। प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी शीतल प्रसाद काशी ने कहा, ‘जांच में पाया गया कि मृतका के परिजनों की माली हालत खराब है। पंचायत सेवक व डीलर की लापरवाही के कारण ही महिला का राशन कार्ड नहीं बन सका।’ भूख से मौत पर हंगामा मचने के बाद डुमरी के विधायक जगरनाथ महतो भी गांव पहुंचे। उन्होंने कहा कि वे मामले को विधानसभा सत्र में प्रमुखता से उठाएंगे।
इन दो घटनाओं से पहले मई में गढ़वा जिले के डंडा प्रखंड स्थित कोरटा गांव में प्रेमनी कुंवर नाम की महिला की मौत हुई थी। वह अकेली रहती थी। उसका बेटा उत्तम महतो उससे अलग रहता था। उत्तम महतो के मुताबिक, उसकी मां के पास अनाज नहीं था जिस कारण आठ दिन से घर में चूल्हा नहीं जला था। उसकी मां के नाम से अंत्योदय कार्ड निर्गत है जिस पर पिछले साल अक्टूबर में ही अनाज मिला था। इसे उसने पड़ोसियों को देकर उधार चुकता किया था क्योंकि अगस्त व सितंबर में अनाज न मिलने के कारण उसे पड़ोसियों से अनाज उधार लेना पड़ा था। पिछले साल जुलाई से उसे वृद्धावस्था पेंशन भी नहीं मिली थी। मौत से 15 दिन पहले से वह गांव के लोगों से मांग कर गुजारा कर रही थी। उत्तम ने बताया कि वह कभी-कभी स्कूल से मिड-डे मील का बचा हुआ खाना लेकर आता था और मां को दे देता था। पिछले महीने राशन डीलर ने अपनी मशीन (बायोमिट्रिक सिस्टम) में मां के अंगूठे का निशान तो लिया लेकिन राशन नहीं दिया। इसके ठीक तीन दिन बाद 64 साल की प्रेमनी कुंवर की मौत हो गई।
डंडा प्रखंड के प्रमुख वीरेंद्र चौधरी का कहना है कि प्रेमनी कुंवर को राशन और वृद्धावस्था पेंशन नहीं मिल रही थी जिस वजह से उसकी हालत खराब हो चुकी थी। शिकायतों के बावजूद प्रशासन ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की और प्रेमनी की मौत भूख से हो गई। राइट टू फूड कैंपेन की सकीना धोराजिवाला बीडीओ शाहजाद परवेज की इसे सामान्य मौत बताने को हास्यास्पद करार देते हुए कहती हैं कि उनके साथियों ने गांव जाकर इसकी पड़ताल की थी। पड़ताल में पता चला कि प्रेमनी कुंवर के घर में चावल की कमी हो गई थी। राशन डीलर 35 की जगह 33 किलो चावल ही दिया करता था।
भात-भात कहते गई थी बच्ची की जान
आदिवासी बहुल झारखंड में भूख से औसतन प्रत्येक महीने किसी न किसी की मौत हो रही है। सिमडेगा जिले की संतोषी की मौत के बाद धनबाद के बैजनाथ रविदास, देवघर के रूपलाल मरांडी और गढ़वा के सुरेश उरांव की मौत भूख की वजह से हुई थी। पिछले साल 28 सितंबर को सिमडेगा में भूख की वजह से 11 साल की संतोषी की मौत हुई तो राष्ट्रीय स्तर पर बवाल मचा और मीडिया में यह खूब उछला। दरअसल, उस मासूम को आधार कार्ड की वजह से अपनी जान गंवानी पड़ी थी। उसका परिवार अपना राशन कार्ड आधार कार्ड से लिंक नहीं करा पाया था जिसकी वजह से उसके घर वालों को डीलर ने राशन देना बंद कर दिया था। आपको बता दें कि पीडीएस स्कीम के तहत गरीबों को मिलने वाले अनाज के लिए राशन कार्ड का आधार कार्ड से लिंक होना जरूरी है। तब संतोषी की मां कोयली देवी ने बताया था कि वह जब दुकान पर राशन लेने गई तो डीलर ने राशन देने से मना कर दिया। राशन मिलना बंद हो गया तो स्कूल के मिड-डे मील का खाना खाकर परिवार गुजारा कर रहा था लेकिन दुर्गा पूजा की छुट्टियों में स्कूल बंद होने से वो खाना मिलना भी रुक गया और एक दिन उसकी बेटी भात-भात कहते हुए भूख से तड़प कर मर गई।
इस घटना पर हंगामा मचने के बाद मामले की जांच के लिए राज्य व केंद्र सरकार की ओर से टीम गठित की गई। मगर सिमडेगा के डीसी ने केंद्र सरकार को जो रिपोर्ट भेजी उसमें मलेरिया को मौत की वजह बताया गया जिसे प्रदेश के स्वास्थ्य महकमे ने ही गलत ठहरा दिया। प्रदेश में भूख से हो रही मौतों पर सरकारें कितनी गंभीर हैं इसका अंदाजा इस रिपोर्ट से भी लगाया जा सकता है। लापरवाही का आलम ये भी है कि मामले की जांच के लिए दिल्ली से भेजी गई केंद्रीय टीम राजधानी रांची में ही बैठक करती रही। इससे भी शर्मनाक यह है कि बच्ची की मौत के बाद उसकी मां को गांव से बाहर निकाल दिया गया। गांव वालों ने कोयली देवी पर आरोप लगाया कि उसकी वजह से गांव की बदनामी हुई है। गांव से निकाले जाने के बाद उसने पंचायत घर में आश्रय लिया। वहां भी उसे लगातार धमकियां दी गर्इं जिसके बाद उसकी सुरक्षा में पुलिस के कुछ जवान भी तैनात किए गए।
राशन वितरण प्रणाली पर सवाल
इसी तरह धर्मस्थली देवघर में एक आदिवासी की मौत खाना नहीं मिलने के कारण हो गई थी। 62 साल के रूपलाल मरांडी की बेटी मनोदी मरांडी के मुताबिक, उसके पिता के अंगूठे का निशान बायोमीट्रिक मशीन से नहीं मिलने की वजह से पिछले दो महीने से उसके परिवार को राशन नहीं दिया जा रहा था। इसके चलते घर में दो दिन से चूल्हा नहीं जला था। एक पड़ोसी ने कुछ खाना दिया था जिसे खाकर परिवार किसी तरह से जी रहा था। दरअसल, रूपलाल के पैर की हड्डियां टूट गई थी जिस वजह से वह चलने में असमर्थ था। उसने बेटी को राशन वितरण केंद्र पर राशन लेने के लिए भेजा था लेकिन बायोमिट्रिक मशीन में अंगूठे का मिलान नहीं होने के कारण डीलर ने उसे राशन नहीं दिया। धनबाद के झरिया में एक रिक्शा चालक की भी भूख से तड़प कर मौत हो चुकी है। 40 साल के बैजनाथ दास के घर में खाने के लिए अनाज नहीं था। लगातार भूखे रहने और उसी दशा में रिक्शा चलाने की वजह से वह बीमार हो गया और उसके बाद मौत के मुंह में समा गया। जब मामले की खबर आला अधिकारियों को मिली तो वे मौके पर पहुंचे और राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना के तहत 20 हजार रुपये का चेक उसकी पत्नी को दिया।
भूख से लगातार हो रही मौतों पर जब केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामले के मंत्री रामविलास पासवान से पूछा गया तो उन्होंने सीधे तौर पर कहा, ‘यह मामला राज्य सरकार से जुड़ा हुआ है इसलिए ज्यादा कुछ नहीं कह सकता हूं। झारखंड सरकार से रिपोर्ट मांगी गई है। झारखंड को अनाज की पर्याप्त आपूर्ति की जा रही है। उसमें किसी तरह की कमी नहीं है।’ आधार कार्ड के कारण लोगों को आ रही परेशानी पर उन्होंने कहा कि गरीब लोगों की उंगलियां काम करने के कारण घिस जाती हैं जिसके कारण बायोमिट्रिक सिस्टम से मैच नहीं हो पाता है। ऐसे मामले में सिर्फ आधार कार्ड काफी होता है। इस मसले पर राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय का कहना है, ‘पीडीएस सिस्टम में कोई खामी नहीं है। भूख से हो रही मौत की खबर बेबुनियाद है। गिरीडीह में मरी महिला मानसिक तौर पर बीमार थी। यह भूख से मौत का मामला नहीं है। इस बारे में स्थानीय लोगों ने भी लिखित बयान दिया है। जिलाधिकारी ने बताया है कि उस महिला के खाते में 2,500 रुपये जमा थे। साथ ही उसका एक बेटा 7,000 रुपये कमा रहा है और दूसरे बेटे को भी 3,000 रुपये महीना मिल रहा है। बैंक स्टेटमेंट भी आ चुके हैं। जहां तक चतरा जिले की बात है तो 15 दिन पहले ही वह महिला बाराचट्टी (बिहार) से इटखोरी आई थी। ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि ऐसे लोगों का तत्काल पीडीएस कार्ड बने।’
मुख्यमंत्री दाल-भात योजना पर सरयू राय कहना है कि योजना फेल नहीं हुई है। इटखोरी में यह योजना चल रही है या नहीं यह जरूर जांच का विषय हो सकता है। मुख्यमंत्री जो भी घोषणा करते हैं उसे विभागीय अधिकारियों को चलाना चाहिए। राज्य में पीडीएस सिस्टम बिलकुल दुरुस्त है। भूख से कोई मौत नहीं हो रही है। मौके पर गए दो अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है और उनसे पूछा गया है कि संदेहास्पद मौत की सूचना के बाद भी उन्होंने शव का पोस्टमार्टम क्यों नहीं कराया।