नई दिल्ली।
भारत को अपने पड़ोस में एक और देश से सुरक्षा पर चुनौती मिल सकती है। मालदीव ने 26 अटॉल में से एक फाफू को सऊदी अरब को बेचने का फैसला किया है। हालांकि सरकार के फैसले का विरोध भी शुरू हो चुका है। मालदीव में पहले जमीन बेचने को गद्दारी माना जाता था था। इसके लिए मौत की सजा दी जाती थी। विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार के इस कदम से वहाबी विचारधारा को और मजबूत होने का मौका मिलेगा, जिससे मालदीव में आतंकवाद का प्रचार-प्रसार हो सकता है।
2015 में मालदीव सरकार ने एक फैसला किया जिसके तहत विदेशी नागरिक जमीन खरीद सकते हैं। मालदीव इंडियन ओशन में पड़ोसी है, लिहाजा इस फैसले से भारत के सामने सिक्युरिटी से जुड़ी एक नई चुनौती खड़ी हो सकती है। मालदीव के विपक्ष का कहना है कि इस फैसले के बाद यहां वहाबी सोच बढ़ेगी और देश के स्कूल मदरसों में बदल जाएंगे। मालदीव की अपोजिशन मालदीवियन डेमोक्रैटिक पार्टी (एमडीपी) के हवाले से यह जानकारी दी गई है।
एमडीपी ने कहा है कि देश के 26 आइलैंड में से एक फाफू को सऊदी अरब को बेचने का फैसला खतरनाक साबित हो सकता है। पार्टी का मानना है कि इससे देश में वहाबी सोच को बढ़ावा मिलेगा।
सीरिया में लड़ रहे दूसरे देश के लड़ाकों में मालदीव की बड़ी हिस्सेदारी है। सऊदी अरब के किंग सलमान बिन अब्दुल अजीज अल सऊद जल्द ही मालदीव दौरे पर जाने वाले हैं। एमडीपी के सदस्य और पूर्व विदेश मंत्री अहमद नसीम ने कहा कि सरकार ने यह जानना भी जरूरी नहीं समझा कि लोग इस फैसले पर क्या सोचते हैं।
एमडीपी के मुताबिक, “सऊदी अरब मालदीव में 300 छात्रों को स्कॉलरशिप देता है। यहां की 70% आबादी वहाबी पंथ अपना चुकी है। प्रेसिडेंट अब्दुल्ला यामीन सऊदी अरब से इस्लामिक टीचर्स लाना चाहते हैं। फैसला स्कूलों को मदरसों में बदल देगा।”
मालदीव इकलौता ऐसा देश है, जहां जाने से नरेंद्र मोदी पीएम बनने के बाद से अब तक परहेज करते नजर आए हैं। भारत मालदीव के अंदरूनी मामलों से खुद को अलग रखने की कोशिश करता रहा है। हालांकि, अब भारत को मालदीव पर कोई साफ रुख तय करना होगा, क्योंकि वहां अगले साल चुनाव हो सकते हैं।
वहाबी सुन्नी मुस्लिम हैं, जिन्हें काफी कट्टर माना जाता है। सऊदी अरब के नज्द शहर के अब्दुल वहाब नज्दी ने 17वीं शताब्दी में वहाबी पंथ की बुनियाद डाली थी। भारत में भी वहाबी विचारधारा को मानने वाले लोग हैं। उत्तर प्रदेश में सहारनपुर जिले के देवबंद में इसका मुख्यालय है। इसलिए यहां वहाबियों को देवबंदी कहा जाता है। भारत में वहाबियों को तब्लीगी जमात के नाम से भी जाना जाता है।