वक्त बदलता है, धारणाएं बदलती हैं. बात बहुत पुरानी नहीं है, 2014 के चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी को भाजपा प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने जा रही थी, उस समय अकादमिक जगत ने उनकी उम्मीदवारी के खिलाफ एक हस्ताक्षर अभियान शुरू किया था. एक वक्त था, जब बौद्धिक जगत भाजपा या दक्षिणपंथी राजनीति का समर्थन करने या खुलकर उसके समर्थन में आने से कतराता था. लेकिन, वक्त बदल चुका है. पांच साल बीतने के साथ ही अब देश का अकादमिक जगत ‘एकेडमिक्स4नमो’ कैंपेन चला रहा है. यह अलग बात है कि विरोध के स्वर अब भी हैं, लेकिन थोड़े मद्धिम…
लोकसभा चुनाव भारत के भविष्य के लिए निर्णायक साबित होंगे और अतीत के भ्रष्टाचार और निराशावादी दौर के स्थान पर नए भारत की उम्मीदों और महत्वाकांक्षाओं को ठोस तरीके से रेखांकित व स्थापित करेंगे. ऐसे समय में ‘एकेडमिक्स फॉर नमो’ एक अच्छा प्रयास है. मैं इस अभियान का समर्थन करता हूं.’ यह कहना है अमेरिका में रहने वाले प्रोफेसर डॉ. लखन गोसाईं का, जो पहले जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय और मिशिगन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे तथा इन दिनों सायराक्यूज विश्वविद्यालय में पढ़ा रहे हैं.
एकेडमिक फॉर नमो भारत के कई महत्वपूर्ण संस्थानों के प्रोफेसरों द्वारा शुरू किया गया एक अभियान है, जिसका मकसद है कि इस लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद पर एक बार फिर नरेंद्र मोदी को लाया जाए. इनकी वेबसाइट (www.academics4namo.com) के अनुसार, बौद्धिक वर्ग ही किसी समाज के आगे मशाल लेकर चलता है और उसे दिशा दिखाता है. अगर आपको ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी इस समय देश के सर्वश्रेष्ठ उपलब्ध विकल्प हैं, तो उनका समर्थन देश के बौद्धिक समाज को करना चाहिए.
एकेडमिक्स फॉर नमो अभियान ऑनलाइन और ऑफलाइन, दोनों तरीके से काम कर रहा है. दिल्ली के अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में जेएनयू, दिल्ली विश्वविद्यालय, आईआईएमसी, इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के 30 से अधिक प्राध्यापकों ने इस अभियान की शुरुआत मार्च के पहले हफ्ते में की थी. इस प्रयास से जुड़े प्रोफेसर आरएस कुरील, जो पहले भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, महू, इंदौर के कुलपति रह चुके हैं, का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने समाज के हर वर्ग के लिए कुछ न कुछ किया है. सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने में यह सरकार सफल रही है. जेएनयू के रजिस्ट्रार डॉ. प्रमोद कुमार ने कहा कि अब समय आ गया है कि समाज के सभी वर्ग नरेंद्र मोदी के समर्थन में खुलकर आएं और उनका एक और कार्यकाल सुनिश्चित करें. दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर श्रीप्रकाश सिंह भी इस अभियान से जुड़ चुके हैं. उनका कहना है कि पिछले पांच साल में देश में समाज के हर तबके के लिए कुछ न कुछ काम अवश्य किया गया है, जिसे आगे ले जाने की जरूरत है, इसलिए मोदी को एक और कार्यकाल मिलना ही चाहिए.
अभियान के संयोजक एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ. स्वदेश सिंह ने बताया कि इस वेबसाइट में रजिस्टर करके अकादमिक और दूसरे क्षेत्र के लोग अभियान से जुड़ सकेंगे. इस अभियान से शिक्षक, शोधकर्ता, स्तंभकार, चिंतक, विचारक जैसे सभी प्रकार के लोग जुड़ सकेंगेे. डॉ. स्वदेश सिंह के अनुसार, ऑनलाइन अभियान चलाने के बाद अकादमिक कार्य से जुड़े लोगों से आग्रह किया जाएगा कि वे समय निकाल कर लोगों के बीच जाएं और मोदी सरकार द्वारा किए गए कार्य बताएं. उन्होंने कहा कि बुद्धिजीवी वेबसाइट पर बने फोरम पर मोदी के समर्थन में लेख भी लिख सकते हैं. बीएचयू के प्रोफेसर राकेश उपाध्याय का कहना है कि अकादमिक क्षेत्र में लंबे समय तक एक विचारधारा विशेष का बोलबाला रहा है, जिसे मजबूत चुनौती नरेंद्र मोदी के इस कार्यकाल में मिली. अब समय आ गया है कि देश तोडऩे वाले सभी विचारों को खत्म कर देश जोडऩे वाले विचारों को हमारे विश्वविद्यालयों में बढ़ावा मिले. इसके लिए मोदी का फिर से आना बहुत जरूरी है.
अब तक देश के पंद्रह शहरों के 30 विश्वविद्यालयों के 300 से अधिक प्रोफेसर इस अभियान से जुड़ चुके हैं, जो जगह-जगह कार्यशालाएं आयोजित करके शोधकर्ताओं एवं प्राध्यापकों के बीच छोटी-छोटी बैठकों के जरिये अपनी बात रखेंगे. स्वदेश सिंह के अनुसार, इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद प्रमुख मुद्दा बन गए हैं. एक तरफ वे लोग हैं, जो उन्हें प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं, तो दूसरी तरफ उनका विरोध है. इसमें दो राय नहीं कि उन्होंने अर्थव्यवस्था, विदेश नीति से लेकर सामाजिक न्याय के क्षेत्र तक बहुत ही निर्णायक कार्यवाही की है, जिसके परिणाम भी विभिन्न क्षेत्रों में दिख रहे हैं. इसलिए ‘एकेडमिक्सफॉरनमो’ का मानना है कि देश में उपलब्ध विकल्पों को देखते हुए नरेंद्र मोदी को एक और अवसर देश का नेतृत्व करने के लिए दिया जाना चाहिए.
जेएनयू में प्राध्यापक डॉ. वंदना मिश्रा का कहना है, हम चाहते हैं कि बौद्धिक समुदाय भी नरेंद्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनाने के लिए खुलकर अपना समर्थन दे, क्योंकि उन्होंने महिलाओं के लिए बहुत काम किया, जिसमें गरीबी रेखा से नीचे रह रही महिलाओं के लिए रसोई गैस सिलेंडर देने वाली उज्जवला योजना से लेकर, संगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं के लिए छह महीने का मातृत्व अवकाश और सेना में महिलाओं की भागीदारी शामिल है. जेएनयू के एक अन्य प्रोफेसर सुधीर प्रताप सिंह का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने जहां समाज के सबसे कमजोर तबके को सशक्त करने का काम किया, वहीं देश की सीमाओं को भी सुरक्षित रखा है.
एकेडमिक फॉर नमो अभियान से अब तक करीब 500 प्रोफेसर, चिंतक, विचारक और शोधकर्ता जुड़ चुके हैं. फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम के माध्यम से भी लोग बड़ी संख्या में जुड़े हैं. फेसबुक पर पांच दिनों में 5000 से अधिक लोग जुड़ चुके हैं.
विरोध के सुर
केडमिक फॉर नमो अभियान को टक्कर देने की कोशिशें भी शुरू हो चुकी हैं. पहला प्रयास जेएनयू की एक प्रोफेसर जी अरुणिमा ने किया है, जिन्होंने चेंज डॉट ऑर्ग पर मोदी को हराने के लिए एक पिटीशन शुरू की है. प्रोफेसर अरुणिमा करीब 3000 की संख्या में अकादमिक जगत के प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर जुटाने के अभियान में जुट गई हैं. उनका मकसद मोदी को दोबारा पीएम पद पर आने से रोकना है. उनकी पिटीशन में लिखा है कि पिछले पांच साल भारत के इतिहास के सबसे खतरनाक साल रहे हैं. इस पिटीशन को टक्कर देती एक पिटीशन नरेंद्र मोदी को फिर से सत्ता में लाने के लिए एकेडमिक फॉर नमो द्वारा चलाई गई है.