आशुतोष पाठक
‘राहुल गांधी अपने पुरखों की खा रहे हैं और केजरीवाल हम जैसे मूर्खों की खा रहे हैं’, भारी पश्चाताप और मानसिक अवसाद से गुजर रहे रमेश बिष्ट के ये बोल हैं अरविन्द केजरीवाल के बारे में। रमेश दिल्ली के उसी सुन्दरनगरी की गलियों में दिन रात बिताते हैं जहां कभी अरविन्द केजरीवाल ने निजी बिजली कंपनियों की मनमानी के खिलाफ 13 दिनों तक उपवास किया था। मैं खुद उस आंदोलन का साक्षी था। रमेश कहते हैं, ‘साहब, आप भी तो आए होंगे यहां। कैसा मजमा लगा था। इन्हीं तंग गलियों में बीस-बीस ओबी वैन लगी थीं। अरविंद केजरीवाल उपवास पर बैठे थे। उपवास के दौरान जैसे-जैसे दिन चढ़ता था अरविंद को लेकर लोगों की दीवानगी बढ़ती जाती थी। तब हमने कभी यह सोचा तक नहीं था कि उपवास भी हम लोगों के लिए छलावा है। क्या बताएं साहब हम लोग तो खुद से ही शर्मिंदा हैं। हमारी पत्नी, हमारे बच्चे हमारा मजाक उड़ाते हैं, कोसते हैं, कहते हैं क्या किया केजरीवाल ने? क्या दिया जो उसके पीछे लोगों को पानी पिलाते थे और खाना खिलाते थे। मुझे तो केजरीवाल गांधी लगते थे। लेकिन अब लगता है कि लोग अन्ना हजारे को भूल जाएं इसीलिए उसने उपवास किया था क्योंकि अन्ना को लोग उनके उपवास की वजह से ज्यादा जानते थे। आपको याद है न अन्ना उस वक्त उनका साथ छोड़ चुके थे।’ रेहड़ी पर कपड़ा बेचने वाले इंसान की केजरीवाल के बारे में ऐसी भी राय बन सकती है, मैं यह जानकार हैरान था।
सिर्फ एक महीने बाद दिल्ली में केजरीवाल सरकार का एक साल पूरा हो रहा है। हमने सोचा 12 महीने में आम आदमी की दशा कितनी बदली, इसका ठीक-ठीक पता लगाया जाए। दिल्ली के कई महत्वपूर्ण इलाकों में वैसे तो हमने लगभग हर तबके के लोगों से बात की लेकिन समाज के सबसे कमजोर तबकों जिसके मजबूत समर्थन के सहारे केजरीवाल को दिल्ली की गद्दी मिली, उनका आम आदमी पार्टी और खास तौर से अरविन्द केजरीवाल के बारे में क्या सोचना है ये पता लगाना ज्यादा जरूरी लगा। सुन्दर नगरी में लोगों से बातचीत के दौरान पता चला कि उपवास के बाद केजरीवाल गए तो फिर दोबारा उनसे अभी तक मुलाकत नहीं हुई। मेरे वहां पहुँचते ही पहले तो लोगों को लगा कि मैं आम आदमी पार्टी से जुड़ा हूं और अरविंद के लिए राय शुमारी कर रहा हूं। इसलिए लोग कुछ भी बोलने को राजी नहीं हुए। चूंकि इस बार मेरे साथ कैमरा टीम नहीं थी सो लोगों को काफी मशक्कत के बाद यह समझा पाया कि मैं पत्रकार ही हूं। मैंने लोगों से जानने की कोशिश की कि आखिर केजरीवाल ने सुंदरनगरी को ही उस वक्त आंदोलन के लिए क्यों चुना? वहां खड़ी महिलाओं ने जोर से कहा क्योंकि उनको सबसे वेबकूफ हम लोग नजर आए।
उम्मीद का टूटना वाकई बेहद खतरनाक है। कम से कम यह उनके लिए तो अच्छा नहीं ही है जिन्होंने राजनीति की शुरुआत जन-विश्वास से की थी।
दूसरे दिन उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया के विधानसभा क्षेत्र पटपड़गंज पहुंचे। मनोज कांति इलेक्ट्रिकल सामान की छोटी सी दुकान चलाते हैं और केजरीवाल के बारे में कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे, ‘रहने दीजिए मेरा दिल टूट चुका है। आप भी क्यों अपना वक्त बर्बाद कर रहे हैं।’ तभी वहां यादव कचौड़ी वाले आ गए, कहने लगे, ‘आठ दिन पहले ही पुलिस के हाथ पैर जोड़कर लौटा हूं। बिना पैसे के कभी छूट भी नहीं पाता।’ ‘केजरीवाल की बात कर रहे हो, वो कह रहे हैं दिल्ली को करप्शन फ्री करेंगे।’ ‘वो तो अब हम लोगों को ही फ्री करने के चक्कर में हैं।’ मैंने कहा, ‘आपका मतलब हम समझे नहीं।’अब मनोज ने छूटते ही कहा, ‘मतलब यह कि पहले सड़क पर झाड़ू लगती थी अब गरीबों पर झाड़ू लग रही है।’
हमने सिलसिलेवार तरीके से मनोज, यादव कचौड़ी वाले और प्लास्टिक प्रोडक्ट का दुकान करने वाले सतीश से केजरीवाल सरकार के बारे में कई सवाल किए। मनोज से हमने पूछा बिजली, पानी की रियायत देने की बात में कितनी सच्चाई है? मनोज ने बताया कि 20 प्रतिशत लोगों को जरूर राहत है। चूंकि मेरी बिजली के सामान की ही दुकान है इसलिए मैं आपको बेहतर तरीके से बता सकता हूं। दिल्ली में लोअर मिडिल क्लास भी कम से कम एक फ्रिज और एक कूलर का इस्तेमाल करता है। ऐसे उपभोक्ताओं की संख्या करीब अस्सी फीसदी है। कुछ जगहों पर तो आपको झुग्गियों में भी फ्रिज और कूलर दिख जाएंगे। 165 लीटर फ्रिज और एक कूलर की प्रतिमाह बिजली खपत 350 यूनिट आती है। बाकी बल्ब, टेलीविजन, पंखा और पानी के पंप के इस्तेमाल में ये हर हाल में 400 से ज्यादा यूनिट हो जाती है। 400 यूनिट से ज्यादा खपत करने वाले उपभोक्ताओं की संख्या दिल्ली में लगभग 80 फीसदी है। बाकी 20 फीसदी उपभोक्ता ऐसे होंगे जो कई इलाकों में एक फिक्स्ड रेट पर बिजली का भुगतान करते हैं। केजरीवाल सरकार ने जो राहत दी है उसके हिसाब से 400 यूनिट से कम उपभोग करने वाले उपभोक्ता को ही सरकार की नीति का लाभ मिलेगा। अब आप ही बताइए कि अगर 80 फीसदी आबादी 400 यूनिट से ज्यादा उपभोग करती है तो इनको केजरीवाल ने क्या लाभ दिया। पानी की खपत दिल्ली में रहने वाले लोग काफी लंबे समय से सोच समझ कर करते रहे हैं। हां ये जरूर है कि 700 लीटर प्रतिदिन पानी के इस्तेमाल पर बिल जीरो आता है। चन्दर बिहार के सतीश कहते हैं कि पानी के लिए लीटर गिनते रहते हैं क्योंकि 700 से एक भी लीटर ज्यादा होने पर पूरा पैसा देना होता है।
बिहार के सुबोध पिछले पच्चीस वर्षों से दिल्ली में रह रहे हैं। इन्होंने चुनाव में आम आदमी पार्टी के लिए प्रचार भी किया था। उनका कहना है कि केजरीवाल जी ने कहा था कि निजी स्कूलों पर नकेल कसेंगे। ग्यारह महीने होने वाले हैं जमीन पर कुछ भी नहीं दिखता। मामूली निजी स्कूलों में भी नर्सरी में एडमिशन कराने के लिए अभिभावकों को कम से कम 60 हजार रुपए खर्च करने पड़ते हैं। 35 से 40 हजार फीस के नाम पर और 20 हजार रुपए किताब, ड्रेस और सिक्योरिटी के नाम पर ले रहे हैं स्कूल वाले। सुबोध कहते हैं कि निजी स्कूल माफिया से लोगों को कोई राहत नहीं मिली है।
मनोज लक्ष्मीनगर में सब्जी बेचते हैं और चंदर विहार में रहते हैं, कहते हैं कि केजरीवाल ने कहा था कि अगर पुलिसवाले घूस मांगें तो सेटिंग करके स्टिंग कर लेना। अब तो जनाब पुलिसवाले भी सतर्क हो गए हैं। हालत ये है कि अब दस के बदले सौ रुपए मांग रहे हैं और सौ के बदले पांच सौ रुपए। यूनाइटेड रेजिडेंट ज्वाइंट एक्शन यानी ऊर्जा के अध्यक्ष अतुल गोयल कहते हैं कि असल में करप्शन फ्री दिल्ली बनाने का मतलब आॅर्गनाइज्ड करप्शन बन गया है। केजरीवाल ने करप्शन फ्री दिल्ली की बात जोरशोर से की लेकिन उनकी सरकार बनने के बाद से रोग कम होने की बजाय बढ़ गया है। हां एक बात जरूर हुई है कि भ्रष्टाचार के तरीके बदल गए हैं।
संगम विहार के रौशन कहते हैं कि केजरीवाल जी ने अपने विधायकों और मंत्रियों का वेतन तो बढ़ा दिया लेकिन हम जैसे लोगों की आमदनी कैसे बढ़ेगी। इसके लिए उन्होंने क्या किया? रौशन कहते हैं कि केजरीवाल भी नेतागिरी करने लगे। हमने टोकते हुए उनसे पूछा कि नेता हैं तो नेतागिरी करेंगे ही, तो कहने लगे कि हम केजरीवाल को नेता नहीं मानते थे। वो हमारे जैसे आम आदमी हैं इसलिए आम आदमी की पीड़ा को वो बेहतर समझेंगे। हम गाड़ी नहीं लेंगे, बंगला नहीं लेंगे। अगर वे तब कहते कि हम एक साल के अंदर अपना वेतन पांच गुना बढ़ा लेंगे तो मैं उनको कभी वोट नहीं देता।
पश्चिमी दिल्ली के रोहिणी के रहने वाले सरदार मंजीत सिंह कहते हैं कि केजरीवाल ने सिखों के लिए घोषणा तो की लेकिन जिस भ्रष्टाचार के खिलाफ वो आंदोलन कर रहे थे उसका क्या हुआ? अब उन्होंने लोकपाल बिल में बदलाव क्यों कर दिए? वो लालू यादव के साथ क्यों खड़े हो गए? केजरीवाल अब भरोसे के लायक नहीं हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले रौनक कहते हैं कि केजरीवाल जी ने कहा था कि फ्री वाई-फाई देंगे। कनॉट प्लेस में तो वाई-फाई चलती नहीं, दिल्ली की अन्य इलाकों की तो बात ही छोड़ दीजिए। सरकारी स्कूलों की हालत जस की तस बनी हुई है।
महिलाओं और लड़कियों को केजरीवाल से काफी उम्मीदें थीं। उन्हें लगता था कि केजरीवाल जी के आते ही सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम हो जाएंगे। गणेश नगर की रीना से जब हमने पूछा कि दिल्ली पुलिस तो केजरीवाल के अधीन नहीं है तो कानून व्यवस्था केजरीवाल कैसे सुधार सकते हैं? तो रीना ने कहा तो फिर केजरीवाल चुनाव में क्यों बोल रहे थे कि आपकी सुरक्षा कि गारंटी हमारी है। हमने तो उन्हें ही वोट दिया था दिल्ली पुलिस को नहीं। हमारे इलाके में तकरीबन हर रोज चेन स्नैचिंग की घटनाएं होती हैं। दिल्ली महिलाओं के लिए पूरी तरह से असुरक्षित है।
उम्मीद का टूटना वाकई बेहद खतरनाक है। कम से कम यह उनके लिए तो अच्छा नहीं ही है जिन्होंने राजनीति की शुरुआत जन-विश्वास से की थी। अरविंद केजरीवयाल और उनके साथियों के पास अभी चार साल का वक्त है। दिल्ली के आम लोगों की शिकायतें निराशा का रूप ले रही हैं। यह उनकी सरकार के लिए खतरे की घंटी है। उन्होंने अपना रवैया नहीं बदला तो यह असंतोष उनकी राजनीतिक जमीन खिसकने की शुरुआत बन सकता है।