प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्ष 2022 तक नया भारत बनाने को लेकर कृत संकल्पित हैं। इसी के मद्देनजर केंद्र सरकार ने ‘ट्रांसफॉर्मेशन आॅफ एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स’ के तहत देश के 115 ऐसे पिछड़े जिलों की पहचान की है जो विकास की मुख्यधारा में पिछड़ गए हैं। इस बाबत हर जिले के विकास लिए अतिरिक्त सचिव और संयुक्त सचिव स्तर के प्रभारी अधिकारी नियुक्त किए गए हैं। इन जिलों में शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और आधारभूत संरचना एवं मानव सूचकांक में वृद्धि के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे, इन्हीं तमाम मुद्दों पर नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अमिताभ कांत से अभिषेक रंजन सिंह की विस्तृत बातचीत।
केंद्र सरकार ने विकास से अछूते जिलों को चिन्हित कर साल 2022 तक इन्हें विकसित करने का लक्ष्य रखा है। इस योजना की मुख्य बातें क्या हैं और इस दिशा में किस तरह के कार्य होंगे?
हमारी परिकल्पना है साल 2022 तक न्यू इंडिया बनाने की। आजादी के पचहत्तरवें साल में हम एक विकसित देश के रूप में उभरना चाहते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि बीते दो-तीन दशकों में देश की आर्थिक प्रगति तेज हुई है लेकिन मानव और सामाजिक सूचकांक जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि आदि क्षेत्रों में काफी विषमता है। भारत में लगभग 200 जिले ऐसे हैं जहां शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, जल संरक्षण, आधारभूत संरचना और रोजगार की हालत अच्छी नहीं है। इन्हें विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए केंद्र सरकार बेहद गंभीर है। सामाजिक न्याय के साथ आर्थिक विकास हो, सरकार इसके प्रति कृतसंकल्प है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब वह कहते हैं कि सबका साथ, सबका विकास तो उसके काफी मायने हैं। अगर कोई जिला पिछड़ा है तो कोशिश की जानी चाहिए कि उस राज्य का जो सबसे उन्नत जिला है उससे उसकी तुलना की जाए। जब वह जिला उस विकसित जिले के समकक्ष आ जाए तो देश के सबसे उन्नत जिले से उसकी तुलना की जाए। यह एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा है और एक-दूसरे जिले को विकसित बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण काम भी। यह सही है कि कुछ वर्षों के दौरान ग्रामीण भारत में विद्युतीकरण की दिशा में प्रगति हुई है। लेकिन गांवों में अगर बिजली पहुंच रही है तो यह मान लेना कि हर घर में बिजली पहुंच रही है यह जरूरी नहीं। अगर बिजली होगी तभी शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य और छोटे उद्योग बढ़ेंगे। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि देश के कुल 4,000 करोड़ घर ऐसे हैं जिनमें बिजली नहीं है। जबकि देश के 97 फीसद गांव इलेक्ट्रिफाइड घोषित हो गए हैं। समस्या यह है कि गांवों तक बिजली पहुंच गई है लेकिन सारे घरों में बिजली नहीं पहुंच पाई है। इस बार हमने मानदंड बनाए हैं कि कितने घरों में बिजली पहुंचाई गई है। इस बाबत संबंधित जिलों के कलेक्टर और प्रभारी अधिकारी निगरानी रखेंगे।
जिन पिछड़े जिलों को चिन्हित किया गया है उनमें किसानों की बड़ी समस्या है। क्या नीति आयोग किसानों की बेहतरी के लिए स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों पर अमल करेगा?
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों में कई महत्वपूर्ण बातें हैं। हमारा भी लक्ष्य है कि किसानों को उनकी फसल का उचित दाम मिले। लेकिन देश में एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो बहुत अमीर नहीं है। उनके पास खुद की जमीन नहीं है। वे अनाज खरीदकर खाते हैं। ऐसे लोग गांव और शहर दोनों जगह रहते हैं। इसलिए नीतियों में संतुलन जरूरी है। किसानों को उनकी फसल का सही दाम जो जरूर मिले लेकिन अनाज के दाम इतने भी न बढ़ जाएं कि आम जनता पर बहुत बड़ा बोझ न बन जाए। इसका निराकरण यह है कि उत्पादकता बढ़ाई जाए। इससे किसानों का भी फायदा है और जो किसान नहीं हैं उनका भी फायदा है। उत्पादकता बढ़ाने के दो तरीके हैं। पहला तरीका सिंचाई के साधनों को बढ़ाने की जरूरत है। केंद्र सरकार की एक महत्वपूर्ण योजना है प्रधानमंत्री सिंचाई योजना। इसका लक्ष्य है हर खेतों तक पानी पहुंचाना। इस योजना के तहत माइक्रो इरीगेशन पर काफी जोर दिया जा रहा है। देश के उन इलाकों में जहां पानी की समस्या है वहां यह योजना काफी सफल हो रही है। इसके अलावा एक और योजना है राष्ट्रीय कृषि बाजार ( ई-नाम)। राष्ट्रीय कृषि बाजार के तहत देश की सभी 585 कृषि मंडियों को कम्प्यूटर नेटवर्किंग से जोड़ा जा रहा है। केंद्र सरकार ने जिन 115 पिछड़े जिलों को चिन्हित किया है उनमें ज्यादातर जिले कृषि प्रधान हैं। इस बाबत सभी संबंधित मंत्रालयों के साथ मिलकर कृषि, शिक्षा, जल संरक्षण और स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाया जाएगा। इसके अलावा उन जिलों में कृषि आधारित उद्योगों की स्थापना करने का लक्ष्य रखा गया है।
यूपीए सरकार में बीआरजीएफ (पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि कार्यक्रम) की शुरुआत हुई थी जिसमें 272 जिलों को पिछड़ा घोषित कर उनके उत्थान की नीतियां बनाई गई थीं। यह योजना बीआरजीएफ से कितनी अलग है?
बीआरजीएफ से भी फायदा हुआ है। वह भी अच्छी स्कीम थी। 272 चिन्हित जिलों के उत्थान के लिए काफी धनराशि खर्च की गई थी। मगर दिक्कत यह हुई कि बीआरजीएफ के लिए कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया गया था। तत्कालीन केंद्र सरकार ने उसके लिए अलग से धनराशि का आवंटन किया लेकिन उससे संबंधित ग्रामीण विकास योजनाओं से उसे नहीं जोड़ा गया। नतीजतन जितना खर्च उसमें किया गया उतना फायदा नहीं मिला। लेकिन ट्रांसफॉर्मेशन आॅफ एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स एक एडिशनल प्रोग्राम है और यह केंद्र सरकार की किसी योजना को बंद करके शुरू नहीं किया गया है। हमारी योजना है 115 पिछड़े जिलों में कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, जल संरक्षण और आधारभूत संरचना को विकसित करना। इसके लिए अलग से कोई योजना नहीं बनानी है बल्कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय, कृषि मंत्रालय, जल संसाधन मंत्रालय और कौशल विकास मंत्रालय के साथ मिलकर काम करना है। इन जिलों के विकास के लिए धन की कोई कमी नहीं आएगी। इसके तहत केंद्र और राज्य सरकारों के बीच काफी समन्वय है। देश के किसी भी जिले में धन की कमी नहीं है। प्रधानमंत्री ने ट्रांसफॉर्मेशन आॅफ एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स की बैठक में सभी 115 पिछड़े जिलों के कलेक्टरों और प्रभारी अधिकारियों से कहा है कि आपके पास एक मौका है कुछ अच्छा करने का। साथ ही उन्होंने सभी अधिकारियों से इस अभियान को एक मास मूवमेंट बनाने का आह्वान किया। काफी कम समय में स्थानीय लोगों और सामाजिक संगठनों की तरफ से अच्छा रिस्पांस मिल रहा है। टाटा ट्रस्ट पचासी फीसद जिलों में फिलहाल काम कर रहा है।
कई ऐसे राज्य हैं जहां गैर राजग दलों की सरकारें हैं। क्या इस योजना को लेकर उन राज्यों से केंद्र का आपसी समन्वय है?
भारत एक लोकतांत्रिक देश है तो जाहिर है राजनीति भी होगी। लेकिन मुझे नहीं लगता कि ट्रांसफॉर्मेशन आॅफ एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स के मामले में किसी प्रकार की राजनीति होगी। केंद्र में चाहे जिसकी सरकार हो, मुझे नहीं लगता कि कोई राज्य यह चाहेगा कि उनके सूबे का विकास न हो। इस स्कीम के शुरू होने के बाद तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश की सरकारों ने इसका काफी स्वागत किया है और हर मोर्चे पर सहयोग करने की बात की है। इस साल जून तक इस स्कीम का फायदा दिखने लगेगा। यकीनन यह एक बेहतरीन योजना है और आने वाले कुछ महीनों में इसका लाभ दिखने लगेगा।
चिन्हित पिछड़े जिलों में सबसे ज्यादा जिले झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के हैं। इन जिलों के चयन का मानक क्या था और क्या इसे लेकर किसी राज्य की कोई आपत्ति भी आई है?
ट्रांसफॉर्मेशन आॅफ एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स के तहत हमारे पास जिलों को शामिल करने की शिकायतें नहीं आई है लेकिन नए जिलों को शामिल करने का आग्रह कई राज्य सरकारों ने भेजा है। सामाजिक-आर्थिक जनगणना के आंकड़ों के आधार पर हमने पिछड़े जिलों को चिन्हित किया है। जिन 115 जिलों को चिन्हित किया गया है उनमें कई जिलों के नाम देखकर आपको लगेगा कि यह तो विकसित जिला है फिर भी इसे शामिल किया गया है। वहीं कुछ जिलों के नाम नहीं देखकर आपको लगेगा कि इसे तो इस लिस्ट में शामिल करना चाहिए था। जिलों को चिन्हित करने का मानक पूरी तरह सांख्यिकी के आधार पर है। हमने एक मानदंड बनाया। मसलन, हेल्थ और न्यूट्रीशन के लिए 30 फीसदी अंक रखे। उसी प्रकार शिक्षा के लिए 15 फीसदी, जल संरक्षण, आधारभूत संरचना के लिए 30 फीसदी अंक तय किए गए। इस तरह 100 नंबर का एक इंडेक्स हमने बनाया और उन आंकड़ों के आधार पर हमने 115 पिछड़े जिलों का चयन किया।
इस योजना का कुल बजट कितना है और 2022 तक इन जिलों के विकास के लिए कितनी धनराशि खर्च की जाएगी?
यह कह पाना मुश्किल है लेकिन इतना जरूर है कि केंद्र और राज्य सरकारों की विकास योजनाओं की वजह से इन सभी जिलों में धन की कोई कमी नहीं है। चूंकि इस स्कीम के साथ सभी संबंधित मंत्रालयों को जोड़ा गया है इसलिए धन की कमी कभी आडेÞ नहीं आएगी।