दिल्ली में मेट्रो आम लोगों की जहां लाईफ लाइन बनती जा रही है वहीं मेट्रो कई प्रेम कहानियों को समेटे लोगों के जिन्दगी के साथ साथ दिलों में जगह बनाने में लगी है। लेखक बिनोद मैरता ने इन्हीं कहानियों में से एक कहानी चुनकर ‘अ रोज ऑन दा प्लेटफार्म’ नाम से उपन्यास लिखा है जिसमें मेट्रो में दो अजनबियों के मिलने और दोनों में गहराते रोमांस को उकेरने की कोशिश की है। लेखक से बात की निशा शर्मा ने और जानना चाहा लेखक और उनकी किताब के बारे में।
प्र- आप की किताब मार्किट में आ चुकी है और आप एक लेखक बन गए हैं आपका साहित्य की दुनिया में स्वागत है इसके लिए बधाई, पर सब जानना चाहते हैं कि आपने लिखना कैसे शुरू किया।
उ- लिखने की शुरुआत कविता से की थी। कई कविताएं लिखी, लिखते- लिखते लिखने से प्रेम हो गया। लिखना मेरे लिए शौक नहीं है, ना ही मन की बात है, ये लगाव है, जूनून है। मुझे लगता है अगर मैं नहीं लिखूंगा तो पागल हो जाऊंगा।
प्र- लिखने के लिए कहीं से तो प्रेरणा मिली होगी, किस चीज ने आपको प्रेरित किया।
उ- मुझे कई चीजें प्रेरणा देती हैं जैसे प्रकृति, अच्छी किताबें, अच्छी फिल्में, अच्छे गाने, लेकिन यह किताब ‘अ रोज ऑन दा प्लेटफार्म’ आम आदमी के जीवन से प्रेरित होकर लिखी गई है।
प्र- कौन-कौन से लेखक को पढ़ा है आपने जिसने आपको साहित्य की दुनिया में आने को प्रेरित किया ।
उ- साहित्य से प्रेम है, इसी वजह से साहित्य के बहुत से लेखकों को पढ़ा। हिन्दी के लगभग सभी लेखकों को पढ़ा है जैसे प्रेमचंद, अज्ञय, अश्क, रेणु, अमृत लाल नागर । अंग्रेजी में आर के नारायणन, मुल्क राज आनंद, अमिताब घोष, विक्रम सेठ, वी एस नायपॉल। इसके अलावा मैंने भारतीय भाषा जैसे बंग्ला के शरतचंद्र, टैगोर, तारशंकर बंधोपाध्याय, आशापूर्णा देवी, उरिया के गोपीनाथ मोहंति, तमिल के कुछ लेखको को, अंग्रेजी के अमेरिकन, केरिबियन, ब्रिटिश और कैनेडियन के पढ़ा है।
प्र- आपकी कहानी कविताएं अखबार और मैगज़ीन में काफी पहले छप चुकी हैं, फिर इस उपन्यास को लिखने में इतनी देरी क्यों ?
उ- मैंने कहा ना कि लिखने- पढ़ने का शौक था, इस उपन्यास से पहले भी दो उपन्यास लिख चुका हूं, लेकिन उन्हें लिखने में मुझे बहुत समय लगा जिसकी वजह से छापने और लिखने के बीच अंतराल आता गया। ‘अ रोज़ ऑन दा प्लेटफार्म’ को मैंने सबसे कम समय में और लगातार लिखा है यही वजह रही कि मेरे पहले के उपन्यास से पहले यह उपन्यास छपा और लोगों के बीच पॉपुलर हो गया।
प्र- आप मुख्यत: बिहार से हैं, बिहार से दिल्ली के सफर के बारे में कुछ बताइए।
उ- मैं दिल्ली में पत्रकारिता के उदेश्य से आया था, खाली हाथ था। दिल्ली में झुग्गी-झोपड़ियों में रहता था क्योंकि दिल्ली में अनजान था। छोटी-छोटी नौकरी की। शुरु के करीब सात साल बहुत मुश्किल भरे रहे। लेकिन परिश्रम विफल नहीं हुआ मैं पत्रकार बन गया अंग्रेजी अखबार में काम किया और मेहनत और लगन से सरकारी नौकरी में आ गया।
प्र- जैसा की आप ने बताया आप बिहार के छोटे से गाँव से हैं, क्या वहाँ आपको साहित्यक माहौल मिला ?
उ- मेरे दादाजी से मुझे बहुत प्रेरणा मिली। अंग्रेजी के प्रति रुझान भी उन्ही की देन है। वह अंग्रेजी के बहुत से लेखकों के नाम जानते थे, उन्हें पढ़ते थे पर हिन्दी के लेखकों को नहीं जानते थे जिसकी वजह से मेरा रूझान अंग्रेजी की तरफ होता चला गया। इसके अलावा मुझे फिल्मों से बहुत प्रेरणा मिली। फिल्में देखकर मुझे लिखने का मन करता था।
प्र- आपका उपन्यास मेट्रो पर आधारित है? मेट्रो को ही क्यों चुना कहानी के लिए। कोई खास वजह ?
उ- मेट्रो हमारे जीवन का बहुत अहम हिस्सा हो गई है, खासकर बड़े शहरों में जहां मेट्रो है। मैं बिहार से जरूर हूं, लेकिन पिछले कईं सालों से दिल्ली में रह रहा हूं और करीब 10 सालों से मेट्रो की यात्रा कर रहा हूं। अगर आप लेखक हैं तो प्रेरणा आपको कहीं से भी मिल सकती है। मेट्रो अपने साथ कई कहानियां लेकर रोज चलती है, अगर आप उन कहानियों को पढ़ना चाहें तो। मैंने भी इसमें से एक कहानी पढ़ी प्रेम की और उसे पन्नों पर उतार दिया। यह कहानी ‘अ रोज ऑन दा प्लेटफार्म’ के रूप में आप सबके बीच में है।
प्र- आपके उपन्यास की कहानी क्या पूरी तरह से काल्पनिक है, क्या आपकी असल जिन्दगी से इसमें कुछ नहीं है ?
उ- नहीं ऐसा भी नहीं है। मेरी जिन्दगी के बहुत से किस्से इस उपन्यास में है। रोमांस के किस्से, लड़ाई-झगड़े के किस्से बहुत कुछ है मेरी असल जिन्दगी से इस उपन्यास में। मेरी पत्नी मेरी मदद करती हैं।
प्र- जैसा कि आपने कहा, आपकी पत्नी का लिखने में आपको सहयोग मिलता है। शायद तभी आपने अपनी किताब में एक लड़की का चित्रण बखूबी किया है।
उ- जी, हालांकि वह साहित्यिक नहीं है। लेकिन सुझाव देती रहती हैं।
प्र- संसद में रहते हुए दुनिया जहान के मुद्दे आपके आस-पास हैं फिर रोमांस को ही क्यों चुना।
उ- रोमांस हमेशा से मेरा प्रिय विषय रहा है। मुझे राजनीति में कभी कोई दिलचस्पी नही रही, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि मैं सिर्फ रोमांस पर ही लिखता हूं। मैंने आदिवासियों पर भी लिखा है, आतंक पर लिखने का विचार है और भी कई विषय हैं जिन पर लिखने की सोच रहा हूं।
प्र- आजकल पापुलर लिटरेचर का ट्रेंड है और आप भी बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं ?
उ- देखिए, एक लेखक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसका पाठक कौन है? आप किसके लिए लिख रहे हैं। जैसे मेरा पाठक युवा वर्ग है जो चेतन भगत को पढ़ना पसंद करता है, रोमेंटिक कहानियां पढ़ना चाहता और इस तरह की किताबें सिर्फ युवा ही नहीं पढ़ते बल्कि सभी वर्ग के लोग पढ़ते हैं। लोगों तक आपकी बात पहुंचे यही मेरा उदेश्य है।
प्र- बिहार पर लिखने के लिए कभी नहीं सोचा? खासकर आप मिथिला से हैं और हमेशा से मैथिली एक समृद्ध संस्कृति रही है।
उ- जी, बिहार और बिहार की संस्कृति को कैसे अनदेखा किया जा सकता है। पूरी कोशिश है कि इस पर जल्द लिखूं।
प्र- कुछ अलग जो आप करना चाह रहे हों, लेखन के अलावा।
उ- बिहार में बच्चों में, युवा पीढ़ी में बहुत संभावनाएं हैं। यह पीढ़ी बहुत कुछ कर सकती है लेकिन उन्हे कोई दिशा निर्देश या मौका नहीं मिलता जिसकी वजह से वह पिछड़ जाते हैं। मैं ऐसे लोगों के लिए कुछ करना चाहता हूं। एक मंच बनाना चह्ता हूँ पढ़ने और लेखने को प्रोत्सहित करने के लिए। मैं इस पर काम भी कर रहा हूँ।
प्र- एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के बारे में क्या सोचते हैं आप? आपकी किताब के बारे में भी कहा गया कि यह किताब एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर को दर्शाती है।
उ- मैं इसे गलत मानता हूं, देखिए जिस दिन दो लोंगो को अपने रिश्तों में दूरी नजर आने लगे उस दिन ईमांदारी से अलग हो जाना चाहिए ना कि रिश्तों के नाम पर धोखे की चादर ओढ़ कर उन्हें खुद से लपेटे रखना चाहिए।
प्र- आपको अपनी किताब के लिए कैसा रिस्पांस मिला है पाठकों से?
उ- जी, बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है पाठकों से, नित नए पाठक जुड़ रहे हैं अपनी बातें शेयर कर रहे हैं। किताब दूर दूर तक पढ़ी जा रही है। अंग्रेजी की किताब पर ऐसी प्रतिक्रिया के चलते ही मैंने इसका हिन्दी अनुवाद करने की सोची है।
प्र- नए रायटर के लिए कुछ कहना चाहेंगे ।
उ- मैं अभी खुद भी नया हूं, लेकिन अपने अनुभव के हिसाब से कहना चाहूंगा कि आप बिना झिझक लिखिये , हर किसी में लिखने की संभावना होती है और उसे व्यक्त करना चाहिए।
प्र- सुना है आपकी नोवेल पर फिल्म भी बनने वाली है।
उ- जी, अभी प्रक्रिया में है।