नई दिल्ली। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके परिवार को आय से अधिक संपत्ति मामले में अभी राहत नहीं मिली है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है। जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि इस मामले में हम सीबीआई से स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को नहीं कह सकते।
जारी रहेगी सीबीआई जांच
सपा के प्रथम परिवार के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामले में याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता वकील विश्वनाथ चतुर्वेदी ने ओपिनियन पोस्ट से बातचीत में कहा कि उन्होंने सीबीआई की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कराने की मांग वाली जो याचिका दायर की थी उसे ही सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की है। मीडिया में इस तरह की जो खबरें चल रही है कि उन्हें सीबीआई जांच से राहत मिल गई वह सरासर गलत है। सुप्रीम कोर्ट 13 दिसंबर 2012 को ही यह आदेश जारी कर चुका है कि सीबीआई खुद इस मामले की जांच करेगी जो चल रही है। चतुर्वेदी ने यह भी कहा कि चार अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 10 फरवरी 2009 को फैसला सुरक्षित रख लिया था लेकिन फैसला अभी तक नहीं सुनाया गया है। उन्होंने कोर्ट से इस बारे में स्टेटस भी मांगा था। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उनसे नई याचिका दायर करने को कहा है जिसे वे अगले हफ्ते दायर करेंगे।
विश्वनाथ चतुर्वेदी ने मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव के अलावा कन्नौज से लोकसभा सांसद डिंपल यादव और मुलायम के दूसरे बेटे प्रतीक यादव के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का आरोप लगाया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने डिंपल यादव को पहले ही इससे अलग कर दिया था क्योंकि उस वक्त डिंपल सार्वजनिक पद पर नहीं थीं। चतुर्वेदी ने आरोप लगाया है कि मुलायम सिंह के परिवार ने उनके मुख्यमंत्रित्व काल में 100 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति अर्जित की है। पद का दुरुपयोग करते हुए यह कमाई की गई है।
शिवपाल ने अखिलेश व रामगोपाल समर्थकों को पार्टी से निकाला
उधर, मुलायम परिवार में सुलह की जो खबरें चल रही थी वह अभी खत्म होता नहीं दिख रहा है। दोबारा सपा का प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद शिवपाल यादव ने अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव के समर्थकों को पार्टी से बाहर निकालने का अभियान छेड़ दिया है। इन सबको पार्टी विरोधी गतिविधियों और अनुशासनहीनता का आरोप लगाकर बाहर का रास्ता दिखाया गया है। रविवार को सबसे पहले शिवपाल ने रामगोपाल के भांजे और विधान परिषद सदस्य अरविंद यादव और अखिलेश कुमार उर्फ चांदगीराम को पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया। अरविंद यादव जहां रामगोपाल यादव की बहन गीता देवी के बेटे हैं और विधान परिषद का सदस्य बनने से पहले वे मैनपुरी के करहल ब्लॉक के ब्लॉक प्रमुख चुने गए थे। जबकि चांदगीराम मुलायम सिंह यादव के पैतृक गांव सैफई के ब्लॉक प्रमुख रह चुके हैं।
इसके बाद सोमवार को अखिलेश यादव के समर्थक विधान परिषद सदस्यों सुनील सिंह यादव, आनंद भदौरिया और संजय लाठर सहित मुलायम यूथ ब्रिगेड के अध्यक्ष गौरव दुबे, प्रदेश अध्यक्ष मोहम्मद एबाद, छात्र सभा के प्रदेश अध्यक्ष दिग्विजय सिंह देव और युवजन सभा के प्रदेश अध्यक्ष ब्रजेश यादव को पार्टी से बाहर कर दिया गया। पार्टी की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के विरोध में असम्मानजनक एवं अमर्यादित टिप्पणियां करने, पार्टी विरोधी कार्यों में लिप्त रहने और अनुशासनहीनता के कारण इन सभी को निष्कासित किया गया है।
पार्टी के इन युवा नेताओं को निष्कासित करने के बाद शिवपाल यादव ने कहा कि ‘नेताजी’ के आदेश की अवहेलना बर्दाश्त नहीं की जाएगी। जो भी गलत काम करेगा उसके खिलाफ कार्रवाई होगी, चाहे वह परिवार का ही सदस्य क्यों न हो। यादव ने कहा कि संगठन अनुशासन से चलता है। यदि कोई विवाद होता है तो उसे सुलह-समझौते से हल किया जाता है। अनुशासन तोड़ने की अनुमति किसी को नहीं है।
गौरतलब है कि शनिवार को युवा संगठनों के कई नेताओं ने पार्टी कार्यालय के सामने धरना प्रदर्शन देकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को फिर से प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग की थी। उन्होंने मुलायम सिंह यादव के घर के सामने भी नारेबाजी की थी। सांसद अमर सिंह को पार्टी से बाहर करने की मांग की थी। कुछ लोगों ने अमर सिंह का पुतला भी फूंका था। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सांसद रामगोपाल यादव ने पार्टी के विवाद के लिए अमरसिंह को जिम्मेदार ठहराया था।
पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने अपने घर के बाहर हुए प्रदर्शन को काफी गंभीरता से लिया था और इस पर कड़ी नाराजगी जताई थी। विधान परिषद सदस्य आनन्द भदौरिया ने मुलायम सिंह यादव से पार्टी नेतृत्व को युवाओं को सौंपने की मांग तक कर डाली थी।