नई दिल्ली। हिमाचल से चली नई बीमारी ‘स्क्रब टाइफस’ से 24 लोगों की मौत हो चुकी है। हिमाचल के जंगलों से निकली यह बीमारी अब शहरों में लोगों के घरों तक पहुंचने लगी है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 855 से ज्यादा लोग इसकी चपेट में हैं। इसके लक्षण डेंगू और चिकनगुनिया की तरह ही हैं, जिससे लोगों में आमतौर पर इसका पता लगाना और भी मुश्किल हो जाता है।
यह बीमारी घास में मौजूद पिस्सुओं के काटने से होती है और देखभाल न किए जाने पर इससे मौत भी हो सकती है। स्क्रब टाइफस घास में मौजूद एक विशेष प्रकार के पिस्सू की वजह से होता है। इस पिस्सू के काटने से उसकी लार में मौजूद एक बेहद खतरनाक बैक्टीरिया रिक्टशिया सुसुगामुशी रक्त में फैल जाता है।
सुसुगामुशी दो शब्दों से मिलकर बना है जिसका मतलब होता है सुसुगा यानी के छोटा और बेहद खतरनाक और मुशी मतलब माइट। इसके काटने से डेंगू की तरह प्लेटलेट्स की संख्या घटने लगती है। ये खुद तो संक्रामक नहीं हैं लेकिन इसकी वजह से शरीर के कई अंगों में संक्रमण फैलने लगता है। लीवर, दिमाग व फेफड़ों में कई तरह के संक्रमण होने लगते हैं और मरीज मल्टी ऑर्गन डिसऑर्डर के स्टेज में पहुंच जाता है। ये पिस्सू पहाड़ी इलाके, जंगल और खेतों के आस-पास ज्यादा पाए जाते हैं।
ऐसे कर सकते हैं बीमारी की पहचान
इस पिस्सू के काटने से पहले तेज़ बुखार (करीब 103 से 104 डिग्री फारेनहाइट) चढ़ता है। इसके साथ ही सिरदर्द, खांसी, मांसपेशियों में दर्द और शरीर में कमजोरी भी आने लगती है। ख़ास बात यह है कि पिस्सू के काटने वाली जगह पर फफोलेनुमा काली पपड़ी जैसा निशान दिखता है। इस बीमारी का इलाज़ वक़्त पर न किया जाए तो ये गंभीर रूप ले लेती है और निमोनिया में बदल जाती है। इससे ग्रस्त कुछ रोगियों में देखा गया है कि लीवर और किडनी भी इस बीमारी के होने पर ठीक से काम नहीं करते जिससे लोग बेहोश तक हो जाते हैं। प्लेटलेट्स के घटने को इसका सबसे सामान्य लक्षण माना जाता है।
इसकी पहचान ज्यादातर लक्षणों के आधार पर ही की जाती है। हालांकि ब्लड टेस्ट, सीबीसी काउंट और लीवर फंक्शनिंग टेस्ट के जरिये इसका ठीक-ठीक पता लगाया जा सकता है। एलाइजा टेस्ट और इम्युनोफ्लोरेसेंस टेस्ट से स्क्रब टाइफस एंटीबॉडीज का पता लगाते हैं। इसके लिए 7-14 दिनों तक दवाओं का कोर्स चलता है। इस दौरान मरीज को लिक्विड डाइट लेने और तेल से बनी चीज़ों से परहेज करने की सलाह दी जाती है। कमजोर इम्युनिटी या जिन लोगों के घर के आसपास यह बीमारी फैली हुई है उन्हें डॉक्टर हफ्ते में एक बार प्रिवेंटिव दवा भी देते हैं।
दिल्ली के एम्स में भी इस बीमारी से जूझ रहे 30 से ज्यादा मरीज़ इलाज करा रहे हैं। शहरों में भी बारिश के मौसम में जंगली पौधे या घनी घास के पास इस पिस्सू के काटने का खतरा बना हुआ है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे. पी. नड्डा ने ‘स्क्रब टाइफस’ बीमारी से निपटने में हिमाचल प्रदेश सरकार को हर संभव मदद का भरोसा दिया है।