सुनील वर्मा
शायद कम ही लोग जानते होंगे कि आईफोन बनाने वाली दुनिया की मशहूर कंपनी एप्पल का लोगो आधे खाए सेब जैसा क्यों है और कंपनी का नाम एप्पल रखने का विचार कहां से आया? दरअसल, एप्पल कंपनी के इस लोगो का उत्तराखंड के अल्मोड़ा में भवाली मार्ग पर स्थित कैंची धाम के बाबा नीम करोली से गहरा रिश्ता है। बताया जाता है कि जब एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स अपनी कंपनी के लगातार घाटे में रहने के कारण अवसाद के दौर से गुजर रहे थे तो 1973 में मानसिक शांति की तलाश में वे अपने मित्र डैन कोटके के साथ भारत भ्रमण करते हुए अल्मोड़ा में बाबा नीम करोली के दर्शन करने पहुंचे। लेकिन 11 सितंबर, 1973 को बाबा के शरीर त्यागने के कारण वे उनके दर्शन नहीं कर पाए। मगर मंदिर से उन्हें प्रसाद के रूप में एक खाया हुआ सेब मिला। बाबा के आश्रम से प्रेरणा तथा भक्ति का ज्ञान लेकर अपने देश लौटे स्टीव जॉब्स ने उसी खाए हुए सेब को अपनी कंपनी को लोगो बनाकर कंपनी को एप्पल नाम दिया। कुछ ही सालों बाद 1980 में एप्पल ने चमत्कारिक रूप से दुनिया में मोबाइल क्रांति का डंका बजा दिया और कंपनी चल निकली।
फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग का नाम भी कैंची धाम के अरबपति भक्तों के रूप में शामिल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान फेसबुक मुख्यालय सिलिकॉन वैली में उनसे मिलने गए थे तो जुकरबर्ग ने खुद मोदी से नीम करोली बाबा और उनके मंदिर का जिक्र करते हुए बताया था कि घाटे में चले रही अपनी कंपनी के तनाव के बीच वे स्टीव जॉब्स की सलाह पर भारत में बाबा नीम करोली के मंदिर के दर्शन करने पहुंचे। इस दौरान वे लंबे समय तक भारत में रहे। यहां से लौटते ही उन्हें कंपनी को आगे बढ़ाने की राह मिली और फेसबुक की लोकप्रियता ने रफ्तार पकड़ी। हॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री जूलिया रॉबर्ट्स और मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित और नास्तिक के रूप में विख्यात रहे डॉ. लैरी ब्रिलिएंट भी बाबा के अनन्य भक्त हो गए और अकसर कैंची धाम आने लगे।
नीम करोली बाबा के दरबार में सालभर देश-दुनिया के जाने माने ऐसे अरबपतियों का जमावड़ा लगा रहता है जो कभी खाकपति हुआ करते थे। कैंची धाम आज देसी-विदेशी श्रद्धालुओं की आस्था का बड़ा केंद्र बन चुका है। हर साल 15 जून को यहां मंदिर की स्थापना दिवस के अवसर पर जो भंडारा होता है उसका खास महत्व है। कैंची धाम को नीम करोली बाबा के आश्रम और मंदिर के कारण आधुनिक जमाने का धाम माना जाता है। इस जगह का नाम कैंची यहां सड़क पर दो बड़े जबरदस्त हेयरपिन बैंड (मोड़) के नाम पर पड़ा है। कैंची धाम में हनुमान जी के मुख्य मंदिर के अलावा भगवान राम एवं सीता माता तथा देवी दुर्गा, वैष्णव देवी के भी छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं। मगर कैंची धाम मुख्य रूप से बाबा नीम करोली और हनुमान जी की महिमा के लिए ही प्रसिद्ध है।
बाबा नीम करोली ने वैसे तो 24 मई, 1962 को इस धरती पर अपने चरण रखे थे लेकिन 15 जून, 1964 को यहां बने मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति की प्रतिष्ठा की गई। इसीलिए हर साल 15 जून को प्रतिष्ठा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन यहां एक विशाल भंडारे का आयोजन होता है। इस साल 15 जून को यहां स्थापना दिवस पर मेला लगा तो झमाझम बारिश के बावजूद दो से तीन लाख श्रद्धालुओं की भारी भीड़ छह किलोमीटर लंबी कतार लगाकर मंदिर के दर्शन और प्रसाद पाने को आतुर थी। प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को मालपुए दिए जाते हैं जिसकी तैयारी मंदिर प्रशासन एक दिन पहले से ही शुरू कर देता है।
कैंची धाम मंदिर के ट्रस्टी पंडित सच्चिदानंद पंत बताते हैं कि नीम करोली बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर में जमींदार घराने में वर्ष 1900 के आसपास हुआ था। बाद में अध्यात्म की राह चुनकर उन्होंने घर छोड़ दिया। कहते हैं कि फर्रुखाबाद जिले के नीब करौरी गांव में वे पहली बार साधु के रूप में दिखाई दिए थे, इसलिए उन्हें नीब करौरी बाबा कहा गया। हालांकि उनके नाम का अपभ्रंश नीम करोली नाम ज्यादा प्रसिद्ध है। कैंची धाम में सबसे पहले हनुमान मंदिर बनने के कारण इस स्थान को हनुमानगढ़ी भी कहा जाता है। बाबा ने यहीं पर अपना पहला आश्रम बनाया।