अजय विद्युत।
भगवान शिव को समर्पण से लेखन की शुरुआत कर शिवात्रयी- ‘द इम्मार्टल्स ऑफ मेलुहा’, ‘द सीक्रेट ऑफ नागाज’ और ‘द ओथ ऑफ द वायुपुत्राज’ रचकर देश दुनिया में धूम मचाने वाले भारतीय लेखक अमीश त्रिपाठी अब रामचंद्र श्रृंखला की दूसरी पुस्तक ‘सीता : वॉरियर ऑफ मिथिला’ लेकर फिर उपस्थित हैं। अभी केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा था, ‘अमीष, मेरी पसंद के भारतीय लेखकों में तुम ही ऐसे हो जिसकी अगली किताब की मैं उत्सुकता से प्रतीक्षा करती हूं। पर तुम इंतजार बहुत कराते हो।’ एक बातचीत में अमीश ने अपनी नई किताब और मौजूदा तथा प्राचीन समय में महिलाओं की स्थिति पर अपने विचार ओपिनियन पोस्ट से साझा किए।
समाज सीता को एक अत्यंत सहनशील, पतिव्रता नारी के रूप में जानता है… और रामचंद्र सीरीज की आपकी दूसरी किताब में आप सीता को ‘वॉरियर आफ मिथिला’ बता रहे हैं। समाज सीता की योद्धा छवि को स्वीकार करेगा?
आज की तारीख में और खासकर शहरी आधुनिक भारत में सीता मां की जो छवि है वह बहुत हद तक 1987 में प्रसारित ‘रामायण’ टेलीविजन सीरियल पर आधारित है जिसे रामानंद सागर जी ने बनाया था। और 1987 का यह टेलीविजन सीरियल काफी सीमा तक सोलहवीं शताब्दी की रामचरित मानस पर आधारित है जिसकी रचना तुलसीदास जी ने की थी। रामायण के कई और वर्णन भी हैं और प्रारूप भी हैं। एक है अद्भुत रामायण। कहते हैं कि उसकी रचना भी वाल्मीकि जी ने की थी। उसमें जो बड़ा रावण था उसका वध सीता मां ने किया था, प्रभु श्रीराम ने नहीं। तो उसमें वह एक योद्धा थीं। एक गोंड रामायण भी है जो हमारे वनवासी इलाकों में काफी प्रसिद्ध है। उसमें भी सीता मां एक योद्धा के रूप में सामने आई हैं। इसके अलावा कई और कहानियां भी हैं। कहते हैं कि जब सीता मां बच्ची थीं और मिथिला में अपने पिताजी जनक के साथ थीं, तो उन्होंने घर पर बड़ी आसानी से पिनाका यानी शिवजी के धनुष को उठा लिया था। वह कोई साधारण धनुष नहीं था शिवजी का पिनाका धनुष था। जिस धनुष को बड़े बड़े योद्धा उठा नहीं सकते थे उसे सीता मां ने बहुत आसानी से तब उठा लिया था जब वह बच्ची थीं। यह बताता है कि सीता मां काफी शक्तिशाली महिला और देवी थीं। तो शायद मैं उसी छवि को सामने रखने की कोशिश कर रहा हूं। मेरी नजर में तो शक्ति के रूप में सीता मां की छवि काफी प्रेरणा देने वाली है। मैं तो यही कहूंगा कि धर्म और मर्यादा का सम्मान तो होना चाहिए, लेकिन उसी के साथ शक्ति का भी सम्मान होना चाहिए। यही मैं दिखाने की कोशिश कर रहा हूं।
आपकी सीता तुलसीदास की रामचरित मानस की सीता से किस रूप में भिन्न होगी?
मैं तो एक बहुत छोटा सा लेखक हूं और हम लेखकों में तुलसीदास जी को एक देव के रूप में देखा जाता है। वह केवल लेखक नहीं बल्कि संत थे। उनकी रामचरित मानस रचना तो हमारी स्तुतियों में शामिल है। तो उससे तो कोई तुलना की ही नहीं जा सकती। मैं तो केवल यही कहूंगा कि मैंने जो यह सीता मां के ऊपर किताब लिखी है यह पूरी श्रद्धा से लिखी है और आशा है कि पाठकों को पसंद आएगी। वैसे तो मैं शिवभक्त हूं लेकिन मैं श्रीराम और सीता मां की भी रोज सुबह आराधना करता हूं। और मेरा मानना है कि सीता मां को इस रूप में भी पूजा जाना चाहिए जहां हम उन्हें एक शक्ति और योद्धा के रूप में देख रहे हैं।
भारतीय समाज में आमतौर पर सीताओं यानी महिलाओं की जो स्थिति है, उसे आप किस रूप में देखते हैं।
मैं एक देशभक्त हूं और भारत देश से बेहद प्रेम करता हूं। कोई भी दूसरा देश नहीं जहां पर मैं जीना चाहता हूं। कोई भी दूसरा देश नहीं जहां पर मैं मरना चाहता हूं। और अगली जिंदगी में भी भगवान की कृपा रही तो फिर से इसी देश में जन्म होगा मेरा। लेकिन देशभक्ति का मतलब यह नहीं कि जिन जगहों पर सुधार की जरूरत है उसे हम नजरअंदाज कर दें। यह तो सीधी सी बात सबके देखने में आती है कि कुछ हद तक हमारे समाज में महिलाओं के साथ जैसा व्यवहार हो रहा है, जो शोषण हो रहा है, वह बहुत गंभीर और चिंता का विषय है। पूरे समाज पर इस पर एक मुहिम छेड़ने की जरूरत है। आज के समाज में हमारे यहां महिलाओं के साथ जैसा व्यवहार होता है वह हमारी प्राचीन सभ्यता के एकदम विपरीत है। पुराने जमाने में महिलाओं की बहुत इज्जत होती थी और उन्हें हर रूप में बराबरी का दर्जा दिया जाता था। हमारा सबसे प्राचीन शास्त्र ऋग्वेद है। उसमें आप देखेंगे कि कई सूक्त ऐसे हैं जिन्हें ऋषिकाओं ने लिखा है। ऋषिका मतलब महिला ऋषि। जैसे- मां ऋषिका लोपामुद्रा, मां ऋषिका इंद्राणी, मां ऋषिका मैत्रेय, मां ऋषिका गार्गी। आप जानते हैं कि उस समय ऋषियों का दर्जा राजा-महाराजा से भी ऊपर होता था। तो यह स्थिति थी महिलाओं की उस जमाने में कि वे ऋषिकाएं होती थीं और जिनके सूक्त ऋग्वेद में भी हैं। उसी पुरानी संस्कृति को पुनर्जीवित करने की जरूरत है। हमारे प्राचीन शास्त्रों में तो यह भी लिखा गया है कि जिस देश में महिलाओं का सम्मान नहीं होता उस देश को भगवान भी त्याग देते हैं। तो हमें अपने पूर्वजों की बात सुननी चाहिए, माननी चाहिए और महिलाओं को समान दर्जा देना चाहिए तभी हमारा समाज आगे बढ़ेगा।
आपकी इस किताब में अगर केंद्रीय या मुख्य पात्र सीता है तो उसमें राम की कितनी भूमिका होगी? यानी राम के चरित्र को कितना स्थान मिल पाएगा?
मेरी नई किताब ‘सीता : वॉरियर आफ मिथिला’ पूरी तरह से सीता मां पर केंद्रित है। यह रामचंद्र श्रृंखला की दूसरी किताब है। रामचंद्र श्रृंखला की पहली किताब ‘साइअन ऑफ इक्ष्वाकु ’ में श्रीराम हीरो थे। उसमें सीता मां एक पात्र थीं और किताब के आखिरी एक तिहाई में आर्इं। उसी तरह ‘सीता : वॉरियर ऑफ मिथिला’ में मेन हीरो सीता मां हैं जिसमें श्रीराम एक सहायक की भूमिका में हैं जो किताब के आखिरी एक तिहाई में आएंगे।
मोटे तौर पर दस हजार से दस लाख तक कमाने वाले लोग समाज में हैं। जो जहां जिस स्थिति में है वह वहीं से समाज की आधी आबादी के दबे-कुचले हिस्से के लिए क्या योगदान कर सकता है।
मैं कहूंगा कि जो महिलाओं का शोषण हो रहा है वह सरकार के द्वारा नहीं हो रहा है। दुख कि बात है कि यह हमारा समाज कर रहा है। समाज में हर इंसान को, चाहे वह मर्द हो या औरत, इस विषय पर लड़ाई करने की जरूरत है। हर व्यक्ति अपने आसपास घर-परिवार में मित्रों में, जहां भी देखें कि महिलाओं को बराबरी के अधिकार नहीं दिए जा रहे हैं, सम्मान नहीं दिया जा रहा है, उसे यह विषय वहां उठाना चाहिए। इसे नजरअंदाज बिल्कुल न करें। समाज में महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए बातचीत करें। मैं महिलाओं के प्रति जो हिंसा हो रही है केवल उनकी बात नहीं कर रहा हूं। छोटी छोटी बातें भी जो होती हैं जैसे किसी महिला को अपनी मनमर्जी का काम करने नहीं दिया जाता, या किसी बालिका को पढ़ाई लिखाई करने नहीं दी जाती- तो हर विषय पर हमें अपने छोटे से संसार में, परिवार में, मित्रगणों में इस विषय पर लोगों से बात करने की जरूरत है। हम एक बार कोशिश तो कर ही सकते हैं कि जिन लोगों को हम जानते हैं उनका एटीट्यूटड बदलें कि वे भी महिलाओं को बराबरी का हिस्सा दें।
सुना है शिवा त्रयी या शिवा ट्रायलॉजी के बाद जब आपने तय नहीं किया था कि आगे किस विषय पर पुस्तक लिखेंगे। तभी एक प्रकाशक ने आपको एडवांस के तौर पर पांच करोड़ का चेक दिया था। क्या महसूस हुआ था उस समय?
(हंसते हुए) अब इस सवाल का मैं क्या जवाब दूं। क्षमा कीजिएगा मैं कभी पैसों पर टिप्पणी नहीं करता। तो इस विषय पर मौन ही उचित है।
आज जब महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार और उत्पीड़न की खबरें सामने आती हैं तो लेखक अमीश त्रिपाठी को कैसा लगता है?
जब भी महिलाओं के साथ बुरा बर्ताव होने की खबरें आती हैं मुझे खराब लगता है और मुझे शर्म भी आती है। मैं मानता हूं कि अगर हम इस बारे में कुछ न करें, हमारा समाज इस विषय को गंभीरता से न उठाए तो हम अपने पूर्वजों की बेइज्जती कर रहे हैं। क्योंकि हमारी प्राचीन सभ्यता में कभी ऐसा नहीं किया जाता था। महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिया जाता था। वही हमारी सभ्यता है और वही हमारी संस्कृति है। अगर हम सच्चे देशभक्त हैं तो हमें और हर भारतीय को इस विषय पर काम करना पड़ेगा। तभी हमारा देश आगे बढ़ेगा और तभी हम कह पाएंगे कि हम अपने पूर्वजों की योग्य संतानें हैं। जब हम अपनी आवाज उठाएंगे कि महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिया जाए और उसके लिए लड़ेंगे, तभी हम कह पाएंगे कि आदि शंकराचार्य जी, भास्कराचार्य जी, कालिदास जी, चाणक्य जी, गार्गी जी, मैत्रेयी जी- ऐसे महान महान लोगों के हम वंशज हैं।