क्यों खास हैं बैडमिंटन के सबसे सफल कोच और उनकी एकेडमी

रियो ओलंपिक में बैडमिंटन के सिंगल स्पर्धा में सिल्वर मेडल जीत कर इतिहास रचने वाली पीवी सिंधु की देश और दुनिया में जितनी चर्चा हो रही है उतनी ही चर्चा उनके कोच और पूर्व बैडमिंटन खिलाड़ी व अॉल इंग्लैंड चैंपियन पुलेला गोपीचंद की भी हो रही है। कोच तो हर खिलाड़ी के होते हैं लेकिन किसी कोच की इतनी चर्चा शायद ही इससे पहले कभी हुई हो। आखिर गोपीचंद क्यों हैं इतने खास और क्या खासियत है उनकी बैडमिंटन एकेडमी की जहां से विजेता निकलते हैं, जानते हैं इस बारे में।

आदर्श गुरू

आज से बारह साल पहले गोपीचंद ने जब सिंधु को बैडमिंटन खेलते देखा तो उन्हें यह महसूस हो गया कि इस लड़की में कुछ खास है। उसकी इसी खासियत को संवारने का जिम्मा गोपीचंद ने सिंधु के वॉलीबाल खिलाड़ी रहे मां-बाप से ले लिया। गोपीचंद स्वयं ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियन और दुनिया के चौथे नंबर के खिलाड़ी रहे हैं। लेकिन इससे भी बड़ी बात है उनके अंदर का आचार्य का गुण, जिसके आधार पर वे अपने खिलाड़ियों को आदेश से कहीं अधिक अपने आचरण से प्रेरित करते हैं। सिंधु और श्रीकांत किदांबी जैसे उनके शिष्य जिन्होंने इस ओलंपिक में हिस्सा लिया वे बैडमिंटन एकेडमी में रोजाना सुबह चार बजे पहुंचते थे तो वहां उन्हें गोपीचंद पहले से मौजूद दिखाई देते थे। इसके बाद लगातार तीन घंटे इन खिलाड़ियों के साथ वे इस तरह अपना पसीना बहाते थे मानो वे खुद ओलंपिक में भाग ले रहे हों। भारत की नंबर एक बैडमिंटन खिलाड़ी और बीजिंग ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली सायना नेहवाल भी इसी एकेडमी से निकलीं हैं।

सिंधु को फिटनेस का अभ्यास कराते गोपीचंद
सिंधु को फिटनेस का अभ्यास कराते गोपीचंद

उनकी बेटी गायत्री अंडर-13 की बैडमिंटन चैंपियन है। गोपीचंद ने बेटी को इस काम में लगा रखा था कि वह सुबह जल्दी आकर सिंधु को नेट की प्रैक्टिस कराए। रियो ओलंपिक के दौरान भी गोपीचंद सिंधु के विरोधियों पर जीत के लिए रात 2 बजे उठ जाते थे और उनकी वीडियो देखकर अगली स्ट्रैटजी बनाते थे। यदि सिंधु को गोपीचंद नहीं मिले होते तो भारत रियो ओलंपिक में हिंदुस्तान का तिरंगा फहराने वाली सिंधु से वंचित रह जाता। वे गोपीचंद ही हैं जिन्होंने एक पतली-दुबली लंबी लड़की को आज हिंदुस्तान का गौरव बना दिया है।

अनुशासन पर खास नजर

गोपीचंद उन गुरुओं में हैं जो अपने शिष्यों को गुड़ खाने से मना करने से पहले खुद गुड़ खाना बंद करते हैं। सिंधु की आज की उपलब्धियां बहुत से युवाओं के लिए प्रेरणा का कारण बन सकती है लेकिन वे शायद नहीं जानते कि इसके लिए गोपीचंद ने उनसे कितना कुछ क्या-क्या कराया है। सिंधु को चॉकलेट और हैदराबादी बिरयानी बहुत पसंद है लेकिन वह मेडल जीतने के तीन महीने पहले से उसके दर्शन तक नहीं कर सकतीं थी। यहां तक कि यदि मंदिर का प्रसाद भी मिलता था तो उसे खाने की सख्त मनाही थी। डाइट पर यह नियंत्रण केवल सिंधु के लिए ही नहीं है, बल्कि उन्होंने अपने ऊपर भी लगा रखा था। पिछले तीन महीनों से उन्होंने भी चावल नहीं खाया। साथ ही सिंधु को अपने साथ ही खिलाते थे। पिछले तीन महीने के दौरान उन्होंने सिंधु को मोबाइल से भी दूर रखा। ओलंपिक के दौरान गोपी सिंधु के खाने-पीने से लेकर उसके घूमने फिरने और सोने तक पर बारीक नजर रखते थे।

कैसे खोली एकेडमी 

अपनी एकेडमी में शिष्यों को ट्रेनिंग देते गोपी
अपनी एकेडमी में शिष्यों को ट्रेनिंग देते गोपी

आज यह सवाल सबकी जेहन में है कि जब गोपी अपने शिष्यों को ओलंपिक में मेडल दिला सकते हैं तो खुद ओलंपिक में मेडल क्यों नहीं जीत सके। इसकी वजह उनका अनफिट होना था। 2001 में अॉल इंग्लैंड चैंपियन बनने के साथ उनका करियर चरम पर था मगर 2003 आते-आते चोटों ने उन्हें परेशान करना शुरू कर दिया। अनफिट होने की वजह से 2003 में उनकी विश्व रैंकिंग गिर कर 126 पर आ गई जिसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर खेलना बंद कर दिया। इसी के साथ उन्होंने बैडमिंटन एकेडमी खोलने की ठानी और देश को सायना नेहवाल, श्रीकांत किदांबी और सिंधु जैसे नायाब हीरे दिए। इस एकेडमी के लिए उन्हें कम पापड़ नहीं बेलने पड़े। आंध्र प्रदेश सरकार से उन्होंने इसके लिए हैदराबाद में जमीन की मांग की। 2003 में सरकार ने उन्हें सस्ती दर पांच एकड़ जमीन तो दे दिया मगर इसके निर्माण के लिए उनके पास धन नहीं था। ऐसे में उन्हें अपना घर भी गिरवी रखना पड़ा। पांच साल की कोशिश के बाद 2008 में यह एकेडमी बनकर तैयार हुआ और यहां खिलाड़ियों को ट्रेनिंग दी जाने लगी। पिछले तेरह सालों में अपने चरित्र की दृढ़ता और खेल के प्रति पूरे समर्पण के भाव से ही गोपी ने इस बैडमिंटन एकेडमी को विश्व की श्रेष्ठतम एकेडमी में परिवर्तित कर दिया है।कहा जाता है कि गोपीचंद जब अपनी एकेडमी में होते हैं तो कोई उन्हें उनके विचारों से जरा भी हिला-डुला नहीं सकता। वे अपने खिलाड़ियों को इस तरह सिखाते हैं, मानो किसी बच्चे को सिखा रहे हों। पी कश्यप, गुरुसाई दत्त, तरुण कोना जैसे खिलाड़ी भी गोपीचंद के शिष्य रहे हैं।

गोपी का सफर 

पुलेला गोपीचंद का जन्म 16 नवंबर 1973 को आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले के नगन्दला में हुआ था। मात्र 10 साल की उम्र से उन्होंने बैडमिंटन खेलना शुरू किया था। गोपीचंद के खेल से प्रभावित होकर स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण ने अपनी एकेडमी बीपीएल प्रकाश पादुकोण एकेडमी में शामिल कर लिया था।  गोपीचंद ने 2001 में चीन के चेन होंग को फाइनल में 15-12, 15-6 से हराते हुए ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियनशिप में जीत हासिल करके एक नया इतिहास रचा था। यह उनके जीवन का सबसे गौरवपूर्ण पल था। ऐसा करने वाले वे प्रकाश पादुकोण के बाद दूसरे भारतीय थे। पादुकोण ने 1980 में यह जीत हासिल की थी। गोपीचंद को साल 2001 में राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 2005 में उन्हें पद्म श्री और 2014 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। उन्हें द्रोणाचार्य पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने 5 जून 2002 को अपनी साथी ओलंपियन बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी लक्ष्मी से शादी की थी। आज उनकी गिनती इंडिया के सबसे सफल बैडमिंटन कोच में हो रही है तो इसके पीछे उनकी कड़ी लगन और दृढ़ निश्चय को ही माना जाएगा।

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