हालही में ओडिशा के पिछड़े जिले कालाहांडी में एक आदिवासी को अपनी पत्नी के शव को अपने कंधे पर लेकर करीब 10 किलोमीटर तक चलना पड़ा। उसे अस्पताल से शव को घर तक ले जाने के लिए कोई वाहन नहीं मिल सका था।
व्यक्ति के साथ उसकी 12 साल की बेटी भी थी। बुधवार सुबह स्थानीय लोगों ने दाना माझी को अपनी पत्नी अमंग देई के शव को कंधे पर लादकर ले जाते हुये देखा। 42 साल की महिला ने मंगलवार रात को भवानीपटना में जिला मुख्यालय अस्पताल में टीबी से मौत हो गई थी।
पत्नी का शव कंधे पर डाले दाना माझी की खबर अभी समाचारों से ओझल भी नहीं हुई थी कि राज्य के बालासोर से एक और दर्दनाक मंज़र सामने आया है। बालासोर के सोरो इलाके के एक स्वास्थ्य केंद्र में स्वीपर एक लाश के ऊपर खड़ा होकर अपने पैरों से उसकी हड्डियां तोड़ता है ताकि लाश को छोटा करके उसकी गठरी बनाई जा सके। इसके बाद दो कर्मचारी इस सिमटी लाश को कपड़े और प्लास्टिक से लपेटकर बांस की लकड़ी पर लटकाते हैं और अपने कंधे पर उठा लेते हैं।
यह लाश 76 साल की विधवा सालामनी बारिक की है जिसकी बुधवार को बालासोर से 30 किमो दूर सोरो में ट्रेन की चपेट में आकर मौत हो गई। बारिक की लाश को बालासोर तक लाने के लिए कोई एंबुलेंस उपलब्ध नहीं थी। दरअसल सोरो में कोई अस्पताल है ही नहीं, सिर्फ एक सामाजिक स्वास्थ्य केंद्र है और लाश को पोस्ट मॉर्टम के लिए ट्रेन से बालासोर तक लाना था। शव को स्टेशन तक ले जाने के लिए एक ऑटो करने के बारे में सोचा गया लेकिन वह बहुत मंहगा साबित हो रहा था इसलिए कर्मचारियों से कहा गया कि वह पैदल ही लाश को स्टेशन तक लेकर जाएं।
मृतक के बेटे रवींद्र बारिक ने बताया ‘वह मेरी मां को बुरे हाल में लेकर गए। मैं मजबूर था। कुछ नहीं कर सका। मैं न्याय की गुहार लगाता हूं।’ इस मामले के सामने आने के बाद ओडिशा मानवाधिकार आयोग ने पुलिस और बालासोर जिला प्राधिकरण से जवाब मांगा है।