नई दिल्ली। जिन लोगों के मामले जम्मू कश्मीर की अदालतों में लंबित हैं और इस समय वे दूसरे राज्य में रह रहे हैं और मुकदमे की तारीख पर यात्रा करके आने-जाने में उन्हें असुविधा होती है, उनके लिए यह एक अच्छी खबर तो है ही ऐतिहासिक भी है। क्योंकि अब वहां के कोर्ट में लंबित मामले सुनवाई के लिए दूसरे राज्यों में भेजे जा सकते हैं। अब तक ऐसा प्रावधान नहीं था।
प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने 19 जुलाई यह फैसला इस तथ्य के मद्देनजर दिया कि जम्मू-कश्मीर के स्थानीय कानून वादी के अनुरोध पर मामलों को राज्य से बाहर स्थानांतरित करने की इजाजत नहीं देते हैं। दीवानी प्रक्रिया संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता के मामलों के स्थानांतरण से संबंधित नियम जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होते हैं। पीठ में न्यायमूर्ति एफएमआई कलीफुल्ला, एके सिकरी, एसए बोबडे और आर भानुमति भी शामिल हैं।
पीठ ने कहा कि न्याय पाना सभी वादियों का अधिकार है और इसे सुनिश्चित करने के लिए शीर्ष अदालत अपनी संवैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल कर मामलों को राज्य से बाहर स्थानांतरित कर सकती है। यह फैसला कुछ याचिकाओं के आधार पर आया है। इन्हीं में से एक मामला अनिता कुशवाह का था, जिसमें उन्होंने अपने मामले को जम्मू-कश्मीर से बाहर स्थानांतरित करने की मांग की थी।
बता दें कि संविधान का आर्टिकल 21 कहता है कि सबको न्याय पाने का अधिकार है। अगर कोई किसी दूसरे राज्य में जाकर यात्रा करने में असमर्थ है तो वह एक तरह से न्याय पाने से वंचित है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को आर्टिकल 136 के तहत अधिकार है कि वह सभी को न्याय दिलाए।
सीआरपीसी की धारा 25 कहती है कि देश के किसी राज्य से कोई केस दूसरे राज्य में ट्रांसफर हो सकता है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में रनबीर पैनल कोड आरपीएस में यह प्रावधान नहीं है। इसलिए केस ट्रांसफर नहीं हो सकते थे। कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट आईं जिन पर पांच जजों की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है। अब सुप्रीम कोर्ट जम्मू-कश्मीर के केस देश में कहीं ट्रांसफर कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि वादियों को न्याय सुनिश्चित कराने के लिए उसके द्वारा वैवाहिक मतभेदों से जुड़े मामलों को अब जम्मू-कश्मीर से बाहर स्थानांतरित किया जा सकता है।