नई दिल्ली। कावेरी को दक्षिण भारत की गंगा भी कहा जाता है। इसके पानी के लिए लंबे समय से दो राज्यों में लड़ाई चली आ रही है। 1924 में इन दोनों के बीच समझौता हुआ, लेकिन बाद में विवाद में केरल और पांडिचेरी भी शामिल हो गए जिससे यह और मुश्किल हो गया। इसी सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कर्नाटक सरकार को निर्देश दिया कि तमिलनाडु में किसानों की हालत सुधारने के लिए अगले 10 दिन तक उसे प्रति दिन 15 हजार क्यूसेक कावेरी का पानी छोड़ा जाए। कोर्ट के इसी निर्देश के बाद कर्नाटक में जबरदस्त विरोध का माहौल उभरकर सामने आया है। जगह-जगह लोगों ने प्रदर्शन कर कोर्ट के फैसले के खिलाफ नाराजगी जताई है। फैसले पर चर्चा के लिए कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया ने सर्वदलीय बैठक भी बुलाई। इस मसले पर अगली सुनवाई 16 सितंबर को होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने दो सितंबर को कर्नाटक से भावनात्मक अपील करते हुए कहा था, जियो और जीने दो। तब तमिलनाडु ने शीर्ष अदालत के संज्ञान में यह बात लाई थी कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने कहा है कि उसे पानी की एक भी बूंद नहीं दी जाएगी। तमिलनाडु ने हाल ही में एक याचिका में कर्नाटक को 50.52 टीएमसी फुट कावेरी का पानी जारी करने का निर्देश देने की मांग की थी, ताकि इस मौसम में 40 हजार एकड़ में फैली सांबा की फसल को बचाया जा सके। जवाब में कर्नाटक ने कहा था कि उसके चार जलाशयों में करीब 80 टीएमसी फुट पानी की कमी है।
कावेरी कर्नाटक और उत्तरी तमिलनाडु में बहनेवाली एक सदानीरा नदी है। इसे दक्षिण भारत की गंगा भी कहा जाता है। यह पश्चिमी घाट के पर्वत ब्रह्मगिरी से निकली है। इसकी लम्बाई 800 किलोमीटर है। कावेरी नदी के डेल्टा पर अच्छी खेती होती है। इसके पानी को लेकर दोनों राज्यों में विवाद है। इस विवाद को लोग कावेरी जल विवाद कहते हैं। कावेरी जल विवाद अंग्रेजों के समय से चला आ रहा है। 1924 में इन दोनों के बीच समझौता हुआ, लेकिन बाद में विवाद में केरल और पांडिचेरी भी शामिल हो गए जिससे यह और मुश्किल हो गया। 1972 में गठित एक कमेटी की रिपोर्ट के बाद 1976 में कावेरी जल विवाद के सभी चार दावेदारों के बीच एग्रीमेंट किया गया, जिसकी घोषणा संसद में हुई। इसके बावजूद विवाद जारी रहा।
1986 में तमिलनाडु ने अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम (1956) के तहत केंद्र सरकार से एक ट्रिब्यूनल की मांग की। 1990 में ट्रिब्यूनल का गठन हो गया। ट्रिब्यूनल ने फैसला किया कि कर्नाटक की ओर से कावेरी जल का तय हिस्सा तमिलनाडु को मिलेगा। कर्नाटक मानता है कि ब्रिटिश शासन के दौरान वह रियासत था जबकि तमिलनाडु ब्रिटिश का गुलाम। इसलिए 1924 का समझौता न्यायसंगत नहीं। कर्नाटक का कहना है कि तमिलनाडु की तुलना में वहां कृषि देर से शुरू हुई। वह नदी के बहाव के रास्ते में पहले है और उसे उस पर पूरा अधिकार है। तमिलनाडु पुराने समझौतों को तर्कसंगत बताते हुए कहता है, 1924 के समझौते के अनुसार, जल का जो हिस्सा उसे मिलता था, अब भी वही मिले। केंद्र ने जून 1990 को न्यायाधिकरण का गठन किया और अब तक इस विवाद को सुलझाने की कोशिश चल रही है।