एनडीए और महागठबंधन के नेता एक-दूसरे पर नाकामी के आरोप लगा रहे हैं. वहीं आम जनता अपना फैसला खुद करने की बात कहकर उम्मीदवारों को ‘खबरदार’ कर रही है. सबसे सुखद बात यह है कि इस बार शहर से लेकर गांव तक लोग शत-प्रतिशत मतदान के लिए एक-दूसरे को प्रेरित कर रहे हैं.
देश में आम चुनाव चल रहे हैं. गली-नुक्कड़ों और चौक-चौपालों में बहस जारी है कि केंद्र में अगली सरकार किसकी बनेगी. कोई नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार की वापसी का हिमायती दिखता है, तो कोई परिवर्तन की वकालत कर रहा है. मतदाताओं का एक तीसरा वर्ग भी है, जो बिल्कुल खामोश है. उत्तर बिहार की राजधानी कहलाने वाला मुजफ्फरपुर भी चुनावी रंग में पूरी तरह रंग चुका है. आधा दर्जन विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर बनी मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट के लिए अब तक हुए कुल 13 आम चुनावों में नेतृत्व करने के सबसे ज्यादा मौके कांग्रेस को मिले. जनता दल एवं जदयू को तीन, जनता पार्टी को दो और राजद एवं भाजपा को एक बार जीत दर्ज कराने में सफलता मिली. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 1952 से लेकर 1971 तक पांच बार जीत मिली, जबकि अंतिम मौका 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में मिला. तबसे लेकर अब तक कांग्रेस यह सीट कब्जाने में नाकाम रही.
यहां चुनाव के पांचवें चरण में आगामी छह मई को मतदान होगा. नामांकन की प्रक्रिया संपन्न हो चुकी है. उम्मीदवारों ने जनसंपर्क के जरिये अपने चुनाव अभियान की शुरुआत कर दी है. मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट पर भी एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधे मुकाबले के आसार दिख रहे हैं. कभी-कभी निर्दलीय उम्मीदवार माहौल को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश करते मिल जाते हैं. जाति-धर्म और दलीय राजनीति के इस दौर में स्थानीय मुद्दे गायब हो चुके हैं. महंगाई, बेरोजगारी, अशिक्षा, चिकित्सा एवं सुरक्षा आदि बिंदुओं पर चर्चा की जहमत कोई नहीं उठा रहा है. कोई नोटबंदी एवं जीएसटी पर बहस करके उन्हें गलत ठहरा रहा है, तो कोई राष्ट्रीय सुरक्षा और देश की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा के पक्ष में तर्क दे रहा है. यहां से अबकी बार एनडीए की ओर से भाजपा सांसद अजय निषाद दूसरी बार चुनाव मैदान में हैं. वहीं महागठबंधन की ओर से वीआईपी के डॉ. राज भूषण चौधरी निषाद अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
एनडीए और महागठबंधन के नेता एक-दूसरे पर नाकामी के आरोप लगा रहे हैं. वहीं आम जनता अपना फैसला खुद करने की बात कहकर उम्मीदवारों को ‘खबरदार’ कर रही है. सबसे सुखद बात यह है कि इस बार शहर से लेकर गांव तक लोग शत-प्रतिशत मतदान के लिए एक-दूसरे को प्रेरित कर रहे हैं. उनका मानना है कि अगर मताधिकार का इस्तेमाल सही समय पर सूझबूझ के साथ नहीं किया गया, तो आगे चलकर परेशानी हो सकती है. चुनावी गुणा-भाग के दौर से गुजर रहा वक्त का पहिया आगामी छह मई को कहां जाकर ठहरता है, यह देखना बाकी है. फिलहाल अभी हर दल-उम्मीदवार अपनी जीत के दावे कर रहा है. लोक लुभावन वादों की बरसात जारी है. जनता भी नेताओं-उम्मीदवारों की बातें मजे लेकर सुन रही है. आखिरकार फैसला तो उसे ही लेना है.