निशा शर्मा
फिल्म ‘की एंड का’ (फिल्म में अर्जुन कपूर ने एक ऐसे पति की भूमिका निभाई है जो घर संभालता है और फिल्म में उनकी पत्नी बनीं करीना नौकरी करती हैं।) फिल्म के एक सीन में अर्जुन कपूर का इंटरव्यू देखते हुए जया, अमिताभ से पूछती हैं कि क्या वो ऐसा कर सकते थे? इस पर अमिताभ का जवाब होता है, बिल्कुल, मैं कर सकता था लेकिन तुम खुद घर पर रहकर बच्चों और घर को देखना चाहती थी इसलिए तुमने काम छोड़ ये सबकुछ चुना। इस पर जया जवाब देती हैं कि मैंने ये सब इसलिए चुना क्योंकि मेरे पास इसे चुनने के अलावा कोई दूसरा विकल्प ही नहीं था। ये शब्द, ये वाक्य सिर्फ फिल्मी नहीं हैं ये कहानी है दिखने में नाजुक और सरल सी लगने वाली अभिनेत्री जया भादुड़ी की। जो बाहर से सरल और सहज दिखती हैं लेकिन अंदर से उतनी ही मजबूत और कठोर हैं।
जया कि जिन्दगी देखने में भले ही बहुत आसान क्यों ना लगती हो लेकिन अपनी जिन्दगी में आए तूफानों को थामने का हौंसला सिर्फ इस अभनेत्री ने दिखाया ही नहीं बल्कि ऐसा किया भी। भादुड़ी ने ऐसा दौर देखा जब उनके पति और फिल्म जगत के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन का नाम अनगिनत अभिनेत्रियों के साथ जुड़ा ही नहीं बल्कि रेखा जैसी अभिनेत्रियों ने तो उन्हे पति का दर्जा तक दिया। ऐसे में जया ने जिन्दगी की उथल- पुथल में अपनी हिम्मत नहीं हारी फिल्म जगत की चकाचौंध और मीडिया में आई अमिताभ- रेखा के विवाह की खबरों को दरकिनार करते हुए, अपने परिवार के खातिर वो रेखा से मिलीं और चन्द शब्दों में रेखा ही नहीं दुनिया को समझा दिया कि कुछ भी हो जाए वो अमिताभ को नहीं छोड़ेंगी। और ऐसा हुआ भी जया ने अपने प्रेम और विश्वास के बल पर अमिताभ को अपने संस्कारों की दहलीज पार नहीं करने दी।
9 अप्रैल 1948 को जन्मी जया एक मंझी हुई कलाकार रही हैं। सत्यजीत रे कि फिल्म महानगर से डेब्यू करने के बाद, गुड्डी, कोशिश जैसी अनगिनत फिल्में उनके नाम है, जिसमें किए गए उनके अभिनय का कोई विकल्प आज भी नजर नहीं आता । लेकिन अपने परिवारिक जीवन को बचाने और अपने बच्चों में अपने संस्कारों का निर्माण करने के लिए जया ने फिल्म सिलसिला के बाद 17 साल का विराम लिया। शायद ये कड़वी सच्चाई है कि जया के लिए उस समय इसके अलावा कोई और विकल्प था भी नहीं। क्योंकि दिखावे की इस दुनिया में उसे अपना पति औऱ परिवार बचाना था। दृढ़ निश्चय ने ही जया को 17 साल तक फिल्मी दुनिया से दूर रखा। 17 साल किसी भी अभिनेत्री के करियर के लिए खतरनाक ही नहीं खात्मे के संकेत देता है। लेकिन इस अभिनेत्री ने फिल्मों में फिर वापसी की और साल 1998 में आई फिल्म ‘हजार चौरासी की मां’ के जरिए अपने सिने करियर की दूसरी पारी खेली और इस पारी में वो सफल भी रहीं । गोविन्द निहलानी के डायरेक्शन में नक्सलवाद मुद्दे पर तैयार इस फिल्म में जया ने मां की भूमिका को भावात्मक रूप से जाहिर कर लोगों का दिल जीत लिया।
जया को अपने फिल्मी करियर के लिए देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक अवॉर्ड पद्मश्री’ से भी नवाजा गया। जिन्दगी के छह दशकों को देखने वाली जया आज जिन्दगी ही नहीं अपने फिल्मी करियर में भी उस ऊंचाई पर हैं जहां उनके लिए किरदार गढ़े जाते हैं ना कि किरदारों के लिए वो।