नई दिल्ली।
आयकर बचाने के लिए लोग तरह-तरह के उपाय करते हैं। वे किसी भी तरीके से कर नहीं देना चाहते, भले ही उसके लिए उन्हें फर्जीवाड़ा क्यों न करना पड़े। आयकर बचाने के सर्वाधिक प्रचलित उपायों में है घर के किराये की फर्जी स्लिप लगा देना। लेकिन अब कोई भी मकान भाड़े की फर्जी स्लिप लगाकर अपना टैक्स नहीं बचा पाएगा। इनकम टैक्स विभाग ऐसे लोगों पर सख्त होने जा रहा है। लेकिन यहां इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि ज्यादातर मकान मालिक अपने किरायेदार को किराये की रसीद नहीं देते। इसलिए ज्यादातर मामलों में किराये के मकान में रहने वाला कर्मचारी फर्जी स्लिप बनाने के लिए मजबूर हो जाता है।
घर के किराये की फर्जी रसीदों को सेवायोजक भी नजरअंदाज कर देते हैं। टैक्स अधिकारी भी इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देते और इसे अनदेखा कर देते हैं। आयकर विभाग अब इसका ठोस सबूत मांग सकता है कि आपने जहां की रेंट स्लिप दी है, वहां आप वास्तव में किराये पर रहते हैं। लोग जिस कंपनी में नौकरी करते हैं वहां से मिलने वाले हाउस रेंट के 60 फीसदी तक की रकम पर टैक्स देने से बच सकते हैं, इसके लिए उन्हें किराये की असली स्लिप लगानी होगी।
कई जगह देखा जाता है कि कर्मचारी अपने पिता के घर में रह रहा होता है और रेंट स्लिप लगा देता है। कभी-कभी किरायेदार होने पर भी किराये की रकम बढ़ा कर दिखाई जाती है। आयकर अधिकारी अब दिखाई गई टैक्सेबल इनकम का आंकड़ा मंजूर करते वक्त सबूत मांग सकते हैं। इसमें लीज एंड लाइसेंस एग्रीमेंट, किरायेदारी के बारे में हाउसिंग को-ऑपरेटिव सोसायटी को जानकारी देने वाला लेटर, बिजली का बिल और पानी का बिल जैसे सबूत हो सकते हैं।
डेलॉयट हास्किंस एंड सेल्स एलएलपी के सीनियर टैक्स एडवाइजर दिलीप लखानी के मुताबिक, इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल की रूलिंग ने सैलरी पाने वाले कर्मचारियों के क्लेम पर विचार करने और जरूरी होने पर उस पर सवाल करने के लिए आकलन अधिकारी के सामने एक मानक रख दिया है। इससे सैलरी लेने वाले पर यह जिम्मेदारी आएगी कि वह टैक्स छूट पाने के लिए नियमों का पालन करे।
माना जाता है कि फर्जी रेंट रसीदें देने वाले कर्मचारी के पास इनमें से कोई भी जरूरी दस्तावेज नहीं होता है। हो सकता है कि वह व्यक्ति असल में किराये पर नहीं रह रहा हो। अपने परिवार के घर में ही रह रहा हो और अपने पिता से किराये की रसीद पर दस्तखत कराकर जमा कर रहा हो।
कुछ मामलों में असल में किरायेदार होने पर भी किराये की रकम बढ़ाकर दिखाई जाती है। इसमें तब तक दिक्कत नहीं आती जब तक कि किराया पाने वाला शख्स टैक्स चुकाने की लिमिट से बाहर हो। एक टैक्स ऑफिसर ने कहा, ‘टेक्नॉलजी और सख्त रिपोर्टिंग सिस्टम से नजर बनाए रखने में आसानी होगी।’ ऐसे कई मामले देखे गए हैं, जिनमें कोई व्यक्ति भले ही अलग रह रहा हो, लेकिन वह दावा करता है कि उसी शहर में रहने वाले एक रिश्तेदार को किराया चुका रहा है, जिसकी वहीं कोई प्रॉपर्टी हो।