श्रीश्री रविशंकर
श्रावण मास है ज्ञान में डूबने का, बड़े-बुजुर्गों से सीखने का और ज्ञान के पथ पर चलने का| पार्वती जी ने इसी मास में शिवजी की पूजा की थी| शिव को पाने के लिए उन्होंने तपस्या की | इस समय हम अपने अंतःकरण में डुबकी लगाकर वहाँ व्याप्त शिवतत्व से साक्षात्कार कर सकते हैं|
श्रवण के संस्कृत शब्द का अर्थ है- ‘सुनना’| जीवन में ज्ञान समावेष करने का पहला कदम ‘श्रवण’ है| पहले हम ज्ञान सुनते हैं (श्रवण), फिर बार-बार उसे अपने मन में दोहराते हैं – यह है ‘मनन’| फिर वह ज्ञान हमारे जीवन में समाहित होकर हमारी संपत्ति बन जाता है – यह है ‘निधिध्यासन’|
पार्वती शक्ति का रूप हैं| शक्ति अर्थात बल, सामर्थ्य,एवं ऊर्जा| शक्ति ही इस पूरी सृष्टि का गर्भस्थान हैं – अतः इस दिव्य पहलु को माता का रूप दिया गया है| शक्ति सब प्रकार के उत्साह, तेजस्व, सौन्दर्य, समता, शांति व भरण-पोषण की बीज है|शक्ति ही जीवन-ऊर्जा है| इस दिव्य ऊर्जा, शक्ति के विभिन्न कार्यों के अनुसार उसके अनेकों नाम और रूप हैं| गतिशीलता की अभिव्यक्ति ही शक्ति है|
तुम हवा को बहते हुए महसूस कर सकते हो, पेड़ों को झूमते हुए देख सकते हो, लेकिन उस स्थिरता को नहीं देख सकते जो इन सभी गतिविधियों का सन्दर्भ बिंदु है| यह गतिशील अभिव्यक्ति शक्ति है| शान्ति व स्थिरता शिव है| दोनों ही आवश्यक हैं| जब गतिशील अभिव्यक्ति का भीतर की स्थिरता से मिलन होता है तब रचनात्मकता, सकारात्मकता, व सत्व उत्पन्न होता है|
एक समय ऐसा भी था जब शक्ति भी तपस में थी| तीर को आगे चलाने के लिए पहले उसे कमान से पीछे की ओर खींचना पड़ता है| श्रावण मास भी निवृत्ति की वह कला है, जब शक्ति भी भीतर की ओर जाती है| आत्मा की व्याकुलता इस तपस से शांत होती है| जीवन में विरोधाभास सब जगह है, विपरीत साथ में रहते हैं, गर्मी और सर्दी, पर्वत व खाई, हरियाली और हिम – ऐसे कई उदाहरण हैं| गतिशीलता और स्थिरता ऊर्जा के विरोधाभास हैं| यह विरोधाभास ही जीवन को और रसीला बनाते हैं|
जब तुम भीतर जाते हो, जब तुम स्व में स्थित होते हो, तुम्हारे आसपास उत्सव घटित होता है| इसीलिए यह मास उत्सवों से भरा है| जीवन प्रेम,आनंद और उत्साह है| उत्साह के बिना प्रेम और आनंद जड़ है| पार्वती उत्साह हैं| शिव शांत स्थिरता हैं| उत्सव के साथ प्रेम, आनंद और ज्ञान का समावेश ही जीवन की पराकाष्ठा है|
प्रस्तुति- अजय विद्युत