माधवराव सप्रे के 146वें जन्मदिवस पर साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित माधवराव सप्रे रचना-संचयन पुस्तक का लोकार्पण समारोह साहित्य अकादेमी दिल्ली के सभाकक्ष में हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति अच्युतानंद मिश्र एवं विशिष्ट अतिथि कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं वर्तमान में इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी थे। पुस्तक के संपादक विजयदत्त श्रीधर ने संपादकीय वक्तव्य प्रस्तुत किया। अध्यक्षीय वक्तव्य साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने और स्वागत भाषण साहित्य अकादेमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव द्वारा दिया गया।
मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए अच्युतानंद मिश्र ने कहा कि माधवराव सप्रे का दौर नैतिकता के सबसे उजले स्तर का दौर था। उस समय की पत्रकारिता और साहित्य में ये गुण स्पष्टतः देखे जा सकते है। देश और राष्ट्रभाषा हिंदी के विकास के लिए सभी एकजुट थे और नए से नए माध्यमों एवं व्यक्तियों की खोज निरंतर जारी थी। माधवराव सप्रे ने भी माखनलाल चतुर्वेदी, सेठ गोविंद दास और द्वारिका प्रसाद मिश्र जैसी उत्कृष्ट प्रतिभाओं को पहचाना और उन्हें आगे बढ़ाया। आगे उन्होंने कहा कि हिंदी का जो वर्तमान स्वरूप है उसके निर्माण में उस समय की पत्रकारिता और साहित्य का बेहद महत्त्वपूर्ण योगदान है। उस समय के अधिकतर साहित्यकार पत्रकारिता और संपादन से जुड़े थे तो कई संपादक श्रेष्ठतम् साहित्य की रचना कर रहे थे। माधवराव सप्रे जी का नाम भी इस कड़ी में सम्मान के साथ लिया जा सकता है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में सच्चिदानंद जोशी ने माधवराव सप्रे के अनुवाद साहित्य और उनके द्वारा निर्मित विभिन्न संस्थाओं के बारे में जानकारी दी। उन्होंने उनके सांस्कृतिक चिंतन की विविधता को भी रेखांकित किया। उन्होंने विजयदत्त श्रीधर और उनके द्वारा संस्थापित माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान को बधाई देते हुए कहा कि उन्हीं के प्रयासों से माधवराव सप्रे के कार्य एवं उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों को आज का साहित्य समाज समझ पा रहा है।
अपने अध्यक्षीय भाषण में साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि माधवराव सप्रे भारतीय नवजागरण के पुरोध संपादक, साहित्यकार रहे है। प्रखर संपादक के रूप में उनकी भूमिका लोक प्रहरी की रही है और सुधी साहित्यकार के रूप में लोक शिक्षक की। कोशकार और अनुवादक के रूप में उन्होंने हिंदी भाषा को समृद्ध किया है। वे उच्च कोटि के कवि, कुशल निबंधकार, प्रखर चिंतक, अप्रतिम वक्ता और दृढ़ स्वतंत्रता सेनानी के रूप में प्रतिष्ठित हुए। साहित्य अकादेमी को उनके रचना-संचयन को प्रकाशित करने पर अत्यधिक हर्ष है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में सभी का स्वागत करते हुए साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने कहा कि ‘‘साहित्य अकादेमी श्रेष्ठतम साहित्य को प्रकाशित करने के लिए प्रतिबद्ध है और भारतीय साहित्य के विकास में जिन लोगों की भी भूमिका महत्त्वपूर्ण है उनकी रचनाओं को प्रकाशित करना अकादेमी के लिए हमेशा हर्ष का विषय होता है।