संध्या द्विवेदी
कैराना में पलायन का मुद्दा हर नेता की जुबान पर है। मगर कैराना में जन्में मुनव्वर पलायन के सिवा और भी दर्द बयां करते हैं। उन्होंने बताया ‘पिछले दो-ढाई सालों में ड्रग्स का व्यापार जिस तेजी से बढ़ा है उससे लगता है कि जल्द ही कैराना दूसरा पंजाब बन जाएगा। नये लड़के इसकी चपेट में आ रहे हैं। इंजेक्शन और हुक्के में भरकर यह नया नशा खुलेआम हो रहा है। पुलिस कुछेक लोगों को पकड़कर उनका चालान काट देती है और फिर छोड़ देती है।’ आगे वह कहते हैं, मैंने पढ़ा था, पंजाब में ड्रग्स मुख्य चुनावी मुद्दा बन गया है। लेकिन यहां तो इस पर कोई बात ही नहीं हो रही है।
मंडावर गांव के युवा नौशाद ने झिझकते हुए बताया ‘मैडम बोर्डर के गांवों से होता हुआ सफेद नशा पूरे कैराना में फैल रहा है।’ वह आरोप लगाते हैं ‘ यह सब पुलिस को पता है। यहां के नेताओं को भी पता है।’ वह कहते हैं मेरे कई दोस्त ‘अब शराब नहीं बल्कि सफेद नशा करते हैं।’ नौशाद से जब पूछा गया कि क्या आपने कभी इस तरह के नशे आजमाएं हैं। तो वही झिझकते हुए कहते हैं, ‘ मैंने भी एक-दो बार इंजेक्शन लगाए हैं। इंजेक्शन लगाने के बाद ऐसा लगता है मानों जमीन से ऊपर उड़ रहे हैं।’ करीब ही खड़े मुर्सलीन ने बताया ‘भूरा गांव, बसेड़ा गांव, कैराना की बिसतियान बस्ती इस समय नये नशे का अड्डा हैं। बोर्डर के गांव में सफेद नशा पूरी तरह से फैला चुका है। उसी रास्ते से यह नशा शहर में भी आ रहा है।’
टायर की दुकान के मालिक सुरेंदर सैनी कहते हैं, ‘यह ऐसी जगह है जहां हर किस्म का अपराध मिल जाएगा। नया नवेला अपराध ड्रग्स है। बाकी आप जितने तरह के अपराध सोच सकती हैं सबकुछ मिलेगा यहां। बातचीत के दौरान गुस्से में सुरेंदर कहते हैं, अपराधों की नगरी कैराना में आपका स्वागत है।’ टायर की लाइन से लगी कई दुकानों के मालिकों ने एक बेहद गंभीर मसले को अगंभीर तरह से दिखाया।
जब्बार ने अपनी दुकान के एक लड़के को बुलाकर कहा, ‘सुन मैडम को पेट्रोल की बोतल लाकर दिखा। वह हंसते हुए कहते हैं, यहां सारे दुकान वाले पेट्रोल बम रखते हैं। कई दुकानों से पेट्रोल भरी बोतलें सामने आ गई हैं। इन्हें इस बात की झिझक बिल्कुल नहीं थी कि इनकी फोटो किसी अखबार या पत्रिका में छप जाएगी। वह हंसते हुए कहते हैं, यहां पास में कोई पेट्रोल पंप नहीं है। पहले था, लेकिन डर के मारे मालिक ने उसे बंद कर दिया। पुलिस को हम हफ्ता देते हैं।’
तीसरा अहम मसला है, मुजफ्फरनगर दंगों के समय पलायन कर आए लोगों के लिए मूलभूत सुविधाओं का। कैराना के पंजीठ गांव के आस-पास ही चार मुसलमान बस्तियां बन गईं हैं। ये लोग शामली के कुरावा, उस्मानपुर, बावड़ी गांव से आकर ये लोग यहीं बस गए। ऐसी और भी बस्तियां यहां हैं।
हम पंजीठ के करीब नई बसी मदीना बस्ती में पहुंचे। वहां भीड़ हमारे पास आ गई। शादिया, नाहिदा, जमाल, जुबैर, तबस्सुम ने एक-एक कर अपना दर्द सुनाया। वह हमसे बुनियादी सुविधाओं के न होने क शिकायत करने लगे। शादिया ने कहा, हमारा तो वोट भी है, फिर हमें कोई सुविधाएं क्यों नहीं मिलती? न कोई विधवा पेंशन न, राशन।
करीब ही गुलजार बस्ती है। यहां पर भी लोगों ने एकजुट होकर बताया कि न तो यहां शौचालय है और न हीं यहां सड़क। न हैंडपंप है। दंगा पीड़ितों की बस्ती के लो गांवों में जाकर पानी लाते हैं। यहां भी सबके पास वोटर कार्ड है। पर बीपीएल कार्ड यहां भी किसी के पास नहीं था। केवल इन चार बस्तियों की आबादी करीब डेढ़ हजार होगी फिर सोचिए पूरे कैराना में वोटर आबादी कितनी बढ़ गई!
सोचने वाली बात है कि वोट बैंक तो यह लोग बन गए मगर नागरिकों को मिलने वाली सामान्य सुविधाओं के लायक इन्हें अबतक किसी ने नहीं समझा। मदीना बस्ती में रह रहे दंगों के समय कुरावा गांव से आए जमाल ने बताया कि पूरे कैराने में आठ-दस बस्तियां दंगा पीड़ितों की हैं। यहां आने के बाद महीने भर के अंदर ज्यादातर लोगों का वोटर कार्ड बन गया था। लेकिन बीपीएल कार्ड के लिए हमने कई बार प्रधान का दरवाजा खटखटाया लेकिन नहीं बना। यहां न बिजली है, न स्कूल। न हमारे बच्चे स्कूल जाते हैं और न हीं हमें हमें कोटेदार राशन देता है। अब हमारे विधायक ने कहा है, अबकी जीते तो बीपीएल कार्ड बनवा देंगे। हालांकि हमने 2014 में भी वोट डाले थे।
कैराना में रालोद से प्रत्याशी अनिल चौहान से जब इन सब समस्याओं के बारे में पूछा गया तो उन्होंने मौजूदा विधायक और सांसद पर गंभीर आरोप लगा डाला। उन्होंने कहा, मौजूदा सपा के विधायक नाहिद हसन और सांसद हुकुम सिहं में एक गठजोड़ है। दरअसल यह लोग ही अपराध और अपराधियों को संरक्षण देते हैं। हुकुम सिंह और नाहिद हसन दोनों को खुलेआम चल रहे ड्रग्स के कारोबार का पता है।
पलायन का मुद्दा यहां है, मगर वजह सांप्रदायिक नहीं बल्कि वजह रोजगार का न होना और अपराध का बढ़ना है। नशे के कारोबार फलना फूलना है। अनिल चौहान भाजपा के फायर ब्रांड सांसद हुकुम सिंह के भतीजे हैं। यह भाजपा से टिकट चाहते थे, लेकिन जब चाचा हुकुम सिहं ने अपनी बेटी को खड़ा कर दिया तो रालोद के प्रत्याशी बन गए। चाचा हुकुम से नाराज भतीजे अनिल अब खुलकर चचा के खिलाफ बोल रहे हैं।