गुलाम चिश्ती
असम में 30 जुलाई को नेशनल रजिस्टर आॅफ सिटिजन (एनआरसी) का दूसरा और आखिरी मसौदा पेश कर दिया गया है। इसे जारी करने से पहले राज्य में सुरक्षा बेहद सख्त कर दी गई थी। मसौदे में जिनका नाम नहीं है, उन्हें फिर से मौका दिए जाने की बात कही जा रही है। एनआरसी पर जारी मसौदे के अनुसार 2 करोड़ 89 लाख 83 हजार 677 लोगों को वैध नागरिक मान लिया गया है। 3 करोड़ 29 लाख 91 हजार 384 लोगों ने आवेदन किया था, जिनमें 40 लाख 7 हजार 707 लोगों के नाम एनआरसी की सूची में नहीं जोड़े गए। सरकार का कहना है कि एनआरसी से वंचित लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने का पर्याप्त मौका दिया जाएगा। मसौदा जारी होने के बाद एनआरसी के राज्य समन्वयक प्रतीक हजेला की ओर से कहा गया कि ‘यह मसौदा अंतिम नहीं है, जिन लोगों को इसमें शामिल नहीं किया गया है, इस पर अपनी आपत्ति और शिकायत दर्ज करा सकते हैं।’ एनआरसी मसौदे को लेकर पूरे राज्य में सुरक्षा के बेहद सख्त इंतजाम किए गए। एहतियातन सीआरपीएफ की 220 कंपनियों को भी तैनात कर दिया गया। जिला उपायुक्तों एवं पुलिस अधीक्षकों को कड़ी सतर्कता बरतने को कहा गया। बरपेटा, दरंग, दीमा हसाओ, शोणितपुर, करीमगंज, गोलाघाट और धुबड़ी समेत 14 जिलों में धारा 144 लागू कर दी गई थी। एक अधिकारी के अनुसार पुलिस अधीक्षकों ने अपने-अपने संबंधित जिलों में संवेदनशील इलाकों की पहचान की थी। किसी भी अप्रिय घटना खासकर अफवाह से होने वाली घटनाओं को रोकने के लिए स्थिति पर बेहद सावधानी से निगरानी बरती गई। असम एवं पड़ोसी राज्यों में सुरक्षा चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए केंद्र ने केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल की 220 कंपनियों को भेजा। असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने एनआरसी मसौदा जारी होने के मद्देनजर हाल में उच्चस्तरीय बैठक की और अधिकारियों को सतर्क रहने तथा मसौदे में जिन लोगों के नाम नहीं होंगे, उनके दावों एवं आपत्तियों की प्रक्रिया की व्याख्या एवं मदद के लिए कहा गया। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे एनआरसी मसौदा सूची पर आधारित किसी मामले को विदेश न्यायाधिकरण को न भेजें। हजेला ने बताया कि मसौदा में जिनके नाम नहीं होंगे, उनके दावों की पर्याप्त गुंजाइश होगी। उन्होंने कहा कि अगर वास्तविक नागरिकों के नाम दस्तावेज में मौजूद न हों तो वे घबराएं नहीं, बल्कि उन्हें संबंधित सेवा केंद्रों में निर्दिष्ट फॉर्म को भरना होगा। ये फॉर्म सात अगस्त से 28 सितंबर के बीच उपलब्ध होंगे और अधिकारियों को उन्हें इसका कारण बताना होगा कि मसौदा में उनके नाम क्यों छूटे। इसके बाद अगले कदम के तहत उन्हें अपने दावे को दर्ज कराने के लिए एक अन्य निर्दिष्ट फॉर्म भरना होगा, जो 30 अगस्त से 28 सितंबर तक उपलब्ध रहेगा। इससे पहले गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी कह चुके हैं कि लोगों को इसमें आपत्ति दर्ज कराने के लिए पर्याप्त अवसर दिया जाएगा। राजनाथ ने कहा कि 15 अगस्त 1985 को हुए असम समझौते के अनुसार, एनसीआर को अपडेट किया जा रहा है और पूरी प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार चल रही है। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत लगातार इस प्रक्रिया की निगरानी कर रही है। बता दें कि असम में अवैध रूप से रह रहे लोगों को निकालने के लिए सरकार ने नेशनल रजिस्टर आॅफ सिटिजन्स (एनआरसी) अभियान चलाया है। दुनिया के सबसे बड़े अभियानों में गिना जाने वाला यह कार्यक्रम डिटेक्ट, डिलीट और डिपोर्ट आधार पर है। यानी कि अवैध रूप से रह रहे लोगों की पहले पहचान की जाएगी फिर उन्हें वापस उनके देश भेजा जाएगा। असम में घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए यह अभियान करीब 37 सालों से चल रहा है। 1971 में बांग्लादेश के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान वहां से पलायन कर लोग भारत भाग आए और यहीं बस गए। इस कारण स्थानीय लोगों और घुसपैठियों के बीच कई बार हिंसक झड़पें हुर्इं। 1980 के दशक से ही यहां घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए आंदोलन हो रहे हैं। इसी साल जनवरी में असम में सरकार ने नेशनल रजिस्टर आॅफ सिटिजन्स (एनआरसी) का पहला ड्राफ्ट जारी किया था। इसमें 3 करोड़ 29 लाख लोगों में से केवल 1 करोड़ 90 लाख को ही भारत का वैध नागरिक माना गया था। नागरिक न माने गए लोगों में 2 लाख 48 हजार ऐसे थे जिन्हें भारतीय चुनाव आयोग ने संदिग्ध मतदाता माना है। इन लोगों के और उनके वंशजों के मताधिकार खारिज हो चुके हैं। जिनके पास अभी बचे हुए हैं उन्हें किसी भी समय विदेशी घोषित किया जा सकता है। उन्हें पहले से ही पता है कि उनके नाम एनआरसी ड्राफ्ट में तब तक शामिल नहीं होंगे जब तक कि ट्रिब्यूनल इसकी मंजूरी नहीं देता। लगभग 1 लाख 50 हजार लोग ऐसे हैं जिनके नाम पहले ड्राफ्ट में शामिल थे लेकिन दूसरे ड्राफ्ट में उनका नाम नहीं है, उन्हें लेटर आॅफ इनफॉर्मेशन (एलओआई) भेजा गया है। इस लेटर के जरिये उन्हें बताया गया है कि आखिर क्यों उनका नाम ड्राफ्ट में नहीं है। इन अभ्यर्थियों को तीन कारणों से बाहर किया गया है- एक: उनका नाम गलती से शामिल हुआ था, दो: उन्होंने झूठे दावे किए थे या फिर तीन: उनके द्वारा जमा करवाए गए पंचायत सर्टिफिकेट अवैध पाए गए हैं। एलओआई फाइनल ड्राफ्ट के प्रकाशित होने से सात दिन पहले अयोग्य आवेदकों को दिया जाएगा। इसमें लिखा जाएगा कि आवेदक के पास एनआरसी में अपना नाम जुड़वाने का दावा करने का एक और मौका है। इसमें अपना दावा जमा करवाने का समय और स्थल भी लिखना होगा। यह बात एनआरसी के स्टेट-कोआॅर्डिनेटर प्रतीक हजेला ने सुप्रीम कोर्ट को बताई और इसकी इजाजत मांगी, जो उन्हें कोर्ट से मिल गई थी। जिन लोगों के नाम ड्राफ्ट में शामिल नहीं हैं उन्हें 7 अगस्त से 28 सितंबर के बीच नए सिरे से स्थानीय रजिस्ट्रार के पास आवेदन करना होगा और इस तरह वे नाम शामिल न होने का कारण जान सकते हैं। आरजीआई शैलेष ने कहा, ‘निजी जानकारी और नाम न शामिल होने के कारण को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा।’
असम के नेताओं का संतुलित बयान
इस मुद्दे पर असम से बाहर राजनीति तेज हो गई है, जबकि असम में पक्ष और विपक्ष दोनों इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए प्रयासरत हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओर से इस मुद्दे पर राजनीति की शुरुआत जरूर की गई, परंतु राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इस पर किसी भी तरह की राजनीति करने से इनकार कर दिया। असम प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रिपुन बोरा ने ममता के बयान को गैरजरूरी और भड़काने वाला बताया। असम विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष देबब्रत सैकिया ने भी ममता के बयान की आलोचना की। पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने तो यहां तक कह दिया कि ‘ममता को असम में राजनीति करने की जरूरत नहीं है, इसके लिए हम यहां मौजूद हैं।’ असम समझौते में मुख्य भूमिका निभाने वाले अखिल असम छात्र संघ (आसू) के नेताओं ने एनआरसी पर संतुलित बयान दिया। इस छात्र संगठन के मुख्य सलाहकार डॉ. समुज्जवल भट्टाचार्य ने एनआरसी का स्वागत करते हुए इसमें अहम भूमिका निभाने वाले लोगों को बधाई दी। कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) के नेता अखिल गोगोई ने भी ऐसी कोई बात नहीं कही, जिससे वृहत्तर असमिया समाज में किसी भी तरह का मनमुटाव हो। दूसरी ओर असम के लोगों ने ममता बनर्जी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बयान को गैर जरूरी बताया। ऐसे में इन दोनों नेताओं के जगह-जगह पुतले जलाए गए। ममता बनर्जी के खिलाफ पांच मामले तक दर्ज कराए गए हैं। ममता की बातें यहां की टीएमसी इकाई को अच्छी नहीं लगीं और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दीपेन पाठक ने अध्यक्ष पद सहित पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया।
बराक वैली ने नहीं दिया ममता का साथ
ममता बनर्जी ने असम के माध्यम से बंगाली अस्मिता की राजनीति को उभार देने की कोशिश की, परंतु उन्हें सबसे अधिक धक्का बराक वैली में लगी जहां अधिकांश लोग बांग्ला बोलते हैं और उनका रहन-सहन पूरी तरह बंगाली संस्कृति के अनुकूल है। वहां के लोगों को कथित तौर पर भड़काने के लिए टीएमसी के सांसदों और विधायकों की टीम सिलचर गई थी, जिन्हें वहां हवाई अड्डे पर ही रोक दिया गया। बावजूद इसके, टीएमसी को स्थानीय लोगों में किसी भी तरह का समर्थन नहीं मिला। सिलचर के स्थानीय समाजसेवी रतन पुरकायस्थ ने ओपिनियन पोस्ट को बताया, ‘हम चाहते हैं कि हम लोगों का नाम एनआरसी में शामिल हो, परंतु हम अपने कंधे पर बंदूक रखकर चलाने की अनुमति किसी भी राजनीतिक पार्टी को नहीं देंगे। यह हमारी साझी समस्या है, जिसका समाधान हम स्थानीय स्तर पर करेंगे। ममता न कभी हमारी हितैषी थीं और न उनसे भविष्य में कोई उम्मीद है।’
पूर्वोत्तर के अन्य राज्य भी कर रहे एनआरसी पर विचार
दूसरी ओर पूर्वोत्तर का राज्य नगालैंड भी नेशनल रजिस्टर आॅफ सिटीजंस (एनआरसी) को अपडेट करने पर विचार कर रहा है। लेकिन इससे पहले वह देखना चाहता है कि असम में एनआरसी अपडेट करने के बाद ऊंट किस करवट बैठता है। असम से लगे अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मेघालय और मणिपुर ने एनआरसी के अंतिम मसविदे के प्रकाशन के बाद असम से अवैध नागरिकों के घुसपैठ की आशंका से राज्य से लगी सीमा पर सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने का फैसला किया है। वहां की सरकारों ने राज्य के लोगों से भी ऐसी घुसपैठ के प्रति सतर्कता बरतने को कहा है। नगालैंड भी बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या से परेशान है और राज्य में समय-समय पर विभिन्न संगठनों की ओर से ‘बांग्लादेशी भगाओ’ अभियान चलाए जाते रहे हैं। लेकिन सरकार अब कानूनी प्रक्रिया के तहत एनआरसी को अपडेट कर अवैध अप्रवासियों को राज्य से बाहर निकलना चाहती है। राज्य के मुख्य सचिव टेमजेन टॉय ने इस मुद्दे पर राजधानी कोहिमा में पुलिस व प्रशासन के आला अधिकारियों के साथ एक उच्चस्तरीय बैठक की। वह कहते हैं, ‘राज्य सरकार एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू करने पर विचार कर रही है। लेकिन हम असम में इसकी कामयाबी देखने के बाद ही इस मामले में पहल करेंगे। अवैध घुसपैठिये राज्य में एक गंभीर समस्या बनते जा रहे हैं। नगालैंड को डर है कि 30 जुलाई को असम में एनआरसी के अंतिम मसविदे के प्रकाशन के बाद वहां से हजारों घुसपैठिये राज्य में आ सकते हैं।’ टेमजेन बताते हैं, ‘सरकार ने एहतियाती उपाय के तौर पर असम से लगी सीमा पर सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने का फैसला किया है। इसके लिए केंद्रीय बलों के अलावा इंडियन रिजर्व बटालियन (आईआरबी) की अतिरिक्त टुकड़ियों को मौके पर तैनात किया गया।’ वहीं नगा छात्र संघ (एनएसएफ) ने भी 31 जुलाई से राज्य के बाहर के तमाम लोगों के कागजात की जांच करने का एलान किया। उसने सीमा पर स्थित अपनी शाखाओं को सतर्क कर दिया है। इसके अलावा पंचायतों से भी घुसपैठ पर निगाह रखने को कहा गया है। एनएसएफ के अध्यक्ष केसोसाल क्रिस्टोफर लू कहते हैं, ‘असम में एनआरसी अपडेट करने की प्रक्रिया पड़ोसी राज्यों खास कर नगालैंड की आबादी संतुलन के लिए एक गंभीर खतरा है। अप्रवासियों की आवाजाही पर निगरानी रखने के लिए नगालैंड सरकार को एक ठोस तंत्र विकसित करना चाहिए।’ नगालैंड के अलावा मेघालय में भी असम से लगी सीमा पर निगरानी बढ़ा दी गई है। खासी छात्र संघ (केएसयू) ने असम से संभावित घुसपैठ पर चिंता जताई है। संगठन के महासचिव डॉनल्ड वी थाबा ने राज्य की साझा सरकार से ‘ठोस घुसपैठ-रोधी कदम’ उठाने को कहा है। थाबा कहते हैं, ‘1971 के बाद असम में बांग्लादेशियों की लगातार बढ़ती घुसपैठ की वजह से असमिया, बोड़ो और राभा जैसी जनजातियां अपने घर में ही बेगानी हो गई हैं। हम नहीं चाहते कि मेघालय की जनजातियों का भी वही हश्र हो।’ मणिपुर व अरुणाचल प्रदेश में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकारों ने भी असम से अवैध नागरिक करार दिए जाने वाले लोगों की घुसपैठ की आशंका के मद्देनजर सीमा पर सुरक्षा बढ़ा दी है। मणिपुर ने असम की बराक घाटी से लगे जिरीबाम इलाके में सुरक्षा बलों की अतिरिक्त टुकड़ियां तैनात कर दी हैं। अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने भी सीमा पर आवाजाही करने वालों की कड़ी जांच करने का निर्देश दिया है। राज्य के पुलिस महानिदेशक एसबी सिंह कहते हैं कि ‘हमने तमाम एहतियाती उपाय किए हैं ताकि असम से घुसपैठिये राज्य का रुख न कर सकें।’दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिनों यह कह कर इन राज्यों का डर बढ़ा दिया था कि एनआरसी की अंतिम सूची से लाखों लोगों के नाम बाहर हो सकते हैं। एनआरसी के अंतिम मसविदे के प्रकाशन के बाद किसी संभावित समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने असम व पड़ोसी राज्यों में केंद्रीय बलों के 22 हजार जवान भेजे हैं। असम के शिवसागर, कार्बी आंग्लांग, जोरहाट, गोलाघाट और उरियामघाट जैसे इलाके नगालैंड से लगी सीमा के पास स्थित हैं। इस बीच केंद्रीय गृह मंत्रालय ने असम समेत इलाके के तमाम राज्यों को भेजे गए एक सर्कुलर में उनसे एनआरसी के प्रकाशन के बाद कानून व व्यवस्था की समस्या पर नजदीकी निगाह रखने और आपस में तालमेल बना कर काम करने की सलाह दी है। इन राज्यों से मुख्य सचिव की अगुवाई में समिति का गठन करने को कहा गया है। इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भरोसा दिया था कि एनआरसी में जिनके नाम नहीं होंगे उनको राज्य से तत्काल खदेड़ा नहीं जाएगा। लेकिन इससे इन राज्यों की आशंका कम नहीं हुई है। असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल कहते हैं, ‘राज्य सरकार सभी भारतीय नागरिकों को सुरक्षा मुहैया कराएगी और किसी को एनआरसी के प्रकाशन के बाद पैदा होने वाली स्थिति की चिंता नहीं करनी चाहिए।’ लेकिन असम के लाखों अल्पसंख्यकों के अलावा पड़ोसी राज्य सरकारों के दिलों की धड़कनें भी बढ़ती जा रही हैं।
अन्य राज्यों के लोग भी एनआरसी
से बाहर
इन दिनों एनआरसी असम में 40 लाख से ज्यादा लोगों को जगह नहीं मिल पाना चर्चा का विषय है। संभव है कि इसमें अवैध विदेशियों के नाम शामिल हों। बावजूद इसके प्रशासन की ढिलाई से बहुत से भारतीय नागरिक भी इस सूची से बाहर हैं। अगर एनआरसी से जुड़े लोग कुछ बेहतर काम करते और असम व दूसरे कई राज्यों के प्रशासन ने मुस्तैदी दिखाई होती तो यह संख्या काफी कम हो सकती थी। एनआरसी से बाहर होने वाले लोगों में एक बहुत बड़ी संख्या बिहार, बंगाल, यूपी और अन्य राज्यों के लोगों की है। वे इस प्रक्रिया में शामिल न किए जाने के कारण गुस्से में हैं। असमवासियों को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए 1951 की एनआरसी में और 24 मार्च, 1971 की आधी रात से पहले की मतदाता सूची में नाम होना प्रमुख प्रमाण था, जिन्हें सामूहिक रूप से लीगेसी यानी विरासत का विवरण कहा गया। साल 2015 में शुरू हुई इस कवायद में लोगों के दस्तावेज की वैधता की जांच और फील्ड वेरिफिकेशन किया गया और उसके बाद एनआरसी का ड्राफ्ट तैयार हुआ। एनआरसी की शर्तों के मुताबिक किसी आवेदक को 1951 की एनआरसी में शामिल या 1971 तक की मतदाता सूची में शामिल अपने भारतीय पूर्वजों से रिश्ता साबित करने के लिए उपरोक्त में से कोई भी दस्तावेज पेश करना था। लेकिन एनआरसी से बाहर बहुत से लोग अपनी पारिवारिक विरासत को साबित कर सकने वाला ऐसा कोई लिंकेज डॉक्यूमेंट देने में विफल रहे। उदाहरण के लिए किसी ग्रामीण महिला को किसी सर्किल आॅफिसर, ग्राम पंचायत सचिव या सरपंच से हासिल मैरिज सर्टिफिकेट पेश करना था, परंतु तमाम विवाहित महिलाएं अपने विरासत के दस्तावेज जैसे पिता के बारे में प्रमाण नहीं पेश कर पार्इं। जाहिर है कि जिन महिलाओं का मायका काफी दूर या दूसरे राज्य में है, उनके लिए यह मुश्किल काम था। नागरिकता को साबित करने के लिए यह महत्वपूर्ण था कि आवेदक की विरासत का प्रमाण वोटर लिस्ट और 1951 की एनआरसी में हो। 1951 के बाद की सभी जिलों की मतदाता सूची को आॅनलाइन और एनआरसी सेवा केंद्रों में उपलब्ध किया गया। कई जिलों में कुछ साल की मतदाता सूचियां गायब हैं। नए एनआरसी ड्राफ्ट में बड़ी संख्या में लोगों का आवेदन खारिज होने की यह भी एक वजह है। आवेदकों से इसके विकल्प में कुछ और दस्तावेज पेश करने को कहा गया था, लेकिन ऐसा लगता है कि उन्होंने किया नहीं। साल 1951 की जनगणना के बाद देश भर में उसी साल नेशनल रजिस्टर आॅफ सिटिजन्स यानी एनआरसी तैयार किया गया था। इसमें 1951 की जनगणना के हर व्यक्ति को शामिल किया गया था। यह रजिस्टर डिप्टी कमिश्नरों और जिलों के एसडीएम के दफ्तरों में रखा गया था। बाद में इसे पुलिस को सौंप दिया गया। देखा गया कि तीन जिलों- शिवसागर, कछार और कार्बी आंगलांग के 1951 के एनआरसी डेटा गायब हैं। बहुत से लोगों के आवेदन खारिज होने की यह भी एक वजह है। साल 2015 में जब ड्राफ्ट रजिस्टर बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई तो ऐसी तमाम बातों पर विचार किया गया था। लेकिन ऐसा लगता नहीं कि इस मामले में कोई रियायत मिली है। मतदाता सूचियों में संशोधन के दौरान जो लोग अपनी नागरिकता का प्रमाण नहीं दे पाए थे, उन्हें असम में ‘डी’ (डाउटफुल) वोटर मान लिया गया। हालांकि उन्हें 2015 के एनआरसी में अपना नाम शामिल कराने का मौका दिया गया। लेकिन प्रशासन ने कहा कि नए रजिस्टर में उनका नाम शामिल होना इस पर निर्भर करता है कि फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल यह प्रमाणित कर दे कि वे विदेशी नहीं हैं। असम सरकार के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में करीब 2.84 लाख डी वोटर्स हैं। इन सभी लोगों के एनआरसी आवेदन को लंबित कर दिया गया। यही नहीं, जब तक ट्रिब्यूनल उनके बारे में कोई निर्णय नहीं लेता, उनकी संतानों को भी रजिस्टर में शामिल नहीं किया जा सकता। वोटर लिस्ट या एनआरसी जैसे दस्तावेज के लिए डेटा एंट्री का चरण काफी महत्वपूर्ण होता है। जानकारियों को दर्ज करने में हुई खामी से भी बहुत से लोग एनआरसी से बाहर हो गए हैं। कई लोगों के नाम की स्पेलिंग गलत दर्ज हो जाने से भी उनके दावे खारिज हो गए हैं। असम एनआरसी के नोडल आॅफिस ने करीब छह लाख आवेदनों को वेरिफिकेशन के लिए दूसरे राज्यों में भेजा था। इनमें से 30 फीसदी के बारे में ही जानकारी वापस भेजी गई। एनआरसी ने सुप्रीम कोर्ट को दिए हलफनामे में बताया था कि सिर्फ पश्चिम बंगाल की ममता सरकार को ही ऐसे 1 लाख 14 हजार 971 मामले वेरिफिकेशन के लिए भेजे गए थे, जिनमें लोगों ने यह दावा किया था कि उनका मूल पश्चिम बंगाल में है। ऐसे में इस प्रक्रिया को बाधित करने में देश के अन्य राज्यों की भूमिका भी कम संदिग्ध नहीं है। कुल मिलाकर देशी को संदिग्ध विदेशी की सूची में डलवाने के कई कारण हैं, जिसके लिए किसी एक को दोषी ठहराना बेईमानी है।
कुछ संदिग्ध बंगाल में बसने की तैयारी में
असम में अवैध रूप से रह रहे लोगों को पश्चिम बंगाल में बसाने की तैयारी शुरू हो गई है। खासतौर से, राज्य की सीमा के साथ लगते जिलों के प्रशासनिक अधिकारियों को विशेष इंतजाम करने की हिदायत दी गई है। पश्चिम बंगाल, मिजोरम व त्रिपुरा की सरकारों के अलावा खुफिया एजेंसियों से भी यही इनपुट मिल रहा है। असम में रह रहे ऐसे लोग, जिनके पास किसी भी तरह का कोई दस्तावेज नहीं है, वे इन्हीं तीन राज्यों का रुख कर सकते हैं। गोपनीय जानकारी के मुताबिक, पिछले कुछ दिनों में साढ़े तीन हजार लोग असम से निकल चुके हैं। बहुत बड़ी तादाद ऐसे लोगों की है, जिनके पास अभी तक कोई सरकारी दस्तावेज नहीं है। ये लोग असम से निकलना शुरू हो गए हैं। गृह मंत्रालय में उत्तरपूर्व के राज्यों के जानकार एक बड़े अधिकारी का कहना है, ‘पश्चिम बंगाल, मिजोरम व त्रिपुरा इनकी पहली पसंद है। वजह, इन राज्यों की सीमा के साथ लगते क्षेत्रों में बांग्लादेश के लोगों की बड़ी तादाद है। असम से आने वाले लोग खुद को यहां सुरक्षित महसूस करेंगे और साथ ही उन्हें कोई काम धंधा शुरू करने में थोड़ी बहुत मदद मिल जाएगी।’ हालांकि अधिकारी का कहना है कि ‘ऐसे लोगों को देर-सवेर फिर से एनआरसी सूची का सामना करना पड़ेगा। चूंकि अभी इन लोगों को सुरक्षित शेल्टर पश्चिम बंगाल ही नजर आ रहा है, इसलिए वे यहीं का रुख कर रहे हैं। वहां का प्रशासन इनके लिए नरम और सहयोगी भी है। त्रिपुरा जाने के लिए इन्हें लंबा रास्ता तय करना होगा। मिजोरम पहुंचना इनके लिए मुश्किल नहीं है। वहां भी कुछ लोग पहुंचे हैं।’ भारतीय जनता पार्टी की युवा इकाई के राष्ट्रीय सचिव सौरभ सिकंदर और पश्चिम बंगाल यूथ विंग के अध्यक्ष देबजीत सरकार का कहना है, ‘तृणमूल कांग्रेस सरकार असम से आने वाले लोगों को अपने यहां बसाने की पूरी तैयारी कर रही है। अलीपुर द्वार एक ऐसा ही इलाका है। बाढ़ पीड़ितों के लिए यहां शेल्टर लगता था। पिछले चार साल से बाढ़ नहीं आई है, इसके बावजूद इसे दोबारा तैयार कराया जा रहा है। इसी तरह से कई और भी इलाके हैं, जहां असम से आने वालों को ठहराया जाएगा।’ देबजीत के मुताबिक, ‘बारासात, दक्षिण 24 परगना, बाहरुइपुर, वीरभूम और पुरुलिया में भी शिविर बन रहे हैं। जहां-जहां पर नए कैंप बन रहे हैं, वहां पंचायतीराज संस्थाओं पर तृणमूल कांग्रेस का कब्जा है। यही वजह है कि सरकार को बाहर से आने वाले लोगों को यहां बसाने में किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता।’ असम में तैनात एक सिविल अधिकारी का कहना है, ‘यहां से अभी जो लोग निकल रहे हैं, उनके पास किसी भी तरह का कोई दस्तावेज नहीं है। इनमें अधिकांश वे लोग हैं, जो पिछले दस-बारह साल पहले ही घुसपैठ के जरिये भारत आए थे। इन्होंने बांग्लादेश से बिना किसी दिक्कत के पश्चिम बंगाल में प्रवेश कर लिया था। इसके बाद वे कामकाज की वजह से असम जाकर बस गए। अब ये लोग जानते हैं कि दस्तावेज के अभाव में ये किसी भी कोर्ट या दूसरी संस्था के सामने अपना पक्ष नहीं रख सकेंगे।’
हिंदीभाषियों में निराशा
एनआरसी की दूसरी और अंतिम मसौदा सूची प्रकाशित होने के बाद हिंदीपट्टी से आए लोगों में निराशा है। उसमें बड़ी संख्या में बिहार, यूपी, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान से आए लोगों के नाम शामिल नहीं हैं। इस पर असम भोजपुरी परिषद, पूर्वोत्तर हिंदुस्तानी सम्मेलन और अन्य ने चिंता जताई है, परंतु मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने भरोसा दिलाया है कि उन्हें चिंतित होने की जरूरत नहीं है। दूसरी ओर कहा जा रहा है कि एनआरसी प्रबंधन की ओर से राज्यों को जांच के लिए प्रेषित डाक्यूमेंट्स को जांच कर वापस नहीं भेजा गया है। इससे बड़ी संख्या में लोगों के नाम एनआरसी से बाहर हो गए हैं। इसको देखते हुए असम विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता देबब्रत सैकिया ने संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर डाक्यूमेंट्स की जांच तुरंत भेजने की अपील की है ताकि भारतीय नागरिकों के नाम एनआरसी से बाहर न हो सकें। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि असम की इस समस्या के समाधान के प्रति राज्य की सभी राजनीतिक पार्टियां और विभिन्न संगठन कार्य कर रहे हैं, वहीं दिल्ली में बैठे राजनेता और अन्य लोग इस पर राजनीति कर रहे हैं। असम के लोगों की एकजुटता साबित करती है कि वे समस्याओं पर राजनीति नहीं करते और उसके समाधान में योगदान करते हैं। यहां के लोगों और राजनेताओं की यही समझ उन्हें दूसरों से अलग करती है।