विवेक किसके पास रह गया है? राहुल बाबा को देखो, चौकीदार को ‘चोर’ बताकर फंस गए. बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताय. सुना तुमने, मुंबर्ई के सिक्योरिटी गॉड्र्स ने तहरीर दे दी थाने में. इल्जाम यह कि देश भर के चौकीदारों की प्रतिष्ठा धूमिल हो रही बाबा के बयान से, भइया लाल ने बात आगे बढ़ाई.
रवाजे पर अचानक दस्तक हुई. खोलकर देखा, तो सामने भइया लाल खड़े थे. उन्हें देखकर मुझे बहुत ताज्जुब हुआ, क्योंकि वह अब तक मेरे घर सिर्फ पर्व-त्योहारों पर ही आते रहे हैं.
प्रणाम दादा, आइए-आइए, आप आए-बहार आई, मैंने कहा.
अच्छा, आते ही मक्खनबाजी शुरू, भइया लाल ने आंखें मटकाईं.
नहीं-नहीं, आपके आगमन ने मुझे धन्य किया, इसलिए मेरा भी तो कुछ फर्ज बनता है, मैंने बात संभाली.
अच्छा है कि तुम्हें तुम्हारा फर्ज याद है, भइया लाल लाइन पर आकर बोले, तो बताओ पुत्तर, देश में क्या चल रहा है?
आप बताइए, यह बालक आपको क्या बताएगा?
हां-हां, अभी तक तुम बालक हो! अब बबुआ, बाबा और बालक ही बचे हैं देश में, भइया लाल ने ठहाका लगाया.
आपके लिए तो हमेशा बालक ही रहंूगा, मैंने उन्हें बैलेंस किया.
अभी तुम ‘बहार आई’ कह रहे थे न, तो सुनो मुन्ना, बहार नहीं बुहार आने वाली है, भइया लाल बोले.
कहां और क्यों? मैंने पूछा.
जहां आनी है. और क्यों आनी है, उसकी वजह यह है कि जब मोर्चा खुल गया है, शंखनाद हो चुका है, तो आपस में जूतागिरी करने की जरूरत क्या थी? भइया लाल विषय पर आए.
तो बात ‘माननीय’ सांसद-विधायक की हो रही है, मैंने कहा, जहां चार बर्तन होंगे, वहां खडख़ड़ाहट तो होगी ही.
खडख़ड़ाहट रसोई में होती है, सडक़ पर नहीं, भइया लाल मेरी अज्ञानता पर बरसते हुए बोले, यह विशुद्ध अहमकपन है, नेतागिरी नहीं. ज्ञानी शायद इसीलिए कह गए हैं कि चोर की बाप पुलिस, पुलिस का बाप नेता और नेता का बाप…!
सही कह रहे हैं आप, लेकिन किया भी क्या जा सकता है, यह तो अपना-अपना विवेक है, मैं बात संभालने की गरज से बोला.
विवेक किसके पास रह गया है? राहुल बाबा को देखो, चौकीदार को ‘चोर’ बताकर फंस गए. बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताय. सुना तुमने, मुंबर्ई के सिक्योरिटी गॉड्र्स ने तहरीर दे दी थाने में. इल्जाम यह कि देश भर के चौकीदारों की प्रतिष्ठा धूमिल हो रही बाबा के बयान से, भइया लाल ने बात आगे बढ़ाई.
ठीक किया, सोलह आने राइट. सब धान बाइस पसेरी थोड़े न होता है, मैंने भइया लाल की हां में हां मिलाई.
मोटा भाई ने भी मौके पर चौका लगाया, देश भर के चौकीदारों को एक झटके में अपनी ओर कर लिया, भइया लाल ने देश के मुख्य ‘चौकीदार’ की शान में कसीदे काढ़े.
सीधे-सीधे कहो दादा, वोट पक्के कर लिए, जैसे 2014 में चाय वालों को पटाया था, मैंने भइया लाल को उकसाया.
लगे हाथ यह भी बोल दो माई स्वीट हार्ट कि पिछले साल पकौड़े वालों को भरमाया था, तुम जैसों से और उम्मीद भी क्या हो सकती है, भइया लाल उबलने को बेताब दिखे.
नहीं दादा, मैं तो सिर्फ वही कह रहा हूं, जो लोग कहते हैं, मैंने उन्हें बैलेंस करने की कोशिश की.
क्या? भइया लाल की आंखें सवालिया निशान की तरह मुझे घूरने लगीं.
यानी जो हाल दिल का है, वही दिल्ली का है, मैंने उनसे पीछा छुड़ाने की गरज से कहा, अब इसका मतलब न पूछिएगा, अगली बार समझाऊंगा. ऑफिस नहीं जाना क्या?
भइया लाल उठ खड़े हुए, बोले, समझ रहा हूं कि लडक़ा हाथ से निकल गया है….
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