बिहार परीक्षा विवाद- लागा परीक्षा में दाग

बिहार मैट्रिक व इंटर की परीक्षा में खराब रिजल्ट आने के बाद सरकार ने दावे के साथ कहा था कि राज्य में नकल नहीं चली, इसलिए आधे से अधिक विद्यार्थी फेल हो गए। सरकार ने आधे से अधिक विद्यार्थियों की असफलता को आधार बनाकर उन तमाम दागों को एक साथ धोने का प्रयास किया जो पिछले कुछ वर्षों से लग रहे थे। मसलन पिछले वर्ष सामूहिक कदाचार की वजह से बोर्ड परीक्षा पर जो दाग लगा था, उसे धोने के प्रयास के साथ सरकार ने यह जताया कि वह शिक्षा की गुणवत्ता के साथ अब समझौता करने के मूड में नहीं है। मगर सरकार का यह दांव उलटा तब पड़ गया जब इंटर की परीक्षा में टॉपर छात्र अपने विषय से संबंधित आसान सवालों के भी जबाब नहीं दे पाए। साइंस प्रथम टॉपर सौरभ श्रेष्ठ और तीसरे नंबर पर रहे राहुल कुमार के रिजल्ट को रद्द कर उन पर मुकदमा दर्ज कर दिया गया।

दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से परीक्षा में सामूहिक कदाचार होने और परीक्षाफल को शिक्षा माफिया के प्रभावित करने की वजह से बिहार बोर्ड की काफी किरकिरी हो रही थी। सरकार ने इसे रोकने का भरसक प्रयास भी किया। कदाचार पर हर संभव रोकथाम के उपाय किए गए। प्रश्नपत्र लीक न हो इसकी भी गुंजाइश को खत्म किया गया। इसके अलावा और भी बहुत कुछ ऐसा किया गया, जो पूर्व की परीक्षाओं में नहीं किया गया था। बावजूद इसके, शिक्षा माफिया ने उतर पुस्तिकाओं में ही सेंधमारी कर सरकार के तमाम प्रयासों को बेकार साबित कर दिया। माफिया ने सरकार की नाक के नीचे ही अपने छात्रों को टॉपर बना दिया। बिहार इंटर परीक्षाफल के इतिहास में ऐसे मामले का पर्दाफाश पहली बार हुआ है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों से टॉपर सेटिंग का मामला चर्चा में रहा है। मगर सरकार के प्रयासों के बाद भी छात्रों को शिक्षा माफिया टॉप कराने में कामयाब रहे।

भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी इसे सरकार की असफलता मानते हैं। वहीं बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के पूर्व अध्यक्ष डॉं. एकेपी यादव कहते हैं-हमने पहले ही शक जताया था। जिस स्कूल से टॉपर निकला है, उसके रिजल्ट को हमने रोका था। इस प्रकार के संस्थानों के रिजल्ट को जांच के बाद ही जारी करना चाहिए। डॉं. एकेपी यादव जिन संस्थानों के रिजल्ट जांच के बाद जारी करने की बात कर रहे हैं, वह वैशाली का विशुन राय कॉलेज है। यह वही वित्त रहित विशुन राय कॉलेज है, जहां के कुल 222 छात्रों को पिछले वर्ष समान अंक मिलने के बाद मेधा घोटाले की बात कही गई थी। तत्कालीन शिक्षामंत्री पी.के. शाही ने जांच का भी आदेश दिया था। इन दो वर्षों के रिजल्ट से पूर्व भी कई वर्षों से इस विद्यालय के छात्रों के परिणाम शक के दायरे में रहे हैं।

बिहार शिक्षा बोर्ड के एक अधिकारी ने बताया कि विशुन रॉय कॉलेज इस वर्ष भी सरकार के रडार पर प्रमुखता से था। यही कारण है कि पूरे वैशाली जिले की कॉपी को जांच के लिए जहां कैमूर भेजा गया वहीं इस कॉलेज की कॉपी को पटना के सुरक्षित माने जाने वाले राजेंद्र नगर केंद्र पर लाया गया। कॉलेज के ट्रैक रिकॉर्ड के मद्देनजर सरकार ने पुख्ता प्रबंध भी किया था। लेकिन इस बार भी कॉपी में सेंध लग गई। इस अधिकारी के अनुसार टॉपर की कॉपी ही बदल दी गई। इस कॉपी पर नंबर तो एक हैं, लेकिन उत्तर पुस्तिका अलग है। जाहिर है कि कोई छोटा-मोटा सख्स इस काम को अंजाम नहीं दे सकता। ऐसे में कहीं न कहीं किसी बड़ी मछली का हाथ जरूर है। सूत्रों के मुताबिक कॉपियों में फेर-बदल का काम पटना में ही किया गया होगा जहां कुछ खास लोगों को ही जाने की इजाजत है। ऐसे में सरकार को उम्मीद है कि जांच रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हो जाएगा कि किस सख्स के इशारे पर टॉपर्स की कॉपी सरकार की नाक के नीचे बदल दी गई।

सरकार और समिति आमने-सामने

सरकार भी मान रही है कि कुछ तो गड़बड़ी जरूर है इसलिए जांच के आदेश दिए गए हैं। सीएम नीतीश कुमार ने इस गड़बड़ी के खिलाफ मोर्चा खुद संभाल लिया है और बिहार राज्य आधारभूत संरचना के प्रबंध निदेशक संजीव सिन्हा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी गठित की है। वहीं बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने पूर्व न्यायाधीश घनश्याम प्रसाद के नेतृत्व में जांच टीम गठित की है। विद्यालय परीक्षा समिति के अध्यक्ष लालकेश्वर प्रसाद सिंह भी मान रहे हैं कि धांधली हुई है। मगर हैरानी की बात यह है कि अध्यक्ष की जानकारी में धांधली की बात होते हुए भी समिति की ओर से पहले कोई प्रयास क्यों नहीं किया गया? मीडिया में खबर आने के बाद ही समिति ने क्यों टॉपरों को साक्षात्कार के लिए बुलाया? दरअसल, इस मसले पर बोर्ड और सरकार में टकराव की स्थिति पैदा हो गई है। जदयू प्रवक्ता व विधान पार्षद नीरज कुमार ने जिस तरह से बोर्ड के प्रति अपना विरोध दर्ज किया है, उससे जाहिर होता है कि समिति की बदनामी को सरकार अपने सिर लेने को तैयार नहीं है। इन तमाम मसलों के लिए बोर्ड को जिम्मेवार बताते हुए नीरज कुमार ने उसके कुकृत्य को माफी के अयोग्य माना है। उनके मुताबिक बोर्ड की वजह से सरकार की बदनामी हुई है। ओपिनियन पोस्ट से फोन पर बातचीत के दौरान लालकेश्वर सिंह ने हालांकि सरकार और बोर्ड के बीच टकराव से इंकार किया लेकिन जब उनसे वित्त रहित स्कूलों से ही टॉपर निकलने के बाबत पूछा गया तो वह विमर्श का विषय बता कर प्रश्न को टाल गए।

वित्त रहित विद्यालयों से ही टॉपर क्यों?

शिक्षाविद संजीव ठाकुर इसके पीछे विद्यालयों के व्यवसायीकरण को जिम्मेवार मानते हैं। संजीव ठाकुर के मुताबिक वित्त रहित स्कूल मुनाफाखोरी का अड्डा बन चुका है। छात्र उन स्कूलों में दाखिला लेने में अधिक रुचि दिखाते हैं, जिनका परीक्षा परिणाम बेहतर होता है। उसकी एवज में छात्र दाखिला लेने में मनमानी रकम देने से भी संकोच नहीं करते। सेंटर मैनेज करने के नाम पर भी छात्रों से अवैध वसूली की जाती है और प्रबंधन को अनैतिक तरीके से लाखों का फायदा होता है। ऐसे में हर वित्त रहित विद्यालय सेंटर मैनेज करने और अपने छात्रों को अधिक से अधिक अंक दिलाने के लिए जोड़तोड़ करता है। संजीव ठाकुर की मानें तो मैट्रिक रिजल्ट से सबसे अधिक परेशानी वित्त रहित स्कूलों को ही है। इन स्कूलों को अनुदान का आवंटन रिजल्ट के आधार पर होता है। इन स्कूलों को कम अनुदान मिलने पर शिक्षकों का वेतन कम हो जाएगा। ऐसे में स्कूलों के शिक्षकों का पलायन होगा। छात्र की भी इन स्कलों में दाखिला लेने की रुचि नहीं रह जाएगी। इंटर के खराब रिजल्ट के कारण यहां के शिक्षकों और प्रबंधन को कई बार निशाना बनाया गया है। ऐसे में वित्त रहित स्कूलों के प्रबंधक अपने छात्रों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में उत्तीर्ण कराने के लिए जुगाड़ से रिजल्ट बेहतर कराते हैं। यही कारण है कि टॉप टेन में पिछले कुछ वर्षों से वित्त रहित शैक्षणिक संस्थानों के परीक्षार्थी रहते हैं जबकि इन स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव रहता है। पढ़ाई का माहौल नहीं होता। फिर यहां से टॉपर कैसे निकल रहे हैं? जबकि पटना के स्कूलों और कॉलेजों में सूबे के अन्य भागों से बेहतर शैक्षणिक व्यवस्था और माहौल है।

सीबीएसई का 12वीं फेल बिहार बोर्ड का टॉपर

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फर्जीवाड़े से साइंस टॉपर सौरभ श्रेष्ठ के पड़ोसी भी उसकी सफलता पर हैरान थे। ओपिनियन पोस्ट की पड़ताल में पड़ोसियों ने दावा किया है कि सौरभ पिछले साल सीबीएसई से 12वीं की परीक्षा में फेल हो गया था। उसके बाद महज टॉप करने के लिए विशुन राय कॉलेज से परीक्षा दी और टॉप कर गया। पड़ताल में पता चला कि पढ़ाई में वह बेहद कमजोर था। सीबीएसई से 12वीं में फेल होने के बाद वह किसी भी तरह इंटर पास करना चाहता था। कई कॉलेजों की छानबीन के बाद ही उसने विशुन राय कॉलेज में दाखिला लिया। पड़ोसी बताते हैं कि सौरभ भी अपनी सफलता पर यकीन नहीं कर पा रहा था। पड़ोसियों की राय बोर्ड के साक्षात्कार में तब सच साबित हुई जब सौरभ ने अपने विषय के आसान सवालों के भी गलत जवाब दिए। इसी तरह आर्ट्स टॉपर रूबी राय के पिता भी नतीजों पर हैरानी जता रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि महज दो साल पहले रूबी के दसवीं के परिणाम बेहद खराब रहे और वह सेकेंड क्लास से ही उत्तीर्ण हो सकी थी। बिहार इंटरमीडिएट को टॉप करने वाली रूबी कुमारी को अपने विषय की जानकारी न होना, पॉलिटिकल साइंस को प्रोडिकल कहना या फिर पॉलिटिकल साइंस में खाना बनाने की जानकारी देने वाला विषय बताने से अनुमान लगाना सहज है कि असली आर्ट्स टॉपर के नाम का खुलासा होना अभी बाकी है।

बिहार में फर्जीवाड़े से टॉप करने का भले ही यह पहला मामला उद्घाटित हुआ हो मगर यह खेल वर्षों पुराना है। ओपिनियन पोस्ट ने यह जानने की कोशिश की कि आखिर बिना मेधा के किस तरह फर्जीवाड़े के बूते टॉपर गढ़े गए या बोर्ड परीक्षा को न्यूनतम अंक से भी उत्तीर्ण करने में असमर्थ छात्रों को मनमाफिक अंक दिलाया गया। बिहार परीक्षा समिति से पिछले ही साल सेवानिवृत्त हुए एक पूर्व अधिकारी कहते हैं कि टॉपर गढ़ने व छात्रों को मनमाफिक अंक मुहैया करने का यह खेल पुराना है। यह बात और है कि इसका रहस्योद्घाटन नहीं हुआ। दरअसल, टॉप कराने या अंक बढ़ाने का यह खेल कई स्तरों पर होता है। अंक बढ़ाने का पहला तरीका प्रश्नपत्र लीक करने से शुरू होता है, जिसका कई बार खुलासा हो चुका है। वित्त रहित विद्यालय अपने छात्रों को अच्छे अंक दिलाने के लिए मनमाफिक परीक्षा केंद्र लेते हैं, जिसे सेंटर मैनेजमेंट कहा जाता है। ऐसे सेंटरों पर कदाचार की छूट होती है। ऐसे छात्र जिन्हें टॉप टेन में शामिल कराना होता है, उन्हें सबसे अलग कर परीक्षा देने की छूट मुहैया कराई जाती है। हालांकि इन उपायों में खतरा ज्यादा रहता है और मामले की गोपनीयता भी भंग होती है। इस वजह से इस तरह का मैनेजमेंट कई बार चर्चा में भी रहा।

उनके मुताबिक इन तमाम उपायों से इतर कॉपी मूल्यांकन केंद्र का मैनेजमेंट ज्यादा सुरक्षित माना जाता है। उसमें खतरा कम और परिणाम बेहतर होता है। इस मैनेजमेंट में पहले तो कॉपी मूल्यांकन करने वाले को मैनेज करने प्रयास किया जाता है। मगर कॉपी मूल्यांकन करने वाला भी एक हद तक ही अंक बढ़ा सकता है। ऐसे में कोई कसर रह जाती है, तो पूरी कॉपी ही बदल दी जाती है। रोलनंबर तो वही रहता है, बाकी के पन्ने बदल दिए जाते हैं। उससे मूल्यांकन का काम आसान हो जाता है और शिक्षा माफिया को मनमुताबिक परिणाम भी मिल जाता है। इसके अलावा एक और तरीके से अंक बढ़ाने का काम अंतिम दौर में सभी विषयों के परिणाम के जोड़ के वक्त होता है जो बोर्ड अधिकारी और कर्मचारी की मिलीभगत से ही संभव है। सूत्रों की मानें तो विशुन राय कालेज के छात्रों की कॉपियां बदल कर और अंतिम मूल्यांकन के जोड़ के समय धांधली कर उन्हें टॉपर के तौर पर गढ़ा गया। यही नहीं, पिछले कई वर्षों से टॉपर गढ़ने का यह खेल इसी तर्ज पर होता आ रहा है। 

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