निशा शर्मा
हिमाचल प्रदेश का ऐतिहासिक रिज मैदान 14 वें मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण का गवाह बन गया। लोगों की भीड़ से खचाखच भरा रिज मैदान जयराम ठाकुर की मुख्यमंत्री की शपथ के साथ ही जय श्री राम के नारों से गूंज उठा। लोगों में अपने युवा मुख्यमंत्री के लिए उत्साह के साथ- साथ उम्मीद भी नजर आ रही थी। मंडी के सरोज से पांच बार विधायक रहे जयराम ठाकुर ने शिमला के रिज मैदान में आयोजित भव्य शपथग्रहण समारोह में राज्य के 14वें मुख्यमंत्री के रूप में कमान संभाली है। ठाकुर के साथ 11 अन्य मंत्रियों ने शपथ ली है। शपथ समारोह के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह समेत कई केंद्रीय मंत्री और बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री मौजूद रहे।
देवभूमि में जयराम के नाम के साथ बीजेपी के नए युग का शंखनाद हो गया। लंबे समय के बाद हिमाचल को युवा मुख्यमंत्री मिला है। इससे पहले बीजेपी की ओर से प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री पद पर विराजमान रहे हैं जिनकी उम्र 73 पार कर चुकी है। वहीं कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह रहे हैं जिनकी उम्र 83 साल पार कर चुकी है। गुटबाजी के बावजूद बीजेपी जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री बनाने में सफल रही। चुनावी नतीजे आने के बाद एक समय जहां राज्य में पार्टी कई खेमों में बंटती नजर आ रही थी अब एक राह पर दिख रही है।
बीजेपी ने जयराम ठाकुर का नाम तो तय कर दिया लेकिन उसके लिए यह आसान नहीं था। पार्टी के लिए सब खेमों को एक साथ रखकर भविष्य के जमा-घटा का हिसाब लगाकर और विरोधी खेमे को संतुष्ट करके नया चेहरा चुनना मुश्किल था। बीजेपी के लिए यह उठापटक की स्थिति प्रेम कुमार धूमल ने खड़ी की। प्रदेश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि जिसे मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर चुनाव लड़ा गया वही चुनाव हार गया। हालांकि मुख्यमंत्री उम्मीदवार की हार को भी मीडिया ने अमित शाह की रणनीति से जोड़ा। चुनाव के बाद पार्टी के लिए जो बड़ी अड़चन बनी वह थी पार्टी का कई खेमों में बंटना। इस खेमे में बड़ा और महत्वपूर्ण प्रेम कुमार धूमल का खेमा रहा, जो हारकर भी सत्ता को हाथ से जाने नहीं देना चाह रहा था। यह खेमा उम्मीद कर रहा था कि धूमल ही राज्य के मुख्यमंत्री बनें ताकि जिन विधायकों को धूमल की चाहत से विधानसभा की सीट मिली है वह भी आने वाले समय में अपनी सीट को और मजबूती दे सकें।
देखा जाए तो पार्टी की गाइडलाइंस के मुताबिक रिटायरमेंट की उम्र 75 साल है जिसके करीब प्रेम कुमार धूमल आ चुके हैं। खबरें यह भी आर्इं कि प्रदेश में इस खेमे से उठी विरोधी लहरें अनुराग ठाकुर की दिमागी हलचल थीं। धूमल की मुश्किल ये भी रही कि हिमाचल में बैकडोर एंट्री के इंतजाम भी नहीं हैं। हिमाचल में एक ही सदन है- विधानसभा। यहां विधान परिषद नहीं है जिसके रास्ते पार्टी उन्हें कुर्सी पर बिठा सकती थी। ऐसे में अनुराग ठाकुर ने पिता की राजनीतिक विरासत को बचाने के लिए हर वो तरीका अपनाया जिसके जरिये राजनीति की विरासत उनके घर से विदा ना हो। खबर यह भी रही कि यह हलचल बीजेपी के आलाकमान को रास नहीं आई क्योंकि अनुराग यह भूल गए कि अभी जमीनी तौर पर उन्होंने अपने राज्य में मशक्कत नहीं की है। यही कारण है कि उनके वीआईपी कल्चर के रवैये को लोग नकार चुके हैं।
दूसरा बड़ा खेमा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा का रहा। नड्डा के हिमाचल का मुख्यमंत्री बनने के कयास राज्य में चुनाव होने से पहले ही लगाए जा रहे थे। लेकिन यह कयास धरातल पर टिक नहीं पाए। नड्डा के खिलाफ एक बड़ी बात यह रही कि वह जमीनी तौर पर वहां स्वीकार्य नहीं हैं। न ही राज्य में उनकी जमीनी पकड़ है जिसके चलते वे मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर हो गए। चुनावी जीत के बाद हुए खेल में पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार भी कूदे और प्रदर्शन कर रहे कार्यकर्ताओं के खिलाफ कड़े शब्दों में विरोध करते नजर आए। शांता भी नहीं चाहते थे कि प्रेम कुमार धूमल के सिर फिर मुख्यमंत्री का ताज सजे। हालांकि शांता कुमार ने किसी का नाम लिए बगैर जयराम ठाकुर की ओर इशारा किया था। कहा यह भी जाता है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने वाले जयराम ठाकुर शांता कुमार के करीबी हैं। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के अड़ियल रवैये ने चाहे जयराम के लिए मुख्यमंत्री बनने की राहें कितनी ही कठिन कर दी लेकिन भाजपा आलाकमान ने अपनी रणनीति के खांचे में उन्हें ही फिट पाया। जयराम ठाकुर हिमाचल की राजनीति में सही चेहरा माने जा सकते हैं क्योंकि वह ऐसा चेहरा नहीं है जिसे हेलीकॉप्टर के जरिये पार्टी देवभूमि में लाई हो। राज्य में जयराम ठाकुर बीजेपी का वो तुरुप का पत्ता माने जा सकते हैं जिसका पार्टी ने सही समय पर सही जगह पर इस्तेमाल किया है। ठाकुर राज्य में 2017 में जरूर चुने गए हैं लेकिन पार्टी में उनके ज्यादा मायने 2019 के लिए हैं। दरअसल, विधानसभा चुनाव में संगठन को स्थानीय नेतृत्व जिस तरह से एकजुट करता है वैसा राष्ट्रीय नेतृत्व नहीं कर पाता। खास तौर पर उन राज्यों में जहां स्थानीय नेतृत्व की अच्छी खासी पकड़ हो।
जयराम ठाकुर के मुख्यमंत्री बनने के बाद एक चैनल को दिए इंटरव्यू में उनकी बहन ने कहा कि जयराम ऐसे नेता हैं जिनका कोई खेमा नहीं है। विपक्ष तक चाहता था कि वह मुख्यमंत्री बनें। जयराम मंडी जिले की सेराज सीट से पांच बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं। उन्होंने इस बार कांग्रेस के चेतराम को शिकस्त दी है। जयराम को मुख्यमंत्री बनाने के संबंध में असली बात तो यही है कि धूमल के बाद चुने हुए विधायकों में वे एकमात्र उपयुक्त नेता हैं। वह मंडी से आने वाले पहले मुख्यमंत्री बने हैं। यही नहीं 52 साल के जयराम ठाकुर बीजेपी सरकार की अगुवाई करने वाले सबसे युवा नेता भी हैं। ठाकुर राजपूत समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, एबीवीपी में सक्रिय रहे हैं, संघ में उनकी पैठ है और वे भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष थे। साथ ही कैबिनेट मंत्री भी रहे हैं और राज्य में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति भी दर्ज कराते रहे हैं।
मंडी, कांगड़ा के बाद हिमाचल प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा जिला है। इस चुनाव में मंडी की 10 सीटों में से भाजपा ने नौ पर कब्जा किया है। इससे पहले हिमाचल के मुख्यमंत्री शिमला, कांगड़ा और सिरमौर जिले से रहे हैं। जयराम ठाकुर 2007 से 2012 तक प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। ठाकुर का जन्म 6 जनवरी, 1965 को मंडी जिले के टांडी में हुआ। उन्होंने अपना सियासी सफर छात्र राजनीति से शुरू किया। जयराम ठाकुर ने 1998 में अपना पहला चुनाव जीता था जिसके बाद उन्होंने हार का मुंह नहीं देखा। उनके जीतने की एक बड़ी वजह उनकी सामाजिक भागीदारी है। कहा जाता है कि ठंड के दिनों में जहां मंत्री अपने घरों से नहीं निकलते हैं वह बफीर्ली पहाड़ियों में संगठन को मजबूत करने की कोशिश में जुटे रहते थे।
जयराम एक गरीब परिवार से आते हैं जो पूरी तरह खेती पर निर्भर। परिवार में माता-पिता के अलावा दो भाई और दो बहनें भी हैं। उनके नजदीकी कहते हैं कि उनके पास पढ़ाई के लिए इतना पैसा नहीं था कि बिना रुकावट के पढ़ाई करते। ऐसे में जयराम दिन में काम करते थे और शाम को कॉलेज में पढ़ने जाया करते थे। उन्हें करीब से जानने वाले लोगों का कहना है कि सियासत में कदम रखने से लेकर कैबिनेट मंत्री बनने तक उनके स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया। वह आज भी लोगों से उसी तरह से मिलते हैं जिस तरह से सालों पहले मिला करते थे।
हालांकि जयराम ठाकुर के नाम पर मुहर लगने के बाद अब बाहरी तौर पर कोई विरोधी नजर नहीं आ रहा है लेकिन अपने हाथ से सत्ता के फल को दूसरे को सौंपना किसी के लिए भी आसान नहीं है। यही कारण है कि गुटबाजी के चलते जयराम ठाकुर की राह राज्य में आसान नहीं रहने वाली है। उनकी पहली प्रथमिकता कानून व्यवस्था बनाए रखना, वीआईपी संस्कृति से हटकर कार्य करना, पिछली कांग्रेस सरकार द्वारा पिछले तीन महीनों में लिए गए सभी फैसलों की समीक्षा, व्यर्थ व्यय को कम करना और पर्यटन के बुनियादी ढांचे को विकसित करना होनी चाहिए ताकि जिस साफ सुथरी छवि के सहारे वह मुख्यमंत्री के पद पर पहुंचे हैं उसकी गरिमा के साथ-साथ लोगों का विश्वास उन पर बना रहे। लेकिन जिस पद पर वह विराजमान हुए हैं वह कंटीली राहों से होकर गुजरता है। ऐसे में जयराम ठाकुर को विपक्ष के साथ-साथ अंदरूनी रुकावटों से भी सतर्क होकर रहने के अलावा सबको साथ लेकर विकास की राह पर चलना होगा।