चुनाव की घोषणा होने तक बीजू जनता दल सत्ता में अपनी वापसी को लेकर खासा आश्वस्त नजर आ रहा था, लेकिन पहले उम्मीदवारों के चयन और फिर टिकट वितरण को लेकर पार्टी में जो घमासान देखने को मिला, उसने नवीन पटनायक के वर्चस्व को चुनौती दे डाली. सत्ता विरोधी लहर से पार्टी को उबारने के लिए उन्होंने बड़े पैमाने पर मौजूदा सांसदों-विधायकों के टिकट काट दिए. नतीजतन, पार्टी से पलायन का सिलसिला शुरू हो गया. अधिकांश लोग भाजपा में चले गए. सिर्फ बीजद नहीं, बल्कि कांग्रेस के भी कई स्थापित नेताओं ने पार्टी का टिकट ठुकरा कर ‘कमल’ निशान को ज्यादा तरजीह दी. इस उथल-पुथल ने पहली बार बीजद के माथे पर चिंता की लकीरें खींची हैं, कांग्रेस के हौसले पस्त हुए हैं, सिर्फ भाजपा जोश से लबरेज है.
दिल्ली में आयोजित ‘मैं भी चौकीदार’ नामक कार्यक्रम के दौरान केंद्रापाड़ा-ओडिशा निवासी एक शख्स द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि ओडिशा दूसरा ‘त्रिपुरा’ बनेगा. मोदी के इस दावे के पीछे भाजपा की ठोस चुनावी रणनीति है. गौरतलब है कि त्रिपुरा के तत्कालीन मुख्यमंत्री माणिक सरकार भी नवीन पटनायक की तरह अपनी ईमानदार छवि, साधारण जीवनशैली एवं जन कल्याणकारी सोच के लिए खासे लोकप्रिय थे, लेकिन भाजपा की चुनावी रणनीति ने उन्हें धराशायी कर दिया. ओडिशा में भी भाजपा ‘त्रिपुरा फतह’ वाली रणनीति पर काम कर रही है. हालांकि, नवीन पटनायक ने मोदी का दावा खारिज करते हुए भाजपा को मुख्यमंत्री पद का अपना उम्मीदवार घोषित करने की चुनौती दी. इस पर भाजपा की ओर से केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने जवाब देते हुए कहा, सभी ओडिशा वासी मुख्यमंत्री बनने के योग्य हैं. अनाधिकृत तौर पर प्रधान को ही भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार माना जा रहा है. भाजपा ने राज्य के विकास के लिए ‘डबल इंजन’ की जरूरत (केंद्र के साथ राज्य में भी भाजपा सरकार) का नारा पूरी जोरदारी से उछाला है, केंद्र में फिर एक बार भाजपा सरकार और राज्य में सरकार परिवर्तन की दरकार. इसके जवाब में बीजद राज्य में प्राकृतिक आपदा के समय केंद्र की भूमिका पर सवाल उठा रहा है. नवीन पटनायक जनता को याद दिला रहे हैं कि उस दु:ख की घड़ी में केवल बीजद ही उनके साथ खड़ा था.
बीजद ने इस बार महिला कार्ड भी खेला है और उनके लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का समर्थन करते हुए सात संसदीय सीटों पर महिला उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें स्वयं सहायता समूह का प्रतिनिधित्व करने वाली प्रमिला बिशोयी प्रमुख हैं, जो आसका से लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, नवीन पटनायक जानते हैं कि तटीय क्षेत्रों में नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद पाले हुए है. बीजद को कुछ सीटों का नुकसान हो सकता है, जिसकी भरपाई वह पश्चिम ओडिशा से करना चाहते हैं. शायद इसलिए वह बीजेपुर से भी चुनाव लड़ रहे हैं. यह तो तय है कि तटीय क्षेत्रों में कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा. बैजयंत पंडा, दामोदर राउत, रघुनाथ महांति, अर्जुन सेठी, बिभु प्रसाद तरई, बलभद्र मांझी, प्रकाश बेहेरा एवं के नारायण राव जैसे नेताओं के आने से भाजपा का उत्साह चरम पर है. बिजय महापात्र एवं खारबेल स्वाईं दोबारा पार्टी में लौटे हैं. तटीय क्षेत्रों में भाजपा के पास पहचान वाले चेहरे नहीं थे. इन नेताओं के अपने पाले में आने से भाजपा बीजद के विकल्प के तौर पर सशक्त हुई है. राज्य के राजनीतिक समीकरण बदलने से सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हुआ है. चुनाव की घोषणा के बाद से वह लगातार ढलान की ओर है. कई नेता पार्टी छोडक़र बीजद अथवा भाजपा में चले गए, तो कई नेताओं ने टिकट लेने से इंकार कर दिया. ऐसे में कांग्रेस की छवि ‘रणछोड़’ वाली बन गई है.
बीते 10 अप्रैल को प्रदेश महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुमित्रा जेना ने इस्तीफा दे दिया और फिर वह बीजद में शामिल हो गईं. गौरतलब है कि साल 2009 में प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रोहित पुजारी और साल 2014 में पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं विधानसभा में नेता विरोधी दल भूपिंदर सिंह बीजद में शामिल हो गए थे. संगठन के भीतरखाने मची खींचतान और टिकट वितरण को लेकर व्यापक असंतोष ने कांग्रेस को चुनावी दौड़ में तीसरे स्थान पर धकेल दिया है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष निरंजन पटनायक की हर तरफ आलोचना हो रही है. उन पर वंशवाद को बढ़ावा देने का आरोप है. निरंजन खुद दो सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं और बेटे नवज्योति पटनायक को भी बालेश्वर से लोकसभा उम्मीदवार बनवाने में कामयाब रहे. हालांकि, कांग्रेस ने विधानसभा के लिए 83 नए चेहरों को तरजीह दी है, साथ ही कई लोकसभा उम्मीदवार भी बदले हैं, लेकिन इसका उसे कोई फायदा होता नहीं दिख रहा है.
यह चुनाव कुछ रोचक मुकाबलों के लिए भी याद किया जाएगा. भुवनेश्वर, केंद्रापाड़ा, कटक, पुरी एवं सुंदरगढ़ पर हर खास-ओ-आम की नजर है. भुवनेश्वर में भाजपा की ओर से पूर्व आईएएस अधिकारी अपराजिता षाड़ंगी और बीजद की ओर से मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त अरूप पटनायक चुनाव मैदान में हैं. केंद्रापाड़ा में बीजद के बागी नेता बैजयंत पंडा (अब भाजपा) को हराने की जिम्मेदारी नवीन पटनायक ने ओडिय़ा फिल्मों के सुपर स्टार अनुभव महांति को सौंपी है. सुंदरगढ़ में नवीन के कट्टर विरोधी एवं केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री जुएल ओरांव का मुकाबला बीजद की सुनीता बिश्वाल और कांग्रेस के जार्ज तिर्की से है. पुरी में बीजद के मौजूदा सांसद पिनाकी मिश्र के मुकाबले भाजपा ने अपने राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा को मैदान में उतारा है. इसी तरह कटक की प्रतिष्ठित सीट से भाजपा ने केंद्रीय सुरक्षा बल के पूर्व महानिदेशक प्रकाश मिश्र को टिकट दिया है, जिनका सामना मौजूदा सांसद भर्तुहरि महताब से होगा.
भाजपा अपने ‘मिशन पूर्वोदय’ के लिए ओडिशा को मुख्य द्वार मान रही है, जिसे पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनवरी से लेकर अब तक छह बार ओडिशा आ चुके हैं. उनके साथ अमित शाह एवं धर्मेंद्र प्रधान समेत कई बड़े भाजपा नेता चुनाव प्रचार में जी-जान से जुटे हैं. बीजद की ओर से नवीन पटनायक ही अकेले स्टार प्रचारक हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विपक्षी पार्टियों के जबरदस्त प्रचार के बावजूद राज्य की नवीन सरकार एक बार फिर वापस आ सकती है. यह बात अलग है कि विधानसभा में बीजद की सीटें पिछली बार के मुकाबले कम हो जाएंगी. लेकिन, लोकसभा के मामले में भाजपा उसे कड़ी टक्कर दे रही है. नरेंद्र मोदी के प्रति राज्य में ‘अंडर करेंट’ महसूस किया जा रहा है. राहुल गांधी की तमाम कोशिशों के बावजूद कांग्रेस अभी तक तीसरे स्थान पर दिख रही है. लगातार १९ सालों से ओडिशा के मुख्यमंत्री पद पर आसीन नवीन पटनायक इस बार अपने राजनीतिक करियर के सबसे कड़े मुकाबले से दो चार हैं. सवाल यह है कि क्या राज्य में सचमुच ‘त्रिपुरा’ जैसे चौंकाने वाले नतीजे आएंगे? क्या भाजपा के दावे सही साबित होंगे? क्या राहुल गांधी की कोशिश कांग्रेस को संजीवनी दे पाएगी? इन सभी सवालों के जवाब 23 मई को सामने आएंगे.