मौलाना महमूद मदनी जमीयत उलेमा ए हिंद के महासचिव और पूर्व राज्यसभा सदस्य होने के अलावा हाल में हिन्दुस्तान के सबसे प्रभावशाली मुस्लिम रहनुमा के खिताब से नवाजे गए हैं। द रॉयल इस्लामिक स्ट्रेटजिक सेंटर, जॉर्डन ने दुनियाभर में सर्वे कराया था, जिसमें उन्हें यह खिताब हासिल हुआ। मौलाना मदनी मानते हैं कि आईएसआईएस ने दुनियाभर में न केवल इस्लाम और मानवता को बदनाम किया है बल्कि मुसलमानों का इज्जत से जीना भी दूभर कर दिया है। उन्होंने पहल करते हुए देश के 75 शहरों में आईएसआईएस की गतिविधियों के विरोध में प्रदर्शनों का आयोजन किया था जो बेहद कामयाब रहे। इस्लाम के नाम पर भारत समेत दुनियाभर में फैले आतंकवाद और खासकर पेरिस हमलों के बाद आईएसआईएस के ‘इस्लामी खौफ’ को लेकर अजय विद्युत ने उनसे बातचीत की।
आईएसआईएस समेत तमाम आतंकी संगठन कहते हैं कि वे इस्लाम को बचाने के लिए ऐसा कर रहे हैं। यह जेहाद है।
यह आतंकवाद है। पिछले दस-बारह सालों से हम आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। पेरिस से पहले टर्की में आतंकवादी घटना में सौ लोग मारे गए, उसके बाद बेरूत में हुआ, फिर फ्रांस में हुआ और अभी फिर माले में हुआ। दुनिया के हालात खराबी की तरफ जा रहे हैं। ऐसे में हमारी जिम्मेदारी है कि अपनी ताकतभर (हालांकि कमजोर हैं हम, उतनी ताकत तो नहीं है हमारी, लेकिन जो भी ताकत है उससे ही) आतंकवाद का विरोध करें और मानवता को बचाने की चेष्टा करें। इसी बात को लेकर हमने देश के कई शहरों में आतंकवादी घटनाओं का पुरजोर तरीके से विरोध किया कि यह इस्लाम नहीं हो सकता। जितने भी खूबसूरत नारे हैं जिनसे लोगों को झांसा, धोखा दिया और बहकाया जा सकता है, ये लोग उनका इस्तेमाल कर रहे हैं। इस्लाम का नाम इस्तेमाल कर रहे हैं, चाहे वह बोको हराम हो या आईएसआईएस या और कोई! आप इतिहास उठाकर देखें तो जितने ज्यादा गलत लोग या समूह हुए हैं, उन्होंने उतना ज्यादा ही नाम लिया है अच्छी चीजों का। हजरत अली की अरबी की एक मशहूर कहावत है जिसका आशय है कि ‘सच्ची बात है लेकिन इरादे जो हैं वे गंदे हैं।’ तो इस्लाम तो सच्चाई है। उसका मतलब तो सलामती है, शांति है। और ये लोग धर्म के नाम पर अधर्म कर रहे हैं। अन्याय, अत्याचार कर रहे हैं। और जेहाद के नाम पर फसाद फैला रहे हैं। जेहाद तो अपने आप में बड़ा पवित्र, पाकीजा काम है। यह लोगों को कत्ल करने, बर्बाद करने और दुनिया में फसाद फैलाने का काम थोड़े ही है। ये दहशतगर्द इस्लाम की उन खूबसूरत चीजों का अपने गलत इरादों के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं जिनकी वजह से दुनिया में इस्लाम के प्रति मोहब्बत, सम्मान है। इस्लाम तो यह है कि जो इस्लाम को नहीं मानते उनको भी लगे कि यह इस्लाम को मानने वाला है तो अच्छा आदमी होगा, मुसलमान को देखकर दुनिया का आदमी अपने को सुरक्षित महसूस करे कि यहां एक मुसलमान मौजूद है और अगर कहीं कुछ भी अन्याय होगा तो यह विरोध में खड़ा हो जाएगा और हमारे ऊपर कोई जुल्म नहीं होने देगा। इसके बजाय आप इस्लाम का नाम इस्तेमाल कर रहे हैं लोगों को डराने, दहशत फैलाने के लिए कि दुनिया के किसी भी कोने में कोई मुसलमान को देखेगा तो फौरन उसके दिमाग में आएगा कि ‘ओह, मुसलमान आ गया। अब जरा बच के रहो।’ तो यह क्या कर दिया आपने। आप मुसलमानों के दोस्त नहीं हैं। आप सीधे-सीधे मुसलमानों के दुश्मन हैं और उससे भी बड़ी बात यह है कि आप इस्लाम के दुश्मन और विरोधी हैं। आपने इस्लाम का नाम बदनाम कर दिया, उसका रास्ता बंद कर दिया। आप खुद देखिए कि जब इस्लाम में इतनी खूबियां हैं कि उनको अगर मुसलमान अपना ले तो आप भी एक बार सोचेंगे कि इसे समझना चाहिए और कुरआन को पढ़ना चाहिए कि इतने अच्छे कैसे हो गए ये लोग। लेकिन जब इस्लाम के नाम पर बुराई का काम होने लगेगा तो कैसे काम चलेगा?
देवबंदी विचारधारा का बार-बार इस्लाम से रिश्ता क्यों जुड़ता है?
ये सब साजिश के तहत योजना बनाकर किया जा रहा कुप्रचार है, वरना देवबंद ने ही 2007 में आतंकवाद के खिलाफ फतवा जारी दिया था। लोगों को मालूम होना चाहिए कि भारत में आतंकवाद के खिलाफ सबसे पहला फतवा देवबंद ने ही दिया है। और वो भी देवबंद के ही लोग थे जिन्होंने सबसे पहले धर्म के नाम पर देश के विभाजन ‘टू नेशन थ्योरी’ का विरोध किया। इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान बनाए जाने का पुरजोर विरोध अगर किसी धार्मिक संस्था ने किया है तो वह देवबंद के लोगों ने किया है। इसमें मौलाना हुसैन अहमद मदनी थे, मौलाना यूसुफुर्रहमान थे जो पहली पार्लियामेंट के मेम्बर हुआ करते थे, ये सब देवबंदी थे। इसके अलावा भारत के स्वतंत्रता संग्राम में देवबंद के लोगों ने लीडिंग रोल प्ले किया है। कितने सेनानी पैदा किये। मौलाना महमूद हसन देवबंदी माल्टा की जेल में गए। वो देवबंद के हेडमास्टर थे और उन्होंने भारत की पहली निर्वासित सरकार बनाई थी। भारत से बाहर बनाई गई यह सरकार अफगानिस्तान में बनाई गई थी। यह मौलाना महमूद हसन देवबंदी और उनके छह शिष्यों ने बनाई थी। प्लानिंग मौलाना ने की थी और उस सरकार का पहला प्रेजिडेंट राजा महेंद्र प्रताप को बनाया गया। तो देवबंद का योगदान तो देश की आजादी के आंदोलन में भी रहा है और देश की एकता-अखंडता को बरकरार रखने में भी रहा है। और मैं तो खुद देवबंद का प्रोडक्ट हूं, वहीं से सीखा हमने ये सबकुछ। आतंक के साथ देवबंद का नाम घसीटना मैं कहूंगा कि बड़ी राजनीतिक साजिश की मंशा से ऐसी कोशिशें की जाती रही हैं।
इस सबके बावजूद भी तो दुनिया के जितने बड़े आतंकवादी हैं उनका देवबंद से कोई न कोई रिश्ता रहा है। जैसे समीउल हक जो मदरसा हक्कानिया में है और उसे अल कायदा का जनका माना जाता है, वह देवबंद से पढ़ा है।
मौलाना समीउल हक देवबंद में एक दिन नहीं पढ़े हैं, लेकिन हैं देवबंदी विचारधारा के यह सही है। देवबंदी विचारधारा का जो बड़ा मदरसा है पाकिस्तान के अकोड़ा खटक में, उसके वह हेड हैं। तो देवबंद के नाम पर ऐसा प्रचार, यह पाकिस्तान की लोकल पॉलिटिक्स है, वरना देवबंद तो देवबंद, भारत में ही है। यह एक मिसाल आपको मिली है। लेकिन उसी देवबंद के मौलाना फजलुर्रहमान हैं। वह हमेशा शांति की बात करते हैं और पाकिस्तान में रहते हुए आतंकवाद का डटकर विरोध करते हैं। उनपर चार बार आत्मघाती हमले हो चुके हैं। 2014 में 13 दिसम्बर को देवबंद और 14 दिसम्बर को दिल्ली के रामलीला ग्राउंड में हमने इंटरनेशनल पीस कांफ्रेंस की थी, उसमें वह चालीस लोगों के प्रतिनिधिमंडल के साथ आए थे। बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, पाकिस्तान, भूटान, यंगून के उलेमा जमा हुए और आतंकवाद का विरोध किया था। तो एक आदमी का नाम देवबंद से जोड़कर पाकिस्तान की सरकार और तहरीके पाकिस्तान मिलकर ऐसी साजिशें कर रहे हैं। लेकिन महज एक आदमी के शामिल होने से देवबंद थोड़े ही बदनाम हो जाएगा। वह कुछ भी कहे उसके कहने भर से क्या होता है? देवबंद का अपना एक पूरा इतिहास है। देवबंद की विचारधारा तो यह है कि वह हमेशा से आतंकवाद का विरोध करता चला आ रहा है।
देखिए, बरेलवी संप्रदाय का संबंध इस्लाम की सूफी विचारधारा से है और उसको मानने वाले कभी आतंकवाद से नहीं जुड़े।
सूफी तो हम हैं। देवबंद सूफी है। खुद देवबंद में पूरा सूफियों का सिलसिला है। जितने चिश्ती हैं और नक्शबंदी हैं, इन सब सूफियों का सिलसिला देवबंद से है। जहां तक दूसरों की बात है तो मेरी नीति यह है कि मैं किसी का विरोध नहीं करता। अगर वे कहते हैं कि वे भी सूफियों से निकले हैं तो निकले हैं, बिल्कुल ठीक है। अगर वे कहते हैं कि वे आतंकवाद का विरोध करते हैं और वहां से कोई आतंकवादी नहीं निकला है तो मैं इसे भी मान लेता हूं। लेकिन नहीं छापने की शर्त पर मैं एक सवाल आपके लिए छोड़ता हूं, आगे आप यह सवाल कर लीजिएगा कि दाऊद इब्राहीम कौन है? इसलिए इस बात को यहीं छोड़ देना ठीक होगा।
पर हम कुछ व्यक्तियों की नहीं, विचारधारा की बात कर रहे हैं?
आप ठीक कह रहे हैं। विचारधारा की बात यह है कि शिया हों, सुन्नी हों, देवबंदी हों, बरेलवी हों, अहले हदीस हों, विचारधारा के लिहाज से किसी को भी आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली विचारधारा नहीं सिद्ध किया जा सकता। और किसी का भी कोई ताल्लुक आतंकवाद से नहीं है। ये सब इंडिविजुअल्स का मामला होता है कभी इधर से, कभी उधर से, कभी और कहीं से। इन इक्का दुक्का लोगों से पूरी विचारधारा को नहीं जोड़ा जा सकता। जैसे कोई भारतीय, चाहे कोई मुसलमान या हिन्दू, अगर बेईमान हो जाए और टेररिस्ट हो जाएतो क्या पूरा भारत टेररिस्ट हो जाएगा। किसी पर कोई जुनून या पागलपान सवार हो भी जाता है।
वैचारिक आधार पर जब-जब देवबंद का संबंध आतंकवाद से जोड़ा जाता है तो आपको कोई चिन्ता होती है… या नहीं?
मुझे इसकी कोई चिन्ता नहीं है। मुझे चिन्ता है इस्लाम की। इस्लाम के नाम पर कोई गलत काम हमें मंजूर नहीं है। ऐसा पॉलिटिक्स के तहत किया जा रहा है। जहां भी ऐसा हो रहा है वहां पॉलिटिकल लड़ाई है और नाम इस्लाम का दिया जा रहा है। इसमें सब बड़े-बड़े मुल्क शामिल हैं। जो अपने आप को विकसित देश कहते हैं या नेता बनते हैं दुनिया के, ये उनकी पॉलिटिक्स है। यहां मैं देवबंद की नहीं पूरी दुनिया में इस्लाम की बात कर रहा हूं। आज हम आईएसआईएस को केंद्र में लेकर बात करने बैठे हैं तो वहां तो देवबंद का कोई वजूद नहीं है हम पूरी दुनिया और इस्लाम को लेकर ही बात करेंगे।
क्या पेरिस घटना के बाद इस्लाम बनाम अन्य के संघर्ष में बदल जाने की आशंका नहीं है? पहले इस्राइल, फिर अमेरिका और अब पेरिस घटना के बाद यूरोप भी… इस्लाम के खिलाफ हो गया है।
ऐसी आशंका तो निश्चित रूप से फैल रही है, मैं एग्री करता हूं इससे। ऐसी आशंकाएं मुख्य रूप से यूरोप और अमेरिका फैला रहे हैं और उनको ही यह समझना होगा कि ऐसी घटनाओं से पूरे इस्लाम को जोड़ना ठीक है, या नहीं। उन्होंने ही पहले अफगानिस्तान में रूस को हराने और भगाने के लिए सब गलत-सलत काम किए, हथियार दिए, ग्रुप्स खड़े किए। अलकायदा को अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने खड़ा किया। अब फिर वही लीबिया में किया। और आगे बढ़ें तो ईराक में किया, लाखों लोगों को मार दिया। अब ये सीरिया में कर रहे हैं। तो उन्हें बंद करना चाहिए यह सिलसिला।
क्या इस्लाम की वहाबी विचारधारा दुनियाभर में मुसलमानों के लिए संकट का सबब नहीं बन गई है?
देखिए, मैं किसी भी विचारधारा को किसी भी सूरतेहाल में आज की तारीख में कुछ कहना नहीं चाहता। मेरी एक ही बात है कि यह सब पॉलिटिक्स है। अलग-अलग विचारधाराएं हैं पर जैसा कि मैंने कहा कि कल को कहीं किसी का कोई मामला होगा तो कहेंगे कि ये शिया विचारधारा का है, कहीं और हुआ तो कहेंगे कि यह सुन्नी विचारधारा से जुड़ा है, फिर कहेंगे कि बरेलवी सूफी विचारधारा जो है वह भी ऐसी ही है। तो ऐसा नहीं है। हम तो सीधी बात कहते हैं कि इस्लाम के नाम पर गलत काम या इस्लाम की गलत व्याख्या जो भी करेगा, हम उसका विरोध करेंगे।