महागठबंधन की सरकार पर हमला बोलने के लिए विपक्ष के पास तमाम असला मौजूद है। दरअसल, देश भर में भाजपा के खिलाफ आंदोलन की बात करने वाले और महागठबंधन के सबसे बड़े घटक राजद के मुखिया लालू और उनका परिवार विवादों के जाल में फंस चुका है। 10 साल के सत्ता निर्वासन के बाद नवंबर 2015 में वापसी करने वाले लालू यादव की राजनीतिक उड़ान पर 16 महीनों में ही ग्रहण लग गया है। भाजपा के लिए यह बड़ा मौका हैजिसे ताड़ने में वह कोई कसर नहीं छोड़ रही है। भाजपा यह मान कर चल रही है कि लालू और महागठबंधन सरकार पर इसी तरह आरोप लगता रहा तो वर्तमान सरकार अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएगी। महागठबंधन बिखर जाएगा या फिर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होगा। यही कारण है कि एक ओर लालू से रिश्ता तोड़ने पर नीतीश कुमार को समर्थन की बात तो दूसरी ओर राज्य में राष्ट्रपति शासन की मांग से महागठबंधन सरकार पर भाजपा ने हर ओर से हमला बोल दिया है। इस संदर्भ में बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता डॉ. प्रेम कुमार से प्रियदर्शी रंजन की खास बातचीत।
लालू-शहाबुद्दीन टेप प्रकरण और चारा घोटाला में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आपने राज्य में राष्ट्रपति शासन की मांग की है। राज्य में क्या राष्ट्रपति शासन लागू होगा?
मुख्यमंत्री को खुद इस्तीफा दे देना चाहिए। राज्य के शासन को वे संभाल नहीं पा रहे हैं। सही मायनों में सरकार की बागडोर लालू यादव के हाथों में है। और लालू एक माफिया डॉन शहाबुद्दीन के कब्जे में हैं। जिस तरह जिन्न को एक तांत्रिक बोतल में बंद कर लेता है उसी तरह लालू को शहाबुद्दीन ने बंद कर लिया है। राज्य की बागडोर एक अपराधी के हाथों में है। इस अराजक स्थिति में राज्य को महागठबंधन सरकार से मुक्ति चाहिए। राष्ट्रपति शासन एक विकल्प है।
लालू की तरह ही केंद्र में मंत्री उमा भारती और भाजपा के अन्य नेताओं पर आपराधिक मामले के तहत दिशा-निर्देश दिया गया है।
उमा भारती और भाजपा के अन्य नेताओं पर राजनीतिक मामला है। राम मंदिर के पवित्र मसले पर उन पर मुकदमा चल रहा है। लालू ने घोटाला किया है। लालू को व्यवस्था प्रभावित करने में महारत हासिल है। घोटाले का मुकदमा और राम मंदिर के मसले को एक साथ जोड़ कर नहीं देखा जा सकता।
भाजपा को लालू और कांग्रेस की वजह से महागठबंधन सरकार भ्रष्ट नजर आती है। नीतीश कुमार के साथ भाजपा का दोस्ताना विरोध है। लालू यादव भ्रष्ट और नीतीश कुमार ईमानदार कैसे हो गए?
अगर नीतीश कुमार ईमानदार होते तो लालू की शरण में नहीं जाते। जब तक उनकी राजनीति ईममानदार रही वे भाजपा के साथ थे। उनकी नीयत बेईमान हुई तो भाजपा का साथ छोड़ दिया। जहां तक सिर्फ लालू के विरोध करने की बात है तो आप बिहार विधान सभा की कार्यवाही का रिकार्ड देख लीजिए। विपक्ष का नेता होने के नाते जन समस्याओं पर सदन में नीतीश कुमार की बखिया उधेड़ी है। लालू यादव सदन में नहीं हैं तो उनसे सवाल-जबाब अलग मंच पर होता है।
माना जा रहा है कि देश स्तर पर नीतीश कुमार की बढ़ती स्वीकृति से भाजपा घबरा गई है। आपके दल के एक नेता ने कहा कि नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग होते हैं तो उन्हें समर्थन दिया जाएगा। क्या यह संभव है?
यह केंद्रीय नेतृत्व फैसला करेगा। मैं इसके बारे में कुछ नहीं कह सकता। व्यक्तिगत तौर पर कहूं तो दूर-दूर तक इसकी काई संभावना नहीं है। हम वह दिन नहीं भूले हैं जब नीतीश कुमार ने नैतिकता की दुहाई देते हुए राजग से नाता तोड़ लिया था। नीतीश कुमार गठबंधन धर्म निभाने में अक्षम रहे हैं। जहां तक नीतीश की राजनीतिक हैसियत का सवाल है तो हाल ही में दिल्ली निगम चुनाव उदाहरण है। जदयू ने 96 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए। सभी की जमानत जप्त हो गई। यूपी चुनाव से पहले बड़ी-बड़ी हांकने के बाद चुनाव में उम्मीदवार ही नहीं दे पाए। यूपी की जीत देश की जनता का मिजाज बताने के लिए काफी है। पिछले लोकसभा चुनाव में जिन दस सीटों पर एनडीए चूक गया था, 2019 में उसे भी फतह करेगा। महागठबंधन के नेताओं का आरोप है कि राज्य की वर्तमान सरकार को अलोकतांत्रिक तरीके से भाजपा अस्थिर कर रही है। महागठबंधन के भ्रष्ट नेताओं को बेनकाब करने का काम भाजपा कर रही है। उससे महागठबंधन के नेताओं में हड़कंप मचा हुआ है। राज्य में आए दिन एक नया घोटाला हो रहा है। अभी परीक्षा-पत्र लीक का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि नीट में धांधली का मामला आ गया। मिट्टी घोटाले पर परत पड़ी भी नहीं थी कि जमीन घोटाला हो गया। 16 महीनों में महागठबंधन की सरकार हांफने लगी है। राज्य में अपराध का बोलबाला बढ़ गया है। विकास थम गया है। राज्य की जनता इस सरकार से मुक्ति चाहती है। वैसे महागठबंधन के खुद के नेताओं में तालमेल नहीं है। यही कारण है कि सरकार गठन के इतने दिनों बाद भी बीस सूत्री का गठन नहीं हुआ। आयोग, अकादमी के सारे पद सत्ता के तीन केंद्रो में टकराव की वजह से रिक्त है।