सुनील वर्मा।
महाराष्ट्र और ओडिशा के निगम चुनाव में भाजपा की करिश्माई जीत और फिर उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी की आंधी में मिले प्रचंड बहुमत ने दिल्ली में भाजपा के हौसले बुलंद कर दिए हैं। दस साल से दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) पर राज कर रही भाजपा में इन चुनावों से पहले तक सत्ता विरोधी लहर से निराशा दिख रही थी। लेकिन मोदी बयार ने पार्टी में फिर से जोेश भर दिया है और पार्टी एमसीडी चुनाव में पूरे दमखम से डट गई है। मगर 23 अप्रैल को होने वाला एमसीडी चुनाव इस बार भाजपा के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि इससे पहले तक भाजपा का मुकाबला मुख्य रूप से कांग्रेस से ही होता था। इस बार इन दोनों में सीधी टक्कर नहीं है बल्कि सत्ताधारी आम आदमी पार्टी और योगेंद्र यादव व प्रशांत भूषण की स्वराज इंडिया भी इस लड़ाई में शरीक है।
पिछले निगम चुनाव, उसके बाद हुए दो विधानसभा चुनावों से लेकर 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त से हाशिये पर पहुंच चुकी कांग्रेस में इस बार एमसीडी चुनाव को लेकर गजब का उत्साह दिख रहा है। उसे लग रहा है कि दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार और 10 साल से एमसीडी पर काबिज भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का फायदा मिलेगा। यही वजह है कि कांग्रेस में इस बार टिकट को लेकर सबसे ज्यादा मारामारी है। वहीं भाजपा ने सत्ता विरोधी लहर से बचने के लिए अपने मौजूदा पार्षदों और उनके किसी रिश्तेदार को टिकट न देने का फैसला किया है। जबकि आम आदमी पार्टी पहली बार एमसीडी चुनाव लड़ रही है। पार्टी को पंजाब में वो सफलता नहीं मिली जिसकी उसे उम्मीद थी लेकिन राज्य में पहली बार में ही मुख्य विपक्षी पार्टी बनने से उसके भी हौसले बुलंद हैं। अरविंद केजरीवाल अपनी शैली में ‘आप’ के पक्ष में माहौल बनाने के लिए जोरदार तरीके से सक्रिय हैं। एक साल पहले हुए एमसीडी उप चुनाव में जिस तरह ‘आप’ को सफलता मिली थी उससे भी पार्टी के हौसले बुलंद हैं। लेकिन स्वराज इंडिया ने इन तीनों दलों के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है।
आम आदमी पार्टी का साथ छोड़कर निकले नामचीन लोगों द्वारा नवगठित पार्टी ‘स्वराज इंडिया’ ने सभी सीटों पर ताल ठोक कर उनकी राह में कांटे बिछा दिए हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से जुडेÞ युवाओं और महिलाओं को जिस तरह एमसीडी चुनाव का चेहरा बनाया है वो निगम चुनाव की तस्वीर को पलट सकता है। स्वराज इंडिया चुनाव प्रचार और डोर टू डोर कैंपेनिंग में फिलवक्त तक सबसे आगे दिख रही है। एमसीडी चुनाव में शहर की साफ-सफाई इस बार सबसे बड़ा मुद्दा है। दस साल तक निगम पर काबिज रहने के बावजूद भाजपा दिल्ली को साफ रखने के मूल उद्देश्य में नाकामयाब रही है। भाजपा के शासन में ही ऐसा पहली बार हुआ कि सफाई कर्मचारियों ने वेतन न मिलने के कारण छह बार बेमियादी हड़ताल की और दिल्ली कूड़ाघर जैसी दिखने लगी। हालांकि इस हड़ताल के लिए आप शासित दिल्ली सरकार व भाजपा शासित निगम में आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा। दूसरे शहरों की तुलना में सबसे अधिक जागरूक रहने वाली दिल्ली की जनता अब एमसीडी चुनाव में तय कर देगी कि बेहाल हुई दिल्ली का असली गुनाहगार कौन है?
एमसीडी की घटती ताकत
दिल्ली नगर निगम टोक्यो के बाद दुनिया का सबसे बड़ा स्थानीय निकाय है। अप्रैल 2007 के चुनाव में भाजपा को कुल 272 में से 168 सीटें मिली थीं। इसके बाद 2012 में एकीकृत निगम को तीन हिस्सों में बांट दिया गया। उस चुनाव में 272 वार्डों में से 153 पर भाजपा ने जीत दर्ज की। कांग्रेस को 78, बसपा को 15 और राकांपा को 6 वार्ड में जीत मिली। भाजपा ने पूर्वी और उत्तरी निगम में निर्णायक जीत दर्ज की थी जबकि दक्षिणी निगम में वह सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी और निर्दलीय व अन्य के साथ मिलकर सत्ता संभाली। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि जब से दिल्ली को राज्य का दर्जा मिला उसके बाद से किसी भी सरकार ने एमसीडी को ज्यादा अधिकार देने या मजबूत बनाने की पहल नहीं की बल्कि हमेशा निगम को पूरी तरह दिल्ली सरकार के अधीन करने की ही कोशिश की गई। दिल्ली में चाहे भाजपा की सरकार रही हो या कांग्रेस की, सभी ने निगमों के अधिकार कम ही किए और पानी, बिजली, परिवहन, सीवर आदि विभाग अपने अधीन किए।
दिल्ली के तीनों निगमों का सालाना बजट करीब 12 हजार करोड़ रुपये है। इसमें से सात हजार करोड़ से अधिक की रकम केवल वेतन पर ही खर्च हो जाती है। बाकी रकम साफ-सफाई, स्ट्रीट लाइट, गलियों की मरम्मत, नाले व नालियों की सफाई, एमसीडी संचालित स्कूल और डिस्पेंसरियों पर खर्च होती है। एमसीडी को पार्किंग के ठेकों, हाउस टैक्स, टोल टैक्स व संपत्ति कर से मोटी आमदनी होती है। इसके बावजूद न तो शहर की सफाई ठीक से होती है न ही दूसरे काम। एमसीडी चुनाव 23 अप्रैल को है और 26 अप्रैल को मतगणना होगी। उम्मीदवारों को चुनाव में 5 लाख 75 हजार रुपये खर्च करने की सीमा है। 42 वार्ड उत्तर, 45 वार्ड दक्षिण, 27 वार्ड पूर्वी नगर निगम के महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। एमसीडी में कुल 1 करोड़ 32 लाख वोटर हैं और इस बार 14 हजार पोलिंग बूथ बनाए गए हैं जो पिछली बार से एक हजार ज्यादा है।
भाजपा का दांव
हाल में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल करने वाली भाजपा ने एमसीडी चुनाव में नया सियासी दांव खेल दिया है। पार्टी ने एमसीडी के निवर्तमान पार्षदों में से किसी को टिकट न देने का फैसला किया है और नए चेहरों को उतारने का दांव खेला है। इस घोषणा से पार्टी के मौजूदा पार्षद ही नहीं विरोधी दल भी हैरान हैं। दरअसल, भाजपा सत्ता विरोधी लहर में कोई जोखिम मोल नहीं लेना चाहती। इसलिए उसने यह कदम उठाया है। जाहिर है भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी के इस फैसले में पार्टी हाईकमान की मर्जी शामिल है। पार्षदों को टिकट न देने के फैसले का ऐलान होते ही चौतरफा विरोध शुरू हो गया है। भले ही पार्टी इस दांव को तुरुप का इक्का प्रचारित करने में जुटी हो लेकिन इससे पार्टी के कई कद्दावर स्थानीय नेताओं को घर बैठना होगा। पार्टी में भितरघात होने की भी पूरी आशंका है। दरअसल, इसकी बड़ी वजह यह भी है कि दिल्ली में भाजपा के कई नेता ऐसे हैं जो सालों से सिर्फ एमसीडी की सियासत ही कर रहे हैं। इसके चलते उनकी अपने इलाकों में अच्छी खासी पैठ है। ऐसे लोगों को चुनाव न लड़ने का मौका मिलने की स्थिति में वे विरोधियों के साथ मिलकर भितरघात कर सकते हैं। मीडिया से संवाद की जिम्मेदारी संभाल रहे दिल्ली भाजपा के नेता आदित्य झा कहते हैं, ‘इस प्रयोग से पार्टी को बड़ा लाभ मिलेगा। सालों से एमसीडी चुनाव का टिकट मिलने का इंतजार कर रहे कर्मठ कार्यकर्ताओं को अवसर मिलेगा। साथ ही पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने प्रत्येक बूथ के लिए पांच कार्यकर्ताओं यानि ‘पंच परमेश्वर’ रणनीति तैयार कर चुनावी लड़ाई को भाजपा की तरफ कर दिया है।’
जानकारों का कहना है कि परिसीमन और आरक्षण के बाद भाजपा के सौ पार्षदों की सीटें तो स्वत: खत्म हो गई थीं। जबकि खराब रिपोर्ट कार्ड से बाकी पार्षदों में से 32 का टिकट कटने की चर्चा थी। बाकी को भी पार्टी ने इसलिए टिकट न देने का फैसला किया ताकि सत्ता विरोधी लहर के आरोपों से बचा जा सके। पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और दिल्ली के प्रभारी श्याम जाजू कहते हैं, ‘बीजेपी के कार्यकर्ताओं में सबसे ज्यादा उत्साह है, अन्य दलों के कार्यकर्ताओं में अभी से हताशा है इसे दिल्ली वासी साफ देख रहे है ये सीधे तौर पर बीजेपी की विजय का संकेत है क्योंकि पार्टी की जीत में बड़ी भूमिका कार्यकताओं की होती है। इसीलिए हमारा सारा ध्यान कार्यकर्ताओं को एकजुट करने उनका मनोबल बढ़ाने और जनता से उन्हें जोड़ने पर है। हमसे बेहतर बूथ प्रबंधन किसी पार्टी का नहीं है।’ वैसे सत्ता विरोधी लहर के बावजूद पार्टी के ज्यादातर नेताओं को उम्मीद है कि पीएम मोदी की जननायक छवि दिल्ली की सबसे बड़ी इमारत सिविक सेंटर (एमसीडी मुख्यालय) पर पार्टी का झंडा फहराने में मददगार होगी। एमसीडी चुनाव के लिए पार्टी ने केंद्रीय वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण को दक्षिणी दिल्ली नगर निगम, केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री संजीव बालियान को उत्तरी दिल्ली नगर निगम और पीएमओ में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह को पूर्वी दिल्ली नगर निगम का प्रभार भी सौंपा है। पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय सहस्रबुद्धे को इस पूरी समिति का जिम्मा दिया गया गया है। उनके अलावा मशहूर महिला पहलवान बहनों गीता और बबीता फोगाट और पूर्वांचल के मतदाताओं को लुभाने के लिए भोजपुरी अभिनेता रवि किशन को प्रचार में उतारा जा रहा है। लेकिन चुनावी प्रक्रिया के बीच दिल्ली के बवाना से आप विधायक वेद प्रकाश के बीजेपी में शामिल होंने के बाद तो विपक्ष के इस प्रचार की हवा भी निकलती दिख रही है कि बीजेपी के खिलाफ एमसीडी में सत्ता विरोधी लहर है।
बागियों को कांग्रेस से आस
कांग्रेस नेता भाजपा और आम आदमी पार्टी की हर रणनीति पर बारीकी से नजर रख रहे हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन पिछले डेढ़ साल से निगम चुनाव की तैयारी में जुटे हैं। मौजूदा पार्षदों का टिकट कटने से भाजपा में मची खलबली ने कांग्रेस को भाजपा में सेंधमारी का मौका दे दिया है। टिकट से वंचित भाजपा के ज्यादातर पार्षद कांग्रेस के संपर्क में बताए जा रहे हैं और टिकट की जुगाड़ में हैं। संभवत: इसी कारण कांग्रेस टिकटों की घोषणा में देरी कर रही है। आम आदमी पार्टी 248 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर चुकी है इसलिए भाजपा के बागियों को अब कांग्रेस से ही आस है। लेकिन कांग्रेस के लिए ये संकट जरूर होगा कि अपने लोगों को नजरअंदाज कर वह उन भाजपा पार्षदों को टिकट कैसे दे जिन्हें अब तक वो भ्रष्ट बताती रही है। दिल्ली कांग्रेस की प्रवक्ता शर्मिष्ठा मुखर्जी का कहना है, ‘हम उन लोगों को गले कैसे लगा सकते हैं जिनका उनकी पार्टी ने भ्रष्ट बताकर टिकट काटा हो?’
आप का दावा
आम आदमी पार्टी दिल्ली में पहली बार सभी 272 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। पार्टी के प्रदेश संयोजक दिलीप पांडेय निगम चुनाव को लेकर भाजपा पर हमला करते हुए कहते हैं, ‘पिछले 20 साल में भाजपा ने दिल्ली के विभिन्न नगर निगमों में जो भ्रष्टाचार किया है उसके लिए उन्हें मुंह छुपाने के लिए जगह नहीं मिल रही। इसीलिए उसने पार्षदों का टिकट काटा है। इसका मतलब भाजपा घबरा गई है।’ आप ने 248 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। लेकिन हैरानी की बात है कि कांग्रेस को छोड़कर जो अल्पसंख्यक समाज पार्टी के साथ जुड़ा था उनमें से सिर्फ 19 को ही उम्मीदवार बनाया गया है। इससे अल्पसंंख्यक समुदाय में बेहद नाराजगी है और ये नाराजगी दिखाई भी देने लगी है। ‘आप’ से जुडेÞ कुछ मुस्लिम नेता दिल्ली कांंग्रेस के मुखिया अजय माकन से गुपचुप मुलाकात भी कर रहे हैं। दिल्ली सरकार ने ‘पानी के बिल पूरी तरह माफ और बिजली बिल हाफ’ करके जनता को खुश किया था। अब केजरीवाल ने एमसीडी में जीत मिलने पर प्रापर्टी टैक्स माफ करने का एलान कर दिया है। जिस पर कांग्रेस से लेकर बीजेपर तक में खलबली मच गई है और इसे बड़ा झांसा बता रहे हैं। लेकिन दोनों पार्टियों को ये नहीं भूलना चाहिए कि एमसीडी में वोट डालने वाले सबसे बडेÞ तबके को बिजली और पानी का सबसे ज्यादा लाभ मिल रहा है और ये वायदा भी उसे प्रभावित कर सकता है।
स्वराज इंडिया ने फंसाया पेंच
इस बार एमसीडी चुनाव में भाजपा, कांग्रेस और आप की राह उतनी आसान नहीं होगी जितना वो समझ रही है। इस बार मुकाबला चतुष्कोणीय हो सकता है। योगेंद्र यादव नीत स्वराज इंडिया ने सभी 272 वार्डों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। पार्टी ने युवाओं और महिलाओं को विशेष तरजीह दी है। इनमें से ज्यादातर उम्मीदवार ऐसे हैं जो जनलोकपाल आंदोलन में सक्रिय कार्यकर्ता थे। स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव कहते हैं, ‘स्वराज इंडिया का गठन पारंपरिक राजनीतिक तौर तरीकों से अलग हटकर एक नया बदलाव लाने के लिए किया गया है। भ्रष्टाचार और कुशासन का रूप ले चुकी एमसीडी में सिर्फ स्वराज इंडिया ही एक साफ सुथरा राजनीतिक विकल्प हो सकता है।’ स्वराज इंडिया के संचालक मंंडल से लेकर कार्यकर्ता तक में ज्यादातर लोग जनलोकपाल आंदोलन और ‘आप’ से निकले हुए लोग हैं। इसके चलते इसका सबसे बड़ा नुकसान ‘आप’ को होंने की आशंका है।
क्षेत्रीय दल बिगाड़ेंगे बड़ों का खेल
हमेशा की तरह बसपा, सपा और राकांपा समेत दूसरी क्षेत्रीय पार्टियां भी निगम की सत्ता पर नजर गड़ाए हुए हैंजो बड़े दलों का खेल बिगाड़ सकती हैं। केंद्र में भाजपा की सहयोगी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और लोक जनशक्ति पार्टी ने भी ज्यादातर सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। जेडीयू भी सभी वार्डों से अपने उम्मीदवार उतारने जा रही है। बिहार की इन तीन क्षेत्रीय पार्टियों के एमसीडी चुनाव में उतरने से पूर्वांचलियों के वोट बंटने के पूरे आसार हैं। कुल मिलाकर स्थानीय निकाय के इस छोटे चुनाव में बड़ा घमासान होने की पूरी उम्मीद है। ऐसे में दिल्ली की सबसे ऊंची इमारत सिविक सेंटर पर कब्जा जमाना किसी के लिए आसान नहीं होगा।