परिवार को दो वक्त की रोटी कैसे मयस्सर हो, इस उधेड़बुन में राजकुमारी देवी ने परंपरागत खेती छोडक़र जो नया रास्ता अख्तियार किया, वह न केवल उनके लिए राम-बाण साबित हुआ, बल्कि अनेक दीगर किसानों-महिलाओं की भी किस्मत के द्वार खुल गए. एक साधारण किसान से ‘किसान चाची’ बनीं राजकुमारी देवी को भारत सरकार ने ‘पद्मश्री’ से सम्मानित करने का फैसला किया है.
मुजफ्फरपुर जिले के सरैया प्रखंड अंतर्गत आनंदपुर-सरैया गांव निवासी 63 वर्षीय राजकुमारी देवी को आज लोग ‘किसान चाची’ के नाम से देश भर में जानते हैं. कच्ची पगडंडियों पर मीलों साइकिल चलाकर किसानों के बीच जागरूकता की अलख जगाने वाली राजकुमारी ने अब तक पुरुषों का कार्यक्षेत्र माने जाने वाले कृषि में एक नई क्रांति का आगाज किया है. उन्नत तकनीक एवं मिट्टी की गुणवत्ता की अच्छी परख रखने वाली किसान चाची आज सफल खेती का दूसरा नाम और महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन चुकी हैं. चेहरे पर उम्र के निशान, लेकिन हाथ में हिम्मत की लाठी और दिल में कुछ नया करने का जज्बा लिए आज जब वह पीछे मुडक़र देखती हैं, तो उन्हें हजारों सफल किसानों एवं आत्मनिर्भर महिलाओं के मुस्कुराते चेहरे नजर आते हैं. भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित करने की घोषणा की है.
राजकुमारी रोजाना 30-40 किलोमीटर साइकिल चलाकर आसपास के गांवों के किसानों के बीच अपने अनुभव बांटती हैं. उन्होंने सैकड़ों महिलाओं को न केवल खेती में उतारा, बल्कि उन्हें यह जानकारी दी कि खेती को लाभकारी कैसे बनाया जाए. नई तकनीक की जानकारी हासिल कर उन्हें दूसरे किसानों के साथ साझा करने के लिए वह कहीं भी जाने को तैयार रहती हैं. राजकुमारी की उपलब्धियों को देखते हुए बिहार सरकार ने उन्हें 2006—07 में ‘किसान श्री’ सम्मान से नवाजा और एक लाख रुपये की धनराशि प्रदान की. वह सरैया कृषि विज्ञान केंद्र की सलाहकार समिति एवं राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन की सदस्य हैं. किसान चाची अब तक दर्जनों पुरस्कार पा चुकी हैं. उन पर केंद्र सरकार के कृषि विभाग द्वारा वृत्तचित्र भी बनाया जा चुका है. यहीं से उनका नाम ‘किसान चाची’ पड़ा. वह वाइब्रेंट गुजरात-2013 में आमंत्रित की गईं और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर उनका फूड प्रोसेसिंग मॉडल सरकारी वेबसाइट पर डाला गया. 2015 और 2016 में अमिताभ बच्चन ने उन्हें केबीसी में बुलाया था.
किसान चाची का जन्म शिक्षक पिता के घर में हुआ था. उस समय कम उम्र में शादी हो जाती थी, इसलिए मैट्रिक उत्तीर्ण होते ही 1974 में उनकी शादी एक किसान परिवार में अवधेश कुमार चौधरी से कर दी गई. शादी के बाद वह अपने परिवार के साथ आनंदपुर-सरैया गांव में रहने लगीं. राजकुमारी शिक्षक बनना चाहती थीं, 1980 में उन्होंने बाकायदा इसकी ट्रेनिंग भी ली, लेकिन परिवार और समाज के विरोध के चलते वह नौकरी नहीं कर सकीं. शादी के नौ साल तक संतान न होने और पति की बेरोजगारी के चलते घर की दहलीज से बाहर कदम रखने वाली राजकुमारी परिवार एवं समाज से बहिष्कृत कर दी गईं. वह कहती हैं, करीब 15 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी. शिक्षक पिता ने प्यार से पाला था, लेकिन ससुराल में स्थिति ठीक उलट थी. जब तक कुछ समझते, परिवार ने हमें अलग कर दिया. केवल जमीन से परिवार चलाना संभव नहीं था. 1983 में जब बेटी का जन्म हुआ, तब भी ताने मिले. 1990 में चौधरी के चार भाइयों में बंटवारा हुआ और हमारे हिस्से में केवल ढाई बीघा जमीन आई. परिवार में तंबाकू की खेती करने की परंपरा थी, जिसे तोड़ते हुए मैंने आर्थिक तंगी की हालत में कुछ नया करने की ठानी.
बकौल राजकुमारी देवी, उस समय आनंदपुर सहित आसपास के गांवों में गांजा- तंबाकू की खेती होती थी. ज्यादातर लोग नशे के आदी थे. परिवार में झगड़े, अशांति और महिलाओं के साथ मारपीट आम बात थी. यह देखकर बहुत दु:ख होता था और मैं कुछ करना चाहती थी. इसलिए सोचा कि क्यों न नशे की खेती के बजाय कोई दूसरी खेती की जाए. दरअसल, खेती को लोग घाटे का सौदा मानते थे, इसलिए केवल गांजा-तंबाकू उपजाते थे. राजकुमारी की सोच थी कि कोई ऐसी खेती की जाए, जिसमें मुनाफा ज्यादा हो और गांजा-तंबाकू की खेती भी बंद हो जाए. राजकुमारी ने फलों की खेती करने का मन बनाया और तय किया कि पहले खुद तकनीकी ज्ञान हासिल करूंगी और उसके बाद दूसरे लोगों को प्रोत्साहित करूंगी. बंटवारे के बाद मिली जमीन के सहारे ही उन्हें परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटानी थी, लेकिन केवल उपज से यह असंभव था. हमेशा घर की चहारदीवारी में रहने वाली राजकुमारी ने इस मुश्किल घड़ी में हौसला नहीं खोया. उन्होंने फैसला किया कि जमीन से ही इतने पैसे कमाएंगे, जिससे परिवार खुशी से रह सके. उस समय उनके घर की महिलाएं काम करने बाहर नहीं जाती थीं. ससुर भी विरोध में थे. बावजूद इसके किसान चाची ने हार नहीं मानी और काम में जुट गईं. सरकार द्वारा किसानों के लिए चलाई जा रही प्रशिक्षण योजना के तहत राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय से उन्होंने उन्नत कृषि के गुर सीखे और अपनी जमीन पर पपीते एवं ओल की खेती शुरू कर दी. राजकुमारी पहले अपनी उपज सीधे बाजार में बेचती थीं, लेकिन अब वह अपने खेत में पैदा होने वाले ओल का अचार और आटा बनाकर बेचती हैं. साइकिल पर घर-घर जाकर उन्होंने बिक्री शुरू की. गांव की महिलाओं को जब पता चला, तो वे भी सीखने आने लगीं. इससे राजकुमारी का मनोबल ऊंचा हुआ. वह किसानों को बेहतर कृषि तकनीक की जानकारी देने और गांव-गांव जाकर महिलाओं के स्वयं सहायता समूह बनाने लगीं. उन्होंने महिलाओं को खेती, खाद्य प्रसंस्करण एवं मूर्ति बनाने के तरीके सिखाए. अब तक वह 40 स्वयं सहायता समूहों का गठन कर चुकी हैं. उनके बनाए अचार की तारीफ अमिताभ बच्चन भी कर चुके हैं.
राजकुमारी ने अपने जैसी उन महिलाओं को साथ लिया, जो गरीब थीं, लेकिन कुछ करना चाहती थीं. उन्होंने अपने घर पर उन्हें खेती करने और अचार बनाने के तरीके सिखाए. समय के साथ उनके अचार और अन्य फूड प्रोडक्ट्स का व्यापार बढ़ता गया. आज भी उनके घर पर 10 महिलाएं नियमित रूप से काम करके धनोपार्जन कर रही हैं. बकौल राजकुमारी, महिलाएं केवल खेत में मजदूरी करते हुए नजर आती थीं, उन्हें कृषि तकनीक का ज्ञान नहीं था और वे पुरुषों के बताए अनुसार ही काम करती थीं. मैंने सोचा कि जब हम महिलाएं खेत में मेहनत करती ही हैं, तो क्यों न बेहतर कृषि तकनीक अपनाई जाए. किसान चाची की वजह से असंख्य महिलाओं की जिंदगी में बदलाव आया. शुरुआती दिनों में जब वह साइकिल पर सवार होकर गांव से बाहर निकलतीं, तो लोग आपस में कानाफूसी करते और उन्हें पागल करार देते. शादी के कई सालों तक संतान न होने के कारण वह पहले ही तिरस्कार झेल रही थीं, उस पर खेती और शुरू कर दी. परिवार और समाज ने उन्हें बहिष्कृत कर दिया, लेकिन उनके कदम नहीं रुके. उन्होंने खेती के साथ ही छोटे-मोटे कृषि उत्पाद बनाने शुरू किए. साइकिल उठाई और मेलों-बाजारों में एवं घर-घर जाकर उनकी बिक्री शुरू की. भूखे रहने पर न पूछने वाला समाज दो रोटी कमाने के इस तरीके पर और भी सख्त हो गया. पति भी नाराज. अवधेश चौधरी ने कहा कि साइकिल से सामान बेचना उन्हें अच्छा नहीं लगा.
आज स्थिति बहुत बदल गई है. गांव के अलावा जिले और बाहर के लोग भी खेती के गुर सीखने के लिए उन्हें बुलाते हैं. 2003 के किसान मेले में उनके उत्पाद को पुरस्कार मिला. जनवरी 2010 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वैशाली प्रवास के दौरान उन्हें आमंत्रित किया और ‘रोल मॉडल’ की संज्ञा देते हुए कहा कि उनके जैसी महिला समाज में जागृति ला रही है. 14 मार्च 2010 को जब नीतीश सरैया प्रखंड में जैविक खाद प्रोजेक्ट का उद्घाटन करने आए, तो उन्होंने राजकुमारी के घर जाकर उनके उत्पादों एवं जैविक खेती का जायजा लिया. किसान चाची के यहां ओल, लीची, बेर, नींबू, आम, लहसुन, गोभी व गाजर का सुखौता, ओल की सेंवई, आलू चिप्स, गुलाब सीरप, ऑरेंज सीरप, पपीता जैम एवं आंवले का मुरब्बा देखकर उन्होंने उनके प्रयासों की प्रशंसा की. किसान चाची बताती हैं, खेती-किसानी में महिलाएं पुरुषों से ज्यादा काम करती हैं, इसके बाद भी महिलाओं को किसान का दर्जा नहीं मिलता. कृषि भूमि उनके नाम न होने से सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें नहीं मिलता. जिस दिन महिला किसान समृद्ध हो गईं, किसान परिवार खुशहाल हो जाएंगे. घरेलू उत्पादों की बिक्री और निर्यात को बढ़ावा मिले, बाजार उपलब्ध हो. पद्मश्री की घोषणा होने पर बीती 26 जनवरी की सुबह उनके घर बधाई देने वालों का तांता लगा रहा. कोई खुद पहुंचा, तो कई लोगों ने फोन किए. उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने भी बधाई दी और कहा कि उन्हें पद्मश्री मिलने से पूरा बिहार गौरवांवित है.