कई वर्षों से चीन के शिनचिंयाग प्रांत में वीगर पृथकतावादी आन्दोलन से निपटने के नाम पर चीन द्वारा मुस्लिम अल्पसंख्यकों के दमन का सिलसिला जारी है. दमन की उस नीति के तहत चीन ने इस्लाम को ‘समाजवाद से सुसंगत’ बनाने के लिए एक नई योजना बनाई है.
आज से बीस-पच्चीस साल पहले एक अन्तर्राष्ट्रीय रेडियो न्यूज़ सर्विस को लिखे अपने पत्र में एक पाकिस्तानी श्रोता ने अपनी दुविधा ज़ाहिर करते हुए लिखा था कि चीन ने मुसलमानों को हज करने, नमाज पढऩे, रोज़ा रखने, आदि पर बंदिशें लगा रखी है, लेकिन हमारी सरकार और हमारा मीडिया चीन को पाकिस्तान का सबसे अच्छा दोस्त समझते हैं. भारत में मुसलमानों को हर तरह की मज़हबी आज़ादी है, लेकिन फिर भी हमें यकीन दिलाया जाता है कि भारत हमारा सबसे बड़ा मज़हबी दुश्मन है! पाकिस्तानी इसलिए भी दुविधा में था, क्योंकि पाकिस्तान मुसलमानों की धार्मिक पहचान को बनाये रखने के लिए बना था. शायद वह अपनी सरकार से यह अपेक्षा कर रहा था कि दुनिया के किसी भी हिस्से में यदि मुसलमानों पर किसी तरह की ज्यादती हो, तो पाकिस्तान कम से कम उसकी निंदा ज़रूर करे. उस समय उस पाकिस्तानी ने जिस दुविधा में उलझकर अपना खत लिखा था, हो सकता है आज भी पाकिस्तान में कुछ ऐसे लोग हों जो मन ही मन अपनी सरकार से वैसे ही सवाल पूछ रहे हों, क्योंकि आज चीन ने मुसलमानों की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को मिटा देने का प्रबंध कर लिया है और पाकिस्तान समेत पूरी मुस्लिम दुनिया पर हैरतअंगेज़ ख़ामोशी छाई हुई है.
कई वर्षों से चीन के शिनचिंयाग प्रांत में वीगर पृथकतावादी आन्दोलन से निपटने के नाम पर चीन द्वारा मुस्लिम अल्पसंख्यकों के दमन का सिलसिला जारी है. दमन की उस नीति के तहत चीन ने इस्लाम को ‘समाजवाद से सुसंगत’ बनाने के लिए एक नई योजना बनाई है. इस योजना के तहत पांच वर्षों के अन्दर इस्लाम का चीनीकरण किया जाना है. हालांकि शुरू में चीनी मीडिया की रिपोर्टों में यह खुलासा नहीं किया गया कि योजना का कार्यान्वयन कैसे होगा, लेकिन बाद में ‘मुस्लिम संस्थाओं’ के एक सेमिनार में इस योजना की रूपरेखा पर कुछ रौशनी डाली गई. यदि यह खुलासा नहीं भी होता तो भी पिछले कुछ वर्षों से चीन में वीगर आन्दोलन को कुचलने के नाम पर मुल्सिम अल्पसंख्यकों के साथ जैसा सुलूक किया जा रहा है उसे यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं था कि चीन इस योजना को कैसे अमलीजामा पहनाएगा.
दरअसल चीन ने उत्तर-पश्चिमी वीगर बहुल प्रांत शिनचिंयाग में कई डिटेंशन सेंटर खोल रखे हैं, जहां लाखों वीगर मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों को मामूली शक की बुनियाद पर बंदी बनाकर रख दिया जाता है. इन कैम्पों को लेकर संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार काउंसिल में कई देशों ने अपनी चिंताएं व्यक्त की हैं. पिछले साल के अक्टूबर महीने तक चीन, शिनचिंयाग प्रांत में किसी तरह के ‘कैंप’ के वजूद से ही इंकार करता रहा था, लेकिन बाद पश्चिमी मीडिया में सबूत के साथ छपी रिपोर्टों के बाद उसने स्वीकार किया कि छोटे-मोटे अपराधिक मामलों मेें शामिल लोगों को इन कैम्पों में रखा गया है. साथ ही मामले की गंभीरता को कम करने के लिए चीन ने इन कैम्पों को ‘री-एजुकेशन कैंप’ का नाम दिया और बताया कि इन कैम्पों में कैदियों को व्यवसायिक शिक्षा दी जा रही है.
अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में छपी रिपोर्टों की पुष्टि इन कैम्पों से छूट कर आये पूर्व कैदियों ने भी की है. उनका कहना है कि इन कैम्पों में कैदियों को तरह-तरह की शारीरिक यातनाएं दी जाती हैं, और इन यातनाओं के दौरान कई कैदियों की मौतें भी हुई हैं. ज़ाहिर है इस्लाम के ‘चीनीकरण की योजना’ के बाद इन कैम्पों में बंद कैदियों के लिए चिंताएं और गहरी हो गईं हैं और कई देशों ने खुल कर चीन से अपनी आपत्ति दर्ज कराई है. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने तो यहां तक कह दिया कि इन कैम्पों को ‘युद्धकालीन कैम्पों’ की तरह चलाया जा रहा है.
मानवाधिकार के लिए काम करने वाले संगठनों और मीडिया रिपोर्टों के बाद बीजिंग में मौजूद 15 देशों के राजदूतों ने कनाडा की अगुवाई में शिनचिंयाग प्रांत के कम्युनिस्ट पार्टी प्रमुख से मुलाक़ात करने और ‘री-एजुकेशन’ कैम्पों में होने वाले मानवाधिकार के उलंघन के मामलों की रिपोर्ट मांगी, लेकिन जवाब में चीन ने अपने प्रचारतंत्र को और तेज करते हुए 12 गैर-पश्चिमी देशों के राजनयिकों को इस क्षेत्र के दौरे का प्रबंध किया और पत्रकारों के एक छोटे समूह को तीन री-एजुकेशन कैम्पों तक जाने की अनुमति दी. इन पत्रकारों ने कैदियों को सिलाई मशीन पर काम करते और चीन की सरकारी भाषा मैंडरिन सीखते और कुछ अन्य को अंग्रेजी के राइम दुहराते हुए सुना. ख़बरों के मुताबिक अब चीन संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों को (उचित प्रक्रियाओं का पालन करने और घरेलू मामलों में हस्तक्षेप न करने की शर्त पर) शिनचिंयाग प्रांत में जाने की अनुमति दे रहा है. ज़ाहिर है संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों के दौरे में और उसकी रिपोर्ट आने में अभी समय लगेगा, लेकिन खुद चीन के सरकारी संचार माध्यमों से जो खबरें आ रही हैं, उनके मुताबिक मानवाधिकार संस्थाओं का डर सच साबित होता दिख रहा है.
इस्लाम के चीनीकरण के लिए इमामों की ट्रेनिंग
चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक चीनी अधिकारियों ने शिनचिंयाग और दूसरे अन्य प्रान्तों में अल्पसंख्यकों, खास तौर पर मुसलमानों के चीनीकरण की प्रक्रिया शुरू कर दी है. अखबार ने चीनी अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि बीजिंग, शंघाई, हुनान, युन्नान और किनघई की इस्लामिक संस्थाएं, इस्लाम को समाजवाद से सुसंगत करने और उसके चीनीकरण पर राज़ी हो गई हैं. इन संस्थाओं ने एक सेमिनार में इस काम के लिए एक पंचवर्षीय योजना पर बहस की है.
हालांकि चीन यह कह रहा है कि इस योजना का मकसद इस्लाम की मान्यताओं, विचारधारा या प्रकृति को बदलना नहीं बल्कि उसे समाजवादी समाज के अनुकूल बनाना है, लेकिन निर्वासित वीगरों के संगठन विश्व वीगर कांग्रेस का मानना है कि बीजिंग चीन से इस्लाम को मिटाने के लिए चीनीकरण का बहाना बना रहा है. विश्व वीगर कांग्रेस इसलिए सही लगती है क्योंकि चीन ने कई हिस्सों में इस्लाम के मानने पर पाबन्दी लगा दी है. यदि को व्यक्ति नमाज़ पढ़ता है, रोज़ा रखता है, एक खास लम्बाई से अधिक दाढ़ी रखता है या कोई महिला हिजाब पहनती है, तो उसके गिरफ्तार होने और डिटेंशन सेंटर में भेजे जाने की सम्भावना प्रबल हो जाती है.
इस्लाम के चीनीकरण की रूपरेखा
स्लाम के चीनीकरण की रूपरेखा का हल्का अंदाज़ा वीगर स्वायत क्षेत्र के इमामों की ट्रेनिंग से हो जाता है. चीन के सरकारी अख़बार के मुताबिक 1 जनवरी को शिनचिंयाग की राजधानी उरुमकी में यह ट्रेनिंग आयोजित की गई. इस ट्रेनिंग में इमामों को बताया गया कि उन्हें चीन की संस्कृति, चीन और कम्युनिस्ट पार्टी के इतिहास और मैंडरिन भाषा को गले लगाना पड़ेगा. उन्हें देशभक्ति का आदर्श बनना पड़ेगा. ट्रेनिंग में इमामों को कानून का पालन करने, राष्ट्रीय एकता बनाने और उग्र विचारों का विरोध करने और सद्भाव बढ़ाने का आदेश दिया गया. इमामों से यह भी उम्मीद लगाई गई कि वे अपने चरित्र और आचरण से राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देंगे.
इस्लाम के चीनीकरण की दूसरी तस्वीर भी चीन के सरकारी मीडिया द्वारा उजागर की गई. चीन ने कम्युनिस्ट पार्टी कार्यकर्ताओं को खुली छूट दे रखी है कि वे सार्वजनिक स्थानों जैसे रेस्तरां, होटल, स्कूल आदि से अरबी में लिखी आयतों को हटा दें, ताकि इस्लामवाद और एकल-अरब की प्रवृति पर रोक लगाई जा सके. यह कार्रवाई फिलहाल उत्तरी चीन के हेबेई प्रांत और दक्षिणी चीन के हैनान प्रांत से शुरू की गई है.
मुस्लिम देशों की उदासीनता
हालांकि पश्चिमी देशों और संयुक्त राष्ट्र संघ ने चीन की इस दमनकारी नीति की आलोचना करते हुए इसका संज्ञान लिया है, लेकिन पाकिस्तान समेत दुनिया के किसी भी मुस्लिम देश ने चीन द्वारा अल्पसंख्यक मुसलमानों पर हो रहे सरकारी अत्याचार के लिए चीन से जवाब मांगने या चीन की आलोचना करने की हिम्मत नहीं जुटाई है. कई समीक्षकों का मानना है कि मध्यपूर्व के अरब देशों के तानाशाहों ने चीन में मुसलमानों के खिलाफ हो रहे अत्याचार पर इसलिए चुप्पी साध रखी है क्योंकि उन्हें भी अपनी-अपनी रियासतों से उठने वाली व्यक्तिगत आजादी की आवाज़ों को दबाने के लिए चीन की तरह ही दमनकारी नीतियां अपनानी पड़ती हैं. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने चीनी मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार पर अपनी ख़ामोशी को खुद ही समझा दिया. उसका कहना है कि उसकी जुबान पर चीनी बाज़ार ने ताला जड़ दिया है. कश्मीर का राग अलापे बिना जो पाकिस्तान अपना निवाला नहीं तोड़ता, उसी पाकिस्तान को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि शिनचिंयाग वीगर मुस्लिम बहुल स्वायत प्रांत है और गैर-सरकारी आंकड़ों के मुताबिक चीन ने इस प्रांत को हान बहुल क्षेत्र बना दिया है. चीन न केवल वीगर मुसलमानों को डिटेंशन कैम्पों में डाल रहा है बल्कि हर मुसलमान का डीएनए सैंपल लेकर एक डाटाबेस भी तैयार कर रहा है ताकि ज़रूरत पडऩे पर मुसलमानों की निशानदेही करने में उसे किसी तरह की दुश्वारी पेश न आये.
पाकिस्तान के निर्माताओं ने पाकिस्तान को मुल्के खुदादाद (खुदा की ओर से हुआ देश) करार दिया था. इस लेख के शुरू में दिए गए पाकिस्तानी श्रोता की दुविधा का जवाब यह हो सकता है कि मुल्के खुदादाद ने खुदा के बन्दों को खुदा के हवाले छोड़ कर अपनी जुबान पर ताला जड़ लिया है.
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