300 पार मोदी सरकार : ओपिनियन पोल

लोकसभा चुनाव 2019 आजाद भारत के इतिहास का सबसे जटिल और महत्वपूर्ण चुनाव साबित होने जा रहा है. 2014 के चुनाव से पहले न तो किसी सर्वे और न किसी राजनीतिक विश्लेषक ने यह अनुमान लगाया था कि भारतीय जनता पार्टी अपने ही दम पर बहुमत ला सकती है. चुनाव नतीजों ने राजनीति शास्त्र के कई बुनियादी मापदंडों और सिद्धांतों को ध्वस्त कर दिया. लेकिन, पिछले पांच सालों में भारतीय राजनीति अजीबोगरीब मोड़ पर आ खड़ी हुई. पहली बार आजाद भारत की राजनीति के केंद्र में एक व्यक्ति विराजमान हो गया. देश के लगभग हर राज्य में विधानसभा चुनाव हो या फिर पंचायत का चुनाव, सब कुछ मोदी बनाम मोदी विरोधी बन गया. राजनीति के साथ-साथ समाज और परिवार भी मोदी समर्थक और मोदी विरोधी में बंट गया. यह वर्तमान राजनीति की हकीकत है कि प्रधानमंत्री मोदी राजनीति के केंद्र बिंदु हैं और हर राजनीतिक घटना उनके इर्द-गिर्द ही घूम रही है.

2014 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने एक के बाद एक, कई राज्यों को जीतकर विपक्ष को सकते में डाल दिया. भारतीय जनता पार्टी उन राज्यों में भी चुनाव जीत गई, जहां पहले उसका नामोनिशान नहीं था. त्रिपुरा, असम और हरियाणा में भाजपा सरकार का बनना एक आश्चर्यजनक घटना है. उत्तर प्रदेश में जिस हिसाब से भाजपा ने जीत दर्ज की, वह भी हैरतअंगेज है. इसके अलावा महाराष्ट्र, गुजरात, झारखंड, उत्तराखंड, हिमाचल और गोवा में भाजपा को मिली जीत से विपक्षी खेमे में हडक़ंप मच गया. पिछले पांच सालों में भाजपा की सबसे बड़ी हार दिल्ली में हुई, जहां उसके वोट तो बढ़े, लेकिन सीटें घट गईं. अरविंद केजरीवाल को इस जीत से काफी ख्याति मिली.

 लेकिन, बिहार में लालू यादव और नीतीश कुमार ने महागठबंधन बनाकर भाजपा को जिस तरह शिकस्त दी, वह भाजपा को हराने का एक मॉडल बन गया. विपक्ष को एक बात समझ में आ गई कि मोदी और शाह की भाजपा वाजपेयी-आडवाणी वाली पार्टी नहीं, बल्कि एक इलेक्शन मशीन है, जिसे कोई भी पार्टी अकेले नहीं हरा सकती. अगर भाजपा को हराना है, तो सारी विपक्षी पार्टियों को एकजुट होना पड़ेगा. यही वजह है कि हर राज्य में भाजपा से निपटने के लिए गठबंधन करना एक मजबूरी बन गया. अपना अस्तित्व बचाने के लिए कल के दुश्मन आज के राजनीतिक हमसफर बन गए. नरेंद्र मोदी को हटाना ही विपक्ष की राजनीति का एकमात्र मकसद बन गया. सवाल यह है कि 2019 के चुनाव में क्या होगा? क्या मोदी फिर से प्रधानमंत्री बनेंगे? वैसे तो इन सवालों के जवाब चुनाव नतीजे आने के बाद ही मिलेंगे, लेकिन ओपिनियन पोस्टने देशव्यापी सर्वे करके जनता का मिजाज भांपने की कोशिश की है, जिसके नतीजे चौंकाने वाले हैं.

नतीजों के विश्लेषण से पहले सर्वे की कार्यप्रणाली और विधि बताना हमारा दायित्व है. ओपिनियन पोस्ट का यह सर्वे 27 फरवरी से ०6 मार्च 2019 के बीच किया गया. इस दौरान हमारी टीमें हर राज्य के विभिन्न लोकसभा क्षेत्रों के मतदाताओं से मिलीं और उनसे विभिन्न मुद्दों से जुड़े सवाल-जवाब किए. मतदाताओं के जवाबों को ही हमने अपने सर्वे के आधारभूत आंकड़ों के रूप में इस्तेमाल किया. इसके अलावा पिछले चुनावों में मतदाताओं के वोटिंग पैटर्न और चुनाव आयोग के आंकड़ों की भी मदद ली गई. सर्वे में सैंपल के लिए हमने मल्टीस्टेज स्ट्रेटीफाइड रैंडम सैंपलिंग तकनीक की मदद ली. हमने इस बात का खास ध्यान रखा कि देश के हर राज्य के सभी इलाकों के मतदाताओं का मिजाज सर्वे में शामिल हो सके. सर्वे के दौरान हर राज्य की महिलाओं, युवाओं, दलितोंआदिवासियों, अल्पसंख्यकों, सवर्ण और पिछड़ा वर्ग आदि की राय जनसंख्या के अनुपात में ली गई. इस सर्वे में हमने देश के हर जोन से कुल 122 लोकसभा क्षेत्रों में 12,200 लोगों से सवाल पूछे. सैंपल का साइज हमने यथासंभव बड़ा रखा, साथ ही डाटा विश्लेषण के लिए सबसे मान्य तकनीक अपनाई, ताकि सर्वे के नतीजे विश्वसनीय और तार्किक हों.

ओपिनियन पोस्ट का सर्व ऐसे वक्त में हुआ, जब भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान में घुसकर आतंकी ठिकानों पर बम बरसाए और पुलवामा हमले का बदला लिया. मोदी सरकार जहां इस सैन्य कार्रवाई का श्रेय लेने में जुट गई, वहीं विपक्ष ने फिर से हवाई हमले का सुबूत मांगना शुरू कर दिया. लोगों का मानना है कि पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई की वजह से भाजपा को चुनाव में फायदा पहुंचेगा. पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई के पहले जितने भी सर्वे हुए, उनमें भाजपा और एनडीए की सीटें कम होती नजर आईं. इसकी वजह को अलग-अलग राज्यों में, खासकर उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव एवं मायावती के गठबंधन और तीन बड़े राज्यों में भाजपा की हार से जोड़ा गया. सवाल यह है कि एयर स्ट्राइक के बाद क्या लोगों के मूड में कुछ बदलाव आया? क्या यह कार्रवाई चुनाव में भाजपा को फायदा पहुंचाएगी? ये सवाल ऐसे हैं, जिनके जवाब जानना जरूरी है. ओपिनियन पोस्ट के सर्वे में इन सवालों पर भी सवाल किए गए हैं. साथ ही चुनाव से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर हमने लोगों की राय ली है.

 जम्मू-कश्मीर एवं हिमाचल प्रदेश

बदलती परिस्थितियों के कारण जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक स्थितियां भी बदल गई हैं. सर्वे के दौरान जम्मू में जहां भाजपा का समर्थन ज्यादा दिखाई दिया, वहीं घाटी में लोग नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के बीच बंटे नजर आए. घाटी में कांग्रेस को भी समर्थन मिलता दिखाई दिया, लेकिन यहां भाजपा को समर्थन देने वालों की संख्या नगण्य नजर आई. पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान पर किए गए हवाई हमले का असर जम्मू में ज्यादा दिखाई दिया. लद्दाख से मिलीजुली प्रतिक्रिया देखने को मिली, लेकिन आतंकवाद के खिलाफ केंद्र सरकार की हालिया कार्रवाई के कारण क्षेत्र में भाजपा का वोट बढ़ता दिखाई दे रहा है. पूरे प्रदेश से मिले आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश की छह लोकसभा सीटों में से जम्मू की दो और लद्दाख की एक सीट भाजपा को जाती नजर आ रही हैं, जबकि घाटी में नेशनल कांफ्रेंस को दो और कांग्रेस को एक सीट मिलती नजर आ रही हैं. भाजपा के साथ गठबंधन करके सरकार बनाने के कारण पीडीपी के प्रति लोगों ने नाराजगी जताई और इसलिए पीडीपी को एक भी सीट मिलती नहीं दिखाई दे रही है.

जम्मू-कश्मीर के बाद जब सर्वे टीम पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश पहुंची, तो वहां का माहौल एकतरफा दिखाई पड़ा. ज्यादातर लोगों ने केंद्र में भाजपा की सरकार बनने का समर्थन किया, तो कुछ लोग राज्य की भाजपा सरकार के प्रति नाराज दिखाई दिए. सर्वे के दौरान किसानों को दी गई सहायता, आयुष्मान भारत योजना, उज्जवला योजना आदि केंद्रीय योजनाओं का फायदा मिलने की बात सामने आई, जिससे ज्यादातर लोगों ने भाजपा को फिर से मौका देने पर सहमति जताई. प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर कांग्रेस के राहुल गांधी को करीब १५ प्रतिशत लोगों ने पसंद किया, जबकि ८० प्रतिशत लोगों की पसंद नरेंद्र मोदी रहे. प्रदेश की सभी चार सीटें भाजपा को जाती दिखाई दे रही हैं.

पंजाब

आगामी लोकसभा चुनाव के बारे में लोगों की राय जानने के लिए ओपिनियन पोस्ट की सर्वे टीम कृषि प्रधान प्रदेश पंजाब पहुंची. इस प्रदेश में लोगों का झुकाव कांग्रेस की ओर ज्यादा दिखाई दिया. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने कांग्रेस के पक्ष में समर्थन पैदा करने में बड़ी भूमिका निभाई है. सर्वे के दौरान जुटाए गए आंकड़ों की बात करें, तो करीब 41 प्रतिशत लोगों ने कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने की बात कही, जबकि भाजपा को केवल 15 प्रतिशत लोगों का समर्थन मिला. पंजाब में भाजपा के सहयोगी अकाली दल को करीब 20 प्रतिशत लोगों का समर्थन मिला, जबकि हाल में पंजाब में अपनी स्थिति मजबूत करने वाली आम आदमी पार्टी को केवल 13 प्रतिशत लोगों ने अपना समर्थन दिया. प्रदेश में आम आदमी पार्टी का आधार खिसकता दिखाई पड़ रहा है, क्योंकि लोग पार्टी के अंदर की गुटबाजी और विपक्ष के तौर पर मजबूती के साथ सरकार की नीतियों का विरोध न करने से नाराज दिखाई पड़े. अलग-अलग लोकसभा सीटों के मतदाताओं से की गई बातचीत के आंकड़ों के आधार पर आम आदमी पार्टी को वहां वोट मिलता तो दिखाई पड़ रहा है, लेकिन सीट मिलने की संभावना बहुत कम है. प्रदेश में कांग्रेस को सबसे अधिक यानी 08 सीटें मिलने की संभावना है, तो अकाली दल को तीन एवं भाजपा को दो सीटें मिलने की संभावना नजर आ रही है. आम आदमी पार्टी को 13 प्रतिशत वोट मिलने के बावजूद एक भी सीट मिलने की संभावना नहीं है.

हरियाणा एवं चंडीगढ़

भाजपा शासित इस राज्य में लोकसभा चुनाव 2019 के लिए सर्वे करने पहुंची ओपिनियन पोस्ट टीम को यहां भाजपा को बढ़त मिलने की संभावनाएं ज्यादा नजर आईं. जाट आरक्षण के मुद्दे पर स्थानीय लोग ज्यादा बात नहीं करना चाहते, लेकिन किसानों की समस्याओं के समाधान और पाकिस्तान पर हवाई हमले के सवाल पर लोगों का उत्साह देखने लायक था. मोदी सरकार ने हाल में किसानों के खाते में छह हजार रुपये सालाना सीधे स्थानांतरित करने की जो घोषणा की है, उसका फायदा लोगों को स्पष्ट तौर पर मिलता दिखाई दिया. किसानों के लिए मोदी सरकार की योजनाओं से लोग खुश नजर आए और भाजपा को फिर से सरकार में लाने के लिए अपना समर्थन देने की बात कही. बातचीत के आधार पर मिले आंकड़ों के अनुसार, 37 प्रतिशत लोगों ने आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को समर्थन देने की बात कही, जबकि 23 प्रतिशत लोगों ने कांग्रेस को समर्थन देना स्वीकार किया. लोकदल को 21 प्रतिशत लोगों का समर्थन प्राप्त हुआ, जबकि हरियाणा में अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत करने की उम्मीद रखने वाली आम आदमी पार्टी को 08 प्रतिशत लोगों का समर्थन हासिल हुआ. किसानों और युवाओं ने भाजपा को ज्यादा समर्थन दिया, जबकि इंडियन नेशनल लोकदल में पडऩे वाली फूट के कारण उसका समर्थन बंटता नजर आया. मध्य वर्ग का ठीकठाक समर्थन कांग्रेस को मिलता नजर आ रहा है, जबकि युवाओं के बीच भी राहुल गांधी का सामान्य समर्थन दिखा. लोगों की राय के अनुसार, प्रदेश की दस लोकसभा सीटों में से 08 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी की जीत के प्रबल आसार हैं, जबकि कांग्रेस एवं इनोलो को एक-एक सीट मिलने की संभावना दिखाई पड़ रही है. आम आदमी पार्टी को कुछ लोग पसंद तो कर रहे हैं, लेकिन उसे कोई सीट मिलने की संभावना नहीं है.

पंजाब और हरियाणा की राजधानी चंडीगढ़ में भाजपा का समर्थन ज्यादा है. पिछली बार की तरह इस बार भी चंडीगढ़ की सीट भाजपा के खाते में जाएगी. यहां भी पाकिस्तान के खिलाफ मोदी सरकार की कार्रवाई का अच्छा-खासा असर दिखाई पड़ रहा है और इस मुद्दे पर बात करने के दौरान लोगों ने मोदी सरकार की सराहना की. चंडीगढ़ में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को वोट तो मिलेंगे, लेकिन जीत के लायक समर्थन मिलने की संभावना बहुत कम है.

दिल्ली

दिल्ली में राजनीतिक स्थितियां बदली नजर आ रही हैं. ओपिनियन पोस्ट सर्वे टीम ने लोगों की राय जानने के दौरान पाया कि लोकसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी की स्थिति पहले की अपेक्षा कमजोर है. अरविंद केजरीवाल के कुछ कार्यों की लोगों ने सराहना तो की, लेकिन उनके बयानों और केंद्र सरकार से विवादों को लेकर लोगों की राय बहुत अलग नजर आई. ज्यादातर लोगों ने इसे अपनी नाकामी छिपाने के लिए एक हथियार बनाना बताया. शीला दीक्षित को फिर से दिल्ली की सक्रिय राजनीति में आने का फायदा कांग्रेस को मिलता दिखाई पड़ रहा है और लोगों ने शीला की वापसी के कारण कांग्रेस को मजबूती मिलने की बात कही. हालांकि, दिल्ली में भाजपा का आधार भी पहले से काफी अधिक बढ़ा है. पाकिस्तान के खिलाफ मोदी सरकार की कार्रवाई को लेकर लोग उत्साहित दिखे और इसलिए वे नरेंद्र मोदी को एक और मौका देना चाहते हैं. सर्वे के आंकड़ों के अनुसार, यहां भाजपा को 51 प्रतिशत लोगों ने अपना समर्थन दिया, जबकि 22 प्रतिशत लोग कांग्रेस को सत्ता में लाने के पक्ष में नजर आए. आम आदमी पार्टी को 20 प्रतिशत लोगों ने अपना समर्थन दिया. जहां तक सीटों का सवाल है, तो दिल्ली में भाजपा अपना पुराना प्रदर्शन दोहराने वाली है और सभी सात सीटें भाजपा के खाते में जाने की संभावना है.

राजस्थान

हाल में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद प्रदेश में भाजपा की स्थिति काफी कमजोर मानी जा रही थी, लेकिन ओपिनियन पोस्ट सर्वे टीम ने जब लोगों से बात की, तो यहां की स्थिति उलट ही दिखाई पड़ी. आगामी लोकसभा चुनाव के संदर्भ में लोगों की राय बदली हुई नजर आई. किसानों के खाते में सीधे छह हजार रुपये स्थानांतरित करने की योजना और गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के फैसले से लोगों का नजरिया बदला हुआ दिखाई दिया. जोधपुर, जयपुर, बाड़मेर, बीकानेर, जैसलमेर आदि कई क्षेत्रों में दस प्रतिशत कोटे का काफी असर दिखाई दिया. सवर्ण आरक्षण की मांग करने वाले कई संगठनों के कार्यकर्ताओं ने सरकार के इस फैसले का समर्थन किया और भाजपा को वोट देने की बात कही. इसके अलावा पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई (हवाई हमले) के बाद वर्तमान सरकार को युवाओं का अधिक समर्थन मिलता दिखाई दिया. सर्वे टीम ने जितने युवाओं के साथ बातचीत की, उनमें 70 प्रतिशत ने मोदी को दूसरा मौका दिए जाने का समर्थन किया. ओपिनियन पोस्ट टीम ने जितने लोगों से बात की, उनमें 51 प्रतिशत लोगों ने भाजपा का समर्थन किया, जबकि 36 प्रतिशत लोगों ने कांग्रेस को समर्थन देने की बात कही. इसके अलावा 13 प्रतिशत लोगों ने इसमें रुचि नहीं दिखाई. राजस्थान में लोकसभा की 25 सीटों के लिए किए गए सर्वे में भाजपा को 22 सीटें मिलने की संभावना है. पिछले लोकसभा चुनाव में यहां की सारी सीटों पर भाजपा की जीत हुई थी, लेकिन इस बार तीन सीटें कांग्रेस के खाते में जाती हुई दिखाई दे रही हैं. सर्वे टीम को कुछ ऐसे लोग भी मिले, जिन्होंने विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस का समर्थन किया था, लेकिन लोकसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा को वोट देने की बात कही.

उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश में भाजपा को बड़ा झटका लगने वाला है. ओपिनियन पोस्ट सर्वे टीम को मिले आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में भाजपा को 31 सीटों का नुकसान होता दिखाई पड़ रहा है. बसपा-सपा गठबंधन के कारण प्रदेश की राजनीतिक परिस्थितियां बदली हुई नजर आईं. सर्वे टीम को गठबंधन से भाजपा को नुकसान होने की बात कहने वाले कई लोग मिले, जिनका मानना था कि भाजपा के लिए अपना पुराना प्रदर्शन दोहराना मुश्किल होगा. हालांकि, सवर्ण आरक्षण का फायदा भाजपा को मिलता दिखाई दिया. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को नुकसान होने की उम्मीद जताई जा रही है. जाट और मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में भी महागठबंधन के समर्थन में ज्यादा लोग दिखाई दिए. राष्ट्रीय लोकदल के साथ बसपा-सपा का गठबंधन होने के बाद जाट वोट भी इसे ही मिलने वाला है. पिछले लोकसभा चुनाव में जाट समुदाय का एकमुश्त वोट पाने वाली भाजपा को इस बार मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. जाट समुदाय के कुछ लोगों ने गठबंधन को वोट देने की बात कही, तो कुछ लोग अजीत सिंह के फैसले से नाराज नजर आए. अजीत सिंह के फैसले से नाराज लोगों ने भाजपा के साथ जाने की बात कही. पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी भाजपा को थोड़ा नुकसान होने की संभावना है. हालांकि, इस नए राजनीतिक समीकरण के बावजूद सवर्ण आरक्षण, उज्जवला योजना, किसानों को राहत देने के लिए प्रति साल छह हजार रुपये देने की मोदी सरकार की योजना का फायदा भाजपा को मिलता दिखाई दिया. पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान पर किए गए हवाई हमले का फायदा भी भाजपा को मिलता दिखाई दे रहा है. गठबंधन को समर्थन करने वाले लोग भी मोदी सरकार के इस फैसले का समर्थन करते दिखाई दिए. सर्वे में जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, भाजपा को जहां 42 प्रतिशत वोटों के साथ 43 सीटें मिलने की संभावना दिखाई पड़ रही है, तो सपा-बसपा-रालोद गठबंधन को 40 प्रतिशत वोटों के साथ 35 सीटें मिलने की संभावना है. कांग्रेस का समर्थन थोड़ा बढ़ा है, लेकिन यह सीटों में तब्दील होता नहीं दिखाई पड़ रहा है और उसे सात प्रतिशत वोट और दो सीटें मिलने की संभावना है.

बिहार

पिछले कुछ महीनों से बिहार की राजनीतिक स्थितियां बदल गई हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा का साथ देने वाली रालोसपा और हम अब राजद के साथ हैं, तो विधानसभा चुनाव के दौरान राजद के साथ गठबंधन करने वाले नीतीश कुमार ने फिर से भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया है. कांग्रेस भी अपनी स्थिति मजबूत करने में जुटी हुई है, ताकि महागठबंधन में सीटों के बंटवारे के दौरान उसे ज्यादा तवज्जो दी जाए. इस बदली परिस्थिति में चुनाव परिणाम को लेकर भी अगल-अलग कयास लगाए जा रहे हैं. ऐसे में ओपिनियन पोस्ट की टीम बिहार में सर्वे के लिए गई, तो उसे आश्चर्यजनक परिणाम देखने को मिले. जदयू के साथ फिर से गठबंधन होने के बाद भाजपा को राज्य में फायदा होता दिखाई दिया. सवर्ण आरक्षण के कारण भाजपा का समर्थन बढ़ता दिखाई पड़ रहा है और नीतीश कुमार के कामकाज से भी लोग संतुष्ट दिखाई पड़े, जिसका फायदा इस गठबंधन को मिलने की संभावना बढ़ती दिखाई पड़ रही है. किसानों को दिए जाने वाले छह हजार रुपये का असर स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रहा है. दो हजार रुपये की पहली किस्त जिन लोगों के खाते में आ गई है, उन्हें अगली किस्त का इंतजार है और इसलिए वे भाजपा को केंद्र में अगला मौका देना चाहते हैं. मनरेगा मजदूरों का पैसा सीधे उनके खाते में भेजे जाने का भी असर दिखाई दिया. राफेल मुद्दे पर लोगों की राय ज्यादा बंटी हुई दिखाई दी. इस सवाल पर ६० प्रतिशत लोगों ने मोदी सरकार पर लगे आरोप को गलत बताया, लेकिन ३० प्रतिशत लोगों ने आरोप को सही बताया और दस प्रतिशत लोगों ने इसमें रुचि नहीं दिखाई. सर्वे टीम को मिले आंकड़ों के अनुसार, भाजपा-जदयू गठबंधन को 46 प्रतिशत लोगों का समर्थन मिला है, जबकि राजद गठबंधन को 41 प्रतिशत लोगों ने अपना समर्थन दिया. सर्वे में 13 प्रतिशत लोगों ने कुछ भी बोलने से मना कर दिया. भाजपा-जदयू गठबंधन को इस बार 33 सीटें मिल सकती हैं, जबकि राजद गठबंधन को सात सीटों पर संतोष करना पड़ सकता है.

पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल में इस बार सबसे ज्यादा नुकसान माकपा और कांग्रेस को होने वाला है. ममता बनर्जी को भी भारतीय जनता पार्टी से बड़ी चुनौती मिलने की संभावना है. इस बार लोकसभा चुनाव में टीएमसी का वोट शेयर और सीटें, दोनों कम होने जा रहे हैं. राज्य में भाजपा के आक्रामक चुनाव प्रचार ने तृणमूल कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगा दी है. असम में एनआरसी लागू किए जाने के बाद पश्चिम बंगाल में भी इसकी सुगबुगाहट हो रही है, जिसका फायदा भाजपा उठा रही है. पिछले कुछ महीनों में टीएमसी के कई नेता भाजपा में शामिल हुए. ऐसी राजनीतिक परिस्थिति में ओपिनियन पोस्ट की सर्वे टीम ने पश्चिम बंगाल के अलग-अलग हिस्सों के लोगों से बात की. यहां लोकसभा चुनाव में भी ममता बनर्जी की पार्टी को समर्थन देने वाले लोगों की संख्या अधिक दिखाई पड़ी. एक तबका दीदीको प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर भी देखता है और उसका कहना है कि भाजपा की हार के बाद बनने वाली राजनीतिक परिस्थितियों में ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है. सर्वे के दौरान जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल के 36 प्रतिशत लोगों ने ममता बनर्जी को समर्थन दिया, जबकि 28 प्रतिशत लोगों ने भाजपा को समर्थन देने की बात कही. वाम दलों के गठबंधन को 23 प्रतिशत लोगों का समर्थन मिला, जबकि 11 प्रतिशत लोग कांग्रेस के पक्ष में दिखे. राज्य की 42 सीटों में से 28 सीटें टीएमसी को मिलने की संभावना है. भारतीय जनता पार्टी को इस बार 10 सीटें मिल सकती हैं, जबकि तीन सीटें वाम दलों के खाते में जाती दिखाई पड़ रही हैं. ममता बनर्जी ने कांग्रेस को काफी कमजोर कर दिया है और उसे केवल एक सीट मिलने की संभावना है.

ओडिशा

तटवर्ती राज्य ओडिशा में इस बार मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को झटका लगने वाला है. आगामी लोकसभा चुनाव में बीजद की सीटें कम होने की संभावना दिखाई दे रही है. साल 2000 से प्रदेश की सत्ता पर काबिज नवीन पटनायक को इस बार लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव में भी बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है. सर्वे के दौरान नवीन पटनायक के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का भी असर दिखाई पड़ा. राज्य सरकार के बारे में भी लोगों की राय बहुत अच्छी नहीं रही, जबकि केंद्र के प्रति लोगों के बीच अच्छी राय दिखी. ओडिशा में विधानसभा चुनाव भी लोकसभा के साथ होने वाला है. भाजपा ने पिछले कुछ महीनों से ओडिशा पर ज्यादा ध्यान दिया है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने वहां रैलियां भी की हैं. ओपिनियन पोस्ट सर्वे टीम द्वारा ओडिशा के अलग-अलग क्षेत्रों से जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में नवीन पटनायक को ज्यादा समर्थन मिला, लेकिन पहले की अपेक्षा उन्हें कम सीटें मिलने की संभावना है. लोकसभा चुनाव में ओडिशा की 21 में से 11 सीटें बीजद को मिलने की संभावना है. पिछले लोकसभा चुनाव में उसे 20 सीटें मिली थीं, जबकि भाजपा को केवल एक सीट से संतोष करना पड़ा था. इस बार भाजपा को 10 सीटें मिल सकती हैं. आंकड़ों के अनुसार, बीजद को 40 प्रतिशत, जबकि भाजपा को 36 प्रतिशत लोगों का समर्थन हासिल हुआ. 21 प्रतिशत लोगों ने कांग्रेस के प्रति समर्थन जताया, लेकिन उसे एक भी सीट मिलने की संभावना नहीं है.

मध्य प्रदेश

हाल में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई, लेकिन भाजपा का आधार बहुत ज्यादा कमजोर नहीं हुआ. विधानसभा चुनाव में भाजपा को कांग्रेस के बराबर वोट मिले हैं. कांग्रेस सरकार के बनने के बावजूद लोकसभा चुनाव में भाजपा को अधिक सीटें मिलने की संभावना है. लोकसभा और विधानसभा चुनाव के मिजाज में अंतर होता है. सर्वे के दौरान कई लोग ऐसे मिले, जिन्होंने विधानसभा चुनाव के दौरान तो कांग्रेस के लिए मतदान किया था, लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव में वे भाजपा को वोट देना चाहते हैं. गरीब सवर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण दिए जाने को लेकर भी एक वर्ग उत्साहित नजर आया और उसका झुकाव भाजपा की ओर दिखाई दिया. किसानों को छह हजार रुपये सालाना देने की केंद्रीय घोषणा का असर भी दिखाई पड़ा. इस योजना का लाभ पाने वाले किसानों ने भाजपा को समर्थन करने की बात कही, लेकिन कुछ ने यह योजना सीमित लाभ वाली करार दी. उनका मानना था कि इतनी रकम से किसानों का भला होने वाला नहीं है. पाकिस्तान पर किए गए हवाई हमले का असर भी दिखाई दिया. सर्वे के दौरान युवाओं ने इस फैसले का समर्थन किया, साथ ही मोदी को एक और मौका देने के पक्ष में अपना मत दिया. विपक्ष के पास प्रधानमंत्री पद के लिए कोई मजबूत उम्मीदवार न होने का असर भी यहां देखने को मिला. जब प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार के बारे में लोगों से राय ली गई, तो मोदी के पक्ष में हां कहने वालों की संख्या ज्यादा थी. सर्वे में जुटाए गए आंकड़ों के विश्लेषण के मुताबिक, 51 प्रतिशत लोगों ने भाजपा, जबकि 38 प्रतिशत लोगों ने कांग्रेस को समर्थन देने की बात कही. 11 प्रतिशत लोगों ने अपनी राय जाहिर करने से इंकार कर दिया. प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से 25 सीटें भाजपा को, जबकि चार सीटें कांग्रेस को मिलने की संभावना है.

झारखंड

राज्य में भाजपा के खिलाफ विपक्ष एक मंच पर आने की कोशिश में है. कुछ दलों के बीच समझौता हो गया है और कुछ के साथ अभी गठबंधन होना बाकी है. राज्य का मिजाज बदल रहा है, लेकिन बदले हुए राजनीतिक समीकरणों के बावजूद भाजपा की स्थिति मजबूत दिखाई दी. ओपिनियन पोस्ट सर्वे टीम ने यहां अलग-अलग क्षेत्रों में लोगों की राय जानी. शहरी क्षेत्रों में भाजपा के पक्ष में ज्यादा समर्थन दिखाई दिया, तो आदिवासी क्षेत्रों में महागठबंधन को पसंद करने वालों की संख्या अधिक थी. राज्य में सत्ता विरोधी लहर का भी असर लोकसभा चुनाव पर पडऩे वाला है. झारखंड की भाजपा सरकार के कामकाज की लोगों ने सराहना की, लेकिन विभिन्न योजनाओं से पहुंचने वाले लाभ को लेकर अलग-अलग मत देखने को मिले. कुछ लोगों ने जमकर तारीफ की, लेकिन एक वर्ग इसके खिलाफ नजर आया. ओपिनियन पोस्ट सर्वे टीम द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, झारखंड में भाजपा को 40 प्रतिशत, जबकि महागठबंधन को 35 प्रतिशत लोगों ने अपना समर्थन दिया. 25 प्रतिशत लोगों ने अपनी राय जाहिर करने से इंकार कर दिया, क्योंकि वे अभी इसके लिए खुद को पूरी तरह तैयार नहीं कर पाए थे. उन्होंने चुनाव के दौरान बनने वाली स्थितियों के अनुसार अपना समर्थन देने की बात कही. राज्य की 14 लोकसभा सीटों में से आठ सीटें भाजपा, तो छह सीटें महागठबंधन के खाते में जा सकती हैं. लेकिन, जिस तरह लोगों ने भाजपा के समर्थन और विरोध में मतदान करने की बात कही, उससे माना जा सकता है कि अगर महागठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर कोई विवाद पैदा होता है और कांग्रेस, राजद, झामुमो, आजसू आदि अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं, तो भाजपा के विरोध में वोट डालने वालों के बीच संशय की स्थिति पैदा हो जाएगी, जिसका फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिल सकता है.

छत्तीसगढ़

हाल में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी हार के बाद नक्सलवाद से प्रभावित इस राज्य की राजनीतिक स्थितियां भी बदल गई हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में करीब 49 प्रतिशत वोट पाकर 10 सीटें जीतने वाली भाजपा को आगामी लोकसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ेगा. पिछली बार 38 प्रतिशत वोट पाकर केवल एक लोकसभा सीट जीतने वाली कांग्रेस को आगामी लोकसभा चुनाव में बड़ा फायदा होने की संभावना है. हालांकि, किसानों के खाते में सीधे पैसा देने वाली योजना से भाजपा को लाभ मिलता दिखाई दे रहा है, लेकिन राज्य सरकार की कृषि ऋ ण माफी योजना का फायदा कांग्रेस को मिलने की संभावना है. राज्य में किसानों के वोट भाजपा और कांग्रेस के बीच बंटे हुए हैं और एकतरफा वोट पडऩे की संभावना बहुत कम है. पाकिस्तान के खिलाफ मोदी सरकार की कार्रवाई से भाजपा को युवाओं का समर्थन मिलता नजर आ रहा है. सर्वे में जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, राज्य में भाजपा को 41 प्रतिशत वोट और पांच सीटें मिलने की संभावना है, तो कांग्रेस को 46 प्रतिशत वोट और छह सीटें मिल सकती हैं.

उत्तराखंड 

पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में भाजपा के लिए अपना पुराना प्रदर्शन दोहराना मुश्किल हो सकता है. पिछले विधानसभा चुनाव में भारी जीत हासिल करने वाली भाजपा को यहां कांग्रेस से कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी पांच सीटों पर जीत हासिल की थी और उसे 55 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस को 34 प्रतिशत. तीन साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के वोटों में केवल दो प्रतिशत का इजाफा हुआ, लेकिन सीटों की संख्या काफी बढ़ गई. सर्वे में जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को 49 प्रतिशत और कांग्रेस को 41 प्रतिशत लोगों का समर्थन हासिल हो सकता है. भाजपा को चार और कांग्रेस को एक सीट मिल सकती है. युवाओं के बीच भाजपा को अधिक समर्थन मिलता दिखाई पड़ा. सवर्णों की अत्यधिक आबादी वाले इस राज्य में दस प्रतिशत आरक्षण का भरपूर फायदा भाजपा को मिलने वाला है. राज्य सरकार से नाराज सवर्ण भी मोदी सरकार को दूसरा मौका देना चाहते हैं.

असम

पूर्वोत्तर के इस राज्य में राजनीतिक सरगर्मी काफी तेज है. पहली बार यहां भाजपा की सरकार बनी और उसके बाद एनआरसी के मुद्दे ने सियासी मिजाज बदल दिया. असम में बाहरी बनाम असमी का मुद्दा बहुत पुराना रहा है. सर्वानंद सोनोवाल सरकार ने असम समझौता और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) जैसे मुद्दे भुनाए हैं, जिसका फायदा भाजपा को मिलता दिखाई पड़ रहा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 37 प्रतिशत वोट मिले थे और राज्य की 14 में से सात सीटों पर जीत हासिल हुई थी. कांग्रेस को करीब 30 प्रतिशत और एआईयूडीएफ को 14 प्रतिशत वोट मिले थे. दोनों पार्टियों को तीन-तीन सीटें मिली थीं. इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपनी स्थिति मजबूत करते हुए 126 विधानसभा सीटों में से 60 पर जीत हासिल की. भाजपा ने असम गण परिषद, नगालैंड पीपुल्स फ्रंट और दो अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन किया था. असम गण परिषद को 14 और नगालैंड पीपुल्स फ्रंट को 12 सीटें मिली थीं. सर्वे टीम द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, असम में भाजपा को आगामी लोकसभा चुनाव में 42 प्रतिशत वोट और दस सीटें मिलने की संभावना है, वहीं कांग्रेस एवं एआईयूडीएफ को चार सीटें मिल सकती हैं. कांग्रेस और एआईयूडीएफ के बीच गठबंधन न हो पाने की स्थिति में भाजपा की सीटें बढ़ भी सकती हैं.

पूर्वोत्तर के सात राज्य, 11 सीटें

पूर्वोत्तर की राजनीति हमेशा से अलग तरह की रही है. हाल के कुछ सालों में भाजपा ने क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत की है. त्रिपुरा में वाम दलों को हराकर भाजपा ने सरकार बनाई. 2016 में भाजपा ने नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस का गठन किया, जिसमें पूर्वोत्तर भारत के अलग-अलग राज्यों की गैर कांग्रेसी पार्टियों को शामिल किया गया. स्थानीय मुद्दों को ज्यादा तवज्जो दिए जाने के कारण इन राज्यों में राष्ट्रीय मुद्दों का बहुत ज्यादा असर नहीं होता है. हालांकि, चीन के साथ भारत के संबंधों का प्रभाव यहां जरूर पड़ता है. असम के अलावा पूर्वोत्तर के सात राज्यों की 11 सीटों में से आठ पर भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों की जीत होने की संभावना है. त्रिपुरा की दोनों सीटों पर भाजपा जीत सकती है, जबकि मणिपुर की दो सीटों में से एक सीट पर भाजपा और एक पर कांग्रेस की जीत होने की संभावना है. मिजोरम की सीट कांग्रेस के खाते में जा सकती है, तो मेघालय की दोनों सीटें एनडीए के खाते में जाएंगी. यहां सत्तारूढ़ एनपीपी अभी भाजपा के साथ गठबंधन में है. अरुणाचल प्रदेश की दोनों सीटें भाजपा के खाते में जाने की संभावना है. पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान अरुणाचल प्रदेश में भाजपा को 47 प्रतिशत और कांग्रेस को 43 प्रतिशत वोट मिले थे और दोनों ने एक-एक सीट पर जीत हासिल की थी. सिक्किम की एकमात्र सीट सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट के पास ही रहने की संभावना है. एसडीएफ अभी भाजपा के नेतृत्व वाले नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस का हिस्सा है. नगालैंड की एकमात्र लोकसभा सीट भी एनडीए के खाते में जाने वाली है. २०१८ में नगालैंड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एनडीएफ) से विद्रोह कर नगालैंड डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) में शामिल होने वाले नेप्यू रियो ने यहां भाजपा के समर्थन से सरकार बनाई थी. रियो 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीएफ के टिकट पर लड़े और जीते थे. मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने सांसदी से इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद हुए उपचुनाव में उनकी पार्टी के टेकहो येपथोमी ने जीत हासिल की. इस बार भी यह सीट एनडीपीपी को ही जाती दिख रही है.

केरल

ओपिनियन पोस्ट के सर्वे के मुताबिक, केरल में मुख्य मुकाबला हमेशा की तरह सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ (लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ (यूनाइटेड डेमोके्रटिक फ्रंट) के बीच होता दिख रहा है. राज्य में कोई बहुत बड़ा बदलाव होता नहीं दिख रहा है. दरअसल, राज्य में एलडीएफ और यूडीएफ बारी-बारी से सत्ता में आते-जाते रहते हैं. लोकसभा चुनावों में भी यही पैटर्न हमेशा देखने को मिलता रहा है. इस बार चूंकि एलडीएफ सत्ता में है और सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर उसे काफी विरोध का सामना करना पड़ा, इसलिए अटकलें लगाई जा रही थीं कि उसे कुछ सीटों का नुकसान हो सकता है. हमारे सर्वे में भी उसे नुकसान होता दिख रहा है. जहां तक भाजपा का सवाल है, तो उसे पिछले विधानसभा चुनाव में केवल एक सीट मिली थी, लेकिन 11 प्रतिशत वोटों के साथ पार्टी ने राज्य में अपनी मजबूत मौजूदगी का एहसास दिला दिया था. सबरीमाला मामले के बाद भाजपा की पूरी कोशिश है कि वह गैर लेफ्ट वोटों में सेंध लगाए. उसे कामयाबी भी मिलती दिख रही है. 2019 के आम चुनाव में उसके वोट प्रतिशत में जहां चार प्रतिशत का उछाल मिलता दिख रहा है, वहीं पहली बार राज्य में दो सीटों के साथ उसका खाता भी खुलता दिख रहा है. सर्जिकल स्ट्राइक की वजह से लोगों की सोच में कोई बड़ा बदलाव होता नहीं दिख रहा है, क्योंकि यहां प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में राहुल गांधी का पलड़ा मोदी पर भारी दिख रहा है. लेकिन, फस्र्ट टाइम वोटर्स के बीच मोदी अधिक लोकप्रिय होते दिख रहे हैं.

तमिलनाडु

तमिलनाडु में भी केरल की तरह राज्य की बड़ी पार्टियों डीएमके और एआईडीएमके गठबंधनों के बीच मुकाबला है. ओपिनियन पोस्ट सर्वे के मुताबिक, इस मुकाबले में डीएमके गठबंधन का पलड़ा भारी दिख रहा है. उसे राज्य की 39 लोकसभा सीटों में से 22 सीटें मिलती दिख रही हैं. लेकिन, एआईडीएमके गठबंधन भी बहुत पीछे नहीं है, उसे 17 सीटें मिलती दिख रही हैं. दोनों गठबंधनों के वोट शेयर में दो प्रतिशत का फर्क दिख रहा है. एआईडीएमके गठबंधन 39 प्रतिशत लोगों की पहली पसंद है, जबकि 41 प्रतिशत लोग डीएमके गठबंधन के पक्ष में दिख रहे हैं. हालांकि, जब ओपिनियन पोस्ट टीम सर्वे कर रही थी, तब तक दोनों गठबंधनों के घटकों के बीच सीटों का बंटवारा नहीं हुआ था, लेकिन कौन पार्टी किस गठबंधन के साथ जुड़ेगी, यह अंदाजा पहले से ही था. इसलिए ओपिनियन पोस्ट अपने सर्वे में जिस नतीजे पर पहुंचा है, उसमें किसी बदलाव की गुंजाइश बहुत कम है. जहां तक सर्जिकल स्ट्राइक का सवाल है, तो स्थानीय मतदाताओं पर उसका बहुत अधिक प्रभाव नहीं दिख रहा है. राज्य में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नरेंद्र मोदी के मुकाबले  राहुल गांधी को अधिक लोग पसंद करते नजर आ रहे हैं. हमारे सर्वे में भाजपा लिए अच्छी खबर यह है कि लोकसभा चुनाव में पहली बार उसका खाता खुलता नजर आ रहा है. दरअसल, राज्य में डीएमके और एआईडीएमके बारी-बारी से सत्ता में आती-जाती रहती हैं. केवल पिछला विधानसभा चुनाव अपवाद था, जब सत्ता परिवर्तन नहीं हो सका. इस बीच राज्य की राजनीति में कुछ बड़े परिवर्तन भी हुए हैं, जिनका प्रभाव इस चुनाव पर भी पड़ेगा.

कर्नाटक

कर्नाटक में लोकसभा की कुल 28 सीटें हैं. इस राज्य में मुकाबला कांग्रेस-जनता दल सेकुलर गठबंधन और भाजपा के बीच है. ओपिनियन पोस्ट सर्वे में भाजपा और कांग्रेस-जनता दल सेकुलर गठबंधन की बीच कांटे का मुकाबला होता दिख रहा है. भाजपा को 13 और कांग्रेस गठबंधन को 15 सीटें मिल रही हैं. जहां तक वोट शेयर का सवाल है, तो भाजपा को 47 और कांग्रेस गठबंधन को 46 प्रतिशत वोट मिल रहे हैं. गौर करने वाली बात यह कि भाजपा को वोट अधिक मिलने की संभावना है, लेकिन सीटें कम मिलती दिख रही हैं. वजह यह कि कुछ क्षेत्रों में उसकी जीत का अंतर अधिक रहने की संभावना है, खास तौर पर तटीय कर्नाटक और सेंट्रल कर्नाटक में. हैदराबाद कर्नाटक, बॉम्बे कर्नाटक एवं बंगलौर कर्नाटक में भाजपा और कांग्रेस गठबंधन में बराबरी का मुकाबला होता दिख रहा है. जबकि मैसूरू कर्नाटक में कांग्रेस गठबंधन का पलड़ा भारी दिख रहा है. जहां तक सर्जिकल स्ट्राइक का सवाल है, तो कर्नाटक में इसका प्रभाव दिख रहा है. हालांकि, कांग्रेस गठबंधन को यहां अधिक सीटें मिल रही हैं, लेकिन प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी लोगों की पहली पसंद बनते दिख रहे हैं. यही नहीं, अगर हाल में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर को मिले वोट आपस में मिला दिए जाएं, तो यह आंकड़ा 56 प्रतिशत पर जाकर ठहरता है, जबकि भाजपा को केवल 36 प्रतिशत वोट मिले थे. ओपिनियन पोस्ट सर्वे के मुताबिक, भाजपा को तकरीबन 11 प्रतिशत का लाभ मिलता दिख रहा है. कांग्रेस के वोट शेयर में गिरावट की एक वजह कर्नाटक कांग्रेस में चल रही आंतरिक कलह हो सकती है.

तेलंगाना

ओपिनियन पोस्ट सर्वे के मुताबिक, तेलंगाना में कोई बहुत बड़ा उलटफेर होता नहीं दिख रहा है. पिछले दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में के चंद्रशेखर राव की टीआरएस (तेलंगाना राष्ट्रीय समिति) को भारी बहुमत मिला था. हमारे सर्वे में भी टीआरएस अपना विधानसभा वाला प्रदर्शन दोहराती नजर आ रही है. उसे राज्य की 17 में से 14 सीटें मिलने की संभावना है. लेकिन हमारे सर्वे के मुताबिक,राज्य में भाजपा कांग्रेस के वोट शेयर में सेंध लगाती नजर आ रही है. विधानसभा चुनाव में भाजपा को सात प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि हमारे सर्वे में उसे 14 प्रतिशत वोट मिलते दिख रहे हैं. टीआरएस के वोट शेयर में भी एक प्रतिशत की कमी दिख रही है, लेकिन उसे बहुत अधिक नुकसान नहीं हो रहा है. भाजपा और कांग्रेस को एक-एक सीट मिलती दिख रही है. ध्यान देने वाली बात यह भी है कि कांग्रेस और तेलुगु देशम पार्टी के गठबंधन के बावजूद भाजपा कांग्रेस के वोटों में सेंध लगाती नजर आ रही है. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एमआईएम हैदराबाद में अपना रुसूख कायम किए हुए है.

आंध्र प्रदेश

आंध्र प्रदेश की सत्ता पर काबिज तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) राज्य विभाजन के बाद से ही विशेष राज्य के दर्जे की मांग करती रही है. इसी मांग के चलते वह एनडीए से बाहर हो गई और इसी मांग के साथ वह चुनाव मैदान में उतरने वाली है. इस बार टीडीपी अपनी पुरानी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के साथ गठबंधन पर हां और न के बीच उलझी हुई है. लेकिन, इस गठबंधन से इतर ओपिनियन पोस्ट सर्वे में उसके लिए बुरी खबर है. लोकसभा चुनाव में उसकी सीटों में बड़ी कमी आती दिख रही है. इस बार उसे जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस से न केवल सख्त चुनौती मिल रही है, बल्कि वह उसे धोबी पछाड़ देती दिखाई दे रही है. 2014 के आम चुनाव में टीडीपी को 15, वाईएसआर कांग्रेस को आठ और भाजपा को दो सीटें मिली थीं. लेकिन ओपिनियन पोस्ट सर्वे में इस बार टीडीपी का आंकड़ा चार तक सिमटता दिख रहा है, वहीं वाईएसआर कांग्रेस को 19 सीटें मिलती दिख रही हैं. पिछली बार भाजपा ने टीडीपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और उसे दो सीटें मिली थीं. इस बार भी वह अपना पुराना प्रदर्शन दोहराती नजर आ रही है. जहां तक कांग्रेस का सवाल है, तो 2014 में उसका खाता भी नहीं खुला था. हमारे सर्वे के मुताबिक, इस बार भी कांग्रेस को एक सीट नहीं मिल रही है.

महाराष्ट्र

महाराष्ट्र में भाजपा सत्ता में है. 2014 के चुनाव में इस राज्य ने एनडीए के पक्ष में मतदान किया था. यहां यूपीए का लगभग सफाया हो गया था. राज्य की 48 सीटों में से एनडीए गठबंधन को 41 सीटें मिली थीं, जबकि यूपीए को केवल छह सीटें मिली थीं. लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. गौर करने वाली बात यह है कि विधानसभा के लिए राज्य की सभी बड़ी पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. बाद में शिवसेना के सहयोग से भाजपा पहली बार राज्य में सरकार बनाने में सफल हुई थी. लेकिन, पिछले कुछ सालों में राज्य में किसानों के कई बड़े आंदोलन हुए और जातीय हिंसा की कई वारदातें हुईं. ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा था कि यहां एनडीए को नुकसान हो सकता है, लेकिन हमारे ओपिनियन पोस्ट सर्वे में एनडीए को केवल तीन सीटों का नुकसान होता दिख रहा है. यहां एनडीए को 47 प्रतिशत वोटों के साथ लोकसभा की 38 सीटें मिलती दिख रही हैं. जहां तक कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन या महागठबंधन का सवाल है, तो उसे 36 प्रतिशत वोटों के साथ केवल 10 सीटों पर संतोष करना पड़ सकता है. एनडीए के इस प्रदर्शन के लिए एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा सबसे अहम नजर आता है. राज्य के तकरीबन 60 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे मोदी का निर्णायक नेतृत्व देखते हुए अपना वोट डालेंगे.

गुजरात

गुजरात प्रधानमंत्री मोदी का गृह राज्य है, इसलिए यह उनके लिए प्रतिष्ठा का विषय भी है. 2014 के चुनाव में राज्य ने निर्णायक तौर पर भाजपा के लिए वोट किया था और सभी 26 सीटों पर पार्टी ने विजय का परचम लहराया था. लेकिन, 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक तरह से वापसी करते हुए उसे कड़ी टक्कर दी. वजह यह कि कई वर्ग राज्य सरकार की नीतियों से नाराज थे, खास तौर पर पाटीदार समुदाय, दलित और ओबीसी. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 81 सीटें मिली थीं और भाजपा को 99. पहले कांग्रेस राज्य की कई सीटों पर मुकाबले में थी, लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक के बाद एक बार फिर भाजपा 2014 के नतीजे दोहराती नजर आ रही है. ओपिनियन पोस्ट सर्वे में 56 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे भाजपा को वोट देंगे, जबकि 40 प्रतिशत ने कहा कि वे कांग्रेस को वोट देंगे. इस आधार पर हमारे आकलन में कांग्रेस को 2014 की तरह शून्य मिलता दिख रहा है. हालांकि, कांग्रेस को अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में एक बड़े वर्ग का समर्थन मिल रहा है, लेकिन यह उसे सीट दिलवाने के लिए काफी नहीं है. पिछले विधानसभा चुनाव में गुजरात में लोगों ने कांग्रेस को खुलकर वोट दिए थे, लेकिन अब ग्रामीण क्षेत्रों में नौजवानों का एक बड़ा तबका मोदी के निर्णायक नेतृत्व के प्रति झुकता दिख रहा है, जिसका फायदा भाजपा को मिलने की उम्मीद है.

उक्त सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में भी मतदाताओं का रुझान अपने निकटवर्ती बड़े राज्यों की तरह है. हालांकि, गोवा में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा था, इसलिए उसे उम्मीद थी कि यहां दो में से एक सीट उसे मिल सकती है, लेकिन ओपिनियन पोस्ट सर्वे उसकी उम्मीदों पर ठंडा पानी डालता नजर आ रहा है और दोनों सीटें भाजपा के खाते में जाती दिख रही है.

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