कौशलेंद्र की जीत तय करेगी नीतीश की बादशाहत

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नालंदा लोकसभा सीट पर कुर्मी वोट निर्णायक होगा. एनडीए से जदयू उम्मीदवार कौशलेंद्र के अलावा अभी तक महागठबंधन से हमके उम्मीदवार डॉ. अशोक कुमार आजाद (चंद्रवंशी) का नाम सामने आया है. नालंदा में अंतिम चरण में 19 मई को चुनाव होना है.

नालंदा में जीत सिर्फ मुख्यमंत्री के नाम से हासिल होती रही है. इस हिसाब से कौशलेंद्र आश्वस्त हैं कि उनकी हैट्रिक लग जाएगी. राजनीति विश्लेषकों की राय भी इससे बहुत अलग नहीं है. दरअसल, मुख्यमंत्री की ताकत हैं नालंदा के 60 प्रतिशत कुर्मी वोटर, जो पूरी तरह नीतीश के वोट हैं. यहां उम्मीदवार मुख्यमंत्री का प्रतिनिधित्व करने की भूमिका में रहते हैं. हालांकि, पिछले दस सालों में कौशलेंद्र ने कई क्षेत्रों की ओर झांका तक नहीं, इसलिए कुर्मी कहीं-कहीं नाराज हैं. फिर भी वे कहते हैं कि गिले-शिकवे भले रहें, लेकिन उनका वोट तो नीतीश के नाम पर ही जाएगा. यानी नालंदा लोकसभा सीट पर कुर्मी वोट निर्णायक होगा. एनडीए से जदयू उम्मीदवार कौशलेंद्र के अलावा अभी तक महागठबंधन से ‘हम’ के उम्मीदवार डॉ. अशोक कुमार आजाद (चंद्रवंशी) का नाम सामने आया है. नालंदा में अंतिम चरण में 19 मई को चुनाव होना है.

‘हम’ के उम्मीदवार डॉ. अशोक कुमार आजाद एमएलसी रह चुके बादशाह प्रसाद आजाद के नाम पर चुनाव मैदान में हैं. नालंदा में करीब सवा लाख चंद्रवंशी वोट हैं, जिन पर डॉ. अशोक की नजरें टिकी हैं, महागठबंधन के वोट मिलेंगे, सो अलग. नाराज चल रहे कुर्मी वोटरों पर भी वह डोरे डाल रहे हैं. नालंदा के राजनीतिक इतिहास की बात की जाए, तो यहां कभी कांग्रेस का जादू था, जो 1971 तक रहा. भारतीय लोकदल को भी एक मौका मिला, लेकिन उसके बाद भाकपा का कब्जा हो गया. भाकपा की जीत के तिलिस्म को नीतीश कुमार की मदद से 1996 में समता पार्टी के टिकट पर जॉर्ज फर्नांडीज ने तोड़ा था. तबसे नालंदा सिर्फ जदयू का होकर रह गया. नीतीश खुद भी यहां से 2004 में सांसद चुने गए थे. उन्होंने लोजपा के डॉ. कुमार पुष्पंजय को भारी अंतर से हराया था.

अगले साल यानी २००५ में जब वह बिहार के मुख्यमंत्री बने, तो उपचुनाव में जदयू के राम स्वरूप प्रसाद यहां से सांसद चुने गए. 2009 और 2014 में नालंदा के वोटरों की कृपा कौशलेंद्र कुमार पर बरसी. 2014 के चुनाव में कौशलेंद्र को 3,21,982 और लोजपा के उम्मीदवार सत्यानंद शर्मा को 3,12,355 वोट मिले थे. नालंदा बिहार का एकमात्र संसदीय क्षेत्र है, जहां लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल का अभी तक खाता नहीं खुल सका. 1999 से लेकर अब तक यहां केवल जदयू का राज रहा है. कौशलेंद्र इस बार जीत की हैट्रिक लगाने को बेताब हैं.

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