नई दिल्ली।
गंगा को प्रदूषण से बचाने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) काफी सख्त है। उसने हरिद्वार से उन्नाव तक गंगा के किनारों से सटे 100 मीटर तक के क्षेत्र को नो डेवलपमेंट जोन घोषित कर दिया है। इस इलाके में (हरिद्वार से उन्नाव तक) गंगा के किनारों से 500 मीटर तक कचरा फेंकना जुर्म होगा। अगर कोई कचरा डालता है तो उसे पर्यावरण क्षतिपूर्ति के तौर पर 50 हजार रुपये देने होंगे। इसके अलावा एनजीटी ने 35 थर्मल पावर स्टेशनों को नोटिस जारी किया है।
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गंगा को जीवित नदी का दर्जा दिया है, लेकिन इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। एनजीटी के चेयरपर्सन जस्टिस स्वतंत्र कुमार की बेंच ने कहा, “ये यूपी सरकार का काम है कि वो चमड़े का कारखाना जाजमऊ से उन्नाव या कहीं भी, जहां उसे ठीक लगे, वहां शिफ्ट कर दे। ये काम 6 हफ्तों में किया जाना चाहिए।” ट्रिब्यूनल ने यूपी और उत्तराखंड को गंगा और उसकी सहायक नदियों के घाटों पर होने वाली धार्मिक गतिविधियों के लिए गाइडलाइन बनाने के निर्देश दिए।
ट्रिब्यूनल के निर्देशों का पालन किया जा रहा है या नहीं, इस पर नजर रखने के लिए एनजीटी ने सुपरवाइजर कमेटी भी बनाई है। ट्रिब्यूनल ने रिपोर्ट और अपने 543 पन्नों के फैसले में ये निर्देश दिए हैं। फैसला एन्वायरन्मेंट एक्टिविस्ट एमसी मेहता की 1985 की एक पिटीशन पर आया। सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में यह पिटीशन एनजीटी को ट्रांसफर कर दी थी।
गंगा कुल 2525 किलोमीटर में बहती है। एनजीटी ने हरिद्वार से उन्नाव के बीच के बहाव क्षेत्र के लिए फैसला दिया है। यह दूरी करीब 500 किलोमीटर की है। 20 मार्च को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कहा था- गंगा को धर्मग्रंथों में सबसे पवित्र नदी का दर्जा दिया गया है। इसलिए, हम इसे जिंदा नदी के तौर पर देख रहे हैं। यानी गंगा को अब वही अधिकार मिलेंगे जो किसी इंसान को देश का कानून और संविधान देता है।
साधारण भाषा में कहें तो अगर कोई इंसान गंगा नदी को प्रदूषित करता है, तो उसके खिलाफ वैसे ही कार्रवाई की जाएगी जो किसी शख्स को नुकसान पहुंचाने पर की जाती है। गंगा, यमुना और इसकी सहायक नदियों पर आदेश को उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। पिटीशन में पूछा गया है कि अगर बाढ़ में किसी इंसान की मौत हो जाती है तो क्या इससे पीड़ित लोग राज्य के चीफ सेक्रेटरी से मुआवजे के लिए अपील कर सकते हैं?
अगर ऐसा हुआ तो राज्य सरकार इसे कैसे दे पाएगी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट गंगा नदी को जीवित नदी का दर्जा देने के आदेश पर रोक लगा दी थी। इसके अलावा एनजीटी ने 35 थर्मल पावर स्टेशनों को नोटिस जारी किया है। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने अपनी याचिका में इन स्टेशनों पर पॉल्यूशन मॉनिटरिंग सिस्टम न होने का आरोप लगाया था।