सतीश सिंह
जम्मू-कश्मीर के कठुआ सामूहिक बलात्कार कांड का मुख्य आरोपी सिर्फ 15 साल का है लेकिन उसके द्वारा किया गया जुर्म बेहद संगीन है। बीते सालों में नाबालिगों द्वारा बलात्कार के मामलों में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई है। नाबालिगों द्वारा सामूहिक बलात्कार के मामले भी तेजी से सामने आ रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट बताती है कि किशोरों द्वारा किए जा रहे अपराध में लगातार इजाफा हो रहा है। किशोरों के खिलाफ वर्ष 2003 में 33,320 मामले दर्ज किए गए थे जो वर्ष 2014 में बढ़कर 42,566 हो गए। इनमें 16 से 18 साल के बीच के 31,364, 12 से 16 की आयु के 10,534 और 12 साल से कम उम्र के 668 बच्चे गिरफ्तार हुए थे। 12 साल के बच्चों में से एक दर्जन को हत्या जैसे जघन्य अपराध के मामले में गिरफ्तार किया गया था। गंभीर और शर्मनाक तथ्य यह है कि पिछले 10 साल में किशोरों द्वारा बलात्कार के मामलों में 300 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2003 में किशोरों द्वारा बलात्कार के 535 मामले दर्ज किए गए थे जो 2014 में बढ़कर 2,144 हो गए।
किशोरों द्वारा अपराध करने के मामलों में बढ़ोतरी को देखते हुए दिल्ली सरकार जघन्य अपराधों में लिप्त नाबालिगों की सजा की न्यूनतम उम्र सीमा 15 साल करने की मांग कर रही है। हालांकि लोकसभा में किशोर न्याय संशोधन विधेयक 2014 पारित किया गया है जिसमें किशोरों को सजा देने की उम्र सीमा 18 की बजाय 16 साल किया गया है। एनसीआरबी के अनुसार 2012 में किशोरों द्वारा किए गए बलात्कारों की संख्या 2014 में डेढ़ गुना से ज्यादा हो गई। 2014 में दर्ज बलात्कार के 2,144 मामलों में से 1,488 मामलों में बलात्कारियों की उम्र 16 से 18 साल के बीच थी जबकि 2012 में 1,316 किशोरों को बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
भारत में 18 साल से कम उम्र का अपराधी नाबालिग माना जाता है और नाबालिगों पर लगे आरोप की सुनवाई केवल जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में होती है। जघन्य और गंभीर अपराधों के मामले में भी सजा के नाम पर उन्हें अधिकतम तीन साल बाल सुधार गृह में गुजारने की सजा सुनाई जाती है। जबकि बदलते परिवेश में किशोरों द्वारा गंभीर अपराध के मामलों में तेजी से इजाफा हो रहा है। अमेरिका के कई राज्यों में संगीन अपराध करने पर 13 से 15 साल के किशोरों को गंभीर सजा दी जाती है। कुछ राज्यों में तो यह उम्र सीमा महज 10 साल है। यहां बच्चों व किशोरों को उम्र कैद तक की सजा दी जाती है। इंग्लैंड में 18 साल से कम उम्र के अपराधियों को आम अपराधियों की तरह सजा दी जाती है। चीन में 14 से 18 साल के बच्चों का अपराध साबित होने पर उन्हें आम अपराधियों की तरह सजा दी जाती है। हां, उन्हें सजा देने में जरूर थोड़ी रियायत बरती जाती है। फ्रांस में नाबालिग की उम्र 16 साल रखी गई है। सऊदी अरब में बच्चों व किशोर अपराधियों को सजा देने में कोई रियायत नहीं दी जाती है। उन्हें मौत तक की सजा सुनाई जाती है।
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक जून, 2012 में देश में प्रत्येक घंटे दो महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया था जबकि 11 महिलाओं का यौन शोषण किया गया और उनके साथ छेड़खानी की गई थी। अकेले दिल्ली में नवंबर, 2012 तक बलात्कार के कुल 635 मामले विभिन्न थानों में दर्ज किए गए थे। इनमें 94.2 फीसदी बलात्कारी पीड़िता के परिचित थे जबकि 1.2 फीसदी मामलों में आरोपी पीड़िता के पिता या सगे-संबंधी थे। वर्ष 2011 में सबसे अधिक बलात्कार के 3,406 मामले मध्य प्रदेश में दर्ज किए गए थे। इस मामले में दूसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल, तीसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश और चौथे नंबर पर राजस्थान था। वर्ष 2011 में यौन उत्पीड़न व छेड़खानी के सबसे अधिक 42.7 फीसदी मामले आंध्र प्रदेश में दर्ज किए गए। महाराष्ट्र इस मामले में दूसरे नंबर पर था।
पुलिसिया रवैये के चलते बलात्कार पीड़िता आमतौर पर पुलिस स्टेशन जाने से परहेज करती हैं जिससे बलात्कार के अधिकांश मामले पुलिस तक पहुंच ही नहीं पाते हैं। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 और इसकी उप धाराओं के तहत बलात्कारियों को सजा देने का प्रावधान है। वर्तमान कानून के अनुसार आरोपी अगर बलात्कार का दोषी पाया जाता है तो उसे सात साल तक सश्रम कारावास की सजा दी जा सकती है जिसे विशेष परिस्थिति में दस साल तक बढ़ाया जा सकता है। सामूहिक बलात्कार के मामले में कम से कम दस साल की सश्रम कारावास या आजीवन कारावास की सजा दी जा सकती है। मामले में अलग से आर्थिक दंड भी लगाया जा सकता है। आईपीसी की धारा 354 के अंतर्गत यौन शोषण के मामलों में दोषियों को दो साल तक का सश्रम कारावास या आर्थिक दंड या फिर दोनों दिया जा सकता है। आईपीसी की धारा 509 के अंतर्गत इस तरह के मामलों में सजा तो दी जाती है लेकिन वह मामूली एवं नाममात्र है। कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ हो रहे यौन उत्पीड़न को रोकने के संबंध में बना वर्तमान कानून अभी भी प्रभावशाली नहीं है। ऐसे में कहा जा सकता है कि कानून के मौजूदा प्रावधान बलात्कार को रोकने में सक्षम नहीं हैं। बलात्कारियों के मन में कानून का कोई खौफ नहीं है। अदालती कार्रवाई भी इस कदर लचर है कि पीड़ित को न्याय मिलने में सालों लग जाता है। सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार बलात्कार के लगभग 40,000 मामले देश की विभिन्न अदालतों में लंबित हैं।
मौजूदा समय में जद्दोजहद के बाद अगर लकड़ियां जन्म ले भी लेती हैं तो मौका मिलते ही या तो उन्हें मार दिया जाता है या फिर ऐसी स्थिति पैदा कर दी जाती है कि वे खुद मर जाएं। देश में लापरवाही के कारण या देखभाल के अभाव में बालिका शिशु के मरने के तादाद लगातार बढ़ रही है। कुछ राज्यों मसलन राजस्थान, हरियाणा, पंजाब आदि में आज भी लड़कियों को जन्म लेते ही नमक चटाकर मार डालने के मामले प्रकाश में आते रहते हैं। इस वजह से इन राज्यों में लड़कियों की संख्या लड़कों से कम हो गई है। लड़कों की शादी के लिए या सिर्फ बच्चे पैदा करने के लिए बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों से लड़कियां खरीद कर यहां लाई जा रही हैं।
वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में शिक्षित लोगों का प्रतिशत 74 है जिनमें महिलाओं का प्रतिशत 65 है लेकिन हकीकत में वे केवल कागज पर शिक्षित हैं। अधिकांश को सिर्फ अपना नाम ही लिखना आता है। भारत में शिक्षा का अधिकार कानून के जरिये शिक्षा को अनिवार्य बनाया गया है। स्कूलों में खाने-पीने की व्यवस्था की गई है। प्रोत्साहन के तौर पर पैसे दिए जा रहे हैं। छात्राओं को वजीफा दिया जा रहा है, साइकिल बांटी जा रही हैं। बावजूद इसके, बड़ी संख्या में लड़कियां बीच में ही पढ़ाई छोड़ दे रही हैं। स्कूल छोड़ने के कारण चौंकाने वाले हैं। अधिकांश माता-पिता लड़कियों से घर व बाहर का काम कराना चाहते हैं या उनसे छुटकारा पाने के लिए कम उम्र में ही उनकी शादी कर देते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में शादी के नाम पर बच्चियों को बेचा जा रहा है। छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत ने नारी को देवी मां, सहचरी, सखी प्राण कह कर उनके प्रति श्रद्धा-सुमन अर्पित किया था। इसमें दो राय नहीं है कि नारी सृष्टि का आधार है। मगर हमारे देश में आज भी महिलाओं को बराबरी का दर्जा नहीं दिया गया है। वेद-पुराणों में जरूर कहा गया है कि पत्नी के बिना कोई भी शुभ कार्य संपन्न नहीं हो सकता है लेकिन हकीकत में हमारा पुरुषवादी समाज हमेशा से नारी को कमतर मानता आया है। 21वीं सदी में भी उसके साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। पुत्र ही वंश को चला सकता है को मानने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। हमारे देश के ही राज्य मेघालय की खासी जनजाति में वंश कन्या चलाती है। परिवार की मुखिया मां होती है और पुरुष मां का सरनेम रखते हैं। वहां देश के अन्य राज्यों में लड़कियों के साथ किए जा रहे भेदभाव की तरह लड़कों के साथ सौतेला बर्ताव नहीं किया जाता है।
बलात्कार की बढ़ती घटनाओं के मूल में पुरुषों की निकृष्ट और घृणित मानसिकता ही है। दरअसल, पुरुषों की ओछी हरकतों को सहने की आदत औरतों को अपने घर से डालनी पड़ती है जिसका क्रमश: विस्तार होता जाता है। रिश्तेदार से लेकर पहचान वाले तक रिश्तों को शर्मसार करने से नहीं चूकते हैं। अफसोस की बात है कि इस तरह के मानसिक रोगियों की फौज को समाज के द्वारा ही पाला-पोसा जा रहा है। यह विडंबना ही है कि एक तरफ हमारे समाज में स्त्री को देवी मानकर पूजा की जाती है तो दूसरी तरफ उसके साथ बलात्कार जैसा घिनौना कृत्य भी किया जाता है। देखा जाए तो भारतीय नारी दोगले तथा बीमार समाज में सांस ले रही है। गर्भ से ही लड़कियों की जान सांसत में रहती है। हर वक्त मौत का साया उनके आस-पास मंडराता रहता है। ऐसे विकृत मानसिकता वाले समाज में कठुआ, उन्नाव एवं निर्भया जैसे कांड होते ही रहेंगे। बलात्कार की घटनाओं को रोकने के लिए कानून में बदलाव की जगह महिलाओं के प्रति नजरिये में बदलाव लाने की जरूरत है।