नई दिल्ली। राजनीति के औघड़ माने जाने वाले मुलायम सिंह यादव के उन तमाम फैसलों का विश्लेषण किया जा रहा है, जो ऊपर से पुत्र अखिलेश यादव के खिलाफ लगते हैं लेकिन गहराई में जाने पर वे मुलायम पुत्र के लिए संजीवनी से कम नजर नहीं आते। अचरज की बात यह है कि मुलायम पर कोई पुत्र मोह का आरोप भी नहीं लगा सकता। समाजवादी पार्टी के पूरे विवाद में अमर सिंह को खलनायक की तरह देखा जाता रहा और यह माना जाता रहा कि उन्होंने ही चाचा-भतीजे में आग लगाई है। अखिलेश ने भी इशारा कर दिया था कि किसी बाहरी व्यक्ति को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। बावजूद इसके, अमर सिंह समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बना दिए गए हैं। हालांकि यह भी तय है कि अमर सिंह राज्य में उस सत्ता सुख को नहीं भोग पाएंगे जो मुलायम के मुख्यमंत्री रहते हुए भोग लेते थे।
अंबिकानंद सहाय कहते हैं, “दरअसल मुलायम उन लोगों को कभी नहीं भूलते जो उनके मुश्किल वक्त में साथ दे चुके होते हैं। इसलिए वे अमर सिंह को पार्टी में लाए और अब अहम ज़िम्मेदारी भी सौंपी है।” वरिष्ठ पत्रकार शशिशेखर कहते हैं, “राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता। अमर सिंह नेता जी के भरोसेमंद हैं, जब चुनाव नज़दीक हो तो किसी नए व्यक्ति की जगह भरोसेमंद आदमी ही बेहतर है।” नोबल पुरस्कार विजेता लेखक पर्ल एस बक ने काफी पहले लिखा था कि हर युग में, हर काल में जब युवा और पुरानी पीढ़ी के बीच जंग छिड़ती है तो जीत युवा पीढ़ी की ही होती है, क्योंकि युवा पीढ़ी असंभव टॉस्क न केवल ठान लेती है बल्कि उसे पूरा करके भी दिखाती है। अंबिकानंद सहाय मानते हैं कि पूरे विवाद से आने वाले विधासभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी को नुकसान हो सकता है, लेकिन अखिलेश यादव की छवि को पूरा-पूरा फ़ायदा हुआ है। शशिशेखर कहते हैं, “समाजवादी पार्टी परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। नेता जी सर्वमान्य नेता हैं और उन्होंने अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाया। अब पांच साल पूरे होने वाले हैं, अखिलेश मुकम्मल मुख्यमंत्री के तौर पर उभरे हैं। काम से भी और छवि के लिहाज से भी।”
उत्तर प्रदेश की राजनीति की नब्ज को समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार अंबिकानंद सहाय की नजर में तीन बातें उभर कर समाने आ रही हैं। अखिलेश मुख्यमंत्री बने हुए हैं। उन्हें पार्टी की संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया है। पीडब्ल्यूडी विभाग उन्होंने शिवपाल सिंह यादव को नहीं लौटाया। ये तीनों तथ्य बताते हैं कि अखिलेश यादव इस विवाद में मज़बूत होकर उभरे हैं।” अखिलेश यादव खुले तौर पर मीडिया से कह चुके हैं कि यह उनकी परीक्षा है और उन्हें चुनाव में टिकट देने का हक मिलना चाहिए। यानी प्रदेश अध्यक्ष पद गंवाने का मलाल भी उन्हें है। लेकिन अंबिकानंद सहाय दूसरी बात कहते हैं, “आप देखिए कि लोग क्या देख रहे हैं, भतीजा चाचा से मिलने जाता है, पांव छूकर मिलता है। चाची के पांव छूता है। चचेरे भाई को गले लगाकर मिलता है। इन सबसे अखिलेश की छवि को ही फ़ायदा पहुंचता है।”