संध्या द्विवेदी।
यू.के की 17 साल की केट को इंस्टाग्राम में खूब प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। केट कहती हैं ‘हां, मेरी एक आभासी दुनिया है…मगर कौन ऐसा है जिसकी अपनी एक दुनिया नहीं होती। हां, आप सपने देखते हैं..कभी डरावने कभी परियों के। कई-कई घंटे जूझते हैं…सुबह उठते हैं तो कहते हां, मैंने कुछ अजीब देखा। मगर वह एक सपना था। तो मैं जरा इन ख्यालों से थोड़ा ज्यादा जूझती हूं। मेरे ख्याल मुझे उलझाते हैं। डराते हैं। लगता है शरीर में कीड़े रेंग रहे हैं। कभी कभी लगता है…कई आंखे मेरा पीछा कर रही हैं। मैं यह बताना चाहती हूं…। पर ज्यादातर लोग समझते नहीं।’
केट का जिक्र इसलिये जरूरी है क्योंकि भारत जैसे देश में भी 7 करोड़ लोग किसी न किसी मानसिक बीमारी से जूझ रहे हैं। करीब इलाज की मांग और पहुंच के बीच 80 से ज्यादा फीसदी का फर्क है। यह वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन का आंकड़ा है। निमहांस जैसी मशहूर संस्था के मुताबिक भारत में 35 लाख लोग ऐसे हैं जिन्हें फौरन अस्पताल में भर्ती होना चाहिये। मगर हमारे पास केवल 40 इंस्टीट्यूट हैं और 26,000 बेड हैं। यह दर्ज आंकड़े हैं जबकि जमीनी आंकड़े इससे कहीं ज्यादा हैं।
भारत में मेंटल हेल्थ केयर बिल दोनों सदनों से पास होने के बाद राष्ट्रपति ने भी इस पर मोहर लगा दी है। माना जा रहा है कि यह अधिनियम मानसिक बीमारी से जूझ रहे लोगों को न केवल बेहतर इलाज दिला पायेगा बल्कि समाज का इन लोगों के लिये नजरिया भी बदलेगा। अफसोस जनक यह है कि मीडिया खासतौर पर बॉलीवुड और हॉलीवुड ने भी मानसिक बीमारियों का ज्यादातर मजाक ही बनाया है। मीडिया ने आधाअधूरा सच ही सबके सामने अभी तक लाया है।
मीडिया की भूमिक से नाराज मनोचिकित्सक डॉ राजेश सागर सवाल उठाते हैं और आरोप लगाते हैं -‘क्या मानसिक रूप से स्वस्थ्य व्यक्ति हिंसात्मक नहीं होते? दरअसल मीडिया ने मानसिक बीमारियों को लेकर सबसे ज्यादा भ्रांतियां फैलाई हैं। फिल्मों में ऐसे लोगों को बिल्कुल नकारा और हिंसात्मक बता दिया जाता है।’
कुछ ऐसा ही सवाल 17 साल की यू.के. निवासी केट ने उठाया है। केट कहती हैं-मीडिया अक्सर दिखाता है कि मानसिक रूप से जूझ रहे लोग ‘हिंसात्मक’ और ‘आलसी’ रवैये के होते हैं। वो निर्थक और समाज के लिये हानिकारक होते हैं। मगर ऐसा नहीं है। मैं एक पेंटर हूं। लेकिन यह बात मुझे तब पता चली जब मुझे पता चला कि मुझे ‘सीजोफ्रेनिया’ है। सीजोफ्रेनिया यानी एक ऐसी मानसिक बीमारी जब आप तरह तरह के मानसिक अनुभव करते हैं। आप को कई ऐसी चीजों का अभास होता है जो कि वास्तव में हैं ही नहीं।
केट कहती हैं कितना अजीब है लोग कहते हैं, कि मानसिक रूप से अस्वस्थ्य व्यक्ति रचनात्मक नहीं होते। पर मैंने तो पेटिंग तभी शुरू की जब मुझे मेरी बीमारी का पता चला।
केट ने अपने भीतर के एहसासों को श्रृंखलाबद्ध तरीक से पेटिंग में उकेरा है। उनकी पेटिंग को खूब सरहाना तो मिली ही साथ ही कई तरह के मानसिक झंझावातों से जूझने वाले लोगों के मनोभावों को को सबके सामने लाने का एक जरिया भी मिला।
केट कहती हैं-मेरे भीतर कई तरह के विचार आते हैं, जिन्हें मैं किसी को बता नहीं पाती। हां, मगर महसूस करती हूं। मेरा मानना है मानसिक बीमारी से जूझ रहे हर व्यक्ति के पास उसके एहसासों को बयां करने का तरीका जरूर होगा, जैसा कि मेरे लिये पेटिंग जरिया बनी।
पेंटिगं करने के बाद मैं बहुत हल्का महसूस करती हूं। हमारी सबसे बड़ी तकलीफ होती है, अपने विचारों को स्पष्ट न कर पाना। मगर मुझे एक जरिया मिल गया है। उम्मीद करती हूं, औरों को भी अपना जरिया जरूर मिलेगा।