नई दिल्ली। इतिहासकारों के अनुसार करीब 780 साल तक पढ़ाई हुई थी। तब बौद्ध धर्म, दर्शन, चिकित्सा, गणित, वास्तु, धातु और अंतरिक्ष विज्ञान की पढ़ाई का यह महत्वपूर्ण केन्द्र माना जाता था। इस सूची में चीन, ईरान और माइक्रोनेशिया के तीन नए स्थलों को भी स्थान दिया गया है। तुर्की के इस्तांबुल में विश्व धरोहर समिति की 40वीं बैठक में इन चार नए स्थलों को इस सूची में शामिल किए जाने की घोषणा की गई। इसके साथ ही विश्व के प्रथम विश्वविद्यालय नालंदा की खोई प्रतिष्ठा को नई ऊंचाई मिल गई।
भारत के संस्कृति मंत्रालय ने ट्वीट किया, ‘बधाई.. नालंदा महाविहार का पुरातत्व स्थल अब विश्व धरोहर स्थल बना। धन्यवाद यूनेस्को, इरिना बोकोवा।’ इरिना बोकोवा यूनेस्को की एशिया क्षेत्र की महानिदेशक हैं।
बढ़ेंगे सैलानी
विश्व धरोहर में शामिल होने के बाद अब पूरे इलाके का विश्वस्तरीय विकास होगा। विश्वस्तरीय सुविधाएं विकसित होंगी। यहां आने वाले सैलानियों की संख्या भी बढ़ेगी। इसके संरक्षण पर अधिक राशि खर्च होंगी और मानव संसाधन भी बढ़ाए जाएंगे। सैलानियों की संख्या बढ़ने पर व्यवसाय तो बढ़ेगा ही रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे।यहां से कम से कम दो किलोमीटर दूरी को बफर जोन घोषित किया गया है। इसके विकास, सुरक्षा व संरक्षण की जिम्मेवारी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और बिहार सरकार की होगी।
कनिंघम ने की थी खोज
नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेषों की खोज अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी। पुरातात्विक और साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर माना जाता है कि नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 450 ईसा के आसपास हुई थी। गुप्त वंश के शासक कुमार गुप्त ने इसकी स्थापना की थी। हर्षवर्द्धन ने भी इसको दान दिया था। हर्षवर्द्धन के बाद पाल शासकों ने भी इसे संरक्षण दिया। न केवल स्थानीय शासक वंशों बल्कि विदेशी शासकों ने भी इसे दान दिया था। इस विश्वविद्यालय का अस्तित्व 12वीं शताब्दी तक बना रहा। इतिहासकारों के अनुसार यहां करीब 780 साल तक पढ़ाई हुई थी। तब बौद्ध धर्म, दर्शन, चिकित्सा, गणित, वास्तु, धातु और अंतरिक्ष विज्ञान की पढ़ाई का यह महत्वपूर्ण केन्द्र माना जाता था लेकिन तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को जला डाला।
कहां है नालंदा के खंडहर
बोधगया से 62 किलोमीटर व पटना से 90 किलोमीटर दक्षिण में 14 हेक्टेयर में फैले हैं विश्वविद्यालय के अवशेष। खुदाई में मिली सभी इमारतों का निर्माण लाल पत्थर से किया गया है। परिसर दक्षिण से उत्तर की ओर बना हुआ है। मठ या विहार इस परिसर की पूर्व दिशा में स्थित थे, जबकि मंदिर या चैत्य पश्चिम दिशा में। इस परिसर की सबसे मुख्य इमारत विहार-एक थी। वर्तमान समय में भी यहां दो मंजिली इमारत है। यह इमारत परिसर के मुख्य आंगन के समीप बनी हुई है। संभवत: यहां ही शिक्षक अपने छात्रों को संबोधित किया करते थे। इस विहार में एक छोटा सा प्रार्थनालय अभी भी सुरक्षित अवस्था में बचा हुआ है। इस प्रार्थनालय में भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा भग्न अवस्था में है।
मंदिर संख्या 3 इस परिसर का सबसे बड़ा मंदिर है। इस मंदिर से समूचे क्षेत्र का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। यह मंदिर कई छोटे-बड़े स्तूपों से घिरा हुआ है। इन सभी स्तूपों में भगवान बुद्ध की मूर्तियां बनी हुई हैं। ये मूर्तियां विभिन्न मुद्राओं में बनी हुई हैं। पांचवी से बारहवीं शताब्दी में नालंदा बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र बन चुका था। सातवीं शताब्दी में ह्वेनसांग भी यहां अध्ययन के लिए आया था। दुनिया के इस पहले आवासीय अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में दुनिया भर से आए 10 हजार छात्र रहकर शिक्षा लेते थे। 2,000 शिक्षक उन्हें दीक्षित करते थे। यहां आने वाले छात्रों में बौद्ध यतियों की संख्या ज्यादा थी।
यहां थी तीन विशाल लाइब्रेरी
प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में तीन लाइब्रेरी थीं। इनके नाम रत्नसागर, रत्नोदधि व रत्नरंजिता थे। माना जाता है जब विश्वविद्यालय में आग लगाई गई तो ये पुस्तकालय छह माह तक जलते रहे थे। इतना ही नहीं, यह भी माना जाता है कि विज्ञान की खोज से संबंधित पुस्तकें विदेशी लेकर चले गए थे।
पिछले साल ही हो गया था रास्ता साफ