जातीय गोलबंदी हो सकती है असरदार

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सीतामढ़ी लोकसभा क्षेत्र के चुनावी दंगल में जारी जातीय गोलबंदी से अजीब स्थिति बन गई है. एनडीए की ओर से पहले दलगत प्रत्याशी की मांग जोर पकड़ती रही, लेकिन जब दलगत प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारा गया, तो उसे गैर राजनीतिक व्यक्ति की संज्ञा देकर राजनीतिक स्तर पर चर्चा की जाने लगी. नेतृत्व ने जब इसे गंभीरता से लेकर प्रत्याशी बदला, तो जातिगत राजनीति में ऐसा तूफान मचा कि संभलने का नाम नहीं ले रहा.

आम चुनाव 2019 की सुगबुगाहट होते ही राजनीतिक पैंतरेबाजी शुरू कर दी गई. भाजपा एवं जदयू ने अपने-अपने हिसाब से सीट पर दावेदारी की. लेकिन, सीतामढ़ी लोकसभा सीट जदयू के खाते में आते ही संभावित प्रत्याशियों के चेहरे पर सफ लता की मुस्कान उभरने लगी. जब टिकट की बारी आई, तो नेताओं ने प्रदेश एवं शीर्ष नेतृत्व के समक्ष अपनी दावेदारी पेश करना शुरू कर दिया. कोई खुद को दल का सच्चा-ईमानदार कार्यकर्ता, तो कोई जातीय वोटों का बादशाह साबित करने में जुटा रहा. बावजूद इसके, नेतृत्व ने अपने हिसाब से नए चेहरे को टिकट देकर चुनाव मैदान में भेज दिया. 23 मार्च को जदयू प्रदेश कार्यालय से सीतामढ़ी लोकसभा सीट के लिए डॉ. वरुण कुमार का नाम घोषित होते ही जिले की राजनीति में उथल-पुथल मचनी शुरू हो गई. 24 मार्च को जब वरुण पटना से सीतामढ़ी आए, तो रून्नी सैदपुर टोल प्लाजा पर सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने उनकी अगवानी की. लेकिन, नेताओं की संख्या बहुत कम थी, तभी से कयास लगाए जाने लगे थे कि जिले की राजनीति में कुछ होने वाला है.

महज एक सप्ताह बाद यानी तीन अप्रैल को वरुण द्वारा प्रदेश नेतृत्व को टिकट वापस करने की खबर जिले में उड़ी. साथ ही बिहार सरकार के पूर्व पर्यटन मंत्री सुनील कुमार पिंटू को टिकट दिए जाने की बात जंगल में आग की तरह फैल गई. इसके बाद जिले में जातीय राजनीति की लौ तेज होने लगी. हुआ भी कुछ ऐसा ही. सुनील कुमार पिंटू ने भाजपा से नाता तोड़ कर जदयू का दामन थाम लिया और चार अप्रैल को जदयू प्रत्याशी के रूप में टिकट लेकर सीतामढ़ी वापस हुए. उनके आगमन पर स्वागत का स्थान भी वही तय किया गया, जहां वरुण आए थे. लेकिन इस बार जदयू के साथ-साथ भाजपा के भी कई नेता वहां पहुंचे. यहीं से जातीय राजनीति ने चुनावी दिशा बदलनी शुरू कर दी. वैश्य समुदाय की सूरी जाति के डॉ. वरुण से टिकट वापस लेने और तेली जाति के सुनील कुमार पिंटू को टिकट दिए जाने पर भाजपा के पूर्व विधान पार्षद बैद्यनाथ प्रसाद ने सख्त ऐतराज जताया. उन्होंने कहा, निर्णय गलत हुआ है. टिकट वापस लेकर सूरी समाज को अपमानित किया गया है. समाज इसे बर्दाश्त नहीं करेगा. इससे पहले तिरहुत स्नातक क्षेत्र के विधान पार्षद देवेश चंद्र ठाकुर ने वरुण को टिकट दिए जाने पर रोष का इजहार किया था.

वरुण-सुनील के बीच का जातीय मसला जिले की राजनीति में जोर पकड़ ही रहा था, तभी वैश्य समुदाय के ही कुछ अन्य लोगों ने मोर्चा खोल दिया. इस आक्रोश को दलीय अथवा जातिगत आधार पर नेतृत्व कैसे शांत कर पाता है, यह तो बाद की बात है. लेकिन, अगर समय रहते इस मसले का निदान नहीं किया गया, तो यह एनडीए के लिए घातक हो सकता है. सुनील कुमार पिंटू ने कार्यकर्ताओं की बैठकों और जनसंपर्क के माध्यम से चुनाव अभियान को गति देना शुरू कर दिया है. एनडीए खेमे में मचे इस घमासान को महागठबंधन के लिए वरदान माना जा रहा है. हालांकि, महागठबंधन की ओर से राजद प्रत्याशी डॉ. अर्जुन राय के लिए जीत की राह आसान नजर नहीं आ रही है. कारण यह कि टिकट पाने से वंचित नेताओं का भितरघात अर्जुन के चुनावी समीकरण के लिए घातक साबित हो सकता है. वहीं विश्व मानव जागरण मंच के संस्थापक अमित कुमार उर्फ  माधव चौधरी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जनता के बीच पहुंच रहे हैं. एनडीए एवं महागठबंधन से नाराज नेता उनके साथ तेजी से जुड़ रहे हैं. आम आदमी पार्टी की ओर से सूरी जाति के डॉ. रघुनाथ कुमार चुनाव मैदान में भाग्य आजमा रहे हैं. वरुण से टिकट वापसी के बाद उभरे आक्रोश का लाभ रघुनाथ को मिलने की संभावना है.

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